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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

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कबीर के विषय में प्रसिद्ध कथन ।।

❣ वन लाइनर प्रश्नोतर ❣

० वे (कबीर) भगवान् के नृसिंहावतार की मानो प्रतिमूर्ति थे - हजारी प्रसाद जी

० कबीर में काव्य - कम काव्यानुभूति अधिक है - लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय

० कबीर रहस्यवादी संत और धर्मगुरू होने के साथ साथ वे भावप्रवण कवि भी थे - डॉ बच्चन सिंह

० ये महात्मा बड़ी स्वतंत्र प्रकृति के थे । ये रुढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे - बाबू गुलाब राय

० कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, उन्हें सुनी सुनाई बातों का ज्ञान था, वे मूलतः समाज सुधारक थे - ऐसी उक्तियाँ कबीर के विवेचन और मूल्यांकन में अप्रासंगिक बिंदु है - रामस्वरूप चतुर्वेदी

० "कबीर के समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है ।"-डॉ बच्चन सिंह

० कबीर में, कई तरह के रंग है, भाषा के भी और संवेदना के भी । हिंदी की बहुरूपी प्रकृति उनमें खूब खुली है । -रामस्वरूप चतुर्वेदी‘‘

० कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने दोनो धर्मों हिन्दू - मुस्लिम की भलाई बुराई देखी एवं परखी और केवल कटु आलोचना ही नहीं की अपितु दोनों धर्मावलम्बियों को मार्ग दिखलाया। जिस पर चलकर मानव मात्र ही नहीं समस्त प्राणी जगत का कल्याण हो सकता है।-द्वारिका प्रसाद सक्सेना

० वे साधना के क्षेत्र में युग - गुरु थे और साहित्य के क्षेत्र में भविष्य के सृष्टा - हजारी प्रसाद द्विवेदी

० "लोकप्रियता में उनके (कबीर) समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है । तुलसी बड़े कवि हैं, उनका सौंदर्यबोध पारम्परिक और आदर्शवादी है । कबीर का सौंदर्यबोध अपारंपरिक और यथार्थवादी है ।"- डॉ बच्चन सिंह

० कबीर ही हिंदी के सर्वप्रथम रहस्यवादी कवि हुए - श्याम सुंदर दास

० " आज तक हिंदी में ऐसा जबर्दस्त व्यंग्य लेखक नहीं हुआ " - हजारीप्रसाद द्विवेदी

० कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे - हजारी प्रसाद

० "समूचे भक्तिकाल में कबीर की तरह का जाति - पाँति विरोधी आक्रामक और मूर्तिभंजक तेवर किसी का न था। जनता पर तुलसी के बाद सबसे अधिक प्रभाव कबीर का था। "- बच्चन सिंह

० कबीर पहुँचे हुए ज्ञानी थे। उनका ज्ञान पोथियों की नकल नहीं था और न वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भंडार ही था -श्याम सुंदर दास
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माखनलाल चतुर्वेदी ।।

➡️हिन्दी साहित्य को जोशो-ख़रोश से भरी आसान भाषा में कवितायें देने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में चार अप्रैल 1889 को हुआ था। 

➡️वो कवि होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे| उन्होंने ‘प्रभा, कर्मवीर और प्रताप का सफल संपादन किया। 

➡️1943 में उन्हें उनकी रचना ‘हिम किरीटिनी’ के लिए उस समय का हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘देव पुरस्कार’ दिया गया था। 

➡️हिम तरंगिनी के लिए उन्हें 1954 में पहले साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाज़ा गया। 

➡️राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में पद्मभूषण की उपाधि लौटाने वाले कवि ने 30 जनवरी 1968 को आख़िरी सांस ली।

➡️पुष्प की अभिलाषा...

चाह नहीं, मैं सुरबाला के 
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक।।

प्रेमचंद ।।

👤परिचय

मूल नाम : धनपत राय

👣जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

🗣भाषा : हिंदी, उर्दू

📚विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य

◾️मुख्य कृतियाँ

🌻उपन्यास : गोदान, गबन, सेवा सदन, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, निर्मला, प्रेमा, कायाकल्प, रंगभूमि, कर्मभूमि, मनोरमा, वरदान, मंगलसूत्र (असमाप्त)

🌼कहानी : सोज़े वतन, मानसरोवर (आठ खंड), प्रेमचंद की असंकलित कहानियाँ, प्रेमचंद की शेष रचनाएँ

🌸नाटक : संग्राम- 1923 ई., कर्बला- 1924 ई., प्रेम की वेदी- 1933 ई.

💁‍♂बाल साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी

🙇‍♂विचार : प्रेमचंद : विविध प्रसंग, प्रेमचंद के विचार (तीन खंडों में)

📇अनुवाद : आजाद-कथा (उर्दू से, रतननाथ सरशार), पिता के पत्र पुत्री के नाम (अंग्रेजी से, जवाहरलाल नेहरू)

🖨संपादन : मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरण

◾️निधन

8 अक्टूबर 1936

◾️विशेष

प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना सम्मेलन (1936) के अध्यक्ष। इनकी अनेक कृतियों पर फिल्में बन चुकी हैं। विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद। अमृत राय (प्रेमचंद के पुत्र) ने ‘कलम का सिपाही’ और मदन गोपाल ने ‘कलम का मजदूर’ शीर्षक से उनकी जीवनी लिखी हैं ।

प्रेमचंद से संबंधित कृतियां -

1. प्रेमचंद घर में - शिवरानी देवी

2. कलम का मजदूर - मदन गोपाल ( अंग्रेजी में)

3. कलम का सिपाही - अमृत राय

4. प्रेमचंद: सामंतों के मुंशी - धर्मवीर

5. प्रेमचंद: साहित्यिक विवेचना - नंददुलारे वाजपेयी

6. प्रेमचंद: एक विवेचना - इन्द्रनाथ मदान

7. प्रेमचंद: जीवन और कृतित्व - हंसराज रहबर

8. प्रेमचंद: चिंतन और कला - इंद्रनाथ मदान

9. प्रेमचंद: विश्व कोश - कमलकिशोर गोयनका

10. प्रेमचंद और उनका साहित्य - मन्मथ नाथ गुप्त

11. प्रेमचंद और गांधीवाद - रामदीन गुप्त

12. प्रेमचंद अध्ययन की नई दिशांए - क.कि.गोयनका

13. प्रेमचंद के उपन्यसों का शिल्पविधान -

क.कि.गोयनका

14. प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन

- क.कि. गोयनका

15. प्रेमचंद की उपन्यास यात्रा: नव मुल्यांकन - शैलेश

जेदी

16. प्रेमचंद और उनका युग - रामविलास शर्मा

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय -

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय, एक महान बंगाली कवि और लेखक थे।
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उनका प्रसिद्द उपन्यास आनंदमठ – सन्यासी विद्रोह (18 वीं शताब्दी के अंत में हुआ विद्रोह) की पृष्ठभूमि पर आधारित – को बंगाल के राष्ट्रवाद पर प्रमुख कृतियों में से एक माना जाता है।
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उनका पहला प्रकाशित उपन्यास अंग्रेजी भाषा में लिखित ‘राजमोहन की पत्नी’ था।
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उनका पहला बंगाली उपन्यास वर्ष 1865 में प्रकाशित ‘दुर्गेश नंदिनी’ है।
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उन्होंने 1872 में बंगदर्शन नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया।
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उन्होंने वर्ष 1866 में कपालकुंडला, 1869 में मृणालिनी, 1873 में विषवृक्ष, 1877 में चंद्रशेखर, 1877 में रजनी, 1881 में राजसिम्हा और 1884 में देवी चौधुरानी जैसे अन्य प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद।।

आज स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और शिक्षाविद् मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की पुण्यतिथि है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन की जयंती को चिह्नित करने के लिए हर साल 2008 से 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नाम से जाने जाने वाले, उन्होंने 1947 से 1958 तक स्वतंत्र भारत के शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्हें मरणोपरांत 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार - भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

 राजनीतिक कैरियर
 मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने गांधीजी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश किया। उन्हें दिल्ली में कांग्रेस के विशेष सत्र (1923) के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। 35 वर्ष की आयु में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सेवा करने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति बन गए।

 मौलाना आजाद को गांधीजी के नमक सत्याग्रह के हिस्से के रूप में नमक कानूनों के उल्लंघन के लिए 1930 में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें डेढ़ साल तक मेरठ जेल में रखा गया था। अपनी रिहाई के बाद, वे 1940 (रामगढ़) में फिर से कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1946 तक इस पद पर बने रहे।

 शैक्षिक सुधार
 मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जो मूल रूप से 1920 में भारत के संयुक्त प्रांत में अलीगढ़ में स्थापित किया गया था।

 वह देश की आधुनिक शिक्षा प्रणाली को आकार देने के लिए जिम्मेदार हैं। शिक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में पहले IIT, IISc, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई थी। संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद सहित सबसे प्रमुख सांस्कृतिक, साहित्यिक अकादमियों का भी निर्माण किया गया।

गोपाल कृष्ण गोखले।।


गोखले वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले से थे और उन्होंने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में शामिल होने से पहले मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उन्होंने राजनीतिक अर्थव्यवस्था और इतिहास पढ़ाया।

 गोखले पहली बार इंग्लैंड में 1897 के वेल्बी आयोग में ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यय की जिरह के बाद राष्ट्रीय परिदृश्य पर पहुंचे। गोखले के काम ने भारत में उनकी प्रशंसा अर्जित की क्योंकि उन्होंने नंगे ब्रिटिश सैन्य वित्तपोषण नीतियां रखीं, जो भारतीय करदाताओं पर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन के लिए बहुत अधिक बोझ थीं - जो उस पद पर कब्जा करने के लिए नस्लवादियों के सबसे निंदनीय माने जाते थे।

 1889 में, गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, इसके 'उदारवादी' विंग के मुख्य नेताओं में से एक के रूप में उभरे, और तीन साल बाद अपने शेष जीवन के लिए एक विधायक के रूप में काम करने के लिए अध्यापन छोड़ दिया।

औपनिवेशिक विधायिकाओं में पद:

 गोखले को औपनिवेशिक विधायिकाओं में उनके व्यापक कार्यों के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। 1899 और 1902 के बीच, वह बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य थे, इसके बाद 1902 से उनकी मृत्यु तक इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में एक कार्यकाल रहा।

