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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

प्रत्यय ( Suffix )।।

प्रत्यय किसे कहते हैं?/ प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं

जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पीछे या अन्त मेँ जुड़कर नवीन शब्द का निर्माण करके पहले शब्द के अर्थ मेँ परिवर्तन या विशेषता उत्पन्न कर देते हैँ, उन्हेँ प्रत्यय कहते हैँ। कभी–कभी प्रत्यय लगाने पर भी शब्द के अर्थ मेँ कोई परिवर्तन नहीँ होता है। जैसे— बाल–बालक, मृदु–मृदुल।
प्रत्यय लगने पर शब्द एवं शब्दांश मेँ संधि नहीँ होती बल्कि शब्द के अन्तिम वर्ण मेँ मिलने वाले प्रत्यय के स्वर की मात्रा लग जाती है, व्यंजन होने पर वह यथावत रहता है। जैसे— लोहा+आर = लुहार, नाटक+कार = नाटककार।
शब्द–रचना मेँ प्रत्यय कहीँ पर अपूर्ण क्रिया, कहीँ पर सम्बन्धवाचक और कहीँ पर भाववाचक के लिये प्रयुक्त होते हैँ। जैसे— मानव+ईय = मानवीय। लघु+ता = लघुता। बूढ़ा+आपा = बुढ़ापा।

प्रत्यय
प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में‘ और अय का अर्थ होता है ‘चलने वाला‘, अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।

प्रत्यय की परिभाषा
प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से ‘प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला’। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश ।
अत: जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- ‘बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर ‘बड़ाई’ शब्द बनता है।

वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय = बाद में आने वाला) कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन

हिन्दी मेँ प्रत्यय तीन प्रकार के होते हैँ—

(1) संस्कृत के प्रत्यय,
(2) हिन्दी के प्रत्यय तथा
(3) विदेशी भाषा के प्रत्यय।

1. संस्कृत के प्रत्यय

संस्कृत व्याकरण मेँ शब्दोँ और मूल धातुओँ से जो प्रत्यय जुड़ते हैँ, 
संस्कृत के प्रत्यय के दो मुख्य भेद हैं: 1- कृत् और 2- तद्धित ।

1. कृदन्त प्रत्यय (कृत्) –

कृत्-प्रत्यय :
क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं । कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।
कृत प्रत्यय के उदाहरण:
अक = लेखक , नायक , गायक , पाठक
अक्कड = भुलक्कड , घुमक्कड़ , पियक्कड़
आक = तैराक , लडाक

जो प्रत्यय मूल धातुओँ अर्थात् क्रिया पद के मूल स्वरूप के अन्त मेँ जुड़कर नये शब्द का निर्माण करते हैँ, उन्हेँ कृदन्त या कृत् प्रत्यय कहते हैँ। धातु या क्रिया के अन्त मेँ जुड़ने से बनने वाले शब्द संज्ञा या विशेषण होते हैँ। कृदन्त प्रत्यय के निम्नलिखित तीन भेद होते हैँ –
कृत प्रत्यय के प्रकार ::
विकारी कृत्-प्रत्यय : 
ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं।

अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय : 
ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे क्रियामूलक विशेषण या अव्यय बनते है।

विकारी कृत्-प्रत्यय के भेद :
क्रियार्थक संज्ञा,
कतृवाचक संज्ञा,
वर्तमानकालिक कृदंत
भूतकालिक कृदंत
(1) कर्त्तृवाचक कृदन्त – वे प्रत्यय जो कर्तावाचक शब्द बनाते हैँ, कर्त्तृवाचक कृदन्त कहलाते हैँ। जैसे –
प्रत्यय – शब्द–रूप
• तृ (ता) – कर्त्ता, नेता, भ्राता, पिता, कृत, दाता, ध्याता, ज्ञाता।
• अक – पाठक, लेखक, पालक, विचारक, गायक।

(2) विशेषणवाचक कृदन्त – जो प्रत्यय क्रियापद से विशेषण शब्द की रचना करते हैँ, विशेषणवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• त – आगत, विगत, विश्रुत, कृत।
• तव्य – कर्तव्य, गन्तव्य, ध्यातव्य।
• य – नृत्य, पूज्य, स्तुत्य, खाद्य।
• अनीय – पठनीय, पूजनीय, स्मरणीय, उल्लेखनीय, शोचनीय।

(3) भाववाचक कृदन्त – वे प्रत्यय जो क्रिया से भाववाचक संज्ञा का निर्माण करते हैँ, भाववाचक कृदन्त कहलाते हैँ। जैसे –
• अन – लेखन, पठन, हवन, गमन।
• ति – गति, मति, रति।
• अ – जय, लाभ, लेख, विचार।

2. तद्धित प्रत्यय –

संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को ‘तद्धित’ कहा जाता है । तद्धित प्रत्यय के मेल से बने शब्द को तद्धितांत कहते हैं ।
तद्धित प्रत्यय के उदाहरण:
लघु + त = लघुता
बड़ा + आई = बड़ाई
सुंदर + त = सुंदरता
बुढ़ा + प = बुढ़ापा

जो प्रत्यय क्रिया पदोँ (धातुओँ) के अतिरिक्त मूल संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दोँ के अन्त मेँ जुड़कर नया शब्द बनाते हैँ, उन्हेँ तद्धित प्रत्यय कहते हैँ। जैसे— गुरु, मनुष्य, चतुर, कवि शब्दोँ मेँ क्रमशः त्व, ता, तर, ता प्रत्यय जोड़ने पर गुरुत्व, मनुष्यता, चतुरतर, कविता शब्द बनते हैँ।
तद्धित प्रत्यय के छः भेद हैँ –

(1) भाववाचक तद्धित प्रत्यय – भाववाचक दद्धित से भाव प्रकट होता है। इसमेँ प्रत्यय लगने पर कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
प्रत्यय — शब्द–रूप
• अव – लाघव, गौरव, पाटव।
• त्व – महत्त्व, गुरुत्व, लघुत्व।
• ता – लघुता, गुरुता, मनुष्यता, समता, कविता।
• इमा – महिमा, गरिमा, लघिमा, लालिमा।
• य – पांडित्य, धैर्य, चातुर्य, माधुर्य, सौन्दर्य।

