पश्चिमी भारत के समान पूर्वी भारत में भी विशेषकर आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय क्षेत्रों में भी बौद्ध एवं जैन गुफाओं का निर्माण हुआ।
आंध्र प्रदेश में शैलकृत गुफा वास्तुकला
आंध्र प्रदेश के गुंटूपल्ली की बौद्ध गुफाओं में स्तूप, विहार एवं गुफाओं का एक साथ निर्माण हुआ है। विहारों की अधिक संख्या, गोलाकार चैत्य गुफा, चैत्य के रूप में प्रवेश द्वार की उपस्थिति, पश्चिम भारत की गुफाओं की अपेक्षा छोटा आकार एवं चैत्य तोरणों से विहार गुफाओं की सजावट इनकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। बिना किसी बड़े कक्ष के ये एक या दो मंजिली मेहराबदार आयताकार गुफाएँ हैं, जिनका निर्माण ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ।
गुंटूपल्ली के अतिरिक्त रामपरेपल्लम अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल है, जहाँ पहाड़ी के ऊपर चट्टान को काटकर छोटे स्तूप का निर्माण हुआ है।
विशाखापत्तनम के समीप अनकापल्ली में गुफाओं तथा चौथी-पाँचवीं शताब्दी ईसवी में पहाड़ी के ऊपर चट्टानें काटकर स्तूप का निर्माण हुआ है। चट्टान को काटकर यहाँ देश के सबसे बड़े स्तूप का निर्माण किया गया है।
ओडिशा में शैलकृत गुफा वास्तुकला
ओडिशा में चट्टान काटकर गुफा बनाने की परंपरा में खंडगिरि-उदयगिरि इसके प्रारंभिक उदाहरण है। भुवनेश्वर के पास इन गुफाओं में खारवेल जैन राजाओं के शिलालेख पाए जाते हैं, जिनसे पता चलता है कि इन गुफाओं का निर्माण जैन मुनियों के लिये करवाया गया था।
खंडगिरि-उदयगिरि की कई गुफाएँ मात्र एक कक्ष की बनी हुई है। कुछ गुफाओं को बड़ी चट्टानों में पशु का आकार देकर बनाया गया है।
गुफाओं के कक्षों के प्रवेश का ऊपरी भाग चैत्य तोरणों और आज भी प्रचलित लोकगाथाओं के संदर्भों से सुसज्जित है।
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