कांग्रेस में काम:

 गोखले 1905 के बनारस अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। यही वह समय था जब उनके 'उदारवादियों' के समूह और लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व वाले 'चरमपंथियों' के बीच कटु मतभेद पैदा हो गए थे। 1907 के सूरत अधिवेशन में जब दो गुट अलग हो गए तो मामले सामने आए।

 इतिहासकार ध्यान देते हैं कि वैचारिक मतभेदों के बावजूद, गोखले ने अपने विरोधियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा। 1907 में, उन्होंने लाला लाजपत राय की रिहाई के लिए जोश से अभियान चलाया, जिसे उस वर्ष अंग्रेजों ने वर्तमान म्यांमार के मांडले में कैद कर लिया था।

 महात्मा गांधी की भारत वापसी के बाद, वे स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने से पहले गोखले के समूह में शामिल हो गए। गांधी ने गोखले को अपना राजनीतिक गुरु माना, और गुजराती में 'धर्मात्मा गोखले' नामक नेता को समर्पित एक पुस्तक लिखी।

ज्ञानचंद्र घोष : प्रसिद्ध वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता।

👉 (14 सितम्बर 1894 – 21 जनवरी 1959)

पुरुलिया, पश्चिम बंगाल में 14 सितम्बर 1894 में जन्में ज्ञानचंद्र घोष भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों में से एक थे।

▪️ शिक्षा :-
• वर्ष 1915 – एम.एस.सी. प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय (वर्तमान कोलकाता)
• वर्ष 1918 – डी.एस.सी. की उपाधि प्राप्त की।

▪️ विदेश में :-
• वर्ष 1919 में ज्ञान चंद्र घोष ने यूरोप में प्रोफ़ेसर डोनान (इंग्लैंड) और डॉ. नर्स्ट व डॉ. हेवर (जर्मनी) के अधीन कार्य किया।

▪️ कार्यक्षेत्र :-
• प्रोफेसर – साइंस कॉलेज (कलकत्ता विश्वविद्यालय)
• वर्ष 1921 – ढाका विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर नियुक्त।
• वर्ष 1939 – डायरेक्टर, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, बेंगलोर।

▪️ प्रसिद्ध सिद्धांत :-
• ‘घोष का तनुता सिद्धांत’

▪️ उच्च पद पर :-
• वर्ष 1947-1950 – डायरेक्टर जनरल ऑफ इंडस्ट्रीज एंड सप्लाइज़, भारत सरकार।
• संस्थापक व डायरेक्टर, खड़गपुर तकनीकी संस्थान।
• उपकुलपति, कलकत्ता विश्वविद्यालय।  
• योजना आयोग के सदस्य, भारत सरकार।
• अनुसंधान कार्यक्षेत्र में इंडियन साइंस कांग्रेस और भारतीय केमिकल सोसायटी के अध्यक्ष नियुक्त।

▪️ ज्ञानचंद्र घोष के अनुसंधान विषय :-
• विशेष रूप से विद्युत रसायन, गति विज्ञान, उच्चताप गैस अभिक्रिया, उत्प्रेरण, आत्मऑक्सीकरण, प्रतिदीप्ति थे।

स्वर कोकिला लता मंगेशकर।।


* _लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका थी_
*  _लता जी ने अंतिम सांस 6 फरवरी 2022 को ली उनके निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी है_
* _लता का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था_
* लता के लिए गाना पूजा के समान है रिकॉर्डिंग के समय वह हमेशा नंगे पैर ही गाती थी
* लता को फोटोग्राफी का बहुत शौक है विदेशों में उनके द्वारा उतारे गए छाया चित्रों की प्रदर्शनी भी लग चुकी है
* _भारत के किसी बड़े क्रिकेट मैच के दिन  सारे काम छोड़ मैच देखना पसंद करती थी_
* कागज पर कुछ भी लिखने के पूर्व वे श्रीकृष्ण लिखती थी
* लता का पसंदीदा खाना कोल्हापुरी मटन और भुनी हुई मछली थी
* चेखव, टॉलस्टॉय, खलील जिब्रान, ज्ञानेश्वरी और गीता का साहित्य उन्हें पसंद थी
* कुंदनलाल सहगल और नूरजहां उनके पसंदीदा गायक गायिका थे
* _गुरुदत्त सत्यजीत रे यश चोपड़ा और बिमल राय की फिल्में उन्हें पसंद थी_
* त्योहारों में उन्हें दीपावली बेहद पसंद थी
* _भारतीय इतिहास और संस्कृति में उन्हें कृष्ण मीरा विवेकानंद और अरबिंदो बेहद पसंद थे_
* लता को मेकअप पसंद नहीं था
* दूसरों पर तुरंत विश्वास कर लेना अपनी आदत को अपनी कमजोरी मानती थी
* _स्टेज पर गाते हुए उन्हें पहली बार ₹25 मिले और अभिनेत्री के रूप में उन्हें ₹300 पहली बार मिले थे_
* उस्ताद अमान खान भिंडी बाजार वाले और पंडित नरेंद्र शर्मा को व संगीत में अपना गुरु मानती थी और उनके आध्यात्मिक गुरु थे श्रीकृष्ण शर्मा
* महाशिवरात्रि सावन सोमवार के अलावा गुरुवार को व्रत रखती थी
* _लता ने पहला गीत मराठी फिल्म कीती हंसाल (1942) में गाया लेकिन किसी कारणवश इस गीत को फिल्म में शामिल नहीं किया गया_
* मराठी फिल्म पाहिली मंगल्लागौर (1942) में उनकी आवाज पहली बार सुनाई दी
* हिंदी फिल्मों में आपकी सेवा में (1947) में लता ने पहली बार गाया

* लता ने अंग्रेजी, असमिया, बांग्ला, ब्रजभाषा, डोगरी, भोजपुरी, कोंकणी, कन्नड़, मागधी, मैथिली, मणिपुरी, मलयालम, हिंदी, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंहली आदि भाषाओं में गीत गाए है
* लता मराठी भाषी है परंतु वे हिंदी, बांग्ला, तमिल, संस्कृत, गुजराती और पंजाबी भाषा में बतिया लेती है
* लता 'लेकिन' 'बादल' और 'कांचनगंगा' जैसी  फिल्मों की निर्माता भी रह चुकी है
* आजा रे परदेसी (मधुमती-1958), कहीं दीप जले कहीं दिल (बीस साल बाद-1962), तुम्हीं मेरे मंदिर (खानदान-1965), और आप मुझे अच्छे लगने लगे (जीने की राह-1969) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने के बाद लता ने इस पुरस्कार को स्वीकार करना बंद कर दिया वह चाहती थी कि नई गायक गायिकाओं को यह पुरस्कार मिले
* परिचय (1972), कोरा कागज (1974), और लेकिन (1990) के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं
* 1951 में लताजी ने सर्वाधिक 225 गीत गाए थे
* *प्रमुख पुरस्कार*
> पद्मभूषण, 1969
> दादासाहब फाल्के, 1989
> राजीव गांधी पुरस्कार, 1997
> पद्मा विभूषण, 1999
> भारत रत्न, 2001
और बहुत से अन्य पुरस्कार भी मिले
* बचपन में लता को रेडियो सुनने का बड़ा शौक था। जब वह 18 वर्ष की थी तब उन्होने अपना पहला रेडियो खरीदा और जैसे ही रेडियो ऑन किया तो के.एल.सहगल की मृत्यु का समाचार उन्हें प्राप्त हुआ। बाद में उन्होंने वह रेडियो दुकानदार को वापस लौटा दिया
* लता को अपने बचपन के दिनों में साइकिल चलाने का काफी शौक था, जो पूरा नहीं हो सका। अलबत्ता उन्होंने अपनी पहली कार 8000 रुपये में खरीदी थी
* _लता को मसालेदार भोजन करने का शौक है और एक दिन में वह तकरीबन 12 मिर्च खा जाती हैं उनका मानना है कि मिर्च खाने से गले की मिठास बढ़ जाती है_
* लता जब हेमंत कुमार के साथ गाने गाती थीं तो इसके लिए उन्हें ‘स्टूल’ का सहारा लेना पड़ता था इसकी वजह यह थी कि हेमंत कुमार उनसे काफी लंबे थे
* लता फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वभाव के कारण जानी जाती हैं, लेकिन दिलचस्प बात है कि किशोर कुमार और मोहम्मद रफी जैसे गायकों के साथ भी उनकी अनबन हो गई थी
* लता महज एक दिन के लिए स्कूल गई। इसकी वजह यह रही कि जब वह पहले दिन अपनी छोटी बहन आशा भोसले को स्कूल लेकर गई तो अध्यापक ने आशा भोसले को यह कहकर स्कूल से निकाल दिया कि उन्हें भी स्कूल की फीस देनी होगी। बाद में लता ने निश्चय किया कि वह कभी स्कूल नहीं जाएंगी हालांकि बाद में उन्हें न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी सहित छह विश्वविद्यालयों ने मानक उपाधि से नवाजा
* उन्हें भारत रत्न और दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ उनके अलावा सत्यजीत रे को ही यह गौरव प्राप्त है
* वर्ष 1974 में लंदन के सुप्रसिद्ध रॉयल अल्बर्ट हॉल में उन्हें पहली भारतीय गायिका के रूप में गाने का अवसर प्राप्त है
* लता की सबसे पसंदीदा फिल्म द किंग एंड आई है। हिंदी फिल्मों में उन्हें त्रिशूल, शोले, सीता और गीता, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे और मधुमती पसंद हैं
* वर्ष 1943 में रिलीज किस्मत उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने इसे लगभग 50 बार देखा था
* उन्हें डायमंड रिंग पहनने का शौक है उन्होंने अपनी पहली डायमंड रिंग वर्ष 1947 में 700 रुपये में खरीदी थी
* लता अपने करियर के शुरुआती दौर में डायरी लिखने का शौक रखती थी जिसमें वह गाने और कहानी लिखा करती थी बाद में उन्होंने उस डायरी को अनुपयोगी समझ कर उसे नष्ट कर दिया
* उनके पिताजी द्वारा दिया गया तम्बूरा उन्होंने अब तक संभालकर रखा है
* हिट गीत 'आएगा आने वाला' के लिए उन्हें 22 रीटेक देने पड़े थे
* लता ने पहली बार पार्श्व गायन नायिका मुनव्वर सुल्ताना के लिए किया था
* बतौर अभिनेत्री लता ने कई हिन्दी व मराठी फिल्मों में काम मिया है हिन्दी में वे बड़ी माँ, जीवन यात्रा, सुभद्रा, छत्रपति शिवाजी जैसी फिल्मों में आ चुकी हैं
* पुरुष गायकों में मोहम्द रफी के साथ लता ने सर्वाधिक 440 युगल गीत गाए। जबकि 327 किशोर के साथ। महिला युगल गीत उन्होंने सबसे ज्यादा आशा भोंसले के साथ गाए हैं
* गीतकारों में आनंद बक्शी द्वारा लिखें 700 से अधिक गीत लता ने गाए



