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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

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पाणिनि - व्याकरण के अध्ययन की विधि ।।

व्याकरण - शास्त्र को अच्छी तरह अल्पकाल मे समझने के लिए वैज्ञानिक विधि यह है कि सज्ञाओं, प्रत्याहारो तथा अन्य पूर्वोलिखित साधनो का सम्यक् ज्ञान कर ले । प्रथमतः सज्ञां प्रभृति का साधारण ज्ञान और इसके इसके पश्चात् किस तरह प्रत्यय जुडते हैं और किस प्रकार एक सूत्र से दूसरे सूत्र मे अनुवृत्ति की जाती है, इसे समझने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रत्यय लगने की विधि नीचे दी जाती है । 

( १ ) प्रत्यय मे पहले यह देखना चाहिए कि कितना प्रश जुडने के उपयोग में आने वाला है , जैसे ण्यत् प्रत्यय में चुटू सूत्र से आदि में आने वाला ण् तथा हलन्त्यम् सूत्र से त् लुप्त हो जाते हैं । केवल य भर बच रहता है । 

( २ ) पुन: यह देखना चाहिए कि इस प्रत्यय को पहले जुडना है या पीछे या बीच मे । इस सम्बन्ध में एक ही नियम है प्रत्यय ( ३ । १ । १ ) परश्च ( ३ । १ । २ ) अर्थात् प्रत्यय सदा बाद में ही जुडते है ( केवल तद्धित का एक प्रत्यय बहुच ऐसा है जो ईषदसमाप्ति अर्थ मे शब्द के पहले जुडता है , जैसे बहुतृण आदि ) ।

( ३ ) फिर यह देखना चाहिए कि जिसमे प्रत्यय को जुडना है , उसमे अनुबन्धो के कारण किस विकार का होना आवश्यक है , जैसे अचो ण्णिति ( ७ । २ । ११५ ) अर्थात् जित् , तथा णित् प्रत्यय बाद में रहने पर पूर्व मे आने वाले अजन्त अङ्ग के स्वर की वृद्धि हो जाती है । इस सूत्र के अनुसार ' हृ ' के आगे ‘ ण्यत् ' आने पर ' हृ ' के ऋ में वृद्धि होकर ' पार् ' हो जाता है । 

( ४ ) और अन्त मे, अर्थ समझने के लिए किस हेतु से प्रत्यय लगा है इसे समझना चाहिए । कृदन्त तथा तद्धित प्रकरणो मे इसका विशेष विवेचन किया जायगा। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए यदि कोई अध्ययन करे तो अल्पकाल में ही साधारण कोटि का व्युत्पन्न हो सकता है।


प्राचीन कालीन यज्ञ एवं उनका संबंध ।।

🪴 यज्ञ              💁🏻‍♀ संबंध

✍ ब्रह्म-यज्ञ — वेदों को पढ़ना व पढ़ाना

✍ दैव-यज्ञ — अग्नि को आहुति

✍ भूत-यज्ञ — सभी प्राणियों को आहुति

✍ मनुष्य-यज्ञ — अतिधियों को सम्मान


🪴 Yagya            💁🏻‍♀ Relations

✍ Brahma Yagya — reading and teaching the Vedas

✍ Daiva-yagya — offering to fire

✍ Bhoot-yagya — offering to all beings

✍ Man-Yagya — Honor to the guests


📚 वेद         —       ✍ शाखाएँ 

🌴 ऋग्वेद — शाकल 

🌴 सामवेद — राणायनीय 

🌴 यजुर्वेद — कण्व

🌴 अथर्ववेद — पिप्पलाद, शौनक


📚 Veda  —     ✍ Branches

✍ Rigveda            —  Shakala

✍ Samaveda       — Ranayaniya

✍ Yajurveda         — Kanva

✍ Atharvaveda    — Pippalada, Saunaka

शृंगारिक रचनाएँ–

शृंगार निर्णय:- भिखारीदास
शृंगार विलाश:-सोमनाथ
शृंगार मंजरी:-चिन्तामणि
श्रृंगार मंजरी:-प्रताप साही
शृंगार शिरोमणि:-प्रताप साही व् यसवंत सिंह की भी है

शृंगार भूषण:-बेनी प्रवीण
शृंगार लतिका:-द्विज देव
शृंगार चालीसा:-द्विज देव
शृंगार बत्तीसी:-द्विज देव
शृंगार लता:-सुख देव

शृंगार सोरठा:-रहीम
शृंगार सागर:-मोहन लाल मिस्र
शृंगार रस माधुरी:-कृष्ण भट्ट देवऋषि
काव्यालोक :-रामदहिन् मिश्र 
काव्य विवेक:-चिन्तामणि

काव्य प्रकाश:-चिन्तामणि
काव्य सरोज:- श्रीपति
काव्य निर्णय:-भिखारीदास
काव्य कलाधर:-रघुनाथ
काव्य विलाश:-प्रताप साही

काव्य विनोद:-प्रताप साही
काव्य रसायन:-देव
काव्य सिद्धान्त:-सुरति मिश्र

Sanskrit : Vedic Sahitya Questions

वैदिक साहित्य (संस्कृत साहित्य)

प्रश्न- 1 कस्मिन वेदे गायत्री छंदस्य सर्वाधिक प्रयोगोSभवत् ?
अ ऋग्वेदे✔
ब यजुर्वेदे
स सामवेदे
द अथर्ववेदे

प्रश्न- 2 सामवेदस्य प्रथम भाष्यकार: क: ?
अ भवस्वामी
ब उव्वट
स माधव✔
द महीधर

प्रश्न- 3 काठक, कपिष्ठल इत्यादय: कस्य वेदस्य शाखामस्ति ?
अ साम वेदस्य
ब शुक्ल यजुर्वेदस्य
ब कृष्णयजुर्वेदस्य✔
द अथर्वववेदस्य

प्रश्न- 4 सोमदेवाय स्तुति ऋग्वेदस्य कस्मिन मण्डले वर्तते ?
अ नवम मण्डले✔
ब अष्टम मण्डले
स दशम मण्डले
द चतुर्थ मण्डले
 
प्रश्न- 5 वेदानां सामूहिक देवतास्ति ?
अ द्योस्
ब आदित्य✔
स अग्नि
द मित्रावरुण

प्रश्न- 6 अथर्ववेदस्य मन्त्रा:कति भागे विभाजितमस्ति ?
अ ६
ब ७
स ५
द २✔

व्याख्या- अथर्ववेद के मंत्रों को दो भागों में विभाजित किया गया है
1 शांतिपोष्टिक मन्त्र
2 अभिचारिक मन्त्र

प्रश्न- 7 पुष्य सूक्त प्रातिशाख्य कस्मिन वेदे समुपलभ्यते ?
अ शुक्ल यजुर्वेदे
ब कृष्ण यजुर्वेदे
स सामवेदे✔
द अथर्ववेदे

प्रश्न- 8 सामवेदानुसारेण कति ग्रामा: ?
अ ४
ब ३✔
स ५
द २

प्रश्न- 9 अथर्ववेदस्य उपनाम नास्ति ?
अ आंगीरस वेद:
ब भूग्वंङीरोवेद:
स महीवेद:
द कल्पोक्तवेद:✔

प्रश्न- 10 य: ग्रंथा :वेदानां व्याख्या क्रियते तँ कथ्यते ?
अ उपनिषद:
ब ब्राह्मण:✔
स आरण्यक:
द उपवेद:

प्रश्न- 11 बृहदारण्यकोपनिषदे आत्मन: कति अवस्थाया:वर्णनमस्ति ?
अ चत्वारः
ब सप्त
स षड✔
द पंच

प्रश्न- 12 कठोपनिषदे कति मंत्रा: सन्ति ?
अ १२८
ब ११९✔
स १२१
द ११६

प्रश्न- 13 यदक्षरपरिमाणं त:……..?
अ वेद:
ब कल्प:
स छंद:✔
द व्याकरण:

प्रश्न- 14 प्रमुख: ज्योतिषाचार्य: अस्ति ?
अ लगधमुनि✔
ब पिंगलमुनि
स यास्क
द चांद्रायण:

प्रश्न- 15 सिद्धांतशिरोमणि ग्रंथस्य लेखक: क: ?
अ आर्यभट्ट
ब वराहमिहिर
स ब्रह्मगुप्त
द भास्कराचार्य✔

प्रश्न- 16 अधोलिखितेषु उपवेद: नास्ति ?
अ आयुर्वेद:
ब धनुर्वेद:
स अथर्ववेद:✔
द गान्धर्ववेद:

प्रश्न- 17 चतुर्दश यज्ञानां वर्णन कुत्र समुपलभ्यते ?
अ गृहयसुत्रे
ब श्रोतसुत्रे✔
स शुल्वसुत्रे
द धर्मसुत्रे

प्रश्न- 18 यज्ञवेदिकाया: विधियानाम् वर्णनम् कुत्रास्ति ?
अ शुल्वसुत्रे✔
ब धर्मसूत्रे
स गृहयसुत्रे
द श्रोतसूत्र

प्रश्न- 19 चांद्रव्याकरणस्य रचयिता क: ?
अ चंदनसेन
ब वराहमिहिर
स चन्द्रगोभी✔
द सांद्रायन

प्रश्न- 20 सामवेदानुसार कति ताना: ?
अ २१
ब 49✔
स ४१
द ६१

प्रश्न- 21 ऋग्वेदानुसार प्रमुख द्युस्थानीय देवतास्ति ?
अ सूर्य✔
ब उषा
स इंद्र
द अग्नि

प्रश्न- 22 वेदान्त इत्यस्य तात्पर्य:अस्ति?
अ आरण्यक
ब ब्राह्मण
स उपनिषद✔
द पुराण

प्रश्न- 23 मुक्तिकोपनिषदानुसार उपनिषदानाम् सँख्यास्ति ?
अ 14
ब 10
स 100
द 108✔

प्रश्न- 24 प्रस्थानत्रये सम्मिलीतं नास्ति ?
अ गीता
ब ग्रहयसूत्र✔
स ब्रह्मसूत्र
द उपनिषद्

प्रश्न- 25 स्वर्गपुत्र:इति नाम्न:क:प्रसिद्व: ?
अ पर्जन्य:
ब इंद्र:
स सोम:✔
द मरुत्

प्रश्न- 26 सूर्याया:भर्त्ता क: ?
अ आश्विन्
ब उषा
स मित्र
द पूषन्✔

प्रश्न- 27 ‘माधवीया धातुवृति”ग्रंथस्य रचयिता क: ?
अ आत्मानंद
ब उद्गीथ
स गुणविष्णु
द सायण✔

प्रश्न– 28 विंटरनित्जमहोदयानुसारेण वेदानां रचना कदा अभवत् ?
अ 6000ईसा पूर्व
ब 2500ईसा पूर्व✔
स 25 सहस्त्र वर्ष पूर्व
द 3500 ईसा पूर्व

प्रश्न- 29 यम यमी संवाद ऋग्वेदस्य ……?
अ 3/33 मण्डले
ब 10/9.5 मण्डले
स 10/108 मण्डले
द 10/10 मण्डले✔

प्रश्न-14 मन्त्रद्रष्टार:..क: ?
अ ऋषय:✔
ब ब्राह्मण:
स पुरोहित:
द आरण्यक:

प्रश्न- 30 सत्यनारायण व्रत कथा कुत्र वर्णितं अस्ति ?
अ भागवत पुराणे
ब मार्कण्डेय पुराणे
स स्कन्द पुराणे✔
द विष्णु पुराणे

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हिन्दी साहित्य और काव्य शास्त्र के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ।।

1. निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय कौ शूल॥
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा छन्द है?
A. सोरठा
B. दोहा✓
C. रोला
D. हरिगीतिका

2. सिद्धांतपंचमात्रा’ के रचनाकार कौन थे?
A. विष्णुस्वामी
B. आचार्य वल्लभ
C. राघवानन्द✓
D. रामानुज

3. अब अलि रही गुलाब में, अपत कटीली डार में” कौन-सा अलंकार है?
A. उपमा
B. उत्प्रेक्षा
C. अन्योक्ति✓
D. अतिशयोक्ति

4. निम्नलिखित में से कौन-सा देश-विभाजन को लेकर लिखा गया उपन्यास है?
A. अमृत और विष
B. झूठा सच✓
C. अपने-अपने अजनबी
D. अंतराल