(2) सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय – सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय से सम्बन्ध का बोध होता है। इसमेँ भी कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
• अ – शैव, वैष्णव, तैल, पार्थिव।
• इक – लौकिक, धार्मिक, वार्षिक, ऐतिहासिक।
• इत – पीड़ित, प्रचलित, दुःखित, मोहित।
• इम – स्वर्णिम, अन्तिम, रक्तिम।
• इल – जटिल, फेनिल, बोझिल, पंकिल।
• ईय – भारतीय, प्रान्तीय, नाटकीय, भवदीय।
• य – ग्राम्य, काम्य, हास्य, भव्य।

(3) अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय – इनसे अपत्य अर्थात् सन्तान या वंश मेँ उत्पन्न हुए व्यक्ति का बोध होता है। अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय मेँ भी कहीँ–कहीँ पर आदि–स्वर की वृद्धि हो जाती है। जैसे –
• अ – पार्थ, पाण्डव, माधव, राघव, भार्गव।
• इ – दाशरथि, मारुति, सौमित्र।
• य – गालव्य, पौलस्त्य, शाक्य, गार्ग्य।
• एय – वार्ष्णेय, कौन्तेय, गांगेय, राधेय।

(4) पूर्णतावाचक तद्धित प्रत्यय – इसमेँ संख्या की पूर्णता का बोध होता है। जैसे –
• म – प्रथम, पंचम, सप्तम, नवम, दशम।
• थ/ठ – चतुर्थ, षष्ठ।
• तीय – द्वितीय, तृतीय।

(5) तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय – दो या दो से अधिक वस्तुओँ मेँ श्रेष्ठता बतलाने के लिए तारतम्यवाचक तद्धित प्रत्यय लगता है। जैसे –
• तर – अधिकतर, गुरुतर, लघुतर।
• तम – सुन्दरतम, अधिकतम, लघुतम।
• ईय – गरीय, वरीय, लघीय।
• इष्ठ – गरिष्ठ, वरिष्ठ, कनिष्ठ

(6) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय – गुणवाचक तद्धित प्रत्यय से संज्ञा शब्द गुणवाची बन जाते हैँ। जैसे –
• वान् – धनवान्, विद्वान्, बलवान्।
• मान् – बुद्धिमान्, शक्तिमान्, गतिमान्, आयुष्मान्।
• त्य – पाश्चात्य, पौर्वात्य, दक्षिणात्य।
• आलु – कृपालु, दयालु, शंकालु।
• ई – विद्यार्थी, क्रोधी, धनी, लोभी, गुणी।

हिंदी क्रियापदों के अंत में कृत्-प्रत्यय के योग से छह प्रकार के कृदंत शब्द बनाये जाते हैं-
कतृवाचक
गुणवाचक
कर्मवाचक
करणवाचक
भाववाचक
क्रियाद्योदक

कर्तृवाचक
कर्तृवाचक कृत्-प्रत्यय उन्हें कहते हैं, जिनके संयोग से बने शब्दों से क्रिया करनेवाले का ज्ञान होता है ।
जैसे-वाला, द्वारा, सार, इत्यादि ।
कर्तृवाचक कृदंत निम्न तरीके से बनाये जाते हैं-
 क्रिया के सामान्य रूप के अंतिम अक्षर ‘ ना’ को ‘ने’ करके उसके बाद ‘वाला” प्रत्यय जोड़कर । जैसे-चढ़ना-चढ़नेवाला, गढ़ना-गढ़नेवाला, पढ़ना-पढ़नेवाला, इत्यादि
‘ ना’ को ‘न’ करके उसके बाद ‘हार’ या ‘सार’ प्रत्यय जोड़कर । जैसे-मिलना-मिलनसार, होना-होनहार, आदि ।
 धातु के बाद अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ऐया, ओड़ा, कवैया इत्यादि प्रत्यय जोड़कर । जैसे-पी-पियकूड, बढ़-बढ़िया, घट-घटिया, इत्यादि ।

गुणवाचक
गुणवाचक कृदंत शब्दों से किसी विशेष गुण या विशिष्टता का बोध होता है । ये कृदंत, आऊ, आवना, इया, वाँ इत्यादि प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं ।
जैसे-बिकना-बिकाऊ ।

कर्मवाचक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से कर्म का बोध हो, उन्हें कर्मवाचक कृदंत कहते हैं । ये धातु के अंत में औना, ना और नती प्रत्ययों के योग से बनते हैं ।
 जैसे-खिलौना, बिछौना, ओढ़नी, सुंघनी, इत्यादि ।

करणवाचक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से क्रिया के साधन का बोध होता है, उन्हें करणवाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को करणवाचक कृदंत कहते हैं । करणवाचक कृदंत धातुओं के अंत में नी, अन, ना, अ, आनी, औटी, औना इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर बनाये जाते हैं।
जैसे- चलनी, करनी, झाड़न, बेलन, ओढना, ढकना, झाडू. चालू, ढक्कन, इत्यादि ।

भाववाचक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से बने संज्ञा-पदों से भाव या क्रिया के व्यापार का बोध हो, उन्हें भाववाचक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत कहते हैं ! क्रिया के अंत में आप, अंत, वट, हट, ई, आई, आव, आन इत्यादि जोड़कर भाववाचक कृदंत संज्ञा-पद बनाये जाते हैं।
जैसे-मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा,

क्रियाद्योतक
जिन कृत्-प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, संज्ञा, अव्यय या विशेषता रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत्-प्रत्यय तथा इनसे बने शब्दों को क्रियाद्योतक कृदंत कहते हैं । मूलधातु के बाद ‘आ’ अथवा, ‘वा’ जोड़कर भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत बनाये जाते हैं । कहीं-कहीं हुआ’ प्रत्यय भी अलग से जोड़ दिया जाता है ।
जैसे- खोया, सोया, जिया, डूबता, बहता, चलता, रोता, रोता हुआ, जाता हुआ इत्यादि.