सरदार ऊधम सिंह (Sardar Udham Singh)

🙏26 December ( birth anniversary) 

उधम सिंह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। इनका जन्म 26 दिसम्बर 1899 को हुआ था।

 🙏 उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ' ड्वायर को लन्दन में जाकर गोली मारी। ऊधम सिंह की ज़िंदगी पर ठंडा करके खाने वाली कहावत लागू होती है।

🙏 जिन्होंने साल 1919 में हुए जलियाँवाला बाग़ में हत्याकांड का बदला लेने के लिए पूरे 21 साल तक इंतज़ार किया। 

🙏वही माइकल ओ ड्वाएर, जिन्होंने क़दम-क़दम पर उस हत्याकांड को उचित ठहराया था।

🙏उधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को लंदन के पेंटनविल जेल में फांसी दे दी गई

🙏उधम सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं । 

🙏उन्हें शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह (अभिव्यक्ति "शहीद-ए-आज़म" का अर्थ "महान शहीद") के रूप में भी जाना जाता है । 

🙏मायावती सरकार द्वारा अक्टूबर 1995 में श्रद्धांजलि देने के लिए उत्तराखंड के एक जिले ( उधम सिंह नगर ) का नाम उनके नाम पर रखा गया था ।

ऊधम सिंह ( अंग्रेज़ी : Udham Singh , जन्म: 26 दिसंबर, 1899 , सुनाम गाँव, पंजाब ; शहादत: 31 जुलाई , 1940, पेंटनविले जेल,
ब्रिटेन) भारत की आज़ादी की लड़ाई में अहम योगदान करने वाले पंजाब के महान् क्रान्तिकारी थे। अमर शहीद ऊधम सिंह ने 13 अप्रैल , 1919 ई. को पंजाब में हुए भीषण

जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के उत्तरदायी माइकल ओ'डायर की लंदन में गोली मारकर हत्या करके निर्दोष भारतीय लोगों की मौत का बदला लिया था।
जन्म
ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर ज़िले के सुनाम गाँव में हुआ। ऊधमसिंह की माता और पिता का साया बचपन में ही उठ गया था। उनके जन्म के दो साल बाद 1901 में उनकी माँ का निधन हो गया और 1907 में उनके पिता भी चल बसे। ऊधमसिंह और उनके बड़े भाई मुक्तासिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। 1917 में उनके भाई का भी निधन हो गया। इस प्रकार दुनिया के ज़ुल्मों सितम सहने के लिए ऊधमसिंह बिल्कुल अकेले रह गए। इतिहासकार वीरेंद्र शरण के अनुसार ऊधमसिंह इन सब घटनाओं से बहुत दु:खी तो थे, लेकिन उनकी हिम्मत और संघर्ष करने की ताक़त बहुत बढ़ गई। उन्होंने शिक्षा ज़ारी रखने के साथ ही आज़ादी की लड़ाई में कूदने का भी मन बना लिया। उन्होंने चंद्रशेखर आज़ाद ,
राजगुरु , सुखदेव और भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश शासन को ऐसे घाव दिये जिन्हें ब्रिटिश शासक बहुत दिनों तक नहीं भूल पाए। इतिहासकार डॉ. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह 'सर्व धर्म सम भाव' के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आज़ाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है।

जनरल डायर को नहीं , ओडवायर को मारा था ऊधम सिंह ने
लोगों में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि माइकल ओडवायर को मारा था जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था।

ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। ऊधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे।

26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया।

इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है।
ऊधम सिंह अनाथ थे। सन 1901 में ऊधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।

ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले।

अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे।

इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को सबक सिखा दे। इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे गए।

जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएं से ही मिले।

आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डाक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी। राजनीतिक कारणों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई।

इस घटना से वीर ऊधम सिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओडवायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। ऊधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा उचित समय का इंतजार करने लगे।

भारत के इस योद्धा को जिस मौके का इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला, जब माइकल ओडवायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया।

ऊधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने ओडवायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं।

ओडवायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अदालत में ऊधम सिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियां बचीं थीं, तो उन्होंने उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। इस पर ऊधम सिंह ने जवाब दिया कि हां ऐसा कर मैं भाग सकता था, लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। ऊधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओडवायर को जहां ऊधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर बुरी मौत मारा गया।

भारत माँ के इस सच्चे सपूत को हमारा शत शत नमन |

रॉबर्ट क्लाइव

बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी का सैन्य और राजनीतिक वर्चस्व स्थापित किया गया था
ans: रॉबर्ट क्लाइव

राज्यपाल जिसे "ब्रिटिश भारत का बाबर" कहा जाता है
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

बंगाल में राजस्व और न्यायपालिका को अलग करने वाला राज्यपाल
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

बंगाल में अराजक व्यवस्था लाने वाले राज्यपाल
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

पहला ब्रिटिश गवर्नर जिसने आत्महत्या की
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

गवर्नर जिसे स्वर्ग में जन्मे जनरल के रूप में जाना जाता है
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

कर्नाटक युद्ध और प्लासी के युद्ध में सेना का नेतृत्व करने वाले राज्यपाल
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

पर्सन ऑफ द आर्क के नाम से जाना जाने वाला व्यक्ति
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

भारत के विजेता के रूप में जाना जाने वाला व्यक्ति
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

इलाहाबाद संधि में हस्ताक्षर करने वाले राज्यपाल
Ans: रॉबर्ट क्लाइव

ROBERT CLIVE

The military and political supremacy of the East India Company in Bengal was established by
ans:Robert Clive

The Governor who is known as "the Babar of British India" 
Ans : Robert Clive

The Governor who separated the Revenue and Judiciary in Bengal 
Ans : Robert Clive

The Governor who brought diarchy system in Bengal
Ans : Robert Clive

First British Governor who committed suicide
Ans : Robert Clive

The Governor who is known as heaven born General
Ans : Robert Clive

The Governor who led the army in Carnatic war and Battle of Plassey 
Ans : Robert Clive

The Person known as the Hero of Arcot 
Ans : Robert Clive

The Person known as the Conqueror of India
Ans : Robert Clive

The Governor who signed in the Allahabad pact
Ans : Robert Clive

10 महान भारतीय वैज्ञानिक |

🧿 एपीजे अब्दुल कलाम

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम भारत में मिसाइल मैन के नाम से भी जाने जाते हैं. 1962 में वे 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' में शामिल हुए. कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है. 1980 में कलाम ने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था. उन्हीं के प्रयासों की वजह से भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया. इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है. डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया. खास बात यह है कि कलाम ने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया.

🧿 जयंत विष्णुदनार्लीकर

 महाराष्ट्र् के कोल्हा पुर में जन्में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जयंत विष्णुनार्लीकर भौतिकी के वैज्ञानिक हैं. उन्होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बिग बैंग की थ्योडरी के अलावा नये सिद्धांत स्थायी अवस्था के सिद्धान्त (Steady State Theory)पर भी काम किया है. उन्होंने इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल के साथ मिलकर काम किया और हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया. कई पुरस्कारों से सम्मानित नार्लीकर ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञान साहित्यड में भी अपना अमूल्यड योगदान दिया.

🧿 विक्रम साराभाई 

 विक्रम अंबालाल साराभाई भारत के अंतरिक्ष इतिहास के जनक कहे जा सकते हैं. एक तरह से उन्होंलनें भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम की नींव रखी. उन्होंरने देश में 40 अंतरिक्ष और शोध से जुड़े संस्थाहनों को खोला. उन्होंरने आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया. गुजरात के अहमदाबाद से आने वाले सारा भाई पर तिरूवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बध्द अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया. यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा.

🧿 डॉ जगदीश चंद्र बोस

 जगदीशचंद्र बोस को सर बोस भी कहा जाता था. उन्हें भौतिकी, जीवविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान तथा पुरातत्व का गहन ज्ञान था. वे दुनिया के पहले ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया. इसके अलावा वनस्पति विज्ञान में भी उन्होनें कई महत्वपूर्ण खोजें की. वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे, जिन्हें अमेरिकी पेटेंट मिला. पूरी दुनिया में उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता कहा जाता है.

🧿 होमी जहांगीर भाभा 

 डॉ. होमी जहांगीर भाभा के बिना भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना ही नहीं की जा सकती. उन्हें 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता है. उन्हीं की बदौलत 1974 में देश पहला परमाणु परीक्षण करने में सफल रहा. उन्होंने एक तरह से देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. चौंकाने वाली बात यह थी कि उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य आरम्भ किया जब इसके बारे में ज्ञान न के बराबर था, जबकि उनकी नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को तो कोई मानने को तैयार नहीं था.

🧿 सत्येन्द्र नाथ बोस

इस महान भारतीय वैज्ञानिक की महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भौतिक शास्त्र में बोसान और फर्मियान नाम के दो अणुओं में से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही है. उन्होंने अपने समय के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन के साथ मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज की...

🧿 वेंकटरामन रामकृष्णन

तमिलनाडू के चिदंबरम जिले से आने वाले भारतीय मूल के वेंकटरामन रामकृष्णन को साल 2009 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्का्र दिया गया. रामन को यह पुरस्कार कोशिका के अंदर प्रोटीन का निर्माण करने वाले राइबोसोम की कार्यप्रणाली व संरचना के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए दिया गया.

🧿 सुब्रमण्‍यम चंद्रशेखर

सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर को 1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. डॉ. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर ने श्‍वेत बौने नाम के नक्षत्रों की खोज की. उनके द्वारा खोजे गए इस नक्षत्रों की सीमा को चंद्रशेखर सीमा कहा जाता है. इस भारतीय वैज्ञानिक की इस खोज ने दुनिया की उत्‍पत्ति के रहस्‍यों को सुलझाने में बहुत योगदान दिया. वे महान भारतीय वैज्ञानिक सीवी रमन के भती‍जे थे. उनका नाम 20वीं शताब्‍दी के महान वैज्ञानिकों की सूची में शुमार किया जाता है.