5. सियाराम शरण गुप्त का प्रथम काव्य है
A. मौर्य विजय✓
B. अनाथ
C. दुर्वादल
D. आर्द्रा

6. मै तो सरल भाषा के लेखक को सबसे बड़ा लेखक मानता हूँ ।” कथन किसका है
A. भारतेन्दु
B. एम पी द्विवेदी✓
C. शुक्ल
D. बालमुकुन्द गुप्त

7. उपन्यास को संसारी वार्ता किसने कहा
A. भारतेन्दु
B. लाला भगवान दीन
C. श्री निवास दास✓
D. राधाकृष्णदास

8. संस्कृत वृत्तों /छन्दों में लिखा गया काव्य संग्रह है
A. प्रिय प्रवास✓
B. विष्णु प्रिया
C. जय भारत
D. आत्मोत्सर्ग

9. सरस्वती पत्रिका के लिए सभा द्वारा गठित सम्पादक मण्डल मे कौन नहीं था
A. श्याम सुन्दर दास
B. कार्तिक प्रसाद
C. राधाकृष्णदास
D. श्री निवास दास✓

10. इतिहास दुबारा लिखो गीतिकाव्य किसका है
A. रवीन्द्र भ्रमर
B. रमानाथ अवस्थी
C. नचिकेता
D. रमेश रंजक✓

11. लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो उस घोड़े से पूछो जिसके मुँह मे लगाम है ।
धुमिल की इन पंक्तियों मे लोहार प्रतीक है
A. शोषक
B. शोषित
C. शोषण की पीड़ा
D. निर्माता

12. बंदर सभा किस शैली मे लिखा काव्य है
A. स्यापा
B. पयार
C. पैरोडी✓
D. गाली

13. ‘प्रियप्रवास’की विशेषता नही है-
अ-संस्कृत के वर्ण वृत
ब-कोमलकान्त पदावली
स-खंड काव्य✓
द-भाव व्यजनात्मक

14. धरती हिलकर नींद भगा दे वज्रनाद से व्योम जगा दे दैव और कुछ लाग लगा देपंक्तियों के रचयिता हैं-
अ-शंकर
ब-मैथिलीशरण गुप्त✓
स-रामनरेश त्रिपाठी
द-हरिऔध

15. हरिऔध कृत ‘प्रियप्रवास’ में सर्गो की संख्या है?
(अ) 17✓
(ब) 15
(स) 18
(द) 21

शास्त्रों में मातृ गौरव ।।

संसार में जितने भी वन्द्य गुरुजन हैं उन सबकी अपेक्षा माता परमगुरु होनेसे अधिक वन्दनीया होती हैं।

         शास्त्रों में तो यहाँ तक लिखा है कि माता की गरिमा हजार पिता से भी अधिक है।सारे जगत् में वन्दनीय सन्यासी को भी माता की वन्दना प्रयत्न पूर्वक करनी चाहिए।-- 
     #गुरोर्हि_वचनम्प्राहुर्धर्म्यं_धर्मज्ञसत्तम।
      #गुररूणां_चैव_सर्वेषां_माता_परमों_गुरुः।

~ महा.भा. आदि प. १९५--१६--हे धर्मज्ञ सत्तम! 

गुरुजनों की आज्ञा का पालन धर्म्य होता है,किन्तु माता सभी गुरुओं में परम गुरु होती है।
      #सहस्रन्तुपितॄन्मातागौरवेणातिरिच्यते ।          
      #सर्ववन्द्येन_यतिना_प्रसूर्वन्द्या_प्रयत्नतः।

~ स्कन्द पु.काशीख.११-५०।

माता शिशु को गर्भ में धारण करने उत्पन्न करने में तथा पालन करने में अत्यधिक कष्ट उठाती है। शिशु के लिए अपनी रूचि और आहार विहार का भी त्याग करती है। इसी लिए माता का गौरव अधिक कहा गया है। पिता आदि यदि पतित हो जाएं तो उनका त्याग किया जा सकता है परंतु माता का नहीं। माता पिता में विवाद होने पर पुत्र को चुप रहना चाहिये ,अत्यधिक आवश्यक हो तो माता के अनुकूल ही बोले ऐसा शास्त्र कहते हैं--
    #पतितः_गुरवः_त्याज्या_माता_नैव_कथञ्चन।     
     #गर्भधारणपोषाभ्यां_तेभ्योमातागरीयसी।। 

~ मत्स्य पु २२६--१८७.

       #न_मातापित्रोः_अन्तरं_गच्छेत्_पुत्रः।।
     #कामं_मातुरेव_ब्रूयात्।--(शङ्ख लिखित स्मृति)

        माताको सर्वाधिक गौरव देना उचित ही है। इसे प्रगट करनेके लिए ही व्याकरण शास्त्रमें मातापिता ऐसा ही शुद्ध माना जाता है न कि पितामाता।
शास्त्रोंके इन वचनोंमें ध्यान देनेसे यह स्पष्ट होजाताहै कि ऋषियोंने स्त्री को दासी नहीं परम पूज्य मानाहै। अतः जो लोग यह आक्षेप करते हैं कि ऋषि पुरुषवादी मानसिकताके कारण स्त्रियोंको पैरकीजूती मानते हैं , भोग्या मात्र समझा गया है, उनका यह आक्षेप निराधार ही है।

शास्त्रकारों ने 
#स्त्री को_पुरुष के_बराबर_ही_नहीं_अधिक_श्रेष्ठ कहा है--देखिए गोस्वामी जी क्या कहते हैं--
    #जो_केवल_पितु_आयसु_ताता।
   #तौ_जनि_जाहु_जानि_बडि_माता।  
यदि कहा जाये कि यहाँ तो माता को ही बड़ी कहा है न कि स्त्री को तो यह ठीक नहीं मनुस्मृति आदि में तो स्त्री मात्र को कहा गया है--

#यत्र_नार्यस्तु_पूज्यन्ते_रमन्ते_तत्र_देवताः। #यत्रैतास्तु_न_पूज्यन्ते_सर्वास्तत्र_विफला_क्रियाः
~ (मनु.३--५६/अनुसाशन प.४६--५/विष्णुधर्मोत्तर पु.३-२३३-१०६)
जहाँ स्त्रियां पूजित होतीं हैं वहां देवता प्रशन्नता पूर्वक निवास करते हैं, जहाँ ऐसा नहीं होता वहां की सभी धार्मिक क्रियाएं निष्फल होती हैं।अब कोई यह कह दे कि यह तो स्त्रैण पुरुष ने लिखा है या प्रक्षिप्त है तो दोनों हाथ जोडकर नमस्कार है उस धूर्त शिरोमणि को।
         !!मातेव गरीयसी!!
         !!जय जय सीताराम!!

स्वामिराघवेन्द्रदास: स्वर्गाश्रम:

प्रत्यय ( Suffix )।।

प्रत्यय किसे कहते हैं?/ प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं

जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पीछे या अन्त मेँ जुड़कर नवीन शब्द का निर्माण करके पहले शब्द के अर्थ मेँ परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैँ, उन्हेँ प्रत्यय कहते हैँ। कभी–कभी प्रत्यय लगाने पर भी शब्द के अर्थ मेँ कोई परिवर्तन नहीँ होता है। जैसे— बाल–बालक, मृदु–मृदुल।
प्रत्यय लगने पर शब्द एवं शब्दांश मेँ संधि नहीँ होती बल्कि शब्द के अन्तिम वर्ण मेँ मिलने वाले प्रत्यय के स्वर की मात्रा लग जाती है, व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है। जैसे— लोहा+आर = लुहार, नाटक+कार = नाटककार।
शब्द–रचना मेँ प्रत्यय कहीँ पर अपूर्ण क्रिया, कहीँ पर सम्बन्धवाचक और कहीँ पर भाववाचक के लिये प्रयुक्त होते हैँ। जैसे— मानव+ईय = मानवीय। लघु+ता = लघुता। बूढ़ा+आपा = बुढ़ापा।

प्रत्यय
प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में‘ और अय का अर्थ होता है ‘चलने वाला‘, अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।

प्रत्यय की परिभाषा
प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला’। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश ।
अत: जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- ‘बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है।

वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वाला) कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन

हिन्दी मेँ प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैँ—

(1) संस्कृत के प्रत्यय,
(2) हिन्दी के प्रत्यय तथा
(3) विदेशी भाषा के प्रत्यय।

1. संस्कृत के प्रत्यय

संस्कृत व्याकरण मेँ शब्दोँ और मूल धातुओँ से जो प्रत्यय जुड़ते हैँ, 
संस्कृत के प्रत्यय के दो मुख्य भेद हैं: 1- कृत् और 2- तद्धित ।

1. कृदन्त प्रत्यय (कृत्) –

कृत्-प्रत्यय :
क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।
कृत प्रत्यय के उदाहरण:
अक = लेखक , नायक , गायक , पाठक
अक्कड = भुलक्कड , घुमक्कड़ , पियक्कड़
आक = तैराक , लडाक

जो प्रत्यय मूल धातुओँ अर्थात् क्रिया पद के मूल स्वरूप के अन्त मेँ जुड़कर नये शब्द का निर्माण करते हैँ, उन्हेँ कृदन्त या कृत् प्रत्यय कहते हैँ। धातु या क्रिया के अन्त मेँ जुड़ने से बनने वाले शब्द संज्ञा या विशेषण होते हैँ। कृदन्त प्रत्यय के निम्नलिखित तीन भेद होते हैँ –
कृत प्रत्यय के प्रकार ::
विकारी कृत्-प्रत्यय : 
ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं।

अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय : 
ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते है।

विकारी कृत्-प्रत्यय के भेद :
क्रियार्थक संज्ञा,
कतृवाचक संज्ञा,
वर्तमानकालिक कृदंत
भूतकालिक कृदंत
(1) कर्त्तृवाचक कृदन्त – वे प्रत्यय जो कर्तावाचक शब्द बनाते हैँ, कर्त्तृवाचक कृदन्त कहलाते हैँ। जैसे –
प्रत्यय – शब्द–रूप
• तृ (ता) – कर्त्ता, नेता, भ्राता, पिता, कृत, दाता, ध्याता, ज्ञाता।
• अक – पाठक, लेखक, पालक, विचारक, गायक।

(2) विशेषणवाचक कृदन्त – जो प्रत्यय क्रियापद से विशेषण शब्द की रचना करते हैँ, विशेषणवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• त – आगत, विगत, विश्रुत, कृत।
• तव्य – कर्तव्य, गन्तव्य, ध्यातव्य।
• य – नृत्य, पूज्य, स्तुत्य, खाद्य।
• अनीय – पठनीय, पूजनीय, स्मरणीय, उल्लेखनीय, शोचनीय।

(3) भाववाचक कृदन्त – वे प्रत्यय जो क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैँ, भाववाचक कृदन्त कहलाते हैँ। जैसे –
• अन – लेखन, पठन, हवन, गमन।
• ति – गति, मति, रति।
• अ – जय, लाभ, लेख, विचार।

2. तद्धित प्रत्यय –

संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है । तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं ।
तद्धित प्रत्यय के उदाहरण:
लघु + त = लघुता
बड़ा + आई = बड़ाई
सुंदर + त = सुंदरता
बुढ़ा + प = बुढ़ापा

जो प्रत्यय क्रिया पदोँ (धातुओँ) के अतिरिक्त मूल संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दोँ के अन्त मेँ जुड़कर नया शब्द बनाते हैँ, उन्हेँ तद्धित प्रत्यय कहते हैँ। जैसे— गुरु, मनुष्य, चतुर, कवि शब्दोँ मेँ क्रमशः त्व, ता, तर, ता प्रत्यय जोड़ने पर गुरुत्व, मनुष्यता, चतुरतर, कविता शब्द बनते हैँ।
तद्धित प्रत्यय के छः भेद हैँ –

(1) भाववाचक तद्धित प्रत्यय – भाववाचक दद्धित से भाव प्रकट होता है। इसमेँ प्रत्यय लगने पर कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
प्रत्यय — शब्द–रूप
• अव – लाघव, गौरव, पाटव।
• त्व – महत्त्व, गुरुत्व, लघुत्व।
• ता – लघुता, गुरुता, मनुष्यता, समता, कविता।
• इमा – महिमा, गरिमा, लघिमा, लालिमा।
• य – पांडित्य, धैर्य, चातुर्य, माधुर्य, सौन्दर्य।

