कबीर के विषय में प्रसिद्ध कथन ।।

❣ वन लाइनर प्रश्नोतर ❣

० वे (कबीर) भगवान् के नृसिंहावतार की मानो प्रतिमूर्ति थे - हजारी प्रसाद जी

० कबीर में काव्य - कम काव्यानुभूति अधिक है - लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय

० कबीर रहस्यवादी संत और धर्मगुरू होने के साथ साथ वे भावप्रवण कवि भी थे - डॉ बच्चन सिंह

० ये महात्मा बड़ी स्वतंत्र प्रकृति के थे । ये रुढ़िवाद के कट्टर विरोधी थे - बाबू गुलाब राय

० कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, उन्हें सुनी सुनाई बातों का ज्ञान था, वे मूलतः समाज सुधारक थे - ऐसी उक्तियाँ कबीर के विवेचन और मूल्यांकन में अप्रासंगिक बिंदु है - रामस्वरूप चतुर्वेदी

० "कबीर के समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है ।"-डॉ बच्चन सिंह

० कबीर में, कई तरह के रंग है, भाषा के भी और संवेदना के भी । हिंदी की बहुरूपी प्रकृति उनमें खूब खुली है । -रामस्वरूप चतुर्वेदी‘‘

० कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने दोनो धर्मों हिन्दू - मुस्लिम की भलाई बुराई देखी एवं परखी और केवल कटु आलोचना ही नहीं की अपितु दोनों धर्मावलम्बियों को मार्ग दिखलाया। जिस पर चलकर मानव मात्र ही नहीं समस्त प्राणी जगत का कल्याण हो सकता है।-द्वारिका प्रसाद सक्सेना

० वे साधना के क्षेत्र में युग - गुरु थे और साहित्य के क्षेत्र में भविष्य के सृष्टा - हजारी प्रसाद द्विवेदी

० "लोकप्रियता में उनके (कबीर) समकक्ष गोस्वामी तुलसीदास है । तुलसी बड़े कवि हैं, उनका सौंदर्यबोध पारम्परिक और आदर्शवादी है । कबीर का सौंदर्यबोध अपारंपरिक और यथार्थवादी है ।"- डॉ बच्चन सिंह

० कबीर ही हिंदी के सर्वप्रथम रहस्यवादी कवि हुए - श्याम सुंदर दास

० " आज तक हिंदी में ऐसा जबर्दस्त व्यंग्य लेखक नहीं हुआ " - हजारीप्रसाद द्विवेदी

० कबीर अपने युग के सबसे बड़े क्रांतदर्शी थे - हजारी प्रसाद

० "समूचे भक्तिकाल में कबीर की तरह का जाति - पाँति विरोधी आक्रामक और मूर्तिभंजक तेवर किसी का न था। जनता पर तुलसी के बाद सबसे अधिक प्रभाव कबीर का था। "- बच्चन सिंह

० कबीर पहुँचे हुए ज्ञानी थे। उनका ज्ञान पोथियों की नकल नहीं था और न वह सुनी सुनाई बातों का बेमेल भंडार ही था -श्याम सुंदर दास
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