🧿 हरगोविंद खुराना 

 भारतीय मूल के इस अमेरिकी नागरिक और वैज्ञानिक डॉ. हरगोबिंद खुराना को 1968 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्‍कार दिया गया. उन्‍होंने आनुवांशिक कोड (डीएनए) की व्याख्या की और उसका अनुसंधान किया. खुराना ने मार्शल, निरेनबर्ग और रोबेर्ट होल्ले के साथ मिलकर चिकित्सा के क्षेत्र में काम किया. खुराना के इस अनुसंधान से चिकित्‍सा क्षेत्र को यह पता लगाने में मदद मिली कि कोशिका के आनुवंशिक कूट (कोड) को ले जाने वाले न्यूक्लिक अम्ल (एसिड) न्यूक्लिओटाइड्स कैसे कोशिका के प्रोटीन संश्लेषण (सिंथेसिस) को नियंत्रित करते हैं.

🧿 सीवी रमन

 इनका पूरा नाम चंद्रशेखर वेंकटरमन था और विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पाने वाले वे पहले वैज्ञानिक थे. 1930 में उन्‍हें भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. वेंकटरमन ने प्रकाश पर गहन अध्ययन किया. उनके अविष्‍कार को 'रमन-किरण' के रूप में जाना गया. रामन प्रभाव स्पेक्ट्रम पदार्थों को पहचानने और उनकी अन्तरंग परमाणु योजना का ज्ञान प्राप्त करने का महत्‍वपूर्ण साधन के रूप में जाना गया. रमन को 1954 ई. में भारत रत्न दिया गया जबकि 1957 में लेनिन शान्ति पुरस्कार प्रदान किया !

नीलम संजीव रेड्डी (1977-1982) से सम्बंधित प्रश्नोत्तरी।।

भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति
Ans: नीलम संजीव रेड्डी

प्रथम राष्ट्रपति निर्विरोध चुने गए
Ans: नीलम संजीव रेड्डी

पद संभालने के बाद वह भारत के राष्ट्रपति बने
Ans: लोकसभा अध्यक्ष

केवल एक राष्ट्रपति, जिन्होंने मुख्यमंत्री, अध्यक्ष और राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया
Ans: नीलम संजीव रेड्डी

आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री
Ans: नीलम संजीव रेड्डी

पहले राष्ट्रपति जिनके पास डिग्री योग्यता नहीं थी
Ans: नीलम संजीव रेड्डी

नीलम संजीव रेड्डी कॉलेज ऑफ एजुकेशन स्थित है
Ans: हैदराबाद

उसकी किताब
Ans: बिना डर या एहसान के

NEELAM SANJIVA REDDY (1977-1982)

The youngest President of India 
Ans : Neelam Sanjiva Reddy 

First President elected unopposed 
Ans : Neelam Sanjiva Reddy

He became the President of India after holding the position of
Ans : Lok Sabha Speaker

The only one President who served as Chief Minister, Speaker and President
Ans : Neelam Sanjiva Reddy 

First Chief Minister of Andhra Pradesh 
Ans : Neelam Sanjiva Reddy

First President who did not have a Degree qualification
Ans : Neelam Sanjiva Reddy

Neelam Sanjiva Reddy College of Education is situated in
Ans : Hyderabad

His Book
Ans : Without Fear Or Favour


अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम (2002 -2007) से सम्बंधित प्रश्नोत्तरी।।

भारत के 12वें राष्ट्रपति President
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

भारत के राष्ट्रपति बनने वाले 11 वें व्यक्ति
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

राष्ट्रपति को भारत के मिसाइल मैन के रूप में जाना जाता है
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

राष्ट्रपति को जनवादी राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले वैज्ञानिक
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

भारत के पहले कुंवारे राष्ट्रपति
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

किसी विधानसभा चुनाव में वोट डालने वाले पहले राष्ट्रपति
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

पहले राष्ट्रपति जिन्होंने पनडुब्बी और युद्ध पोत की यात्रा की
Ans: डॉ। ए पी जे अब्दुल कलाम

राष्ट्रपति जिसने पद के लिए वेतन के रूप में केवल एक रुपया स्वीकार किया
Ans: डॉ। ए पी जे अब्दुल कलाम

सियाचिन ग्लेशियर का दौरा करने वाले पहले राष्ट्रपति
Ans: डॉ। ए पी जे अब्दुल कलाम

"कम करना एक अपराध है" के शब्द हैं
Ans: डॉ। ए पी जे अब्दुल कलाम

राष्ट्रपति जिन्होंने केरल के लिए 10 सूत्रीय कार्यक्रमों में योगदान दिया
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम

'पुरा' की अवधारणा (ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाओं का प्रावधान) द्वारा दी गई थी
उत्तर : डॉ ए पी जे अब्दुल कलामी

जिस वैज्ञानिक को A.P.J ने "विज्ञान विश्व के महात्मा गांधी" के रूप में वर्णित किया है
Ans: विक्रम साराभाई

राष्ट्रपति, जो राजनीतिज्ञ नहीं थे, डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम यूएनओ ए.पी.जे के जन्म दिवस को इस रूप में मनाते हैं
Ans: विश्व छात्र दिवस

मलयाली महिला जिसने डॉ. ए.पी.जे. 2002 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में
Ans: लीक्ष्मी सहगल

ई-अखबार की शुरुआत डॉ.अब्दुल कलाम ने की थी
Ans: बिलियन बीट्स

केरल में तकनीकी विश्वविद्यालय का नाम
Ans: डॉ। ए.पी.जे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय

अब्दुल कलाम को भारत रत्न मिला
Ans: 1997

राष्ट्रपति जिन्होंने सबसे अधिक मानद डॉक्टरेट जीते
Ans: डॉ। ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

वह राज्य जिसने अब्दुल कलाम के नाम पर युवा पुरस्कार शुरू किया
Ans: तमिलनाडु

AVUL PAKIR JAINULABDEEN ABDUL KALAM (2002 -2007)

12th President of India
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

11th person to become the President of India
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam 

The President known as the Missile Man of India
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

The President known as People's President
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

First scientist to become the President of India
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

First bachelor President of India
Ans : Dr.A.P .J.Abdul Kalam

First President to cast vote in an Assembly Election
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

First President who travelled by Submarine and War Ship
Ans : Dr.A.P J.Abdul Kalam

The President who accepted only one rupee as salary for the post
Ans : Dr.A.P J.Abdul Kalam

First President to visit Siachen Glacier 
Ans : Dr.A.PJ.Abdul Kalam

"Aiming low is a crime" are the words of
Ans : Dr.A.P J.Abdul Kalam

The President who contributed 10 point programmes for Kerala
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

The concept of 'PURA' (Provision of Urban Amenities to Rural Areas) Scheme was given by
Ans : Dr.A.P.J.Abdul Kalam

The scientist whom A.P.J described as the "Mahatma Gandhi of Science World"
Ans : Vikram Sarabhai

The President who was not a Politician Dr.A.P.J.Abdul Kalam UNO observes the birth day of A.P.J as 
Ans : World Students day

The Malayali woman who contested against Dr. A.P.J. in the Presidential election held in 2002
Ans : Lekshmi Sahgal

The e-newspaper started by Dr.Abdul Kalam
Ans : Billion Beats

The name of the Technical University in Kerala
Ans : Dr. A.P.J Abdul Kalam Technical University

Dr.Abdul Kalam got Bharat Ratna in 
Ans : 1997

The President who won most number of honorary doctorates
Ans : Dr. A.P.J. Abdul Kalam

The State which launched Youth Award in the name of Abdul Kalam
Ans : Tamil Nadu


मिल्खा सिंह

प्रारंभिक जीवन :

मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में 20 नवम्बर 1929 को हुआ था। अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। उनके कई भाई-बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे।

        भारत के विभाजन के बाद की अफ़रा तफ़री में मिलखा सिंह ने अपने माँ बाप खो दिए। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से भारत आए। ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी। एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने २००मी और ४००मी की दौड़े सफलतापूर्वक की और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे ४००मी के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे।

        कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में १९५८ के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा। इसी समय पर उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन बचपन की घटनाओं की वजह से वे वहाँ जाने से हिचक रहे थे। लेकिन न जाने पर राजनैतिक उथल पुथल के डर से उन्हें जाने को कहा गया।

        उन्होंने दौड़ने का न्यौता स्वीकार लिया। दौड़ में मिलखा सिंह ने सरलता से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया और आसानी से जीत गए। अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।

सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मी और 400 मी में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की. उन्होंने सन 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया.

        इसके बाद सन 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया. साल 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया. इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए.

        इसके बाद उन्होंने सन 1960 में पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में पिछाडा जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘उड़न सिख’ कह कर पुकारा. 1 जुलाई 2012 को उन्हें भारत का सबसे सफल धावक माना गया जिन्होंने ओलंपिक्स खेलो में लगभग 20 पदक अपने नाम किये है. यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है.

        रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने से कुछ वर्ष पूर्व से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे और ऐसा माना जा रहा था की इन खेलों में मिल्खा पदक जरूर प्राप्त करेंगे। रोम खेलों से कुछ समय पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था। 400 में दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर चौथे स्थान के साथ पदक से वंचित रह गए। 250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें आज भी है।

उन्हें लगा की वो अपने आप को अंत तक उसी गति पर शायद नहीं रख पाएंगे और पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखने लगे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और वह धावक जिससे स्वर्ण की आशा थी कांस्य भी नहीं जीत पाया। मिल्खा को आज तक उस बात का मलाल है। इस असफलता से सिंह इतने निराश हुए कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने का मन बना लिया पर बहुत समझाने के बाद मैदान में फिर वापसी की

मिल्खा ने कहा कि 1947 में विभाजन के वक्त उनके परिवार के सदस्यों की उनकी आंखों के सामने ही हत्या कर दी गई। वह उस दौरान 16 वर्ष के थे। उन्होंने कहा, "हम अपना गांव (गोविंदपुरा, आज के पाकिस्तानी पंजाब में मुजफ्फरगढ़ शहर से कुछ दूर पर बसा गांव) नहीं छोड़ना चाहते थे। जब हमने विरोध किया तो इसका अंजाम विभाजन के कुरुप सत्य के रूप में हमें भुगतना पड़ा। चारो तरफ खूनखराबा था। उस वक्त मैं पहली बार रोया था।" उन्होंने कहा कि विभाजन के बाद जब वह दिल्ली पहुंचे,
तो पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने कई शव देखे।

        उनके पास खाने के लिए खाना और रहने के लिए छत नहीं थी। मिल्खा ने कहा कि 1960 के रोम ओलिंपिक में एक गलती के कारण वह चार सौ मीटर रेस में सेकेंड के सौवें हिस्से से पदक चूक गए। उस वक्त भी वह रो पड़े थे। मिल्खा ने कहा कि वह 1960 में पाकिस्तान में एक दौड़ में हिस्सा लेने जाना नहीं चाहते थे। लेकिन, प्रधानमंत्री नेहरू के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गए। उनका मुकाबला एशिया के सबसे तेज धावक माने जाने वाले अब्दुल खालिक से था। इसमें जीत हासिल करने के बाद उन्हें उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खान की ओर से 'फ्लाइंग सिख' का नाम मिला।

        मिला सिंह ने खेलों में उस समय सफलता प्राप्त की जब खिलाड़ियों के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, न ही उनके लिए किसी ट्रेनिंग की व्यवस्था थी । आज इतने वर्षों बाद भी कोई एथलीट ओलंपिक में पदक पाने में कामयाब नहीं हो सका है । रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह इतने लोकप्रिय हो गए थे कि जब वह स्टेडियम में घुसते थे, दर्शक उनका जोशपूर्वक स्वागत करते थे । यद्यपि वहाँ वह टॉप के खिलाड़ी नहीं थे, परन्तु सर्वश्रेष्ठ धावकों में उनका नाम अवश्य था । उनकी लोकप्रियता का दूसरा कारण उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी व लंबे बाल थे । लोग उस वक्त सिख धर्म के बारे में अधिक नहीं जानते थे । अत: लोगों को लगता था कि कोई साधु इतनी अच्छी दौड़ लगा रहा है ।

        उस वक्त ‘पटखा’ का चलन भी नहीं था, अत: सिख सिर पर रूमाल बाँध लेते थे । मिल्खा सिंह की लोकप्रियता का एक अन्य कारण यह था कि रोम पहुंचने के पूर्व वह यूरोप के टूर में अनेक बड़े खिलाडियों को हरा चुके थे और उनके रोम पहुँचने के पूर्व उनकी लोकप्रियता की चर्चा वहाँ पहुंच चुकी थी । मिल्खा सिंह के जीवन में दो घटनाए बहुत महत्व रखती हैं । प्रथम-भारत-पाक विभाजन की घटना जिसमें उनके माता-पिता का कत्ल हो गया तथा अन्य रिश्तेदारों को भी खोना पड़ा | दूसरी-रोम ओलंपिक की घटना, जिसमें वह पदक पाने से चूक गए |

        टोक्यो एशियाई खेलों में मिल्खा ने 200 और 400 मीटर की दौड़ जीतकर भारतीय एथलेटिक्स के लिए नये इतिहास की रचना की। मिल्खा ने एक स्थान पर लिखा है, ‘मैंने पहले दिन 400 मीटर दौड़ में भाग लिया। जीत का मुझे पहले से ही विश्वास था, क्योंकि एशियाई क्षेत्र में मेरा कीर्तिमान था। शुरू-शुरू में जो तनाव था वह स्टार्टर की पिस्टौल की आवाज के साथ सफूचक्कर हो गया। आशा के अनुसार मैंने सबसे पहले फीते को छुआ। मैंने नया रिकार्ड कायम किया था।

        जापान के सम्राट ने मेरे गले में स्वर्ण पदक पहनाया। उस क्षण का रोमांच मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता। अगले दिन 200 मीटर की दौड़ थी। इसमें मेरा पाकिस्तान के अब्दुल खालिक के साथ कड़ा मुकाबला था। खालिक 100 मीटर का विजेता था। दौड़ शुरू हुई। हम दोनों के कदम एक साथ पड़ रहे थे। फिनिशिंग टेप से तीन मीटर पहले मेरी टांग की मांसपेशी खिंच गयी और मैं लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

मैं फिनिशिंग लाइन पर ही गिरा था। फोटो फिनिश में मैं विजेता घोषित हुआ और एशिया का सर्वश्रेष्ठ एथलीट भी। जापान के सम्राट ने उस समय मुझसे जो शब्द कहे थे वह मैं कभी नहीं भूल सकता। उन्होंने मुझसे कहा था - दौड़ना जारी रखोगे तो तुम्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त हो सकता है। दौड़ना जारी रखो।‘ मिलखा सिंह ने बाद में खेल से सन्न्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। अब वे चंडीगढ़ में रहते हैं।

उपलब्धियाँ :

• इन्होंने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी व 400 मी में स्वर्ण पदक जीते।
• इन्होंने 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
• इन्होंने 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

पुरस्कार :

        मिल्खा सिंह 1959 में 'पद्मश्री' से अलंकृत किये गये।

DR. KADAMBINI GANGULY



👩‍⚕️ Dr. Kadambini Ganguly, the first woman to be trained as a physician in India.

👩‍⚕️ Ganguly was also the first woman to get admission to Calcutta Medical College, from which she graduated in 1886.

👩‍⚕️ Today’s Google doodle, illustrated by Bengaluru- based guest artist Oddrija, marks the occasion of Ganguly’s 160th birthday and sheds light on her exemplary work to uplift Indian women throughout the country.

👩‍⚕️ Ganguly was also one of the six women to form the first all-women delegation of the 1889 Indian National Congress.

👩‍⚕️ The 2020 “Prothoma Kadambini” biographical television series based on Ganguly’s life reinvigorated her legacy by telling her inspirational story to a new generation.

👩‍⚕️ She worked through both medical service and activism in India’s women’s rights movement.

जगरानी देवी।।


“अरे बुढ़िया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“ 
जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े व्यक्ति ने हंसते हुए कहा, 

“नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं“ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा।
उस बुजुर्ग औरत का नाम था जगरानी देवी और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखिरी बेटा कुछ दिन पहले ही आजादी के लिए बलिदान हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनिया उसे आजाद ... जी हाँ ! चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है।

हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी।

अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माता उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी तथा कंडे और लकड़ी बेचकर अपना पेट पालती रहीं। लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी। 

शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949 ) तक जारी रही।
चंद्रशेखर आज़ाद जी को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे, क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था। अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवान दासमाहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा की।

मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।

देश के लिए बलिदान देने वाले क्रांतिकारियों के परिवारों की ऐसी ही गाथा है।

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

👤परिचय :~

🗣जन्म : 15 अप्रैल 1865 निजामाबाद, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)
📚भाषा : हिंदी
🙇‍♀विधाएँ : कविता, उपन्यास, नाटक, आलोचना, आत्मकथा

🎙 हिन्दी के कवि, निबन्धकार तथा सम्पादक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के रूप में कार्य किया। वे सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये गए थे। उन्होंने प्रिय प्रवास नामक खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य लिखा जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था।

मुख्य कृतियाँ (रचनाएं)

▪️कविता : प्रियप्रवास, वैदेही वनवास, काव्योपवन, रसकलश, बोलचाल, चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, पारिजात, कल्पलता, मर्मस्पर्श, पवित्र पर्व, दिव्य दोहावली, हरिऔध सतसई
▪️उपन्यास : ठेठ हिंदी का ठाट, अधखिला फूल
▪️नाटक : रुक्मिणी परिणय
▪️ललित निबंध : संदर्भ सर्वस्व
▪️आत्मकथात्मक : इतिवृत्त
▪️आलोचना : हिंदी भाषा और साहित्य का विकास, विभूतिमती ब्रजभाषा
▪️संपादन : कबीर वचनावली

सम्मान

हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति (1922), हिंदी साहित्य सम्मेलन के चौबीसवें अधिवेशन (दिल्ली, 1934) के सभापति, 12 सितंबर 1937 ई. को नागरी प्रचारिणी सभा, आरा की ओर से राजेंद्र प्रसाद द्वारा अभिनंदन ग्रंथ भेंट (12 सितंबर 1937), 'प्रियप्रवास' पर मंगला प्रसाद पुरस्कार (1938)

▪️निधन

◾️ मृत्यु - 16 मार्च, 1947 आज़मगढ़
होली, 1947
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फणीश्वरनाथ रेणु : परिचय

✍जन्म : 4 मार्च 1921, औराही हिंगना, जिला पूर्णिया, बिहार।

✍1942 स्वतंत्रता संग्राम में एक सेनानी के रूप में विशिष्ट भूमिका।

✍नेपाल की राणाशाही से मुक्ति एवम सशस्त्र क्रांति में हिस्सा लेने के लिए 1950 में नेपाल गए।

✍1954 में ख्यातिलब्ध रचना 'मैला आंचल' का प्रकाशन।

✍जे.पी. आंदोलन में सक्रिय सहभगिता, जेल गए। अनन्तर सत्ता के दमन चक्र के विरोध में पद्म श्री पुरस्कार लौटा दिया।

✍प्रमुख रचनाएं और विधा-
उपन्यास- मैला आँचल
कहानी संग्रह- ठुमरी, आदिम रात्रि की महक।
संस्मरण- ऋण जल धनजल, वनतुलसी की गंध, समय की शिला पर, श्रुत-अश्रुत पूर्व
रिपोर्ताज़- नेपाली क्रांति कथा

✍देहावसान- 11 अप्रैल 1977
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Bhargava Rama


Bhargava Rama's birth has often eluded people as he is Unique, a Brahmana with the nature of a Kshatriya. He is the Avatara of Vishnu and A Rishi, seer of Mantras in Rigveda 10th Mandala. Son of Rishi Jamadagni and Renuka, he would go on to annihilate all evil Kshatriyas on Earth for 21 times.

Prior to his birth, some things had been ongoing for centuries. Kartaviryarjuna, a king of the Chandravamsha who was an evil tyrant in search of gaining extreme powers to rule all the worlds. Kartavirya once served Rishi Dattatreya selfishly and demanded a boon of him. That boon included a condition that the kind of man that may be able to kill Kartavirya should not have existed earlier, and cannot exist later either. 