(2) सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय – सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय से सम्बन्ध का बोध होता है। इसमेँ भी कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
• अ – शैव, वैष्णव, तैल, पार्थिव।
• इक – लौकिक, धार्मिक, वार्षिक, ऐतिहासिक।
• इत – पीड़ित, प्रचलित, दुःखित, मोहित।
• इम – स्वर्णिम, अन्तिम, रक्तिम।
• इल – जटिल, फेनिल, बोझिल, पंकिल।
• ईय – भारतीय, प्रान्तीय, नाटकीय, भवदीय।
• य – ग्राम्य, काम्य, हास्य, भव्य।

(3) अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय – इनसे अपत्य अर्थात् सन्तान या वंश मेँ उत्पन्न हुए व्यक्ति का बोध होता है। अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय मेँ भी कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
• अ – पार्थ, पाण्डव, माधव, राघव, भार्गव।
• इ – दाशरथि, मारुति, सौमित्र।
• य – गालव्य, पौलस्त्य, शाक्य, गार्ग्य।
• एय – वार्ष्णेय, कौन्तेय, गांगेय, राधेय।

(4) पूर्णतावाचक तद्धित प्रत्यय – इसमेँ संख्या की पूर्णता का बोध होता है। जैसे –
• म – प्रथम, पंचम, सप्तम, नवम, दशम।
• थ/ठ – चतुर्थ, षष्ठ।
• तीय – द्वितीय, तृतीय।

(5) तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय – दो या दो से अधिक वस्तुओँ मेँ श्रेष्ठता बतलाने के लिए तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय लगता है। जैसे –
• तर – अधिकतर, गुरुतर, लघुतर।
• तम – सुन्दरतम, अधिकतम, लघुतम।
• ईय – गरीय, वरीय, लघीय।
• इष्ठ – गरिष्ठ, वरिष्ठ, कनिष्ठ

(6) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय – गुणवाचक तद्धित प्रत्यय से संज्ञा शब्द गुणवाची बन जाते हैँ। जैसे –
• वान् – धनवान्, विद्वान्, बलवान्।
• मान् – बुद्धिमान्, शक्तिमान्, गतिमान्, आयुष्मान्।
• त्य – पाश्चात्य, पौर्वात्य, दक्षिणात्य।
• आलु – कृपालु, दयालु, शंकालु।
• ई – विद्यार्थी, क्रोधी, धनी, लोभी, गुणी।

हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्यय के योग से छह प्रकार के कृदंत शब्द बनाये जाते हैं-
कतृवाचक
गुणवाचक
कर्मवाचक
करणवाचक
भाववाचक
क्रियाद्योदक

कर्तृवाचक
कर्तृवाचक कृत्-प्रत्यय उन्हें कहते हैं, जिनके संयोग से बने शब्दों से क्रिया करनेवाले का ज्ञान होता है ।
जैसे-वाला, द्वारा, सार, इत्यादि ।
कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-
 क्रिया के सामान्य रूप के अंतिम अक्षर ‘ ना’ को ‘ने’ करके उसके बाद ‘वाला” प्रत्यय जोड़कर । जैसे-चढ़ना-चढ़नेवाला, गढ़ना-गढ़नेवाला, पढ़ना-पढ़नेवाला, इत्यादि
‘ ना’ को ‘न’ करके उसके बाद ‘हार’ या ‘सार’ प्रत्यय जोड़कर । जैसे-मिलना-मिलनसार, होना-होनहार, आदि ।
 धातु के बाद अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओड़ा, कवैया इत्यादि प्रत्यय जोड़कर । जैसे-पी-पियकूड, बढ़-बढ़िया, घट-घटिया, इत्यादि ।

गुणवाचक
गुणवाचक कृदंत शब्दों से किसी विशेष गुण या विशिष्टता का बोध होता है । ये कृदंत, आऊ, आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं ।
जैसे-बिकना-बिकाऊ ।

कर्मवाचक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं । ये धातु के अंत में औना, ना और नती प्रत्ययों के योग से बनते हैं ।
 जैसे-खिलौना, बिछौना, ओढ़नी, सुंघनी, इत्यादि ।

करणवाचक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं । करणवाचक कृदंत धातुओं के अंत में नी, अन, ना, अ, आनी, औटी, औना इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर बनाये जाते हैं।
जैसे- चलनी, करनी, झाड़न, बेलन, ओढना, ढकना, झाडू. चालू, ढक्कन, इत्यादि ।

भाववाचक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत कहते हैं ! क्रिया के अंत में आप, अंत, वट, हट, ई, आई, आव, आन इत्यादि जोड़कर भाववाचक कृदंत संज्ञा-पद बनाये जाते हैं।
जैसे-मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा,

क्रियाद्योतक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं । मूलधातु के बाद ‘आ’ अथवा, ‘वा’ जोड़कर भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत बनाये जाते हैं । कहीं-कहीं हुआ’ प्रत्यय भी अलग से जोड़ दिया जाता है ।
जैसे- खोया, सोया, जिया, डूबता, बहता, चलता, रोता, रोता हुआ, जाता हुआ इत्यादि.

हिंदी के कृत्-प्रत्यय 
हिंदी में कृत्-प्रत्ययों की संख्या अनगिनत है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
अन, अ, आ, आई, आलू, अक्कड़, आवनी, आड़ी, आक, अंत, आनी, आप, अंकु, आका, आकू, आन, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, आहट, इया, इयल, ई, एरा, ऐया, ऐत, ओडा, आड़े, औता, औती, औना, औनी, औटा, औटी, औवल, ऊ, उक, क, का, की, गी, त, ता, ती, न्ती, न, ना, नी, वन, वाँ, वट, वैया, वाला, सार, हार, हारा, हा, हट, इत्यादि ।
ऊपर बताया जा चुका है कि कृत्-प्रत्ययों के योग से छह प्रकार के कृदंत बनाये जाते हैं। इनके उदाहरण प्रत्यय, धातु (क्रिया) तथा कृदंत-रूप के साथ नीचे दिये जा रहे हैं-

कर्तृवाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में आक, वाला, वैया, तृ, उक, अन, अंकू, आऊ, आना, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वैया, सार, हार, हारा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं ।
प्रत्यय- धातु – कृदंत-रूप
आक – तैरना – तैराक
आका – लड़ना – लड़ाका
आड़ी- खेलना- ख़िलाड़ी
वाला- गाना -गानेवाला
आलू – झगड़ना – झगड़ालू
इया – बढ़ – बढ़िया
इयल – सड़ना- सड़ियल
ओड़ – हँसना – हँसोड़
ओड़ा – भागना -भगोड़ा
अक्कड़ -पीना- पियक्कड़
सार – मिलना – मिलनसार
क – पूजा – पूजक
हुआ – पकना – पका हुआ

गुणवाचक कृदन्त:
क्रिया के अंत में आऊ, आलू, इया, इयल, एरा, वन, वैया, सार, इत्यादि प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं:
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
आऊ – टिकना – टिकाऊ
वन – सुहाना – सुहावन
हरा – सोना – सुनहरा
ला – आगे, पीछे – अगला, पिछला
इया – घटना- घटिया
एरा – बहुत – बहुतेरा
वाहा – हल – हलवाहा

कर्मवाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में औना, हुआ, नी, हुई इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से बनते हैं ।
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
नी – चाटना, सूंघना – चटनी, सुंघनी
औना – बिकना, खेलना – बिकौना, खिलौना
हुआ – पढना, लिखना – पढ़ा हुआ, लिखा हुआ
हुई – सुनना, जागना – सुनी हुईम जगी हुई

करणवाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, ने, नी इत्यादि प्रत्ययों के योग से करणवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं तथा इनसे कर्ता के कार्य करने के साधन का । बोध होता है ।
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
आ – झुलना – झुला
ई – रेतना – रेती
ऊ – झाड़ना – झाड़ू
न – झाड़ना – झाड़न
नी – कतरना – कतरनी
आनी – मथना – मथानी
अन – ढकना – ढक्कन

भाववाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में अ, आ, आई, आप, आया, आव, वट, हट, आहट, ई, औता, औती, त, ता, ती इत्यादि प्रत्ययों के योग से भाववाचक कृदंत बनाये जाते हैं तथा इनसे क्रिया के व्यापार का बोध होता है ।
प्रत्यय – क्रिया -कृदंत-रूप
अ – दौड़ना -दौड़
आ – घेरना – घेरा
आई – लड़ना- लड़ाई
आप- मिलना- मिलाप
वट – मिलना -मिलावट
हट – झल्लाना – झल्लाहट
ती – बोलना -बोलती
त – बचना -बचत
आस -पीना -प्यास
आहट – घबराना – घबराहट
ई – हँसना- हँसी
एरा – बसना – बसेरा
औता – समझाना – समझौता
औती मनाना मनौती
न – चलना – चलन
नी – करना – करनी

क्रियाद्योदक कृदंत:
क्रिया के अंत में ता, आ, वा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से क्रियाद्योदक विशेषण बनते हैं. यद्यपि इनसे क्रिया का बोध होता है परन्तु ये हमेशा संज्ञा के विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं-
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
ता – बहना- बहता
ता – भरना – भरता
ता – गाना – गाता
ता – हँसना – हँसता
आ – रोना – रोया
ता हुआ – दौड़ना – दौड़ता हुआ
ता हुआ – जाना – जाता हुआ

कृदंत और तद्धित में अंतर :
कृत्-प्रत्यय क्रिया अथवा धातु के अंत में लगता है, तथा इनसे बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।
तद्धित प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगता है और इनसे बने शब्दों को तद्धितांत कहते हैं ।
कृदंत और तद्धितांत में यही मूल अंतर है । संस्कृत, हिंदी तथा उर्दू-इन तीन स्रोतों से तद्धित-प्रत्यय आकर हिंदी शब्दों की रचना में सहायता करते हैं ।

तद्धित प्रत्यय: 
हिंदी में तद्धित प्रत्यय के आठ प्रकार हैं-
कर्तृवाचक,
भाववाचक,
ऊनवाचक,
संबंधवाचक,
अपत्यवाचक,
गुणवाचक,
स्थानवाचक तथा
अव्ययवाचक ।

कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा के अंत में आर, आरी, इया, एरा, वाला, हारा, हार, दार, इत्यादि प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं ।
प्रत्यय- शब्द- तद्धितांत
आर – सोना- सुनार
आरी – जूआ – जुआरी
इया – मजाक- मजाकिया
वाला – सब्जी – सब्जीवाला
हार – पालन – पालनहार
दार – समझ – समझदार

भाववाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा या विशेषण में आई, त्व, पन, वट, हट, त, आस पा इत्यादि प्रत्यय लगाकर भाववाचक तद्धितांत संज्ञा-पद बनते हैं । इनसे भाव, गुण, धर्म इत्यादि का बोध होता है ।
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
त्व – देवता- देवत्व
पन – बच्चा – बचपन
वट – सज्जा -सजावट
हट – चिकना -चिकनाहट
त – रंग – रंगत
आस – मीठा – मिठास

ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा-पदों के अंत में आ, क, री, ओला, इया, ई, की, टा, टी, डा, डी, ली, वा इत्यादि प्रत्यय लगाकर ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं। इनसे किसी वस्तु या प्राणी की लघुता, ओछापन, हीनता इत्यादि का भाव व्यक्त होता है।
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
क – ढोल – ढोलक
री – छाता- छतरी
इया – बूढी – बुढ़िया
ई – टोप- टोपी
की – छोटा- छोटकी
टा – चोरी – चोट्टा
ड़ा – दु:ख – दुखडा
ड़ी – पाग – पगडी
ली – खाट – खटोली
वा – बच्चा – बचवा

सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा के अंत में हाल, एल, औती, आल, ई, एरा, जा, वाल, इया, इत्यादि प्रत्यय को जोड़ कर सम्बन्धवाचक तद्धितांत संज्ञा बनाई जाती है.-
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
हाल – नाना -ननिहाल
एल – नाक – नकेल
आल – ससुर – ससुराल
औती – बाप – बपौती
ई – लखनऊ – लखनवी
एरा – फूफा -फुफेरा
जा – भाई – भतीजा
इया -पटना -पटनिया

अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय :
व्यक्तिवाचक संज्ञा-पदों के अंत में अ, आयन, एय, य इत्यादि प्रत्यय लगाकर अपत्यवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनायी जाती हैं । इनसे वंश, संतान या संप्रदाय आदि का बोध होता हे ।
प्रत्यय – शब्द – तद्धितांत रूप
अ – वसुदेव -वासुदेव
अ – मनु – मानव
अ – कुरु – कौरव
आयन- नर – नारायण
एय- राधा – राधेय
य – दिति दैत्य

गुणवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा-पदों के अंत में अ, आ, इक, ई, ऊ, हा, हर, हरा, एडी, इत, इम, इय, इष्ठ, एय, म, मान्, र, ल, वान्, वी, श, इमा, इल, इन, लु, वाँ प्रत्यय जोड़कर गुणवाचक तद्धितांत शब्द बनते हैं। इनसे संज्ञा का गुण प्रकट होता है-
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आ – भूख – भूखा
अ – निशा- नैश
इक – शरीर- शारीरिक
ई – पक्ष- पक्षी
ऊ – बुद्ध- बुढहू
हा -छूत – छुतहर
एड़ी – गांजा – गंजेड़ी
इत – शाप – शापित
इमा – लाल -लालिमा
इष्ठ – वर – वरिष्ठ
ईन – कुल – कुलीन
र – मधु – मधुर
ल – वत्स – वत्सल
वी – माया- मायावी
श – कर्क- कर्कश

स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा-पदों के अंत में ई, इया, आना, इस्तान, गाह, आड़ी, वाल, त्र इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर स्थानवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं. इनमे स्थान या स्थान सूचक विशेषणका बोध होता है-
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
ई – गुजरात – गुजरती
इया – पटना – पटनिया
गाह – चारा – चारागाह
आड़ी -आगा- अगाड़ी
त्र – सर्व -सर्वत्र
त्र -यद् – यत्र
त्र – तद – तत्र

अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पदों के अंत में आँ, अ, ओं, तना, भर, यों, त्र, दा, स इत्यादि प्रत्ययों को जोड़कर अव्ययवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं तथा इनका प्रयोग प्राय: क्रियाविशेषण की तरह ही होता है ।
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
दा – सर्व – सर्वदा
त्र – एक एकत्र
ओं – कोस – कोसों
स – आप – आपस
आँ – यह- यहाँ
भर – दिन – दिनभर
ए – धीर – धीरे
ए – तडका – तडके
ए – पीछा – पीछे

2. हिन्दी के प्रत्यय

संस्कृत की तरह ही हिन्दी के भी अनेक प्रत्यय प्रयुक्त होते हैँ। ये प्रत्यय यद्यपि कृदन्त और तद्धित की तरह जुड़ते हैँ, परन्तु मूल शब्द हिन्दी के तद्भव या देशज होते हैँ। हिन्दी के सभी प्रत्ययोँ कोँ निम्न वर्गोँ मेँ सम्मिलित किया जाता है—

(1) कर्त्तृवाचक – जिनसे किसी कार्य के करने वाले का बोध होता है, वे कर्त्तृवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
प्रत्यय — शब्द–रूप
• आर – सुनार, लोहार, चमार, कुम्हार।
• ओरा – चटोरा, खदोरा, नदोरा।
• इया – दुखिया, सुखिया, रसिया, गडरिया।
• इयल – मरियल, सड़ियल, दढ़ियल।
• एरा – सपेरा, लुटेरा, कसेरा, लखेरा।
• वाला – घरवाला, ताँगेवाला, झाड़ूवाला, मोटरवाला।
• वैया (ऐया) – गवैया, नचैया, रखवैया, खिवैया।
• हारा – लकड़हारा, पनिहारा।
• हार – राखनहार, चाखनहार।
• अक्कड़ – भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़।
• आकू – लड़ाकू।
• आड़ी – खिलाड़ी।
• ओड़ा – भगोड़ा।

(2) भाववाचक – जिनसे किसी भाव का बोध होता है, भाववाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• आ – प्यासा, भूखा, रुखा, लेखा।
• आई – मिठाई, रंगाई, सिलाई, भलाई।
• आका – धमाका, धड़ाका, भड़ाका।
• आपा – मुटापा, बुढ़ापा, रण्डापा।
• आहट – चिकनाहट, कड़वाहट, घबड़ाहट, गरमाहट।
• आस – मिठास, खटास, भड़ास।
• ई – गर्मी, सर्दी, मजदूरी, पहाड़ी, गरीबी, खेती।
• पन – लड़कपन, बचपन, गँवारपन।

(3) सम्बन्धवाचक – जिनसे सम्बन्ध का भाव व्यक्त होता है, वे सम्बन्धवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• आई – बहनोई, ननदोई, रसोई।
• आड़ी – खिलाड़ी, पहाड़ी, अनाड़ी।
• एरा – चचेरा, ममेरा, मौसेरा, फुफेरा।
• एड़ी – भँगेड़ी, गँजेड़ी, नशेड़ी।
• आरी – लुहारी, सुनारी, मनिहारी।
• आल – ननिहाल, ससुराल।

(4) लघुतावाचक – जिनसे लघुता या न्यूनता का बोध होता है, वे लघुतावाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• ई – रस्सी, कटोरी, टोकरी, ढोलकी।
• इया – खटिया, लुटिया, चुटिया, डिबिया, पुड़िया।
• ड़ा – मुखड़ा, दुखड़ा, चमड़ा।
• ड़ी – टुकड़ी, पगड़ी, बछड़ी।
• ओला – खटोला, मझोला, सँपोला।

(5) गणनावाचक प्रत्यय – जिनसे गणनावाचक संख्या का बोध है, वे गणनावाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• था – चौथा।
• रा – दूसरा, तीसरा।
• ला – पहला।
• वाँ – पाँचवाँ, दसवाँ, सातवाँ।
• हरा – इकहरा, दुहरा, तिहरा।

(6) सादृश्यवाचक प्रत्यय – जिनसे सादृश्य या समता का बोध होता है, उन्हेँ सादृश्यवाचक प्रत्यय कहते हैँ। जैसे –
• सा – मुझ–सा, तुझ–सा, नीला–सा, चाँद–सा, गुलाब–सा।
• हरा – दुहरा, तिहरा, चौहरा।
• हला – सुनहला, रूपहला।

(7) गुणवाचक प्रत्यय – जिनसे किसी गुण का बोध होता है, वे गुणवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• आ – मीठा, ठंडा, प्यासा, भूखा, प्यारा।
• ईला – लचीला, गँठीला, सजीला, रंगीला, चमकीला, रसीला।
• ऐला – मटमैला, कषैला, विषैला।
• आऊ – बटाऊ, पंडिताऊ, नामधराऊ, खटाऊ।

8) स्थानवाचक – जिनसे स्थान का बोध होता है, वे स्थानवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• ई – पंजाबी, गुजराती, मराठी, अजमेरी, बीकानेरी, बनारसी, जयपुरी।
• इया – अमृतसरिया, भोजपुरिया, जयपुरिया, जालिमपुरिया।
• आना – हरियाना, राजपूताना, तेलंगाना।
• वी – हरियाणवी, देहलवी।

3. विदेशी प्रत्यय

हिन्दी मेँ उर्दू के ऐसे प्रत्यय प्रयुक्त होते हैँ, जो मूल रूप से अरबी और फारसी भाषा से अपनाये गये हैँ। जैसे –
• आबाद – अहमदाबाद, इलाहाबाद।
• खाना – दवाखाना, छापाखाना।
• गर – जादूगर, बाजीगर, शोरगर।
• ईचा – बगीचा, गलीचा।
• ची – खजानची, मशालची, तोपची।
• दार – मालदार, दूकानदार, जमीँदार।
• दान – कलमदान, पीकदान, पायदान।
• वान – कोचवान, बागवान।
• बाज – नशेबाज, दगाबाज।
• मन्द – अक्लमन्द, भरोसेमन्द।
• नाक – दर्दनाक, शर्मनाक।
• गीर – राहगीर, जहाँगीर।
• गी – दीवानगी, ताजगी।
• गार – यादगार, रोजगार।