हिंदी के कृत्-प्रत्यय 
हिंदी में कृत्-प्रत्ययों की संख्या अनगिनत है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
अन, अ, आ, आई, आलू, अक्कड़, आवनी, आड़ी, आक, अंत, आनी, आप, अंकु, आका, आकू, आन, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, आहट, इया, इयल, ई, एरा, ऐया, ऐत, ओडा, आड़े, औता, औती, औना, औनी, औटा, औटी, औवल, ऊ, उक, क, का, की, गी, त, ता, ती, न्ती, न, ना, नी, वन, वाँ, वट, वैया, वाला, सार, हार, हारा, हा, हट, इत्यादि ।
ऊपर बताया जा चुका है कि कृत्-प्रत्ययों के योग से छह प्रकार के कृदंत बनाये जाते हैं। इनके उदाहरण प्रत्यय, धातु (क्रिया) तथा कृदंत-रूप के साथ नीचे दिये जा रहे हैं-

कर्तृवाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में आक, वाला, वैया, तृ, उक, अन, अंकू, आऊ, आना, आड़ी, आलू, इया, इयल, एरा, ऐत, ओड़, ओड़ा, आकू, अक्कड़, वन, वैया, सार, हार, हारा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से कर्तृवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं ।
प्रत्यय- धातु – कृदंत-रूप
आक – तैरना – तैराक
आका – लड़ना – लड़ाका
आड़ी- खेलना- ख़िलाड़ी
वाला- गाना -गानेवाला
आलू – झगड़ना – झगड़ालू
इया – बढ़ – बढ़िया
इयल – सड़ना- सड़ियल
ओड़ – हँसना – हँसोड़
ओड़ा – भागना -भगोड़ा
अक्कड़ -पीना- पियक्कड़
सार – मिलना – मिलनसार
क – पूजा – पूजक
हुआ – पकना – पका हुआ

गुणवाचक कृदन्त:
क्रिया के अंत में आऊ, आलू, इया, इयल, एरा, वन, वैया, सार, इत्यादि प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं:
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
आऊ – टिकना – टिकाऊ
वन – सुहाना – सुहावन
हरा – सोना – सुनहरा
ला – आगे, पीछे – अगला, पिछला
इया – घटना- घटिया
एरा – बहुत – बहुतेरा
वाहा – हल – हलवाहा

कर्मवाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में औना, हुआ, नी, हुई इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ने से बनते हैं ।
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
नी – चाटना, सूंघना – चटनी, सुंघनी
औना – बिकना, खेलना – बिकौना, खिलौना
हुआ – पढना, लिखना – पढ़ा हुआ, लिखा हुआ
हुई – सुनना, जागना – सुनी हुईम जगी हुई

करणवाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में आ, आनी, ई, ऊ, ने, नी इत्यादि प्रत्ययों के योग से करणवाचक कृदंत संज्ञाएँ बनती हैं तथा इनसे कर्ता के कार्य करने के साधन का । बोध होता है ।
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
आ – झुलना – झुला
ई – रेतना – रेती
ऊ – झाड़ना – झाड़ू
न – झाड़ना – झाड़न
नी – कतरना – कतरनी
आनी – मथना – मथानी
अन – ढकना – ढक्कन

भाववाचक कृदंत:
क्रिया के अंत में अ, आ, आई, आप, आया, आव, वट, हट, आहट, ई, औता, औती, त, ता, ती इत्यादि प्रत्ययों के योग से भाववाचक कृदंत बनाये जाते हैं तथा इनसे क्रिया के व्यापार का बोध होता है ।
प्रत्यय – क्रिया -कृदंत-रूप
अ – दौड़ना -दौड़
आ – घेरना – घेरा
आई – लड़ना- लड़ाई
आप- मिलना- मिलाप
वट – मिलना -मिलावट
हट – झल्लाना – झल्लाहट
ती – बोलना -बोलती
त – बचना -बचत
आस -पीना -प्यास
आहट – घबराना – घबराहट
ई – हँसना- हँसी
एरा – बसना – बसेरा
औता – समझाना – समझौता
औती मनाना मनौती
न – चलना – चलन
नी – करना – करनी

क्रियाद्योदक कृदंत:
क्रिया के अंत में ता, आ, वा, इत्यादि प्रत्ययों के योग से क्रियाद्योदक विशेषण बनते हैं. यद्यपि इनसे क्रिया का बोध होता है परन्तु ये हमेशा संज्ञा के विशेषण के रूप में ही प्रयुक्त होते हैं-
प्रत्यय – क्रिया – कृदंत-रूप
ता – बहना- बहता
ता – भरना – भरता
ता – गाना – गाता
ता – हँसना – हँसता
आ – रोना – रोया
ता हुआ – दौड़ना – दौड़ता हुआ
ता हुआ – जाना – जाता हुआ

कृदंत और तद्धित में अंतर :
कृत्-प्रत्यय क्रिया अथवा धातु के अंत में लगता है, तथा इनसे बने शब्दों को कृदंत कहते हैं ।
तद्धित प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगता है और इनसे बने शब्दों को तद्धितांत कहते हैं ।
कृदंत और तद्धितांत में यही मूल अंतर है । संस्कृत, हिंदी तथा उर्दू-इन तीन स्रोतों से तद्धित-प्रत्यय आकर हिंदी शब्दों की रचना में सहायता करते हैं ।

तद्धित प्रत्यय: 
हिंदी में तद्धित प्रत्यय के आठ प्रकार हैं-
कर्तृवाचक,
भाववाचक,
ऊनवाचक,
संबंधवाचक,
अपत्यवाचक,
गुणवाचक,
स्थानवाचक तथा
अव्ययवाचक ।

कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा के अंत में आर, आरी, इया, एरा, वाला, हारा, हार, दार, इत्यादि प्रत्यय के योग से कर्तृवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं ।
प्रत्यय- शब्द- तद्धितांत
आर – सोना- सुनार
आरी – जूआ – जुआरी
इया – मजाक- मजाकिया
वाला – सब्जी – सब्जीवाला
हार – पालन – पालनहार
दार – समझ – समझदार

भाववाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा या विशेषण में आई, त्व, पन, वट, हट, त, आस पा इत्यादि प्रत्यय लगाकर भाववाचक तद्धितांत संज्ञा-पद बनते हैं । इनसे भाव, गुण, धर्म इत्यादि का बोध होता है ।
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
त्व – देवता- देवत्व
पन – बच्चा – बचपन
वट – सज्जा -सजावट
हट – चिकना -चिकनाहट
त – रंग – रंगत
आस – मीठा – मिठास

ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा-पदों के अंत में आ, क, री, ओला, इया, ई, की, टा, टी, डा, डी, ली, वा इत्यादि प्रत्यय लगाकर ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनती हैं। इनसे किसी वस्तु या प्राणी की लघुता, ओछापन, हीनता इत्यादि का भाव व्यक्त होता है।
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
क – ढोल – ढोलक
री – छाता- छतरी
इया – बूढी – बुढ़िया
ई – टोप- टोपी
की – छोटा- छोटकी
टा – चोरी – चोट्टा
ड़ा – दु:ख – दुखडा
ड़ी – पाग – पगडी
ली – खाट – खटोली
वा – बच्चा – बचवा

सम्बन्धवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा के अंत में हाल, एल, औती, आल, ई, एरा, जा, वाल, इया, इत्यादि प्रत्यय को जोड़ कर सम्बन्धवाचक तद्धितांत संज्ञा बनाई जाती है.-
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
हाल – नाना -ननिहाल
एल – नाक – नकेल
आल – ससुर – ससुराल
औती – बाप – बपौती
ई – लखनऊ – लखनवी
एरा – फूफा -फुफेरा
जा – भाई – भतीजा
इया -पटना -पटनिया

अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय :
व्यक्तिवाचक संज्ञा-पदों के अंत में अ, आयन, एय, य इत्यादि प्रत्यय लगाकर अपत्यवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ बनायी जाती हैं । इनसे वंश, संतान या संप्रदाय आदि का बोध होता हे ।
प्रत्यय – शब्द – तद्धितांत रूप
अ – वसुदेव -वासुदेव
अ – मनु – मानव
अ – कुरु – कौरव
आयन- नर – नारायण
एय- राधा – राधेय
य – दिति दैत्य

गुणवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा-पदों के अंत में अ, आ, इक, ई, ऊ, हा, हर, हरा, एडी, इत, इम, इय, इष्ठ, एय, म, मान्, र, ल, वान्, वी, श, इमा, इल, इन, लु, वाँ प्रत्यय जोड़कर गुणवाचक तद्धितांत शब्द बनते हैं। इनसे संज्ञा का गुण प्रकट होता है-
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आ – भूख – भूखा
अ – निशा- नैश
इक – शरीर- शारीरिक
ई – पक्ष- पक्षी
ऊ – बुद्ध- बुढहू
हा -छूत – छुतहर
एड़ी – गांजा – गंजेड़ी
इत – शाप – शापित
इमा – लाल -लालिमा
इष्ठ – वर – वरिष्ठ
ईन – कुल – कुलीन
र – मधु – मधुर
ल – वत्स – वत्सल
वी – माया- मायावी
श – कर्क- कर्कश

स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा-पदों के अंत में ई, इया, आना, इस्तान, गाह, आड़ी, वाल, त्र इत्यादि प्रत्यय जोड़ कर स्थानवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं. इनमे स्थान या स्थान सूचक विशेषणका बोध होता है-
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
ई – गुजरात – गुजरती
इया – पटना – पटनिया
गाह – चारा – चारागाह
आड़ी -आगा- अगाड़ी
त्र – सर्व -सर्वत्र
त्र -यद् – यत्र
त्र – तद – तत्र

अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय :
संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण पदों के अंत में आँ, अ, ओं, तना, भर, यों, त्र, दा, स इत्यादि प्रत्ययों को जोड़कर अव्ययवाचक तद्धितांत शब्द बनाये जाते हैं तथा इनका प्रयोग प्राय: क्रियाविशेषण की तरह ही होता है ।
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
दा – सर्व – सर्वदा
त्र – एक एकत्र
ओं – कोस – कोसों
स – आप – आपस
आँ – यह- यहाँ
भर – दिन – दिनभर
ए – धीर – धीरे
ए – तडका – तडके
ए – पीछा – पीछे

2. हिन्दी के प्रत्यय

संस्कृत की तरह ही हिन्दी के भी अनेक प्रत्यय प्रयुक्त होते हैँ। ये प्रत्यय यद्यपि कृदन्त और तद्धित की तरह जुड़ते हैँ, परन्तु मूल शब्द हिन्दी के तद्भव या देशज होते हैँ। हिन्दी के सभी प्रत्ययोँ कोँ निम्न वर्गोँ मेँ सम्मिलित किया जाता है—

(1) कर्त्तृवाचक – जिनसे किसी कार्य के करने वाले का बोध होता है, वे कर्त्तृवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
प्रत्यय — शब्द–रूप
• आर – सुनार, लोहार, चमार, कुम्हार।
• ओरा – चटोरा, खदोरा, नदोरा।
• इया – दुखिया, सुखिया, रसिया, गडरिया।
• इयल – मरियल, सड़ियल, दढ़ियल।
• एरा – सपेरा, लुटेरा, कसेरा, लखेरा।
• वाला – घरवाला, ताँगेवाला, झाड़ूवाला, मोटरवाला।
• वैया (ऐया) – गवैया, नचैया, रखवैया, खिवैया।
• हारा – लकड़हारा, पनिहारा।
• हार – राखनहार, चाखनहार।
• अक्कड़ – भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़।
• आकू – लड़ाकू।
• आड़ी – खिलाड़ी।
• ओड़ा – भगोड़ा।