Chapters 116 of Vanaparva speaks of how Kartavirya went on a terror campaign against every ruler on the Earth and even the Devas who could not defeat him. The Devas prayed to Vishnu only to stop him and Vishnu took a form and did a penance in Badari. At this time, King Gaadhi, father of Vishvamitra, was in Vanavaasa and he had a sister Satyavati by name.

Gadhi's Sister and Vishvamitra's Aunt Satyavati Devi was a very Dharmic woman who was married to Rishi Rchika - a Brahmana of the Bhargava Gotra. Gaadhi, श्याल/साला of Rchika asks Rchika for a boon, it will be good if Rchika's son through his sister that would have the power of 1000 war horses fit for protecting Yajna. Rchika, who was the brother-in-law (जीजा) of Gaadhi, granted this boon.

Now Rchika's father Brahmarishi Bhrgu came from Devaloka and told Rchika to consummate his marriage in a certain way. They made a mistake and hence it was said by Devas that a Kshatriya would be born. Satyavati prayed to Bhrgu, that she only wanted a Brahmana. He heard the prayer and granted her this boon - her son will be a Brahmana but grandson will be a Kshatriya-like Brahmana. So Rchika and Satyavati beget Rishi Jamadagni. And Jamadagni marries Renuka the daughter of Raja Renu and begot Bhargava Rama - as per the delayed condition of the boon Bhrgu gave Satyavati.

Kartavirya Arjuna for the greed of cow, steals cow from Jamadagni. Jamadagni asks Parashurama to kill Kartavirya, who's order he executes. In the absence of Jaamadagnya, the sons of Arjuna kill Jamadagni, father of Rama. Then angered on the Adharma, he kills and 21 times the Evil Kshatriyas. After which till now, he is meditating on Mt Mahendra. The Kshatriyas born after that, some of them where of the same patrilenal clans, but many of them where offsprings of Kshatriya mothers and Brahmana fathers who retained the Kshatriya Varna.

It is true according to the Mahabharata's Vanaparva and Adiparva that so many Kshatrabandhus had died at Bhargava's hands, that many Brahmana sages had to marry Kshatriya princesses and restore many lineages through such Niyoga marriages. Now let us see who reject all this - supremacists who claim to be Brahmanas and their rival supremacists who claim to be Kshatriyas.

One group claims that all Brahmanas can go about murdering people and that Kshatriyas are their slaves, while the other group rejects the existence of Bhargava Rama altogether. Both these groups -

1. Have implied that Vyasa is a liar
2. Have implied that Valmiki is a liar
3. Have implied that Rama and Krishna are liars
4. Have denied the existence of Vishnu's avataras and His boons
5. Have implied that all Vaidika Acharyas of all Sampradayas who accept all of these stories are liars and frauds for doing so.
6. Have denied Niyogavivaaha which the Vedas sanction and thereby have called the Vedas lies.

Krishna clearly tells that those going against the most rudimentary Varnadharma lose their Varna and become avarnas. Which is why He addresses Jarasandha by 'bho' instead of the Kshatriya honorifics. Narada says clearly in all his Upadeshas to Yudhishthira that Sanatana Dharma has no place for atheists and he calls deniers of Vedas and Vedic knowledge as atheists or adharmins of various other kinds. Falling from your Varna by

these sins can happen to anyone born in any lineage. So people who spread such stories about Bhargava Rama have all either lost their Varna statuses (maybe they lost it even prior to committing this evil), or never belonged to the Brahmana or Kshatriya Varnas to even begin with. 

Such an avatara as Bhargava Rama, due to its exceptional nature, cannot be worshipped either. Bhargava Rama still walks among us and Kalki Bhagavan will give him darshana when Kaliyuga ends. No human has the right to question the Sankalpa of Bhagavan ever. Those who do so are not Sanatanis any longer and are as good as Mlecchas irrespective of their lineage of birth. For after all, the worst asuras of the Mahabharata were born in the greatest lineages of the time.

Brahmanas and Kshatriyas are each others' protectors. Kshatriyas use their arms to protect Brahmanas and Brahmanas use their penance to ensure the Kshatriya's sins are lost and his Kshatriyatva remains intact. Anyone saying otherwise is against all Varnas, the Vedas and is against Bhagavan Shriman Narayana Himself. To name a few who actually said and believed such things - Duryodhana, Gautama Buddha, Hiranyakashipu.

© perumal vasudevan

Tipu Sultan :-

✍ An innovator and introduced a new calendar, a new system of coinage and new scales of weights and measures (Not Haider Ali). 

✍ Planted the tree of Liberty at Srirangapatnam and became a member of Jacobin Club. 

✍ Polygars: class of territorial administrative and military governors appointed by Nayaka rulers of South India.  
Tipu tried to do away with the custom of giving jagirs and thus increase state income - He tried to reduce the hereditary possession of Polygars. 

✍ Attempted to build a modern Navy.  

✍ He attempted to introduce industries in India - invited foreign workmen as experts and provided state support to many industries - sent embassies to Iran to develop foreign trade.  

✍ Gave grant for the construction of Goddess Sharda in the Shringeri temple and gave grants to temples regularly.

✍ टीपू सुल्तान: -

💌 सिलेबस सबटॉपिक: -

आधुनिक भारतीय इतिहास अठारहवीं शताब्दी के मध्य से लेकर आज तक- महत्वपूर्ण घटनाओं, व्यक्तित्वों, मुद्दों तक।

💡 प्रीलिम्स और मेन्स फोकस: -

मैसूर के टीपू सुल्तान के आसपास के विवाद के बारे में; उनका प्रशासन और धार्मिक नीतियां।

🚨 पृष्ठभूमि: -

टीपू सुल्तान के बारे में विवाद मडिकेरी के विधायक अप्पाचू रंजन ने उठाया था जिन्होंने विभाग को लिखा था कि टीपू को "कट्टरपंथी" करार दिया जाए। विषय विशेषज्ञों ने तर्क दिया था कि उनसे संबंधित केवल "तथ्य" कक्षा छह, सात और 10 की पाठ्यपुस्तकों में प्रस्तुत किए गए थे और उन्हें "महिमा नहीं" कहा गया था।

🍎 कारोबार : -

पाठ्यपुस्तकों से टीपू का "निष्कासन" मूल रूप से आधुनिक भारत के इतिहास को बदल देगा, और 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दक्षिण भारत के समाज और राजनीति के प्रमुख व्यक्तियों में से एक को अदृश्य कर देगा, जब ईस्ट इंडिया कंपनी तेजी से थी। देश पर ब्रिटेन के औपनिवेशिक पदचिह्न का विस्तार करना।

🗽 टीपू सुल्तान के बारे में (1750-1799): -

टीपू सुल्तान, टाइगर ऑफ़ मैसूर, भारतीय शासक था जिसने ईस्ट इंडिया कंपनी की दक्षिण भारत की विजय का विरोध किया था। उन्हें अपने पिता हैदर अली से गद्दी मिली थी, जिन्होंने पिछले हिंदू राजवंश को खत्म कर दिया था।

उन्होंने अंग्रेजों - मानव जाति के उन उत्पीड़कों ’को भारत से बाहर खदेड़ने के लिए गठबंधन बनाने की कोशिश की - पेरिस और मॉरीशस में फ्रांसीसी के साथ साज़िश की। टीपू को अपने पिता हैदर अली के रोजगार में फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा सैन्य रणनीति का निर्देश दिया गया था। 1767 में टीपू ने पश्चिमी भारत के कर्नाटक (कर्नाटक) क्षेत्र में मराठों के खिलाफ घुड़सवार सेना की कमान संभाली, और उन्होंने 1775 और 1779 के बीच कई अवसरों पर मराठों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

उन्होंने दिसंबर 1782 में अपने पिता की कामयाबी हासिल की और 1784 में अंग्रेजों के साथ शांति का समापन किया और मैसूर के सुल्तान की उपाधि धारण की। हालांकि, 1789 में, उन्होंने अपने सहयोगी त्रावणकोर के राजा पर हमला करके ब्रिटिश आक्रमण को भड़का दिया। सेरिंगपटम की संधि (मार्च 1792) तक उन्हें अपने आधे प्रभुत्वों को बचाना था।

वह बेचैन रहे और उन्होंने क्रांतिकारी फ्रांस के साथ अपनी बातचीत को अंग्रेजों के लिए ज्ञात होने दिया। गवर्नर-जनरल के बहाने लॉर्ड मॉर्निंगटन (बाद में वेलेस्ले की विजय) ने चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध शुरू किया। टीपू की राजधानी, सेरिंगपटम (अब श्रीरंगपटना) 4 मई, 1799 को ब्रिटिश-नेतृत्व वाली सेना द्वारा दागी गई थी और टीपू की मृत्यु हो गई थी, जिससे उसके सैनिकों को भगाने में मदद मिली।

⚔ अंग्रेजों से संघर्ष (एंग्लो-मैसूर युद्ध): -

एंग्लो-मैसूर युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर साम्राज्य के बीच 18 वीं शताब्दी के तीन दशकों में भारत में लड़ी गई चार युद्धों की एक श्रृंखला थी।

🔏 प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769)

1767 में, हैदर अली के अधीन मैसूर एक शक्तिशाली राज्य था। 1769 में, पहला एंग्लो-मैसूर युद्ध लड़ा गया जिसमें हैदर अली ने ब्रिटिशों को हराया और मद्रास की संधि पर हस्ताक्षर किए गए। हैदर अली ने लगभग पूरे कर्नाटक पर कब्जा कर लिया।

🔏 दूसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1780-1784)

वारेन हेस्टिंग्स ने फ्रांसीसी बंदरगाह माहे पर हमला किया। हैदर अली ने निजाम और मराठों के साथ साझा मोर्चे का नेतृत्व किया और आर्कोट (कर्नाटक राज्य की राजधानी) पर कब्जा कर लिया।

जुलाई 1781 में, हैदर अली को पोर्टो नोवो में आइरे कोटे ने हराया और मद्रास को बचाया। दिसंबर 1782 में, हैदर अली की मृत्यु के बाद, युद्ध उसके बेटे टीपू सुल्तान द्वारा किया गया था।

टीपू सुल्तान ने मार्च 1784 में मैंगलोर की संधि पर हस्ताक्षर किए जिसने दूसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध समाप्त कर दिया।

🔏 तीसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1789-1792)