हिन्दी मेँ प्रयुक्त प्रमुख प्रत्यय व उनसे बने प्रमुख शब्द :–

• अ – शैव, वैष्णव, तैल, पार्थिव, मानव, पाण्डव, वासुदेव, लूट, मार, तोल, लेख, पार्थ, दानव, यादव, भार्गव, माधव, जय, लाभ, विचार, चाल, लाघव, शाक्त, मेल, बौद्ध।
• अक – चालक, पावक, पाठक, लेखक, पालक, विचारक, खटक, धावक, गायक, नायक, दायक।
• अक्कड़ – भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़, कुदक्कड़, रुअक्कड़, फक्कड़, लक्कड़।
• अंत – गढ़ंत, लड़ंत, भिड़ंत, रटंत, लिपटंत, कृदन्त, फलंत।
• अन्तर – रुपान्तर, मतान्तर, मध्यान्तर, समानान्तर, देशांतर, भाषांतर।
• अतीत – कालातीत, आशातीत, गुणातीत, स्मरणातीत।
• अंदाज – तीरंदाज, गोलंदाज, बर्कंदाज, बेअंदाज।
• अंध – सड़ांध, मदांध, धर्माँध, जन्मांध, दोषांध।
• अधीन – कर्माधीन, स्वाधीन, पराधीन, देवाधीन, विचाराधीन, कृपाधीन, निर्णयाधीन, लेखकाधीन, प्रकाशकाधीन।
• अन – लेखन, पठन, वादन, गायन, हवन, गमन, झाड़न, जूठन, ऐँठन, चुभन, मंथन, वंदन, मनन, चिँतन, ढ़क्कन, मरण, चलन, जीवन।
• अना – भावना, कामना, प्रार्थना।
• अनीय – तुलनीय, पठनीय, दर्शनीय।
• अन्वित – क्रोधान्वित, दोषान्वित, लाभान्वित, भयान्वित, क्रियान्वित, गुणान्वित।
• अन्वय – पदान्वय, खंडान्वय।
• अयन – रामायण, नारायण, अन्वयन।
• आ – प्यासा, लेखा, फेरा, जोड़ा, प्रिया, मेला, ठंडा, भूखा, छाता, छत्रा, हर्जा, खर्चा, पीड़ा, रक्षा, झगड़ा, सूखा, रुखा, अटका, भटका, मटका, भूला, बैठा, जागा, पढ़ा, भागा, नाचा, पूजा, मैला, प्यारा, घना, झूला, ठेला, घेरा, मीठा।
• आइन – ठकुराइन, पंडिताइन, मुंशियाइन।
• आई – लड़ाई, चढ़ाई, भिड़ाई, लिखाई, पिसाई, दिखाई, पंडिताई, भलाई, बुराई, अच्छाई, बुनाई, कढ़ाई, सिँचाई, पढ़ाई, उतराई।
• आऊ – दिखाऊ, टिकाऊ, बटाऊ, पंडिताऊ, नामधराऊ, खटाऊ, चलाऊ, उपजाऊ, बिकाऊ, खाऊ, जलाऊ, कमाऊ, टरकाऊ, उठाऊ।
• आक – लड़ाक, तैराक, चालाक, खटाक, सटाक, तड़ाक, चटाक।
• आका – धमाका, धड़ाका, भड़ाका, लड़ाका, फटाका, चटाका, खटाका, तड़ाका, इलाका।
• आकू – लड़ाकू, पढ़ाकू, उड़ाकू, चाकू।
• आकुल – भयाकुल, व्याकुल।
• आटा – सन्नाटा, खर्राटा, फर्राटा, घर्राटा, झपाटा, थर्राटा।
• आड़ी – कबाड़ी, पहाड़ी, अनाड़ी, खिलाड़ी, अगाड़ी, पिछाड़ी।
• आढ्य – धनाढ्य, गुणाढ्य।
• आतुर – प्रेमातुर, रोगातुर, कामातुर, चिँतातुर, भयातुर।
• आन – उड़ान, पठान, चढ़ान, नीचान, उठान, लदान, मिलान, थकान, मुस्कान।
• आना – नजराना, हर्जाना, घराना, तेलंगाना, राजपूताना, मर्दाना, जुर्माना, मेहनताना, रोजाना, सालाना।
• आनी – देवरानी, जेठानी, सेठानी, गुरुआनी, इंद्राणी, नौकरानी, रूहानी, मेहतरानी, पंडितानी।
• आप – मिलाप, विलाप, जलाप, संताप।
• आपा – बुढ़ापा, मुटापा, रण्डापा, बहिनापा, जलापा, पुजापा, अपनापा।
• आब – गुलाब, शराब, शबाब, कबाब, नवाब, जवाब, जनाब, हिसाब, किताब।
• आबाद – नाबाद, हैदराबाद, अहमदाबाद, इलाहाबाद, शाहजहाँनाबाद।
• आमह – पितामह, मातामह।
• आयत – त्रिगुणायत, पंचायत, बहुतायत, अपनायत, लोकायत, टीकायत, किफायत, रियायत।
• आयन – दांड्यायन, कात्यायन, वात्स्यायन, सांस्कृत्यायन।
• आर – कुम्हार, सुनार, लुहार, चमार, सुथार, कहार, गँवार, नश्वार।
• आरा – बनजारा, निबटारा, छुटकारा, हत्यारा, घसियारा, भटियारा।
• आरी – पुजारी, सुनारी, लुहारी, मनिहारी, कोठारी, बुहारी, भिखारी, जुआरी।
• आरु – दुधारु, गँवारु, बाजारु।
• आल – ससुराल, ननिहाल, घड़ियाल, कंगाल, बंगाल, टकसाल।
• आला – शिवाला, पनाला, परनाला, दिवाला, उजाला, रसाला, मसाला।
• आलु – ईर्ष्यालु, कृपालु, दयालु।
• आलू – झगड़ालू, लजालू, रतालू, सियालू।
• आव – घेराव, बहाव, लगाव, दुराव, छिपाव, सुझाव, जमाव, ठहराव, घुमाव, पड़ाव, बिलाव।
• आवर – दिलावर, दस्तावर, बख्तावर, जोरावर, जिनावर।
• आवट – लिखावट, थकावट, रुकावट, बनावट, तरावट, दिखावट, सजावट, घिसावट।
• आवना – सुहावना, लुभावना, डरावना, भावना।
• आवा – भुलावा, बुलावा, चढ़ावा, छलावा, पछतावा, दिखावा, 
इतर – आयोजनेतर, अध्ययनेतर, सचिवालयेतर।
• इत्य – लालित्य, आदित्य, पांडित्य, साहित्य, नित्य।
• इन – मालिन, कठिन, बाघिन, मालकिन, मलिन, अधीन, सुनारिन, चमारिन, पुजारिन, कहारिन।
• इनी – भुजंगिनी, यक्षिणी, सरोजिनी, वाहिनी, हथिनी, मतवालिनी।
• इम – अग्रिम, रक्तिम, पश्चिम, अंतिम, स्वर्णिम।
• इमा – लालिमा, गरिमा, लघिमा, पूर्णिमा, हरितिमा, मधुरिमा, अणिमा, नीलिमा, महिमा।
• इयत – इंसानियत, कैफियत, माहियत, हैवानित, खासियत, खैरियत।
• इयल – मरियल, दढ़ियल, चुटियल, सड़ियल, अड़ियल।
• इया – लठिया, बिटिया, चुटिया, डिबिया, खटिया, लुटिया, मुखिया, चुहिया, बंदरिया, कुतिया, दुखिया, सुखिया, आढ़तिया, रसोइया, रसिया, पटिया, चिड़िया, बुढ़िया, अमिया, गडरिया, मटकिया, लकुटिया, घटिया, रेशमिया, मजाकिया, सुरतिया।
• इल – पंकिल, रोमिल, कुटिल, जटिल, धूमिल, तुंडिल, फेनिल, बोझिल, तमिल, कातिल।
• इश – मालिश, फरमाइश, पैदाइश, पैमाइश, आजमाइश, परवरिश, कोशिश, रंजिश, साजिश, नालिश, कशिश, तफ्तिश, समझाइश।
• इस्तान – कब्रिस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान, नखलिस्तान, कजाकिस्तान।
• इष्णु – सहिष्णु, वर्घिष्णु, प्रभाविष्णु।
• इष्ट – विशिष्ट, स्वादिष्ट, प्रविष्ट।
• इष्ठ – घनिष्ठ, बलिष्ठ, गरिष्ठ, वरिष्ठ।
• ई – गगरी, खुशी, दुःखी, भेदी, दोस्ती, चोरी, सर्दी, गर्मी, पार्वती, नरमी, टोकरी, झंडी, ढोलकी, लंगोटी, भारी, गुलाबी, हरी, सुखी, बिक्री, मंडली, द्रोपदी, वैदेही, बोली, हँसी, रेती, खेती, बुहारी, धमकी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, राजस्थानी, जयपुरी, मद्रासी, पहाड़ी, देशी, सुन्दरी, ब्राह्मणी, गुणी, विद्यार्थी, क्रोधी, लालची, लोभी, पाखण्डी, विदुषी, विदेशी, अकेली, सखी, साखी, अलबेली, सरकारी, तन्दुरी, सिन्दुरी, किशोरी, हेराफेरी, कामचोरी।
• ईचा – बगीचा, गलीचा, सईचा।
• ईन – प्रवीण, शौकीन, प्राचीन, कुलीन, शालीन, नमकीन, रंगीन, ग्रामीण, नवीन, संगीन, बीन, तारपीन, गमगीन, दूरबीन, मशीन, जमीन।
• ईना – कमीना, महीना, पश्मीना, नगीना, मतिहीना, मदीना, जरीना।
• ईय – भारतीय, जातीय, मानवीय, राष्ट्रीय, स्थानीय, भवदीय, पठनीय, पाणिनीय, शास्त्रीय, वायवीय, पूजनीय, वंदनीय, करणीय, राजकीय, देशीय।
• ईला – रसीला, जहरीला, पथरीला, कंकरीला, हठीला, रंगीला, गँठीला, शर्मीला, सुरीला, नुकीला, बर्फीला, भड़कीला, नशीला, लचीला, सजीला, फुर्तीला।
• ईश – नदीश, कपीश, कवीश, गिरीश, महीश, हरीश, सतीश।
• उ – सिँधु, लघु, भानु, गुरु, अनु, भिक्षु, शिशु, , वधु, तनु, पितु, बुद्धु, शत्रु, आयु।
• उक – भावुक, कामुक, भिक्षुक, नाजुक।
• उवा/उआ – मछुआ, कछुआ, बबुआ, मनुआ, कलुआ, गेरुआ।
• उल – मातुल, पातुल।
• ऊ – झाडू, बाजारू, घरू, झेँपू, पेटू, भोँपू, गँवारू, ढालू।
• ऊटा – कलूटा।
• ए – चले, पले, फले, ढले, गले, मिले, खड़े, पड़े, डरे, मरे, हँसे, फँसे, जले, किले, काले, ठहरे, पहरे, रोये, चने, पहने, गहने, मेरे, तेरे, तुम्हारे, हमारे, सितारे, उनके, उसके, जिसके, बकरे, कचरे, लुटेरे, सुहावने, डरावने, झूले, प्यारे, घने, सूखे, मैले, थैले, बेटे, लेटे, आए, गए, छोटे, बड़े, फेरे, दूसरे।
• एड़ी – नशेड़ी, भँगेड़ी, गँजेड़ी।
• एय – गांगेय, आग्नेय, आंजनेय, पाथेय, कौँतेय, वार्ष्णेय, मार्कँडेय, कार्तिकेय, राधेय।
• एरा – लुटेरा, सपेरा, मौसेरा, चचेरा, ममेरा, फुफेरा, चितेरा, ठठेरा, कसेरा, लखेरा, भतेरा, कमेरा, बसेरा, सवेरा, अन्धेरा, बघेरा।
• एल – फुलेल, नकेल, ढकेल, गाँवड़ेल।
• एला – बघेला, अकेला, सौतेला, करेला, मेला, तबेला, ठेला, रेला।
• एत – साकेत, संकेत, अचेत, सचेत, पठेत।
• ऐत – लठैत, डकैत, लड़ैत, टिकैत, फिकैत।
• ऐया – गवैया, बजैया, रचैया, खिवैया, रखैया, कन्हैया, लगैया।
• ऐल – गुस्सैल, रखैल, खपरैल, मुँछैल, दँतैल, बिगड़ैल।
• ऐला – विषैला, कसैला, वनैला, मटैला, थनैला, मटमैला।
• क – बालक, सप्तक, दशक, अष्टक, अनुवादक, लिपिक, चालक, शतक, दीपक, पटक, झटक, लटक, खटक।
• कर – दिनकर, दिवाकर, रुचिकर, हितकर, प्रभाकर, सुखकर, प्रलंयकर, भयंकर, पढ़कर, लिखकर, चलकर, सुनकर, पीकर, खाकर, उठकर, सोकर, धोकर, जाकर, आकर, रहकर, सहकर, गाकर, छानकर, समझकर, उलझकर, नाचकर, बजाकर, भूलकर, तड़पकर, सुनाकर, चलाकर, जलाकर, आनकर, गरजकर, लपककर, भरकर, डरकर।
• करण – सरलीकरण, स्पष्टीकरण, गैसीकरण, द्रवीकरण, पंजीकरण, ध्रुवीकरण।
• कल्प – कुमारकल्प, कविकल्प, भृतकल्प, विद्वतकल्प, कायाकल्प, संकल्प, विकल्प।
• कार – साहित्यकार, पत्रकार, चित्रकार, संगीतकार, काश्तकार, शिल्पकार, ग्रंथकार, कलाकार, चर्मकार, स्वर्णकार, गीतकार, बलकार, बलात्कार, फनकार, फुँफकार, हुँकार, छायाकार, कहानीकार, अंधकार, सरकार।
• का – गुटका, मटका, छिलका, टपका, छुटका, बड़का, कालका।
• की – बड़की, छुटकी, मटकी, टपकी, अटकी, पटकी।
• कीय – स्वकीय, परकीय, राजकीय, नाभिकीय, भौतिकीय, नारकीय, शासकीय।
• कोट – नगर
गीर – राहगीर, उठाईगीर, जहाँगीर।
• गीरी – कुलीगीरी, मुँशीगीरी, दादागीरी।
• गुना – दुगुना, तिगुना, चौगुना, पाँचगुना, सौगुना।
• ग्रस्त – रोगग्रस्त, तनावग्रस्त, चिन्ताग्रस्त, विवादग्रस्त, व्याधिग्रस्त, भयग्रस्त।
• घ्न – कृतघ्न, पापघ्न, मातृघ्न, वातघ्न।
• चर – जलचर, नभचर, निशाचर, थलचर, उभयचर, गोचर, खेचर।
• चा – देगचा, चमचा, खोमचा, पोमचा।
• चित् – कदाचित्, किँचित्, कश्चित्, प्रायश्चित्।
• ची – अफीमची, तोपची, बावरची, नकलची, खजांची, तबलची।
• ज – अंबुज, पयोज, जलच, वारिज, नीरज, अग्रज, अनुज, पंकज, आत्मज, सरोज, उरोज, धीरज, मनोज।
• जा – आत्मजा, गिरिजा, शैलजा, अर्कजा, भानजा, भतीजा, भूमिजा।
• जात – नवजात, जलजात, जन्मजात।
• जादा – शहजादा, रईसजादा, हरामजादा, नवाबजादा।
• ज्ञ – विशेषज्ञ, नीतिज्ञ, मर्मज्ञ, सर्वज्ञ, धर्मज्ञ, शास्त्रज्ञ।
• ठ – कर्मठ, जरठ, षष्ठ।
• ड़ा – दुःखड़ा, मुखड़ा, पिछड़ा, टुकड़ा, बछड़ा, हिँजड़ा, कपड़ा, चमड़ा, लँगड़ा।

अंग्रेजी के तद्धित प्रत्यय :
हिंदी में कुछ अंग्रेजी के भी तद्धित प्रत्यय प्रचलन में आ गये हैं:
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत- रूप प्रकार
अर – पेंट – पेंटर – कर्तृवाचक
आइट- नक्सल -नकसलाइट – गुणवाचक
इयन -द्रविड़ – द्रविड़ियन – गुणवाचक
इज्म- कम्यून -कम्युनिस्म – भाववाचक