(2) भाववाचक – जिनसे किसी भाव का बोध होता है, भाववाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• आ – प्यासा, भूखा, रुखा, लेखा।
• आई – मिठाई, रंगाई, सिलाई, भलाई।
• आका – धमाका, धड़ाका, भड़ाका।
• आपा – मुटापा, बुढ़ापा, रण्डापा।
• आहट – चिकनाहट, कड़वाहट, घबड़ाहट, गरमाहट।
• आस – मिठास, खटास, भड़ास।
• ई – गर्मी, सर्दी, मजदूरी, पहाड़ी, गरीबी, खेती।
• पन – लड़कपन, बचपन, गँवारपन।

(3) सम्बन्धवाचक – जिनसे सम्बन्ध का भाव व्यक्त होता है, वे सम्बन्धवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• आई – बहनोई, ननदोई, रसोई।
• आड़ी – खिलाड़ी, पहाड़ी, अनाड़ी।
• एरा – चचेरा, ममेरा, मौसेरा, फुफेरा।
• एड़ी – भँगेड़ी, गँजेड़ी, नशेड़ी।
• आरी – लुहारी, सुनारी, मनिहारी।
• आल – ननिहाल, ससुराल।

(4) लघुतावाचक – जिनसे लघुता या न्यूनता का बोध होता है, वे लघुतावाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• ई – रस्सी, कटोरी, टोकरी, ढोलकी।
• इया – खटिया, लुटिया, चुटिया, डिबिया, पुड़िया।
• ड़ा – मुखड़ा, दुखड़ा, चमड़ा।
• ड़ी – टुकड़ी, पगड़ी, बछड़ी।
• ओला – खटोला, मझोला, सँपोला।

(5) गणनावाचक प्रत्यय – जिनसे गणनावाचक संख्या का बोध है, वे गणनावाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• था – चौथा।
• रा – दूसरा, तीसरा।
• ला – पहला।
• वाँ – पाँचवाँ, दसवाँ, सातवाँ।
• हरा – इकहरा, दुहरा, तिहरा।

(6) सादृश्यवाचक प्रत्यय – जिनसे सादृश्य या समता का बोध होता है, उन्हेँ सादृश्यवाचक प्रत्यय कहते हैँ। जैसे –
• सा – मुझ–सा, तुझ–सा, नीला–सा, चाँद–सा, गुलाब–सा।
• हरा – दुहरा, तिहरा, चौहरा।
• हला – सुनहला, रूपहला।

(7) गुणवाचक प्रत्यय – जिनसे किसी गुण का बोध होता है, वे गुणवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• आ – मीठा, ठंडा, प्यासा, भूखा, प्यारा।
• ईला – लचीला, गँठीला, सजीला, रंगीला, चमकीला, रसीला।
• ऐला – मटमैला, कषैला, विषैला।
• आऊ – बटाऊ, पंडिताऊ, नामधराऊ, खटाऊ।

8) स्थानवाचक – जिनसे स्थान का बोध होता है, वे स्थानवाचक प्रत्यय कहलाते हैँ। जैसे –
• ई – पंजाबी, गुजराती, मराठी, अजमेरी, बीकानेरी, बनारसी, जयपुरी।
• इया – अमृतसरिया, भोजपुरिया, जयपुरिया, जालिमपुरिया।
• आना – हरियाना, राजपूताना, तेलंगाना।
• वी – हरियाणवी, देहलवी।

3. विदेशी प्रत्यय

हिन्दी मेँ उर्दू के ऐसे प्रत्यय प्रयुक्त होते हैँ, जो मूल रूप से अरबी और फारसी भाषा से अपनाये गये हैँ। जैसे –
• आबाद – अहमदाबाद, इलाहाबाद।
• खाना – दवाखाना, छापाखाना।
• गर – जादूगर, बाजीगर, शोरगर।
• ईचा – बगीचा, गलीचा।
• ची – खजानची, मशालची, तोपची।
• दार – मालदार, दूकानदार, जमीँदार।
• दान – कलमदान, पीकदान, पायदान।
• वान – कोचवान, बागवान।
• बाज – नशेबाज, दगाबाज।
• मन्द – अक्लमन्द, भरोसेमन्द।
• नाक – दर्दनाक, शर्मनाक।
• गीर – राहगीर, जहाँगीर।
• गी – दीवानगी, ताजगी।
• गार – यादगार, रोजगार।