तीसरा युद्ध टीपू सुल्तान के बीच लड़ा गया था, और ब्रिटिश ईस्ट इंडियन कंपनी 1789 में शुरू हुई और 1792 में टीपू की हार के बाद समाप्त हुई। इस युद्ध में, मराठों और निज़ाम ने ब्रिटिश पर कब्जा कर लिया और बंगलौर और कार्नवालिस ने बैंगलोर पर कब्जा कर लिया। टीपू सुल्तान और लॉर्ड कार्नवालिस के बीच सेरिंगपटना की संधि पर हस्ताक्षर करके युद्ध समाप्त हो गया। इस संधि में, टीपू ने अपने राज्य के आधे हिस्से और अपने दो बेटों को युद्ध के बंधक के रूप में उद्धृत किया।

🔏 चौथा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1799)

चौथे युद्ध 1799 में, लॉर्ड वेलेस्ली के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने एक भीषण युद्ध में टीपू सुल्तान पर हमला किया और हराया। 4 मई 1799 को अपनी राजधानी शेरिंगपट्टनम का बचाव करते हुए वे एक वीर मृत्यु से मिले।

📌 टीपू के सुधार के उपाय और प्रशासन: -

टीपू अवस्था बारे में कम चिंतित थे और शासन के पदार्थ के बारे में अधिक। उन्होंने कृषि को राष्ट्र का जीवन रक्त माना और अपमानजनक भूमि पर खेती करने वाले और उसके वंशजों के संरक्षण के लिए कदम उठाए। उन्होंने गरीबी और बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए किसानों को व्यावसायिक फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया था। चंदन बेचने के लिए पेगु, मस्कट, तुर्की और इस्तांबुल जैसे विदेशी देशों में उनके कई वाणिज्यिक डिपो थे।

उन्होंने बड़े पैमाने पर मैसूर में सेरीकल्चर की शुरुआत की और सेरीकल्चर की खेती के बारे में रिकॉर्ड बनाए रखा। वह मुख्य रूप से अच्छी तरह से बिछाई गई सड़कों और संचार सुविधाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने किसानों को ऋण और सब्सिडी दी थी और भूमि राजस्व छूट का लाभ प्रदान किया था। टीपू ने पशुपालन, बागवानी, सेरीकल्चर, सामाजिक वानिकी और कृषि की अन्य शाखाओं को भी बढ़ावा दिया।

टीपू मैसूर राज्य की अर्थव्यवस्था को एक अलग तरीके से विकसित करना चाहते थे और अपने नागरिकों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और राजनीतिक रूप से संप्रभु गणराज्य बनाना चाहते थे। उन्होंने दक्षिण भारत और फारस की खाड़ी के बीच आर्थिक बंधनों के विकास को महत्व दिया। मस्कट में कारखाने के प्रमुख को संबोधित एक पत्र में, टीपू ने इमाम से भारत में उत्पादित चावल के बदले में मालाबार तट और फारस की खाड़ी के बीच व्यापार में कार्यरत एक छोटे पोत को डिंगी भेजने का अनुरोध किया था।

उन्होंने मैसूर क्षेत्र के विशेषज्ञ शिपबिल्डरों को भेजने के लिए मस्कट को पत्र लिखे। मालदीव द्वीप समूह अपने समय के दौरान एक महत्वपूर्ण नौसेना डॉकयार्ड बना रहा। मंगलौर, भटकल, कोंडापुर और ताड़ी अपने समय के महत्वपूर्ण नौसेना केंद्र बन गए। टीपू ने तुर्की, चीन, फ्रांस और ईरान के विशेषज्ञों को भी आमंत्रित किया और चन्नपटना, बिदनूर, चित्रदुर्ग, बैंगलोर और श्रीरंगपटना में उद्योग स्थापित किए। उन्होंने अपने क्षेत्र में चीनी विनिर्माण में सुधार के लिए चीनी विशेषज्ञों को आमंत्रित किया था। मालाबार तट में उनके द्वारा मोती मत्स्य पालन को प्रोत्साहित किया गया था। उन्होंने 1785 में कुशल श्रमिकों और शस्त्रागार को आयात करने के लिए फ्रांस में एक मिशन भेजा।

उन्होंने शराब और सभी नशीले पदार्थों के उपयोग पर प्रतिबंध, वेश्यावृत्ति पर प्रतिबंध और घरेलू सेवा में महिला दासों के रोजगार, मालाबार और कूर्ग में बहुपत्नी प्रथा के नायर प्रथा को खत्म करने, रीति-रिवाज पर प्रतिबंध जैसे सामाजिक सुधार लाने के लिए उपाय किए। मैसूर शहर के पास काली के मंदिर में मानव बलि और विवाह, त्योहारों और दान के लिए भव्य अपव्यय पर प्रतिबंध।

उनके प्रशासन ने एक मजबूत और सुव्यवस्थित केंद्र सरकार, एक अच्छी तरह से बुना हुआ जिला और प्रांतीय प्रशासन को सीधे केंद्र के नियंत्रण में देखा, अच्छी तरह से प्रशिक्षित और अनुशासित नागरिक, सैन्य और राजनयिक सेवाएं, कानूनों का एक समान सेट और प्रत्यक्ष संपर्क। बिचौलियों को हटाने से विषय और राज्य।

🎠 टीपू की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति:

टीपू को बहुत निराशा हुई जब उन्होंने महसूस किया कि भारत में स्थानीय शक्तियों में राष्ट्रीय चेतना का अभाव है। टीपू ने मराठों और निज़ाम दोनों के सहयोग को बढ़ाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनमें से किसी ने भी टीपू की राजनीतिक शिथिलता और दूरदर्शिता को नहीं पहचाना।

यह वह कारक था जिसने उन्हें विदेशी शक्तियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने कूटनीति के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए व्यापार एजेंटों और राजनयिक मिशनों को नियुक्त किया। उन्होंने फ्रांस, तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान के समर्थन की घोषणा करने की कोशिश की, जिससे उनकी धार्मिक भावनाओं को अपील करके अंग्रेजी के खिलाफ एक दुर्जेय मोर्चा बनाया जा सके।

उसने फ्रांसीसी जनरल से भारत के भीतर अपने अधिकार के तहत 10000 की एक मजबूत सेना भेजने की अपील की थी। वह फ्रांस के जैकोबिन क्लब का सदस्य था। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के खिलाफ तीसरे मैसूर युद्ध में उनकी सहायता करने के लिए फ्रांसीसी को दृढ़ता से मना लिया था, लेकिन वे तटस्थ रहे क्योंकि टीपू ने गलत समय पर अंग्रेजी के खिलाफ युद्ध शुरू किया था।

टीपू ने ओटोमन सुल्तान और फ्रांसीसी राजा के साथ राजनयिक संबंध बनाने का प्रयास किया और उन्हें आश्वासन दिया कि वे दक्षिण भारत में ब्रिटिश संपत्ति उनके साथ साझा कर सकते हैं।

टीपू का धार्मिक आदर्शवाद:

कई इतिहासकारों द्वारा टीपू को एक महान धर्मनिरपेक्ष शासक और हिंदू मंदिरों का एक शानदार समर्थक माना जाता है। उन्होंने अपने हर प्रशासनिक या युद्ध के प्रयासों से पहले रंगनाथ मंदिर, श्रीरंगपट्टना के ज्योतिषियों के साथ परामर्श किया। उन्होंने ज्योतिषियों को बहुत सारे पैसे दिए।

ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों के अनुसार, यह मानते हुए कि वह पूरे दक्षिण भारत के निर्विवाद शासक बन सकते हैं, अंग्रेजों को हराने के बाद, उन्होंने श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में सभी सुझाए गए अनुष्ठान किए। यह केवल ब्राह्मण ज्योतिषियों की संतुष्टि के लिए है जो अपनी कुंडली का अध्ययन करते थे कि टीपू सुल्तान ने दो मंदिरों का संरक्षण किया था। देश में राजस्व हानि के लिए मुख्य रूप से बनाने के लिए 1790 से पहले कई हिंदू मंदिरों की संपत्ति जब्त की गई थी।

मालाबार में उनकी छह से आठ साल की उपस्थिति से, इस क्षेत्र का पूरा कॉस्टल बेल्ट इस्लाम में परिवर्तित हो गया। कालीकट के परिवारों के कुछ सबसे बड़े और धनी समूह इस्लाम में बड़े पैमाने पर परिवर्तित हो गए। उन्होंने इस्लामिक टेनर के साथ कई स्थानों का नाम बदला। मालाबार और कूर्ग क्षेत्र में उनकी भूमिका धार्मिक अतिवाद और असहिष्णुता के कुछ तत्वों को दिखाती है।

लेकिन पहले एंग्लो-मैसूर युद्ध में पराजित होने के बाद उन्होंने अपने राज्य में हिंदुओं के साथ सौहार्दपूर्वक व्यवहार करना शुरू किया ताकि विद्रोह से बचा जा सके और ब्रिटिश सत्ता के सामने समर्थन हासिल किया जा सके। चंदन की लकड़ी से बनी शारदा मूर्ति की पुनः प्रतिष्ठा का श्रेय, चिकमगलूर के श्रृंगेरी में मुख्य देवता को जाता है और पीता के लिए उनके योगदान को अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है।

जब सचिदानंद भारती के पिता थे, तब मराठा सेना से पेेटा पर हमला हुआ, तो टीपू सुल्तान केरल के कन्नूर में युद्ध कर रहे थे। मराठों से छापे के बारे में जानने के बाद, उन्होंने मराठों को भगाने के लिए श्रृंगेरी को एक सेना भेजी। सेना आगे के हमलों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए श्रृंगेरी में तैनात थी। दस्तावेज़ों के अनुसार टीपू ने सचिदानंद भारती को फिर से श्रृंगेरी में वापस लाया और भारी मात्रा में दान दिया और शारदा की एक चंदन की मूर्ति का अभिषेक किया।

टीपू सुल्तान अतीत के शासक थे और हम उनसे आधुनिक अर्थों में धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु होने की उम्मीद नहीं कर सकते। उनका इतिहास हिंदुओं के उत्पीड़न और जबरन धर्मांतरण के साथ-साथ हिंदुओं के प्रति सहिष्णुता और सहिष्णुता दोनों का प्रमाण दिखाता है। अंग्रेजों के खिलाफ मैसूर के अपने बचाव में उन्होंने देशभक्तों के सर्वोच्च आदेश का चरित्र दिखाया। अपने सुधारवादी और नवीन उपायों में उन्होंने एक महान प्रशासनिक प्रतिभा का चरित्र दिखाया। टीपू सुल्तान को मनाने या निंदा करने के लिए इतिहास में पर्याप्त सबूत हैं।

लेकिन आज इतिहास के सांप्रदायिकरण की एक सक्रिय परियोजना है और इसमें ऐतिहासिक आंकड़ों को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस परियोजना में टीपू सुल्तान एक विवादास्पद व्यक्ति है क्योंकि उसकी व्याख्या दोनों तरीकों से की जा सकती है। भारतीय राष्ट्रीय एकता के हित में और समुदायों के बीच सहिष्णुता और भाईचारे की वास्तविक भावना को बढ़ावा देने के लिए, अपने असहिष्णु उपायों को सामने लाकर समुदायों को विभाजित करने के बजाय टीपू के सहिष्णु पहलू को देखना बेहतर है। इतिहास के रचनात्मक उपयोग की आवश्यकता है।

✍ Tipu Sultan :-

💌 Syllabus subtopic :- 

Modern Indian history from about the middle of the eighteenth century until the present- significant events, personalities, issues
💡 Prelims and Mains focus :-
About the controversy around Tipu Sultan of Mysore; his administration and religious policies.