उपसर्ग और प्रत्यय का एकसाथ प्रयोग :
कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जिनकी रचना उपसर्ग तथा प्रत्यय दोनों के योग से होती है । जैसे –
अभि (उपसर्ग) + मान + ई (प्रत्यय) = अभिमानी
अप (उपसर्ग) + मान + इत (प्रत्यय) = अपमानित
परि (उपसर्ग) + पूर्ण + ता (प्रत्यय) = परिपूर्णता
दुस् (उपसर्ग) + साहस + ई (प्रत्यय) = दुस्साहसी
बद् (उपसर्ग) + चलन + ई (प्रत्यय) = बदचलनी
निर् (उपसर्ग) + दया + ई (प्रत्यय) = निर्दयी
उप (उपसर्ग + कार + क (प्रत्यय) = उपकारक
सु (उपसर्ग) + लभ + ता (प्रत्यय) = सुलभता
अति (उपसर्ग) + शय + ता (प्रत्यय) = अतिशयता
नि (उपसर्ग) + युक्त + इ (प्रत्यय) = नियुक्ति
प्र (उपसर्ग) + लय + कारी (प्रत्यय) = प्रलयकार

फारसी के तद्धित प्रत्यय:
हिंदी में फारसी के भी बहुत सारे तद्धित प्रत्यय लिये गये हैं। इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया जुा सकता है-
भाववाचक 
कर्तृवाचक
ऊनवाचक
स्थितिवाचक
विशेषणवाचक

भाववाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आ – सफ़ेद -सफेदा
आना -नजर – नजराना
ई – खुश – ख़ुशी
ई – बेवफा – बेवफाई
गी – मर्दाना – मर्दानगी
कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
कार – पेश – पेशकार॰
गार- मदद -मददगार
बान – दर – दरबान
खोर – हराम – हरामखोर
दार – दुकान- दुकानदार
नशीन – परदा – परदानशीन
पोश – सफ़ेद – सफेदपोश
साज – घड़ी – घड़ीसाज
बाज – दगा – दगाबाज
बीन – दुर् – दूरबीन
नामा – इकरार – इकरारनामा

ऊनवाचक तद्वित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
क- तोप – तुपक
चा – संदूक -संदूकचा
इचा – बाग – बगीचा
स्थितिवाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आबाद- हैदर – हैदराबाद
खाना- दौलत – दौलतखाना
गाह- ईद – ईदगाह
उस्तान- हिंद – हिंदुस्तान
शन – गुल- गुलशन
दानी – मच्छर- मच्छरदानी
बार – दर – दरबार
विशेषणवाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आनह- रोज- रोजाना
इंदा – शर्म -शर्मिंदा
मंद – अकल- अक्लमंद
वार- उम्मीद -उम्मीदवार
जादह -शाह – शहजादा
खोर – सूद – सूदखोर
दार- माल – मालदार
नुमा – कुतुब -कुतुबनुमा
बंद – कमर – कमरबंद
पोश – जीन – जीनपोश
साज -जाल- जालसाज

पाणिनि - व्याकरण के अध्ययन की विधि

व्याकरण - शास्त्र को अच्छी तरह अल्पकाल में समझने के लिए वैज्ञानिक विधि यह है कि सज्ञाओं, प्रत्याहारो तथा अन्य पूर्वोलिखित साधनो का सम्यक् ज्ञान कर ले । प्रथमतः सज्ञां प्रभृति का साधारण ज्ञान और इसके इसके पश्चात् किस तरह प्रत्यय जुडते हैं और किस प्रकार एक सूत्र से दूसरे सूत्र में अनुवृत्ति की जाती है, इसे समझने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रत्यय लगने की विधि नीचे दी जाती है । 

( १ ) प्रत्यय में पहले यह देखना चाहिए कि कितना प्रश जुडने के उपयोग में आने वाला है , जैसे ण्यत् प्रत्यय में चुटू सूत्र से आदि में आने वाला ण् तथा हलन्त्यम् सूत्र से त् लुप्त हो जाते हैं । केवल य भर बच रहता है । 

( २ ) पुन: यह देखना चाहिए कि इस प्रत्यय को पहले जुडना है या पीछे या बीच में । इस सम्बन्ध में एक ही नियम है प्रत्यय ( ३ । १ । १ ) परश्च ( ३ । १ । २ ) अर्थात् प्रत्यय सदा बाद में ही जुडते है ( केवल तद्धित का एक प्रत्यय बहुच ऐसा है जो ईषदसमाप्ति अर्थ मे शब्द के पहले जुडता है , जैसे बहुतृण आदि ) ।

( ३ ) फिर यह देखना चाहिए कि जिसमे प्रत्यय को जुडना है , उसमे अनुबन्धो के कारण किस विकार का होना आवश्यक है , जैसे अचो ण्णिति ( ७ । २ । ११५ ) अर्थात् जित् , तथा णित् प्रत्यय बाद में रहने पर पूर्व में आने वाले अजन्त अङ्ग के स्वर की वृद्धि हो जाती है । इस सूत्र के अनुसार ' हृ ' के आगे ‘ ण्यत् ' आने पर ' हृ ' के ऋ में वृद्धि होकर ' पार् ' हो जाता है । 

( ४ ) और अन्त में, अर्थ समझने के लिए किस हेतु से प्रत्यय लगा है इसे समझना चाहिए । कृदन्त तथा तद्धित प्रकरणो मे इसका विशेष विवेचन किया जायगा। इन सब बातो को ध्यान में रखते हुए यदि कोई अध्ययन करे तो अल्पकाल में ही साधारण कोटि का व्युत्पन्न हो सकता है।




अनुस्वार सन्धि के नियम।।

शब्द के अन्त में म् के बाद कोई व्यञ्जन हो तो उसका अनुस्वार हो जाता है।

उदाहरण- हरिम् + वन्दे= हरिं वन्दे । यहां “म्" को अनुस्वार हो गया क्योंकि व्यञ्जन “व्” परे है।

१) गुरुम् + नमति गुरुं नमति ।
२) कम् + चित्= कंचित् ।
३) कार्यम् + कुरुकार्यं कुरु ।
४) पुस्तकम् + पठति पुस्तकं पठति ।

इसके विपरीत यदि "म्" के बाद स्वर हो तो अनुस्वार अपरिवर्तित रहता है जैसे:-

१) कथम् अस्ति ? 
२) विद्यालयस्य पुरतः सुन्दरम् उद्यानं वर्तते।
३) त्वम् आगच्छसि ।

नोट:- सामान्यतः अनुस्वार नियमों के प्रयोग में दुविधा रहती है इसलिए संक्षेप में अनुस्वार के कुछ मुख्य नियमों को यहाँ समझाया गया है। यह अनुस्वार की पूर्ण व्याख्या नही है।
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विषय - संस्कृत (UPTET CTET- 2015)

1= संस्कृत के सुप्रसिद्ध नाटककार ' विशाखदत्त ' की प्रसिद्ध कृति का नाम है?
(हितोपदेशः, नीतिशतकम् , मृच्छकटिकम् , मुद्राराक्षसम् )
■ मुद्राराक्षसम् ।

2= ' शिवराजविजयः ' नामक पुस्तक के लेखक है?
■ अम्बिकादत्त व्यास ।

3= ' अष्टाशीतिः ' पद का अर्थ है?
■ 88

4= ' वहुज्ञः ' का विपरीतार्थक शब्द है?
■ अल्पज्ञः ।

5= ' धीशः ' शब्द में सन्धि है?
■ दीर्घ सन्धि ।

6= ' रमायाः ' में विभक्ति वचन है?
■ षष्ठी विभक्ति एकवचन ।

7= संस्कृत व्याकरण में ' कति ' शब्द किस वचन में प्रयोग किया जाता है?
(एकवचन, द्विवचन, बहुवचन , उपर्युक्त सभी )

8= उपसर्गों की संख्या है?
(बीस, बाईस, पच्चीस, सत्ताईस )
■ बाईस ।

9= " कृष्ण के दोनों ओर ग्वालें हैं ।" -- की संस्कृत है?
■कृष्णं उभयतः गोपाः सन्ति ।

10= ' ग ' व्यञ्जन है?
(अन्तःस्थ व्यञ्जन, ऊष्म व्यञ्जन, स्पर्श व्यञ्जन, संयुक्त व्यञ्जन)
■ स्पर्श व्यञ्जन ।

11= पुराणों की संख्या कितनी है?
■ 18

12= ' गड़्गोदकम्' का सन्धि -विच्छेद है?
■ गड़्गा + उदकम् ।

13= ' पवित्रम् ' में सन्धि -- विच्छेद है?
■ पो + इत्रम् ।

14= निम्नलिखित में ' अरविन्दम् ' शब्द का पर्याय है?
(नीरम्, गगनम्, वायुः , कमलम् )
■ कमलम् ।

15= ' संस्कृतम् ' शब्द में निम्नलिखित में से कौन सा उपसर्ग है,? ( समु, सम्, स, सम )
■ सम् ।

17= निम्न में से शुद्ध वाक्य चुनिए --
1* सः पुस्तकं पठसि ।
2* सा विद्यालयं गच्छतः ।
3* तौ विद्यालयं गच्छतः ।
4* ते पुस्तकं पठथ ।
■ तौ विद्यालयं गच्छतः ।

18= पहले उदाहरण प्रस्तुत किये जाये, बाद में नियम -- यह शिक्षण सूत्र है?
1*अनुभव से तर्क की ओर
2* विशेष से सामान्य की ओर
3* पूर्ण से अंश की ओर
4* सरल से कठिन की ओर
■ विशेष से सामान्य की ओर ।

19= संस्कृत शिक्षण में प्रयोग किए जाने वाला दृश्य उपकरण है? ( सिनेमा, टेप-- रिकार्डर, फ्लैश -कार्ड, ग्रामोफोन )
■ फ्लैश -- कार्ड ।

20= संस्कृत का अध्यापक एक - एक शब्द का अर्थ स्पष्ट करता है?
■ व्याख्या विधि में ।

21= " छात्र पढ़े हुए श्लोकों को कण्ठाग्र करेगा ।" --- यह व्यवहारव्यवहारगत परिवर्तन किस उद्देश्य का है ?
1* ज्ञान का , 2* अभिव्यक्ति, का, 3*अभिग्रहण का, 4*अभिरुचि का
■ अभिरुचि का ।

22=छात्रों को उच्चारण-- अभ्यास कराने हेतु सहायक सामग्री है?
1*श्यामपट्ट, 2* फ्लैश -- कार्ड,
3* रेडियो, 4* टेप --रिकार्डर

23= निम्नलिखित में से बाणभट्ट की कृति नहीं है?
1* कादम्बरी, 2* हर्षचरितम्,
3* चण्डीशतकम्, 4* दशकुमारचरितम्
■ दशकुमारचरितम् ।

24= " सर्वे भवन्तु सुखिनः " -- किस प्रकार का वाक्य है?
1* संकेतवाचक, 2* विस्मयवाचक, 3* प्रश्नवाचक, 4* इच्छावाचक
■ इच्छावाचक ।

25= " अधिशीड़्स्थासां कर्मः " सूत्र सम्बन्धित है?
■द्वितीया विभक्ति ।

26= निम्नलिखित वर्णों मे से किस वर्ण का उच्चारण -स्थान 'दन्तोष्ठ ' है?
( व् , म् , प् , क् )
■ व्

27= " आकर्णयन ' शब्द में कौन सा प्रत्यय है?
( क्त , क्तवतु , शतृ , इनमें से कोई नही )
■ शतृ ।

28= 'किरातार्जुनियम् ' के प्रथम सर्ग में प्रयुक्त प्रमुख छंद है?
( अनुष्टुप, जगती, वंशस्थ , उपजाति )
■ वंशस्थ ।

29= ' अक ' प्रत्याहार के अन्तर्गत कौन --कौन से वर्ण आते है?
1* अ, इ, उ, ऋ, लृ
2* अ, इ, उ
3* ऋ, लृ
4* सभी स्वर
■ अ, इ, उ,ऋ, लृ ।

30= " स्पर्श व्यञ्जनों के वर्ण है? ( दो, पाँच, चार, तीन )
■ पाँच ।

○○○○○○○○○○●○●○●○○○○○○○○○○○○○●○●○●○○○

निम्न जानकारी शास्त्रोक्त आधार पर है।।

जानें, 2 से लेकर 10 तक की संख्या में हिंदू धर्मशास्त्र की रोचक जानकारी।।

दो लिंग : नर और नारी ।

दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।

दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।

तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।

तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।

तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।

तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।

तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।

तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।

तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।

तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।

तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।

तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।

तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।

तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।

चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।

चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।

चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।

चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।

चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।

चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।

चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।

चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।

चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।

चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।

चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।

चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।

चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।

चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।

चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।

चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।

पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।

पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।

पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।

पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।

पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।

पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।

पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।

पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।

पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।

पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।

पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।

पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।

छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।

छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।

छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।

सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।

सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।

सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।

सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।

सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।

सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।

सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।

सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।

सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।

सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।

सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।

आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।

आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।

आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।

आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।

नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।

नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।

दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य,वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।

दस दिक्पाल- इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।

दस अवतार (विष्णुजी)- मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।

दस सती- सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

संस्कृत वाक्य अभ्यासः आरोग्यम् (Health)

वाक्यों के अर्थ संस्कृत से अंग्रेजी में ।।

संस्कृत = इंग्लिश (English)

मम आरोग्यं समीचीनं नास्ति । = I am not well.