हिन्दी मेँ प्रयुक्त प्रमुख प्रत्यय व उनसे बने प्रमुख शब्द :–

• अ – शैव, वैष्णव, तैल, पार्थिव, मानव, पाण्डव, वासुदेव, लूट, मार, तोल, लेख, पार्थ, दानव, यादव, भार्गव, माधव, जय, लाभ, विचार, चाल, लाघव, शाक्त, मेल, बौद्ध।
• अक – चालक, पावक, पाठक, लेखक, पालक, विचारक, खटक, धावक, गायक, नायक, दायक।
• अक्कड़ – भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़, कुदक्कड़, रुअक्कड़, फक्कड़, लक्कड़।
• अंत – गढ़ंत, लड़ंत, भिड़ंत, रटंत, लिपटंत, कृदन्त, फलंत।
• अन्तर – रुपान्तर, मतान्तर, मध्यान्तर, समानान्तर, देशांतर, भाषांतर।
• अतीत – कालातीत, आशातीत, गुणातीत, स्मरणातीत।
• अंदाज – तीरंदाज, गोलंदाज, बर्कंदाज, बेअंदाज।
• अंध – सड़ांध, मदांध, धर्माँध, जन्मांध, दोषांध।
• अधीन – कर्माधीन, स्वाधीन, पराधीन, देवाधीन, विचाराधीन, कृपाधीन, निर्णयाधीन, लेखकाधीन, प्रकाशकाधीन।
• अन – लेखन, पठन, वादन, गायन, हवन, गमन, झाड़न, जूठन, ऐँठन, चुभन, मंथन, वंदन, मनन, चिँतन, ढ़क्कन, मरण, चलन, जीवन।
• अना – भावना, कामना, प्रार्थना।
• अनीय – तुलनीय, पठनीय, दर्शनीय।
• अन्वित – क्रोधान्वित, दोषान्वित, लाभान्वित, भयान्वित, क्रियान्वित, गुणान्वित।
• अन्वय – पदान्वय, खंडान्वय।
• अयन – रामायण, नारायण, अन्वयन।
• आ – प्यासा, लेखा, फेरा, जोड़ा, प्रिया, मेला, ठंडा, भूखा, छाता, छत्रा, हर्जा, खर्चा, पीड़ा, रक्षा, झगड़ा, सूखा, रुखा, अटका, भटका, मटका, भूला, बैठा, जागा, पढ़ा, भागा, नाचा, पूजा, मैला, प्यारा, घना, झूला, ठेला, घेरा, मीठा।
• आइन – ठकुराइन, पंडिताइन, मुंशियाइन।
• आई – लड़ाई, चढ़ाई, भिड़ाई, लिखाई, पिसाई, दिखाई, पंडिताई, भलाई, बुराई, अच्छाई, बुनाई, कढ़ाई, सिँचाई, पढ़ाई, उतराई।
• आऊ – दिखाऊ, टिकाऊ, बटाऊ, पंडिताऊ, नामधराऊ, खटाऊ, चलाऊ, उपजाऊ, बिकाऊ, खाऊ, जलाऊ, कमाऊ, टरकाऊ, उठाऊ।
• आक – लड़ाक, तैराक, चालाक, खटाक, सटाक, तड़ाक, चटाक।
• आका – धमाका, धड़ाका, भड़ाका, लड़ाका, फटाका, चटाका, खटाका, तड़ाका, इलाका।
• आकू – लड़ाकू, पढ़ाकू, उड़ाकू, चाकू।
• आकुल – भयाकुल, व्याकुल।
• आटा – सन्नाटा, खर्राटा, फर्राटा, घर्राटा, झपाटा, थर्राटा।
• आड़ी – कबाड़ी, पहाड़ी, अनाड़ी, खिलाड़ी, अगाड़ी, पिछाड़ी।
• आढ्य – धनाढ्य, गुणाढ्य।
• आतुर – प्रेमातुर, रोगातुर, कामातुर, चिँतातुर, भयातुर।
• आन – उड़ान, पठान, चढ़ान, नीचान, उठान, लदान, मिलान, थकान, मुस्कान।
• आना – नजराना, हर्जाना, घराना, तेलंगाना, राजपूताना, मर्दाना, जुर्माना, मेहनताना, रोजाना, सालाना।
• आनी – देवरानी, जेठानी, सेठानी, गुरुआनी, इंद्राणी, नौकरानी, रूहानी, मेहतरानी, पंडितानी।
• आप – मिलाप, विलाप, जलाप, संताप।
• आपा – बुढ़ापा, मुटापा, रण्डापा, बहिनापा, जलापा, पुजापा, अपनापा।
• आब – गुलाब, शराब, शबाब, कबाब, नवाब, जवाब, जनाब, हिसाब, किताब।
• आबाद – नाबाद, हैदराबाद, अहमदाबाद, इलाहाबाद, शाहजहाँनाबाद।
• आमह – पितामह, मातामह।
• आयत – त्रिगुणायत, पंचायत, बहुतायत, अपनायत, लोकायत, टीकायत, किफायत, रियायत।
• आयन – दांड्यायन, कात्यायन, वात्स्यायन, सांस्कृत्यायन।
• आर – कुम्हार, सुनार, लुहार, चमार, सुथार, कहार, गँवार, नश्वार।
• आरा – बनजारा, निबटारा, छुटकारा, हत्यारा, घसियारा, भटियारा।
• आरी – पुजारी, सुनारी, लुहारी, मनिहारी, कोठारी, बुहारी, भिखारी, जुआरी।
• आरु – दुधारु, गँवारु, बाजारु।
• आल – ससुराल, ननिहाल, घड़ियाल, कंगाल, बंगाल, टकसाल।
• आला – शिवाला, पनाला, परनाला, दिवाला, उजाला, रसाला, मसाला।
• आलु – ईर्ष्यालु, कृपालु, दयालु।
• आलू – झगड़ालू, लजालू, रतालू, सियालू।
• आव – घेराव, बहाव, लगाव, दुराव, छिपाव, सुझाव, जमाव, ठहराव, घुमाव, पड़ाव, बिलाव।
• आवर – दिलावर, दस्तावर, बख्तावर, जोरावर, जिनावर।
• आवट – लिखावट, थकावट, रुकावट, बनावट, तरावट, दिखावट, सजावट, घिसावट।
• आवना – सुहावना, लुभावना, डरावना, भावना।
• आवा – भुलावा, बुलावा, चढ़ावा, छलावा, पछतावा, दिखावा, 
इतर – आयोजनेतर, अध्ययनेतर, सचिवालयेतर।
• इत्य – लालित्य, आदित्य, पांडित्य, साहित्य, नित्य।
• इन – मालिन, कठिन, बाघिन, मालकिन, मलिन, अधीन, सुनारिन, चमारिन, पुजारिन, कहारिन।
• इनी – भुजंगिनी, यक्षिणी, सरोजिनी, वाहिनी, हथिनी, मतवालिनी।
• इम – अग्रिम, रक्तिम, पश्चिम, अंतिम, स्वर्णिम।
• इमा – लालिमा, गरिमा, लघिमा, पूर्णिमा, हरितिमा, मधुरिमा, अणिमा, नीलिमा, महिमा।
• इयत – इंसानियत, कैफियत, माहियत, हैवानित, खासियत, खैरियत।
• इयल – मरियल, दढ़ियल, चुटियल, सड़ियल, अड़ियल।
• इया – लठिया, बिटिया, चुटिया, डिबिया, खटिया, लुटिया, मुखिया, चुहिया, बंदरिया, कुतिया, दुखिया, सुखिया, आढ़तिया, रसोइया, रसिया, पटिया, चिड़िया, बुढ़िया, अमिया, गडरिया, मटकिया, लकुटिया, घटिया, रेशमिया, मजाकिया, सुरतिया।
• इल – पंकिल, रोमिल, कुटिल, जटिल, धूमिल, तुंडिल, फेनिल, बोझिल, तमिल, कातिल।
• इश – मालिश, फरमाइश, पैदाइश, पैमाइश, आजमाइश, परवरिश, कोशिश, रंजिश, साजिश, नालिश, कशिश, तफ्तिश, समझाइश।
• इस्तान – कब्रिस्तान, तुर्किस्तान, अफगानिस्तान, नखलिस्तान, कजाकिस्तान।
• इष्णु – सहिष्णु, वर्घिष्णु, प्रभाविष्णु।
• इष्ट – विशिष्ट, स्वादिष्ट, प्रविष्ट।
• इष्ठ – घनिष्ठ, बलिष्ठ, गरिष्ठ, वरिष्ठ।
• ई – गगरी, खुशी, दुःखी, भेदी, दोस्ती, चोरी, सर्दी, गर्मी, पार्वती, नरमी, टोकरी, झंडी, ढोलकी, लंगोटी, भारी, गुलाबी, हरी, सुखी, बिक्री, मंडली, द्रोपदी, वैदेही, बोली, हँसी, रेती, खेती, बुहारी, धमकी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी, राजस्थानी, जयपुरी, मद्रासी, पहाड़ी, देशी, सुन्दरी, ब्राह्मणी, गुणी, विद्यार्थी, क्रोधी, लालची, लोभी, पाखण्डी, विदुषी, विदेशी, अकेली, सखी, साखी, अलबेली, सरकारी, तन्दुरी, सिन्दुरी, किशोरी, हेराफेरी, कामचोरी।
• ईचा – बगीचा, गलीचा, सईचा।
• ईन – प्रवीण, शौकीन, प्राचीन, कुलीन, शालीन, नमकीन, रंगीन, ग्रामीण, नवीन, संगीन, बीन, तारपीन, गमगीन, दूरबीन, मशीन, जमीन।
• ईना – कमीना, महीना, पश्मीना, नगीना, मतिहीना, मदीना, जरीना।
• ईय – भारतीय, जातीय, मानवीय, राष्ट्रीय, स्थानीय, भवदीय, पठनीय, पाणिनीय, शास्त्रीय, वायवीय, पूजनीय, वंदनीय, करणीय, राजकीय, देशीय।
• ईला – रसीला, जहरीला, पथरीला, कंकरीला, हठीला, रंगीला, गँठीला, शर्मीला, सुरीला, नुकीला, बर्फीला, भड़कीला, नशीला, लचीला, सजीला, फुर्तीला।
• ईश – नदीश, कपीश, कवीश, गिरीश, महीश, हरीश, सतीश।
• उ – सिँधु, लघु, भानु, गुरु, अनु, भिक्षु, शिशु, , वधु, तनु, पितु, बुद्धु, शत्रु, आयु।
• उक – भावुक, कामुक, भिक्षुक, नाजुक।
• उवा/उआ – मछुआ, कछुआ, बबुआ, मनुआ, कलुआ, गेरुआ।
• उल – मातुल, पातुल।
• ऊ – झाडू, बाजारू, घरू, झेँपू, पेटू, भोँपू, गँवारू, ढालू।
• ऊटा – कलूटा।
• ए – चले, पले, फले, ढले, गले, मिले, खड़े, पड़े, डरे, मरे, हँसे, फँसे, जले, किले, काले, ठहरे, पहरे, रोये, चने, पहने, गहने, मेरे, तेरे, तुम्हारे, हमारे, सितारे, उनके, उसके, जिसके, बकरे, कचरे, लुटेरे, सुहावने, डरावने, झूले, प्यारे, घने, सूखे, मैले, थैले, बेटे, लेटे, आए, गए, छोटे, बड़े, फेरे, दूसरे।
• एड़ी – नशेड़ी, भँगेड़ी, गँजेड़ी।
• एय – गांगेय, आग्नेय, आंजनेय, पाथेय, कौँतेय, वार्ष्णेय, मार्कँडेय, कार्तिकेय, राधेय।
• एरा – लुटेरा, सपेरा, मौसेरा, चचेरा, ममेरा, फुफेरा, चितेरा, ठठेरा, कसेरा, लखेरा, भतेरा, कमेरा, बसेरा, सवेरा, अन्धेरा, बघेरा।
• एल – फुलेल, नकेल, ढकेल, गाँवड़ेल।
• एला – बघेला, अकेला, सौतेला, करेला, मेला, तबेला, ठेला, रेला।
• एत – साकेत, संकेत, अचेत, सचेत, पठेत।
• ऐत – लठैत, डकैत, लड़ैत, टिकैत, फिकैत।
• ऐया – गवैया, बजैया, रचैया, खिवैया, रखैया, कन्हैया, लगैया।
• ऐल – गुस्सैल, रखैल, खपरैल, मुँछैल, दँतैल, बिगड़ैल।
• ऐला – विषैला, कसैला, वनैला, मटैला, थनैला, मटमैला।
• क – बालक, सप्तक, दशक, अष्टक, अनुवादक, लिपिक, चालक, शतक, दीपक, पटक, झटक, लटक, खटक।
• कर – दिनकर, दिवाकर, रुचिकर, हितकर, प्रभाकर, सुखकर, प्रलंयकर, भयंकर, पढ़कर, लिखकर, चलकर, सुनकर, पीकर, खाकर, उठकर, सोकर, धोकर, जाकर, आकर, रहकर, सहकर, गाकर, छानकर, समझकर, उलझकर, नाचकर, बजाकर, भूलकर, तड़पकर, सुनाकर, चलाकर, जलाकर, आनकर, गरजकर, लपककर, भरकर, डरकर।
• करण – सरलीकरण, स्पष्टीकरण, गैसीकरण, द्रवीकरण, पंजीकरण, ध्रुवीकरण।
• कल्प – कुमारकल्प, कविकल्प, भृतकल्प, विद्वतकल्प, कायाकल्प, संकल्प, विकल्प।
• कार – साहित्यकार, पत्रकार, चित्रकार, संगीतकार, काश्तकार, शिल्पकार, ग्रंथकार, कलाकार, चर्मकार, स्वर्णकार, गीतकार, बलकार, बलात्कार, फनकार, फुँफकार, हुँकार, छायाकार, कहानीकार, अंधकार, सरकार।
• का – गुटका, मटका, छिलका, टपका, छुटका, बड़का, कालका।
• की – बड़की, छुटकी, मटकी, टपकी, अटकी, पटकी।
• कीय – स्वकीय, परकीय, राजकीय, नाभिकीय, भौतिकीय, नारकीय, शासकीय।
• कोट – नगर
गीर – राहगीर, उठाईगीर, जहाँगीर।
• गीरी – कुलीगीरी, मुँशीगीरी, दादागीरी।
• गुना – दुगुना, तिगुना, चौगुना, पाँचगुना, सौगुना।
• ग्रस्त – रोगग्रस्त, तनावग्रस्त, चिन्ताग्रस्त, विवादग्रस्त, व्याधिग्रस्त, भयग्रस्त।
• घ्न – कृतघ्न, पापघ्न, मातृघ्न, वातघ्न।
• चर – जलचर, नभचर, निशाचर, थलचर, उभयचर, गोचर, खेचर।
• चा – देगचा, चमचा, खोमचा, पोमचा।
• चित् – कदाचित्, किँचित्, कश्चित्, प्रायश्चित्।
• ची – अफीमची, तोपची, बावरची, नकलची, खजांची, तबलची।
• ज – अंबुज, पयोज, जलच, वारिज, नीरज, अग्रज, अनुज, पंकज, आत्मज, सरोज, उरोज, धीरज, मनोज।
• जा – आत्मजा, गिरिजा, शैलजा, अर्कजा, भानजा, भतीजा, भूमिजा।
• जात – नवजात, जलजात, जन्मजात।
• जादा – शहजादा, रईसजादा, हरामजादा, नवाबजादा।
• ज्ञ – विशेषज्ञ, नीतिज्ञ, मर्मज्ञ, सर्वज्ञ, धर्मज्ञ, शास्त्रज्ञ।
• ठ – कर्मठ, जरठ, षष्ठ।
• ड़ा – दुःखड़ा, मुखड़ा, पिछड़ा, टुकड़ा, बछड़ा, हिँजड़ा, कपड़ा, चमड़ा, लँगड़ा।

अंग्रेजी के तद्धित प्रत्यय :
हिंदी में कुछ अंग्रेजी के भी तद्धित प्रत्यय प्रचलन में आ गये हैं:
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत- रूप प्रकार
अर – पेंट – पेंटर – कर्तृवाचक
आइट- नक्सल -नकसलाइट – गुणवाचक
इयन -द्रविड़ – द्रविड़ियन – गुणवाचक
इज्म- कम्यून -कम्युनिस्म – भाववाचक

उपसर्ग और प्रत्यय का एकसाथ प्रयोग :
कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जिनकी रचना उपसर्ग तथा प्रत्यय दोनों के योग से होती है । जैसे –
अभि (उपसर्ग) + मान + ई (प्रत्यय) = अभिमानी
अप (उपसर्ग) + मान + इत (प्रत्यय) = अपमानित
परि (उपसर्ग) + पूर्ण + ता (प्रत्यय) = परिपूर्णता
दुस् (उपसर्ग) + साहस + ई (प्रत्यय) = दुस्साहसी
बद् (उपसर्ग) + चलन + ई (प्रत्यय) = बदचलनी
निर् (उपसर्ग) + दया + ई (प्रत्यय) = निर्दयी
उप (उपसर्ग + कार + क (प्रत्यय) = उपकारक
सु (उपसर्ग) + लभ + ता (प्रत्यय) = सुलभता
अति (उपसर्ग) + शय + ता (प्रत्यय) = अतिशयता
नि (उपसर्ग) + युक्त + इ (प्रत्यय) = नियुक्ति
प्र (उपसर्ग) + लय + कारी (प्रत्यय) = प्रलयकार

फारसी के तद्धित प्रत्यय:
हिंदी में फारसी के भी बहुत सारे तद्धित प्रत्यय लिये गये हैं। इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया जुा सकता है-
भाववाचक 
कर्तृवाचक
ऊनवाचक
स्थितिवाचक
विशेषणवाचक

भाववाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आ – सफ़ेद -सफेदा
आना -नजर – नजराना
ई – खुश – ख़ुशी
ई – बेवफा – बेवफाई
गी – मर्दाना – मर्दानगी
कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय -शब्द – तद्धितांत रूप
कार – पेश – पेशकार॰
गार- मदद -मददगार
बान – दर – दरबान
खोर – हराम – हरामखोर
दार – दुकान- दुकानदार
नशीन – परदा – परदानशीन
पोश – सफ़ेद – सफेदपोश
साज – घड़ी – घड़ीसाज
बाज – दगा – दगाबाज
बीन – दुर् – दूरबीन
नामा – इकरार – इकरारनामा

ऊनवाचक तद्वित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
क- तोप – तुपक
चा – संदूक -संदूकचा
इचा – बाग – बगीचा
स्थितिवाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आबाद- हैदर – हैदराबाद
खाना- दौलत – दौलतखाना
गाह- ईद – ईदगाह
उस्तान- हिंद – हिंदुस्तान
शन – गुल- गुलशन
दानी – मच्छर- मच्छरदानी
बार – दर – दरबार
विशेषणवाचक तद्धित प्रत्यय :
प्रत्यय- शब्द – तद्धितांत रूप
आनह- रोज- रोजाना
इंदा – शर्म -शर्मिंदा
मंद – अकल- अक्लमंद
वार- उम्मीद -उम्मीदवार
जादह -शाह – शहजादा
खोर – सूद – सूदखोर
दार- माल – मालदार
नुमा – कुतुब -कुतुबनुमा
बंद – कमर – कमरबंद
पोश – जीन – जीनपोश
साज -जाल- जालसाज

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