🚨 Background :- 

The controversy regarding the lessons on Tipu Sultan was raised by Madikeri MLA Appachu Ranjan who had written to the department seeking removal of the lessons terming Tipu a “fanatic”. Subject experts had argued that only “facts” pertaining to him were presented in the class six, seven and 10 textbooks and that he was “not glorified”.

🍎 Concerns :-

The “removal” of Tipu from textbooks will fundamentally alter the history of early modern India, and make invisible one of the key individuals in the society and politics of South India in the second half of the 18th century, when the East India Company was rapidly expanding Britain’s colonial footprint over the country.

🗽 About Tipu Sultan (1750-1799) :-

Tipu Sultan, the Tiger of Mysore, was the Indian ruler who resisted the East India Company’s conquest of southern India. He had inherited the throne from his father Haidar Ali, who had driven out the previous Hindu dynasty.

He tried to build up an alliance to drive the British – ‘those oppressors of the human race’ – out of India and intrigued with the French in Paris and Mauritius. Tippu was instructed in military tactics by French officers in the employ of his father, Hyder Ali. In 1767 Tippu commanded a corps of cavalry against the Marathas in the Carnatic (Karnataka) region of western India, and he fought against the Marathas on several occasions between 1775 and 1779.

He succeeded his father in December 1782 and in 1784 concluded peace with the British and assumed the title of sultan of Mysore. In 1789, however, he provoked British invasion by attacking their ally, the Raja of Travancore. By the Treaty of Seringapatam (March 1792) he had to cede half his dominions.

He remained restless and allowed his negotiations with Revolutionary France to become known to the British. On that pretext the governor-general, Lord Mornington (later the marquess of Wellesley), launched the fourth Anglo- Mysore War. Seringapatam (now Srirangapatna), Tippu’s capital, was stormed by British-led forces on May 4, 1799, and Tippu died leading his troops in the breach.

⚔ Conflicts with the British (Anglo-Mysore wars) :-

The Anglo–Mysore Wars were a series of four wars fought in India over the three decades of the 18th century between the British East India Company and the Kingdom of Mysore.

🔏 First Anglo-Mysore War (1767-1769)

In 1767, Mysore was a powerful state under Hyder Ali. In 1769, the first Anglo-Mysore war was fought in which Haider Ali defeated the British and Treaty of Madras was signed between them. Haider Ali occupied almost the whole of Carnatic.

🔏 Second Anglo-Mysore War (1780-1784)

Warren Hastings attacked French port Mahe. Haider Ali led a common front with Nizam and Marathas and captured Arcot (Capital of Carnatic State).

In July 1781, Haider Ali was defeated at Porto Novo by Eyre Coote and saved Madras. In December 1782, after the death of Haider Ali, the war was carried on by his son Tipu Sultan.

Tipu Sultan signed Treaty of Mangalore in March 1784 which ended the second Anglo-Mysore war.

🔏 Third Anglo-Mysore War (1789-1792)

The third war was fought between Tipu Sultan, and British East Indian Company began in 1789 and ended in Tipu’s defeated in 1792. In this war, Marathas and Nizam aided the British and Cornwallis captured Bangalore. The war ended by signing of Treaty of Seringapatna, between Tipu Sultan and Lord Cornwallis. In this treaty, Tipu ceded half of his territories and two of his son’s as a hostage of war.

🔏 Fourth Anglo-Mysore War (1799)

In Fourth War 1799, the British army led by Lord Wellesley attacked and defeated Tipu Sultan in a fierce war. He met a heroic death on 4th May 1799 while defending his capital Seringapatnam.

📌 Tipu’s reform measures and administration :-

Tipu was less worried about form and more about the substance of governance. He considered agriculture as the life blood of the nation and took steps for taking over derelict land and protection of the cultivator and his descendants. He had encouraged the farmers to cultivate commercial crops to overcome poverty and unemployment problems. He had several commercial depots in foreign countries such as Pegu, Muscat, Turkey and Istanbul for selling sandalwood.

He introduced sericulture in Mysore on a large scale and maintained records about the cultivation of sericulture. He was primarily responsible for the construction of well laid out roads and communication facilities. He had given loans and subsidies to the farmers and provided the benefit of land revenue exemption. Tipu also promoted animal husbandry, horticulture, sericulture, social forestry and other branches of agriculture.

Tipu wanted to develop the economy of Mysore State in a different way and make his citizens economically self-reliant and politically sovereign republics. He gave importance for the development of economic bonds between South India and the Persian Gulf. In a letter addressed to Chief of the factory at Muscat, Tipu had requested the Imam to send Dingies, a small vessel employed in the trade between Malabar Coast and Persian Gulf in return of rice produced in India.

He wrote letters to Muscat to dispatch expert shipbuilders to the Mysore territory. Maldive Islands continued to be an important naval dockyard during his time. Mangalore, Bhatkal, Coondapur and Tadadi became important naval centres of his times. Tipu also invited experts from Turkey, China, France and Iran and set up industries in Channapatna, Bidnur, Chitradurga, Bangalore and Srirangapatna. He had invited Chinese experts for improving sugar manufacturing in his territory. Pearl fisheries were encouraged by him in the Malabar coast. He sent a mission to France to import skilled workers and arsenals in 1785.

He took measures to bring social reforms like ban on the use of liquor and all intoxicants, the ban on prostitution and the employment of female slaves in domestic service, the abolition of the Nayar practice of polyandry in Malabar and Coorg, the repeal of the custom of human sacrifice in the temple of Kali near Mysore town and restrictions on lavish extravagance for marriages, festivals and charities.

His administration saw a strong and well-organized central government, a well-knit district and provincial administration directly under the control of the centre, well-trained and disciplined civil, military and diplomatic services, uniform set of laws and the direct contact between the subjects and the state by the removal of intermediaries.

🎠 Tipu’s international diplomacy :

Tipu was greatly disappointed when he realized that local powers in India lacked national consciousness. Tipu tried his best to enlist the cooperation of both the Marathas and the Nizam, but none of them recognized the political sagacity and foresightedness of Tipu.

It was this factor which compelled him to develop friendly relations with foreign powers. He appointed trade agents and diplomatic missions to accomplish this goal of diplomacy. He tried to enlist the support of France, Turkey, Iran and Afghanistan, hoping to form a formidable front against the English by appealing to their religious sentiments.

He had appealed to the French General to send a strong army of 10000 to be under the his authority within India. He was a member of Jacobin club of France. Tipu Sultan had strongly persuaded the French to assist him in the Third Mysore War against the British but they remained neutral because Tipu had initiated a war against the English at the wrong moment.

Tipu made an attempt to cultivate diplomatic relations with the Ottoman Sultan and French King and assured them that they could share the British possessions in South India with him.

Tipu’s religious idealism :

Tippu is being considered by many historians as a great secular ruler and a splendid supporter of Hindu temples. He consulted with astrologers of Ranganatha temple, Sreerangapattana before his every administrative or war attempts. He gifted the astrologers with lots of money.

Believing, according to the predictions of astrologers, that he could become the undisputed ruler of the whole of South India, after defeating the British, he performed all the suggested rituals in the Sri Ranganathaswamy Temple. It is only for the satisfaction of the Brahmin astrologers who used to study his horoscope that Tippu Sultan had patronised two temples. The wealth of many Hindu temple was confiscated before 1790 itself mainly to make up for the revenue loss in the country.

By his six to eight years of presence in Malabar, the entire costal belt of the region converted to Islam. Some of the largest and wealthiest groups of families of Calicut were converted in mass to Islam. He renamed several places with Islamic tenor. His role in Malabar and Coorg region shows some elements of religious extremism and intolerance.

But after being defeated in the first Anglo-Mysore war he started dealing cordially with the Hindus in his kingdom so as to avoid insurrection and get support in the face of the British power. The credit of re-consecration of Sharada idol made of sandalwood, the main deity at Sharada Peeta, Sringeri of Chikmagalur goes to him and his contributions to the Peeta are well documented.

When the Peeta came under attack from Maratha army when Sachidananda Bharathi was the pontiff, Tipu Sultan was waging a battle at Kannur in Kerala. On learning about the raid from the Marathas, he sent an army to Sringeri to drive away Marathas. The army was stationed at Sringeri to offer protection from further attacks. According to documentations Tipu brought back Sachidananda Bharathi again to Sringeri and offered donations in huge quantities and got consecrated a sandalwood idol of Sharada.

Tipu Sultan was a ruler of the past and we cannot expect him to be Secular and tolerant in the modern sense. His history shows evidence of both statemenship and tolerance to Hindus along with persecution and forced conversions of Hindus. In his defence of Mysore against the British he showed the character of the highest order of Patriots. In his reformative and innovative measures he showed the character of a great administrative genius. There is enough evidence in history to celebrate or condemn Tipu Sultan.

But today there is an active project of communalizing history and there is focus on Politicising historical figures. In this project Tipu Sultan is a controversial figure as he can be interpreted both ways. In the interest of Indian National unity and to foster the genuine feeling of tolerance and brotherhood among communities it is better to look at the Tipu’s tolerant aspect rather than dividing the communities by bringing forth his intolerant measures. There is a need for constructive use of history.