महती पादवेदना । = Terrible leg pain.

सामान्यतः शिरोवेदना तदा तदा आगच्छति । = Generally I get headache now and then.

किञ्चित् ज्वरः इव । = Feel a little feverish...

वैद्यं पश्यतु । = Consult a doctor.

मम वमनशङ्का । = I feel like vomitting.

वैद्यस्य निर्देशनं स्वीकरोतु । = Get a doctor's advice.

किमर्थं कण्ठः अवरुद्धः ? = Why is there the blocking of the throat ?

अहं अतीव श्रान्तः । = I am very tired.

तस्य आरोग्यं कथं अस्ति ? = How is his health ?

अद्य किञ्चित् उत्तमा (देहस्थितिः ) । = A bit better today.

प्रातः आरभ्य लघु शिरोवेदना । = Slight head-ache since morning.

आरोग्यं तावत् सम्यक् नास्ति । = Somehow, my health is not good.

वैद्यं कदा दृष्टवान् ? = When did you see the doctor last ?

उत्साहः एव नास्ति भोः । = Don't feel active, you know.

ह्यः तु स्वस्थः आसीत् । = He was all right yesterday.

किं अद्य अहं भोजनं करोमि वा ? = Shall I have my meals today ?

अद्य ज्वरः कथं अस्ति ? = How is the fever today ?

यथावत् । = As usual.

तदा तदा उदरवेदना पीडयति किल ? = You get stomach-ache now and then, don't you ?

ज्वरपीडितः वा? कदा आरभ्य ? = Fever ? Since when ?

अय्यो! रक्तं स्रवति ! = Oh! Blood is coming out.

अपघाते सः जीवितः इत्येव विशेषः । = It is a miracle, he survived the accident.

सः चिकित्सालये प्रवेशितः । = He is admitted to the hospital.

मम शिरः भ्रमति इव । = I feel giddy.

समयः (Time) 

कः समयः ? = What is the time?

सपादचतुर्वादनम् । = A quarter past four.

द्विवादने अवश्यं गन्तव्यं अस्ति । = I must leave at 2.

त्रिवादने एकं यानं अस्ति । = There is a bus at three.

पादोन षड्वादने भवान् मिलति वा ? = Will you meet at a quarter to six ?

सार्धपञ्चवादने अहं गृहे तिष्ठामि । = I will be at home at half past five.

पञ्च ऊन दशवादने मम घटी स्थगिता । = My watch stoppped at 5 minutes to 10 o'clock.

संस्कृतवार्ताप्रसारः सायं दशाधिक षड्वादने । = The Sanskrit news bulletin is at 6.10 p.m.

सार्धं द्विघण्टात्मकः कार्यक्रमः । = It is a programme for two and a half hours.

षड्वादनपर्यन्तं तत्र किं करोति ? = What are you going to do there till six o'clock ?

शाला दशवादनतः किल ? = The school is from 10 o'clock, isn't it ?

इतोऽपि यथेष्टं समयः अस्ति । = Still there is a lot of time.

सः षड्वादनतः सप्तवादनपर्यन्तं योगासनं करोति । = He does Yogasana from 6 A.M. to 7 A.M.

मम घटी निमेषद्वयं अग्रे सरति । = My watch goes two minutes fast every day.

समये आगच्छतु । = Come in time.

अरे! दशवादनम् ! = Oh! it is 10 o'clock.

भवतः आकाशवाणी समयः वा? = Is yours the radio time ?

इदानीं यथार्थः समयः कः ? = What is the exact time now ?

किमर्थं एतावान् विलम्बः ? = Why (are you) so late ?

इदानीं भवतः समयावकाशः अस्ति वा ? = Are you free now? (Can you spare a few minutes for me ?)

रविवासरे कः दिनाङ्कः ? = What date is Sunday ?

रविवासरे चतुर्विंशतितमदिनाङ्कः ? = Sunday is 24th ?

पञ्चदशदिनाङ्के कः वासरः ? = Which/What day is 15th ?

भवतः शाला कदा आरब्धा ? = When did your school begin ?

जून प्रथम दिनाङ्के । = On 1st June.

भवतः जन्मदिनाङ्कः कः ? = Which/What is your date of birth ?

अष्टादश दश षडशीतिः । = 18-10-63 (Should be 18-10-86).

आभार:- सुमित वशिष्ठ

# Basics

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प्राचीन भारत के ग्रन्थ और उनके लेखक

वासवदत्ता – सुबंधु
सूर्य सिद्धांत – आर्यभट्ट

बृहत् संहिता, पञ्च सिद्धान्तिका, बृहज्जातिका, लघुजातिका – वाराहमिहिर
गीतगोविन्दम् – जयदेव
अनर्घराघव – मुरारि

आयुर्वेद सर्वस्व, राजमार्तंड, व्यवहार समुच्चय, शब्दानुशासन, युक्तिकल्पतरु, राजमृगिका – राजा भोज

भोजप्रबंध – बल्लाल
शिशुपाल वध – माघ
नैषधीयचरितम् – श्रीहर्ष
मालती माधव, महावीर चरित, उत्तररामचरितं – भवभूति

साहित्यदर्पण:- भामह
ध्वन्यालोक:, प्रमोदचन्द्र – आनंदवर्धन
व्यक्तिविवेक: – महिमभट्ट

काव्यादर्श – अलंकारशास्त्राचार्य दंडी
वेणिसंहार – भट्ट नारायण
प्रमाण मीमांसा – हेमचन्द्र
बृहत्कथामंजरी – क्षेमेन्द्र
कातन्त्र (व्याकरण) – सर्ववर्मन्

अष्टांगसंग्रह, सिद्धांत शिरोमणि, लीलावती – भास्कराचार्य
माधव निदान – माधवकर
निघंटु – यास्क
रसरत्नाकर – नागार्जुन

तत्त्व कौमुदी, तत्त्व शारदी, न्यायवर्तिका, न्यायसूत्र धारा, न्यायकणिका, योगसारसंग्रह – वाचस्पति मिश्र
योगवर्तिका, योगसारसमग्र – विज्ञान भिक्षु
तिलकमंजरी, यशस्तिलक – धनपाल

कुट्टनीमतम् –दामोदरगुप्त
तत्त्वशुद्धि – उदयन
न्यायमंजरी – जयंत
न्यायतत्त्व योगरहस्य – नाथमुनि

गीतसंग्रह, महापुरुष निर्णय, सिद्धत्रय, अगम प्रामाण्य – यामुनाचार्य
धूर्तव्यामा, समरादित्य कथा – हरिभद्र
कुवलयमाला – उद्द्योतनसूरि

अजित शान्तिस्तव – नंदिसेण
सतसई – हाल
बृहत्कथा – गुणाढ्य

भगवतगीता----' वेदव्यास

महाभारत ----वेदव्यास

रामायण ---वाल्मीकि

रघुवंशम्---कालिदास

कुमार संभवम्---कालिदास

अभिज्ञान शाकुन्तलम्--कालिदास

ऋतुसंहारम्---कालिदास

मेघदूतम्--कालिदास

पुष्पबाण विलासम्--कालिदास

विक्रम उर्वशीयम-- कालिदास

मल्लिका अग्निमित्रम्--कालिदास

मुद्राराक्षस-- विशाखदत्त

देविचन्द्रगुप्तम्---विशाखदत्त

हर्षचरित-- वाणभट्ट

कादम्बरी--- वाणभट्ट

चण्डीशतक---वाणभट्ट

बुद्धचरितम्-- अश्वघोष

चारूदत्तम-- भास

स्वप्नवासवदत्तम्---भास

प्रत्रिज्ञायौगन्धरायन ---भास

प्रियदर्शिका---हर्षवर्धन

कथा सरित्सागर ---सोमदेव

नैषधीयचरितम्---श्रीहर्ष

रत्नावली---श्रीहर्ष

अवन्तीसुन्दरी ---दण्डी

दशकुमारचरितम् ----दण्डी

उत्तररामचरितम्---भवभूति

महावीर चरितम् ---भवभूति

मालतीमाधव ----भवभूति

अर्थशास्त्र ---कौटिल्य

काव्यप्रकाश:--- मम्मट

काव्य -मीमांसा --- राजशेखर

मृच्छकटिकम्---शुद्रक

पंचतंत्र ----विष्णु शर्मा

श्रृंगार शतकम्---भर्तृहरि

भक्तिशतकम्---भर्तृहरि

नीतिशतकमम्---भर्तृहरि

चन्द्रलेखा ---रूद्रदास

कीर्ति कौमुदी -- सोमेश्वर

किरातार्जुनीयम् --- भारवि

वेणी संहारः ------ भट्टनारायण

राजतरंगिनी ---- कल्हण

गीत गोविन्द --- जयदेव

नाट्यशास्त्र --- भरतमुनि

साहित्यदर्पण --- विश्वनाथ

वृहत् कथामंजरी--- गुणाढ्य

हित उपदेशः --- नारायण पंडित

कल्पसूत्रम् --- भद्रबाहु

कर्पूरमंजरी --- राजशेखर

कामसूत्र--- वात्सतयायन

शिवराजविजयः --- अम्बिकादत्त व्यास

शिशुपालवधम् ---- माघ

मनुस्मृति --- मनु

काव्य अलंकारः ---भामह

जानकीहरण --- कुमारदास

शान्ति शतकम्--- शिल्हण


संस्कृत वाक्य अभ्यासः

ओ३म् 

अद्य सेंट झेवियर्स विद्यालये संस्कृतदिनम् आचरिष्यते। 
= आज सेंट झेवियर्स स्कूल में संस्कृत दिन मनाया जाएगा। 

आदि नामकः छात्रः संस्कृतकार्यक्रमस्य संचालनं करिष्यति। 
= आदि नाम का छात्र संस्कृत कार्यक्रम का संचालन करेगा।

आदि सम्पूर्णं संचालनं संस्कृतभाषायां करिष्यति। 
= आदि सारा संचालन संस्कृत में करेगा।

क्रिस्टा भगिनी दीपं प्रज्ज्वालयिष्यति। 
= क्रिस्टा बहन दीप प्रज्ज्वलित करेगी। 

सप्तमकक्षायाः छात्राः वन्दनां गास्यन्ति। 
= सातवीं कक्षा के छात्र वन्दना गाएँगे।

योगेशः गीतायाः दश श्लोकान् अर्थसहितं पतिष्यति। 
= योगेश गीता के दस श्लोक अर्थ सहित पढ़ेगा। 

हार्दिका भगिनी संस्कृतस्य महत्वं श्रावयिष्यति।
= हार्दिका बहन संस्कृत का महत्व सुनाएगी।

नवम कक्षायाः छात्राः अभिनयेन सह संस्कृतगीतं गास्यन्ति।
= नौंवी कक्षा के छात्र अभिनय के साथ संस्कृत गीत गाएँगे। 

रूपाली भगिनी सर्वेषां धन्यवादं मंस्यते।
= रूपाली बहन सबका धन्यवाद मानेगी।

समापने आदि "भारतं भारतं भवतु भारतम्" इति गीतं गास्यति / गापयिष्यति।
= समापन में आदि "भारतं भारतं भवतु भारतम्" ये गीत गाएगा / गवाएगा।

सर्वे स्वं स्वं नाम वदन्तु 
= सभी अपना नाम बोलिये 

सर्वे स्वं स्वं नाम जानन्ति 
= सब अपना अपना नाम जानते हैं । 

बहु शोभनम् = बहुत अच्छा 

सर्वे स्वं स्वं गोत्रं वदन्तु 
= सभी अपना गोत्र बोलें ।

गोत्रं न जानाति / न जानन्ति 
= गोत्र नहीं जानते हो / जानते हैं  

पितामहस्य नाम वदतु 
= दादाजी का नाम बोलिये 

पितामहस्य नाम न जानाति
= दादाजी का नाम नहीं जानते हैं 

मातामहस्य नाम वदतु 
= नानाजी का नाम बोलिये 

मातामहस्य नाम न जानाति 
= नानाजी का नाम नहीं जानते हैं । 

पितामह्या: नाम , मातामह्या: नाम 
= दादीजी का नाम , नानीजी का नाम 

स्वकुलस्य विषये न जानन्ति जनाः 
= अपने कुल के बारे में लोग नहीं जानते हैं 

अहो दुःखम् , अहो आश्चर्यम् ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

समययापनम् -

अलङ्कारशब्दस्य विग्रह:शब्दार्थश्च-

अलम्पूर्वकात् डुकृञ् करणे इत्येतस्माद्धातो: भावेर्थे "भावे" इत्यनेन सूत्रेण घञ् प्रत्ययेनुबन्धलोपे ञित्वादादिवृद्धौ च अलङ्कारशब्दो निष्पद्यते। अलङ्कारशब्दस्य व्युत्पत्तिलभ्योर्थो भवत्याभूषणं मण्डनमित्यादि:। जयदेवस्यालङ्कारलक्षणन्तथा महत्त्वममुष्मिन्नलङ्कारविचारसन्दर्भे ध्येयं भवति-
अङ्गीकरोति य:काव्यं शब्दार्थावनलङ्कृती।
असौ न मन्यते कस्मादनुष्णमनलङ्कृती??(चन्द्रालोके)
दण्डिनो मतेलङ्कारा कथङ्कारा भवन्तीति विविदिषायाम्-
काव्यशोभाकरान् धर्मानलङ्कारान् प्रचक्षते।

प्रस्तावना-

काव्यालापाश्च ये केचिद्गीतकान्यखिलानि च।
शब्दमूर्तिधरस्यैते विष्णोरंशा महात्मन:।।
इत्युक्तदिशा काव्यसम्बद्धां यां कामपि कण्डूतिं प्रशासति विद्वांस:। काव्यं च भवति सरसमर्थगाम्भीर्ययुतमत्यन्तं मनोहारीत्यनुभूतपूर्वोसौ विषय:। अतो विद्वांस: काव्यस्यैकदेशं  समग्राङ्गं वोपदिशन्ति स्वविषयीकुर्वते। आचार्येषु सूक्ष्मेक्षिका बुद्धिर्भवति यतस्ते सूक्ष्मातिसूक्ष्ममपि  विषयं स्वकल्पनया दीर्घकाये परिणमन्ति। इयमेव बुद्धिर्विविधांस्तर्कान् वादान् सिद्धान्तान्  पथान् वा प्रथयन्ती  बोभोति। काव्यशास्त्रमिदं  युवजनान् सरससरलवाग्भि: कृत्याकृत्ये प्रति प्रेरयति निर्वर्तयति वेति विश्वनाथमतमत्र ध्येयं भवति। साहित्यशास्त्राणां परम्परा नाधुनिकीति विदितविषय:।  अत्र च साहित्यशास्त्रे  प्रतिवादिभीकरा बहवो काव्यमूर्धन्या: काव्यसरणिसरणोत्पन्नप्रतिभाजातलक्षणशास्त्रिण: साहित्यैकचक्षुष्का: सन्तीति साहित्यलक्षणशास्त्रावगाहनेन ज्ञायते। बहवस्तथाभूता: सिद्धान्ता: साहित्यलक्षणशास्त्रिभि: प्रकटीकृता येषां प्रकटीकरणमपि भवतीति ज्ञात्वाश्चर्यं महदुगमितबुद्धयो वयम्। रसालङ्कारध्वनीनामेवं प्रकटीकरणमद्वितीयां तेषां विचक्षणतां समर्थयति। साहित्यलक्षणशास्त्रिणां प्रायेण षट्सिद्धान्ता प्रथिता:। आदिमो लक्षणशास्त्रकृद्भवति भरतमुनि: नाट्यशास्त्रमित्यमुष्य भरतस्य प्रथमा कृती रससिद्धान्तस्य पोषिका विभाति अतो रससिद्धान्तस्यादिम आचार्योसौ भरतो बभूव। इत:परमनेकेवर्तिषताचार्या यै रससिद्धान्त: पोषित:। विश्वनाथजगन्नाथादय:। भरतात्परमाचार्या अलङ्कारसिद्धान्तमुररीकृत्य स्वविचारान् समाम्नासिषु:। अलङ्कारस्य आदिमो विचारको भवति भामह: षट्शतवर्षानन्तरमसौ भरताद्वर्तिष्टेत्यैतिह्यविदां मतम्। अलङ्कारसिद्धान्तं पुष्णन्तोन्येप्युद्भटरुद्रटादय:।  अमुमेव सिद्धान्तमालिङ्ग्य मेत्र प्रवृत्तिरस्तीति विज्ञापयामि।
आदावलङ्कारास्त्रिधा विभज्य विशिश्लिष्यन्ते, त्रिप्रकाराश्च यथा- शब्दालङ्कार:, अर्थालङ्कार:, उभयालङ्कारश्चेतिभेदात्।

शब्दालङ्कारेषु- अनुप्रास-यमक-श्लेष- 

पुनरुक्तवदाभासादयस्समाविर्भवन्ति।
अर्थालङ्कारेषु- उपमानन्वयोत्प्रेक्षारूपकापह्नुतिसमासोक्त्यादय: परिगणिता:।
 उभयालङ्कारेषु च संसृष्टिसङ्करादय: व्यवह्रियन्ते। समेषामपि विदुष्मतां लक्षणशास्त्रिणामलङ्कारसङ्ख्याविषये वैविध्यं दरीदृश्यते।

अलङ्कारगणनासन्दर्भे विपश्चिद्वेद्यानां मतमेवं ध्येयं भवति-

उपमा रूपकं  चैव दीपको यमकस्तथा।
चत्वार  एवालङ्कारा भरतेन निरूपिता:।।
वामनेन त्रयस्त्रिंशद्भेदास्तस्य निरूपिता:।
पञ्चत्रिंशद्विधश्चायं दण्डिना प्रतिपादित:।।
नवत्रिंशद्विधश्चायं भामहेन च कीर्तितः।
चत्वारिंशद्विधश्चास्योद्भटेनात्र प्रदर्शित:।।
द्विपञ्चाशद्विध: प्रोक्तो रुद्रटेन विपश्चिता।
सप्तषष्टिविध: काव्यप्रकाशे मम्मटेन च।।
शतधा जयदेवेन विभक्तो दीक्षितेन वा।
एकविंशतिभेदास्तु कृता एकशतोत्तरा:।।

१.अपह्नुति:-

 अर्थालङ्कारेषु एकोलङ्कारो भवत्यपह्नुति:। असावलङ्कार: शब्दार्थभेदेन द्विधा भवति। अयमलङ्कारो निषेधपरको भवति। सामान्येन उपमेयस्‍य निषेधे सति उपमानस्‍य स्‍थापना अपह्नुति: कथ्‍यते।आशयो भवति यत्रोपमेयस्‍य निषेधं कृत्‍वा तस्‍योपरि उपमानस्‍य स्‍थापना क्रियते तत्र अपह्नुति अलंकार: भवति । काव्यप्रकाशकृता यथा लक्षणं प्रदत्तम्- 
 प्रकृतं यन्निषिध्यान्यत्साध्यते सा त्वपह्नुति:। उपमेयममसत्यं कृत्वा उपमानमेव यदा सत्यत्त्वेनोपस्थाप्यते एवम्प्रकारकेषु स्थानेषु अपह्नुतिरलङ्कारो भवति।
 विश्वनाथेन यल्लक्षणं प्रस्तुतं  तदपि अपह्नुतिचर्चावसरे दृश्यम्भवति-
 गोपनीयं कमप्यर्थं द्योतयित्वा कथञ्चन।
 यदि श्लेषेणान्यथा वान्यथयेत् साप्यपह्नुति:।।
 यदि गोपनीयार्थमुक्त्वापि श्लेषेण आहोस्वित् अन्येन येन केन प्रकारेण तं गोपयितुं प्रयत्नो विधीयते असावलङ्कार: अपह्नुति:।
 काव्यप्रकाशकारेण  द्वैविध्यं प्रदर्श्य द्वयोरप्युदाहरणे प्रस्तुते। आदौ 

शब्दालङ्कार:-

 अवाप्त:प्रागल्भ्यं परिणतरुच:शैलतनये!
 कलङ्को नैवायं विलसति शशाङ्कस्य वपुषि।
 अमुष्येयं मन्ये विगलदमृतस्यन्दशिशिरे
 रतिश्रान्ता रजनिरमणी गाढमुरसि।।
अथात्र प्रकृतस्थले उपमेयभूतस्य कलङ्कस्य निषेधमाचरता कविनोपमानभूताया रात्र्या उपस्थानमभिहितमिति अपह्नुतिरलङ्कार:।  आर्थ्यपह्नुतौ प्रकृतस्य निषेधाय क्वचित्कपटार्थोत्पादकशब्दानां्रहणम्भवति। क्वचिच्चान्येषामप्युपायानामालिङ्गनं भवतीति वस्तुस्थिति:।अत: आर्थ्यपह्नुतिरपि द्विधा विभज्यते। 
कपटार्थकशब्दानां प्रयोगजन्यार्थ्यपह्नुतेरुदाहरणं यथा-
बत सखि यदेतत् पश्य वर स्मरस्य
प्रियाविरहकृशेस्मिन् रागिलोके तथा हि।
उपवनसहकारोद्भासितभृङ्गच्छलेन
प्रतिविशिखमनेनोट्टङ्कितं कालकूटम्।।
 अत्रोदाहरणे विषाक्तकामदेवशरस्य स्थापना भ्रमरस्य उपमेयभूतस्य निषेधो वर्तते।
 परिणामार्थकशब्देन उत्पादिताया आर्थ्यपह्नुतेरुदाहरणं यथा-
 अमुष्मिंल्लावण्यामृतसरसि नूनं मृगदृश:
 स्मर:शर्वप्लुष्ट: पृथुजघनभागे निपतित:।
 यदङ्गाङ्गाराणां प्रशमपिशुना नाभिकुहरे
 शिखा धूमस्येयं परिणमति रोमावलिवपु:।।
 अत्र प्रकृतस्य रोमावलिशब्दस्य निषेधत्वादिदमुदाहरमपह्नुते: सिद्ध्यति।।
 इत्येवम्प्रकारेण संक्षेपेण अपह्नुतिरर्थालङ्कारो ज्ञेय:।

२.उत्प्रेक्षा-

 यत्र मन्ये शङ्के ध्रुवं प्राय: नूनं इत्येतेषां प्रयोगो भवति न वा भवति परं लक्ष्यन्ते ते उत्प्रेक्षाया उदाहरणत्वेन साम्मुख्यमाधत्ते। उपमायामेतेषाम्प्रयोगाभावात् भेद: स्पष्टीवर्तत एव। अत्र भ्रमात्मकं स्थानमिवशब्दो भवति। उपमायामुत्प्रेक्षायां वोभयत्र इवशब्दस्य  प्रयोगो दरीदृश्यते। परन्तत्र भेदकं चिह्नं भवति क्रियापदं, क्रियापदयुक्तमिवपदमुत्प्रेक्षां विवृणोति। यथोदाहरणाय-
 लिम्पन्तीव तमोङ्गानि वर्षतीवाञ्जनं नभ:।
 असत्पुरुषसेवेव दृष्टिर्विफलताङ्गता।।
 अत्र द्रष्टुं शक्यते क्रियापदैस्साकमिवपदस्य प्रयोग: शूद्रकेण कृत: अतोत्रोत्प्रेक्षालङ्कार: भवति। इतोपि यदा इवपदं वाक्येषु भवेत्तथा क्रियया तस्यान्वितिर्न सम्भवेत्सत्यामेतादृश्यां  स्थितौ लक्षणमेव शरणम्भवतीत्यपि ध्येयम्भवति।
 इत्येवम्प्रकारेण संक्षेपेण उत्प्रेक्षालङ्कार: सोदाहरणं मया प्रतिपादित:।

#संस्कृतम्: