विषय : पोषण एवं आहार
इकाई - 4
विषयांश :
उपइकाई-1 – प्रस्तावना – उद्देश्य, पोषण का अर्थ एवं महत्व, विभिन्न आयु वर्ग व कार्य केअनुरूप संतुलित आहार, विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता एवं कार्य ।
उपइकाई-2 – कुपोषण जनित बीमारियां और उनको दूर करने के उपाय, भोजन पकाने कीविधियां एवं उनका पोषक तत्वों पर पड़ने वाला प्रभाव ।
प्रिय छात्र,
पिछली इकाई में आपने बालकों के मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं के विषय में अध्ययन किया। इस इकाई में आप संतुलित आहार विभिन्न पोषक तत्वों, कुपोषण, भोजन पकाने की विभिन्न विधियों की जानकारी प्राप्त करेंगे।
प्रस्तावना
भोजन जीवित रहने के लिये परम आवश्यक है, स्वस्थ तथा निरोगी रहने के लिये हमें संतुलित आहार लेना चाहिये। संतुलित भोजन वह भोजन है जिसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन और जल आदि उपयुक्त अनुपात में हो तथा जिनसे शारीरिक व मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो।प्रत्येक व्यक्ति के लिये संतुलित आहार अलग अलग होता है, क्योंकि व्यक्ति विशेष के शरीर में इसकी आवश्यकता अलग अलग होती है। संतुलित आहार नही लेने पर बालक का शरीरिक तथा मानसिक विकास रूक जाता है, जिससे शरीर में इनकी कमी आ जाती है। इन कमियों को दूर करने के लिये हमें अपने भोजन में सभी पोषक तत्व लेने चाहिये।
उद्देश्य
० इस इकाई के पश्चात आप निम्न बिन्दुओं के विषय में समझ सकेंगे -
० पोषण का अर्थ तथा महत्व
० संतुलित आहार व कुपोषण
० विभिन्न आयु वर्ग तथा कार्यो के लिए संतुलित आहार
० वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट तथा जल की उपयोगिता व कार्य
० कुपोषण जनित बीमारियां तथा उनको दूर करने के उपाय
० भोजन को पकाने की विधियां
० पकाने पर पोषक तत्वों पर प्रभाव
पोषण का अर्थ व महत्व
मनुष्य की तीन बुनियादी आवश्यक आवश्यकतायें मानी गई है भोजन, वस्त्र और मकान किन्तु इन तीनों में से जीवित रहने के लिए भोजन की परम आवश्यकता होती है। प्रत्येक प्राणी सर्वप्रथम अपनी इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयास करता है। स्वस्थ्य व सशक्त शरीर का निर्माण उचित पोषण पर निर्भर करता है न कि आहार पर। पोषण व आहार में अंतर है, आहार ठोस व तरल पदार्थों का समग्र रूप है है जिसे हम भूख शान्त करने के लिए उपयोग में लेते हैं, परन्तु पोषण वह प्रक्रिया है जिससे भोजन शरीर को पोषक तत्व देता है या इस आहार को शरीर में आत्मसात होकर शक्ति का स्त्रोत बनना पोषणकहलाता है। डी. फी. टरनर के शब्दों में “पोषण वह सम्मिलित प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक सजीव प्राणी अपने शरीर के रखरखाव कार्य करने व शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक पदार्थो को ग्रहण कर उनका प्रयोग करता है।" साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि पोषण का अर्थ वे जटिल रासायनिक प्रक्रियायें है जिनके द्वारा मनुष्य द्वारा खाये जाने वाले भोजन में से उसका शरीर आवश्यक पदार्थों को ग्रहण कर पाचन द्वारा (अभिशोषित) कर (अभिपोषक) उसका प्रयोग (चयापचय) करना है, जिससे शरीर का पोषण होता है। पोषण का अर्थ भोजन का पाचन, अभिशोषण, चयापचय है। जिसके द्वारा पोषण अर्थात शरीर निर्माण, ऊर्जा प्राप्ति तथा रोगरोधन क्षमता प्राप्त होना। यदि मनुष्य द्वारा खाया भोजन इन तीनों कार्यों को करता है, तो उसका पोषण होता है अन्यथा नहीं। पोषण का सीधा संबंध पौष्टिक तत्वों से होता है, ये पौष्टिक तत्व उन भोज्य पदार्थों में पाये जाते है जिन भोज्य पदार्थों को हम भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
ये पोष्टिक तत्व निम्नानुसार 6 प्रकार के होते हैं :
1. प्रोटीन 2. कार्बोहाइड्रेट्स 3. वसा 4. विटामिन 5. खनिज लवण 6. जल
पोषण का महत्व - आहार में विभिन्न पोषक तत्व शरीर में प्रवेश करके निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य करते हैं
1. शरीर का निर्माण करना : शरीर एक विकासशील जैविकीय इकाई है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए पोषण तत्वों की आवश्यकता होती है। ये हमारी हड्डियों, दांतो, मांसपेशियों, कोमल तंतुओं, रूधिर तथा अन्य शारीरिक द्रव्यों का निर्माण करते हैं।
2. ऊतकों की मरम्मत : प्रौढ़ावस्था में शरीर की वृद्धि व विकास की प्रक्रिया तो तीव्र गति से नहीं होती है, परन्तु शरीर में ऊतकों की टूटफूट होती रहती है, जिनकी मरम्मत का कार्यभोजन तत्व प्रोटीन ही करता है।
3. शरीर को ऊर्जा प्रदान करना – शरीर की उष्मा बनाए रखने एवं शारीरिक कार्य करने के लिए,मांसपेशियों को सक्रियता प्रदान करने तथा शरीर के विभिन्न अंगों को दैनिक क्रियाओं के लिए तत्पररखने के लिए, ऊर्जा की आवश्यकता होती है। भोजन में वसा ही शरीर की इस महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति एवं शरीर को ऊर्जा प्रदान करके करता है। मानसिक श्रम करने वालों की अपेक्षा, शारीरिक श्रम करने वालों को, आहार अधिक देना होता है, क्योंकि उनकी मांसपेशियाँ अधिक क्रियाशील रहती है व उन्हें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
4. रोग रोधन की क्षमता देना : यदि आहार में एक से अधिक तत्वों की कमी होगी तो शरीर के विभिन्न अंगों के कार्य संचालन में अव्यवस्था उत्पन्न होगी और परिणाम स्वरूप शरीर के स्वास्थ्य, वृद्धि व विकास पर विपरीत प्रभाव होगा। शरीर के रोगों से लड़ने की शक्ति पोषक तत्वों के भोजन में रहने से प्राप्त होती है। शरीर में होने वाली अनेक क्रियायें जैसे, हृदय का निस्पन्दन, मांसपेशियों का संकुचन, शरीर में जल की मात्रा का संतुलन, रक्त का स्कंदन, शरीर के ताप का नियंत्रण, शरीर में उत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थो का निष्कासन आदि भोजन में उपस्थित इन पोषक तत्वों के कुछ तत्व ही करते है।
5. विभिन्न आयुवर्ग व कार्य के अनुरूप संतुलित आहार – संतुलित आहार उस आहार को कहते है जो शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करता है, और अपेक्षाओं को तृप्त करता है, जिसमें भोजन के सभी पौष्टिक तत्व सम्मिलित हो और इन तत्वों का उचित अनुपात में व्यक्ति की आयु, लिंग और काम करने की स्थिति आदि का ध्यान रखकर निर्धारित किया गया हो या संतुलित आहार वह भोजन होता है जिसमें भोजन के समस्त पौष्टिक तत्व व्यक्ति विशेष को शरीर की मांग के अनुसार उचित मात्रा व उचित साधनों से प्राप्त हों।प्रत्येक व्यक्ति के लिए संतुलित आहार अलग अलग होता है, भोज्य पदार्थ वही होते है पर प्रत्येक व्यक्ति की पौष्टिक तत्वों की मांग अलग-अलग होने के कारण भोज्य पदार्थो की मात्रा अलग अलग हो जाती है अन्यथा एक ही रूपरेखा वाला आहार सब को देने पर वह एक व्यक्ति के लिए ही संतुलित होगा परन्तु दूसरे व्यक्ति के लिए असंतुलित होगा। शारीरिक श्रम करने के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता होती है उसे ऊर्जा कहते हैं। पोषण में ऊर्जा की इकाई कैलोरी है। कैलोरी को इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं। "1 किलोग्राम पानी का तापक्रम 1°C बढ़ाने के लिए जितनी उष्मा का प्रयोग होता है उसे कैलोरी कहते है।"
एक व्यक्ति के लिए कैलोरी की प्रतिदिन की आवश्यकता।
पाठ्यगत प्रश्न
प्र. 1 प्रत्येक व्यक्ति के लिए संतुलित आहार होता है।
अ) कम ब) अधिक स) समान द) अलग अलग
प्र. 2 पोषण में ऊर्जा को मापने की इकाई है ।
अ) जूल ब) कैलोरी स) अर्ग द) ग्राम
प्र. 3 भोज्य पदार्थो में कौन-कौन से पोषक तत्व होते हैं ?
प्र. 4 संतुलित आहार से आप क्या समझते हैं?
प्र. 5 भोजन के क्या कार्य हैं?
4.5 विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता एवं कार्य :
वसा : वसा से शरीर में ताप उत्पन्न होता है। इसके द्वारा शरीर को शक्ति और उर्जा प्राप्त होती है।एक ग्राम वसा में लगभग 9 कैलोरी ताप होता है। वसा, मक्खन, तेल, घी, मांस, अण्डा आदि में पाया जाता है।
कार्य व महत्व
1. उच्च कैलोरी प्रदान करने के कारण वसा उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है जिन्हें कार्य करते समय अधिक ऊर्जा नष्ट करनी पड़ती है।
2. यह भोजन बनाने में सहायक सिद्ध होती है।
3. यह भोजन को स्वादिष्ट बनाती है।
4. वसा से शरीर में ताप उत्पन्न होता है और यह ठण्ड से बचाती है।
5. शरीर में अधिक वसा इकट्ठा होना हानिकारक है। यह अतिरिक्त वसा शारीरिक अंगों की क्रियाओं में बाधा डालती है। अधिक वसा के सेवन से कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण हृदय रोग होता है। कार्बोहाईड्रेस : चावल, गेहूँ, आलू, शक्कर, फलों, दूध, मकई, गन्ना, केला, शलगम, बाजरा आदि में कार्बोहाईड्रेट्स पाया जाता है। कार्य व महत्व :
1. ये शरीर में ईंधन के रूप में जाने जाते हैं व ऊर्जा के प्रमुख साधन है।
2. कार्बोहाईड्रेट की कमी से शरीर का वजन कम जो जाता है।
3. यह सस्ता व सुपाच्य होता है।
4. शरीर के रखरखाव के लिए कार्बोहाईड्रेट्स आवश्यक है। प्रोटीन : दूध, मांस, मछली, अण्डे, अखरोट, फलियां, मटर, बादाम, मांस, मछली, गेहूं का छिलका आदि में प्रोटीन पाया जाता है। कार्य व महत्व :
1. प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं विकास में अपूर्व योगदान प्रदान करने वाला पोषक तत्व है।
2. प्रोटीन शरीर के प्रत्येक कोशों में प्रोटोप्लाज्म के रूप में उपस्थित होता है।
3. शरीर के तंतुओं में निरन्तर टूट फूट होती रहती है और प्रोटीन इनकी मरम्मत कर पुनः निर्माण करता है ।
4. सभी एन्जाइम प्रोटीन होते है और पाचक व उपाचयन क्रियाओं के आवश्यक प्रेरक है। खनिज लवण : कैल्शियम, मॅग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, गंधक, क्लोरीन, प्रमुख खनिज लवण है, इनकी मात्रा शरीर में पाये जाने वाले खनिज लवणों का 60 प्रतिशत से 80 प्रतिशत है। इनकी निश्चित मात्रा दैनिक आहार में नितांत आवश्यक है। कार्य व महत्व : 1. खनिज लवण अस्थियों, दांतों तथा मांसपेशियों का निर्माण करते है। 2. शरीर में अम्लों और क्षारों का संतुलन कायम रखते है। 3. पाचक अम्लों व रसों के उत्पादन में सहायता देते है। 4. रक्त जमाव निर्माण के लिए आवश्यक है। शरीर को निरोग बनाये रखने में सहायता प्रदान करते है। 5. विटामिन्स : विटामिन्स जीवन प्रदान करने वाले पदार्थ है। विटामिन प्रमुख रूप से छ: प्रकार के होते है। A, B, C, D, E तथा K
कार्य : 1. शरीर व रोगों से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न करना। 2. पाचक को सक्रिय रखने के लिये आवश्यक है। 3. स्नायु संस्थान को सक्रिय बनाते हैं। 4. शरीर का समुचित विकास करने में सहायक होता है।
जल : मनुष्य जल के बिना जीवित नहीं रह सकता यह सभी रूपों में सर्वोत्तम होता है।शरीर में 75 प्रतिशतजल ही रहता है। सामान्यतः व्यक्ति को प्रतिदिन 4 से 5 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। सभीपाचक रस जलीय होते हैं।
कार्य व महत्व :
1. यह शरीर से जहरीले पदार्थ और व्यर्थ सामग्री निकालने में सहायता करता है।
2. यह भोजन पचाने में सहायता करता है।
3. यह हड्डियों को शुष्क होने से बचाता है।
4. यह कोशिकाओं को नर्म तथा लचीली अवस्था में रखता है। यह रक्त संचरण में सहायता देता है।
5. यह शरीर में तापमान को नियमित करता है। यह शरीर को खनिज लवण प्रदान करता है।
पाठ्यगत प्रश्न :
6. विटामिन 'ए' की कमी से होने वाला रोग है :
अ) घेघा ब) रिकेट्स स) बेरी – बेरी द) रतौंधी
7. बेरी – बेरी रोग किसकी कमी से होता है :
अ) विटामिन 'ए' ब) विटामिन 'बी ' स) विटामिन 'सी' द) विटामिन 'डी'
8. शरीर में ताप उत्पन्न करता है :
अ) जल ब) विटामिन स) प्रोटीन द) वसा
9. जल का हमारे भोजन में क्या महत्व है?
10. वसा के स्त्रोत कौन कौन से है ?
कुपोषण जनित बीमारियों तथा उनको दूर करने के उपाय :-
कुपोषण : अपूर्ण पोषण व कुपोषण उस दशा का नाम है जब व्यक्ति को संतुलित भोजन नहीं मिलता एवं जिससे अनियमित जीवन व्यतीत करता है। यह अवस्था व्यक्ति के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसके मानसिक विकास को भी प्रभावित करती है। कुपोषण के कारण शरीर में विभिन्न के विकार उत्पन्न हो जाते है। इस प्रकार जो भोजन आवश्यक भोजन तत्वों के अनुरूप नहीं होता उसे कुपोषित भोजन कहते है। कुपोषण के कारण निम्न हो सकते है :-
1. घर तथा विद्यालय में शुद्ध वायु, प्रकाश, धूप, जल के न मिलने तथा गंदे वातावरण के कारण बालक कुपोषण से पीड़ित होते है।
2. उचित मात्रा में निद्रा व विश्राम नहीं मिलने से भी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हो जाते हैं।
3. कुपोषण का मुख्य कारण पौष्टिक तत्वों से युक्त भोजन का अभाव होता है। बालकों के भोजन में प्रायः प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, वसा, खनिज लवण, विटामिन आदि आवश्यक तत्वों में कमी रहती है।
4. भोजन में इन तत्वों के अनुचित मात्रा होने से भी कुपोषण होता है।
5. भोजन को उचित समय पर ग्रहण नहीं करने से भी कुपोषण होता है।
कुपोषण से होने वाली बीमारियां :
1. विटामिन 'ए' की कमी से बच्चों में रतौंधी की समस्या, (आँखों की रोशनी में कमी की समस्या) देखी जाती है।
2. खनिज लवणों के अभाव में अस्थियाँ व दांत अविकसित हो जाते है।
3. अपूर्ण पोषण की अवस्था में बालक के शरीर का विकास रुक जाता है एवं आयु के अनुसार बालक की ऊँचाई एवं भार में कमी होती है।
4. बालक जरा सा श्रम करने पर थकावट का अनुभव करने लगता है।
5. नींद न आने की बीमारी हो जाती है।
6. विटामिन 'डी' की कमी से हड्डियों में टेढ़ापन आ जाता है जिसे रिकेट्स रोग कहते है।
7. वसा की कमी से छात्र दिन प्रतिदिन दुर्बल होने लगता है, चेहरा चेतनहीन हो जाता है। त्वचा पीली व खुरदरी हो जाती है।
8. विभिन्न पोषक तत्वों की कमी से बच्चा संक्रामक रोगों से अधिक ग्रसित हो जाता है।
बच्चों में रक्त की कमी से एनीमिया हो जाती है।
9. बैठने और खड़े होने की मुद्रा बिगड़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में कई प्रकार के रोग हो जाते है और उचित विकास रूक जाता है।
10. कार्बोहाईड्रेट के अधिक प्रयोग से अपच, अतिसार और मधुमेह रोग हो जाते है।
11. विटामिन 'के' के अभाव में चोट लगने पर रक्त का थक्का न जमने से रक्तस्त्राव होता रहता है।
13. विटामिन 'ई' के अभाव में स्त्रियों में गर्भपात, बांझपन तथा पुरूषों में नपुंसकता आ जाती है।
कुपोषण या बीमारियों को दूर करने के उपाय
1. स्कूल व घर का वातावरण अधिक से अधिक साफ सुथरा होना चाहिये। रसोईघर, भोजन कक्ष व शौचालयों की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
2. स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में पोषक तत्वों का भी प्रबंध होना चाहिये।
3. प्रत्येक विद्यार्थी का वर्ष में एक बार वजन, लम्बाई का नाप, नेत्र, दांत आदि की जांच होना चाहिये।
4. स्कूल के समय में सामन्यतः सभी विषयों के अध्यापकों और विशेषकर स्वास्थ्य शिक्षक द्वारा सभी श्रेणियों के छात्रों को व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान प्रदान करने पर बल देना चाहिये।
5. शिक्षकों को बच्चों को पौष्टिक खाना खाने की सलाह देना चाहिये। शिक्षकों को विद्यालय में विद्यार्थियों को टिफिन में पौष्टिक भोजन लाने को प्रेरित करना चाहिये। उनको फास्टफूड खाने की कमियां बताना चाहिये।
6. व्यक्ति के दैनिक जीवन में मानसिक कार्य, शारीरिक क्रियाकलाप, विश्राम, नींद तथा मनोरंजन सभी का उचित स्थान होना चाहिए। केवल काम व केवल आराम घातक होता है।
2. यह भोजन बनाने में सहायक सिद्ध होती है।
3. यह भोजन को स्वादिष्ट बनाती है।
4. वसा से शरीर में ताप उत्पन्न होता है और यह ठण्ड से बचाती है।
5. शरीर में अधिक वसा इकट्ठा होना हानिकारक है। यह अतिरिक्त वसा शारीरिक अंगों की क्रियाओं में बाधा डालती है। अधिक वसा के सेवन से कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण हृदय रोग होता है। कार्बोहाईड्रेस : चावल, गेहूँ, आलू, शक्कर, फलों, दूध, मकई, गन्ना, केला, शलगम, बाजरा आदि में कार्बोहाईड्रेट्स पाया जाता है। कार्य व महत्व :
1. ये शरीर में ईंधन के रूप में जाने जाते हैं व ऊर्जा के प्रमुख साधन है।
2. कार्बोहाईड्रेट की कमी से शरीर का वजन कम जो जाता है।
3. यह सस्ता व सुपाच्य होता है।
4. शरीर के रखरखाव के लिए कार्बोहाईड्रेट्स आवश्यक है। प्रोटीन : दूध, मांस, मछली, अण्डे, अखरोट, फलियां, मटर, बादाम, मांस, मछली, गेहूं का छिलका आदि में प्रोटीन पाया जाता है। कार्य व महत्व :
1. प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं विकास में अपूर्व योगदान प्रदान करने वाला पोषक तत्व है।
2. प्रोटीन शरीर के प्रत्येक कोशों में प्रोटोप्लाज्म के रूप में उपस्थित होता है।
3. शरीर के तंतुओं में निरन्तर टूट फूट होती रहती है और प्रोटीन इनकी मरम्मत कर पुनः निर्माण करता है ।
4. सभी एन्जाइम प्रोटीन होते है और पाचक व उपाचयन क्रियाओं के आवश्यक प्रेरक है। खनिज लवण : कैल्शियम, मॅग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, गंधक, क्लोरीन, प्रमुख खनिज लवण है, इनकी मात्रा शरीर में पाये जाने वाले खनिज लवणों का 60 प्रतिशत से 80 प्रतिशत है। इनकी निश्चित मात्रा दैनिक आहार में नितांत आवश्यक है। कार्य व महत्व : 1. खनिज लवण अस्थियों, दांतों तथा मांसपेशियों का निर्माण करते है। 2. शरीर में अम्लों और क्षारों का संतुलन कायम रखते है। 3. पाचक अम्लों व रसों के उत्पादन में सहायता देते है। 4. रक्त जमाव निर्माण के लिए आवश्यक है। शरीर को निरोग बनाये रखने में सहायता प्रदान करते है। 5. विटामिन्स : विटामिन्स जीवन प्रदान करने वाले पदार्थ है। विटामिन प्रमुख रूप से छ: प्रकार के होते है। A, B, C, D, E तथा K
कार्य : 1. शरीर व रोगों से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न करना। 2. पाचक को सक्रिय रखने के लिये आवश्यक है। 3. स्नायु संस्थान को सक्रिय बनाते हैं। 4. शरीर का समुचित विकास करने में सहायक होता है।
जल : मनुष्य जल के बिना जीवित नहीं रह सकता यह सभी रूपों में सर्वोत्तम होता है।शरीर में 75 प्रतिशतजल ही रहता है। सामान्यतः व्यक्ति को प्रतिदिन 4 से 5 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। सभीपाचक रस जलीय होते हैं।
कार्य व महत्व :
1. यह शरीर से जहरीले पदार्थ और व्यर्थ सामग्री निकालने में सहायता करता है।
2. यह भोजन पचाने में सहायता करता है।
3. यह हड्डियों को शुष्क होने से बचाता है।
4. यह कोशिकाओं को नर्म तथा लचीली अवस्था में रखता है। यह रक्त संचरण में सहायता देता है।
5. यह शरीर में तापमान को नियमित करता है। यह शरीर को खनिज लवण प्रदान करता है।
पाठ्यगत प्रश्न :
6. विटामिन 'ए' की कमी से होने वाला रोग है :
अ) घेघा ब) रिकेट्स स) बेरी – बेरी द) रतौंधी
7. बेरी – बेरी रोग किसकी कमी से होता है :
अ) विटामिन 'ए' ब) विटामिन 'बी ' स) विटामिन 'सी' द) विटामिन 'डी'
8. शरीर में ताप उत्पन्न करता है :
अ) जल ब) विटामिन स) प्रोटीन द) वसा
9. जल का हमारे भोजन में क्या महत्व है?
10. वसा के स्त्रोत कौन कौन से है ?
कुपोषण जनित बीमारियों तथा उनको दूर करने के उपाय :-
कुपोषण : अपूर्ण पोषण व कुपोषण उस दशा का नाम है जब व्यक्ति को संतुलित भोजन नहीं मिलता एवं जिससे अनियमित जीवन व्यतीत करता है। यह अवस्था व्यक्ति के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसके मानसिक विकास को भी प्रभावित करती है। कुपोषण के कारण शरीर में विभिन्न के विकार उत्पन्न हो जाते है। इस प्रकार जो भोजन आवश्यक भोजन तत्वों के अनुरूप नहीं होता उसे कुपोषित भोजन कहते है। कुपोषण के कारण निम्न हो सकते है :-
1. घर तथा विद्यालय में शुद्ध वायु, प्रकाश, धूप, जल के न मिलने तथा गंदे वातावरण के कारण बालक कुपोषण से पीड़ित होते है।
2. उचित मात्रा में निद्रा व विश्राम नहीं मिलने से भी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हो जाते हैं।
3. कुपोषण का मुख्य कारण पौष्टिक तत्वों से युक्त भोजन का अभाव होता है। बालकों के भोजन में प्रायः प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, वसा, खनिज लवण, विटामिन आदि आवश्यक तत्वों में कमी रहती है।
4. भोजन में इन तत्वों के अनुचित मात्रा होने से भी कुपोषण होता है।
5. भोजन को उचित समय पर ग्रहण नहीं करने से भी कुपोषण होता है।
कुपोषण से होने वाली बीमारियां :
1. विटामिन 'ए' की कमी से बच्चों में रतौंधी की समस्या, (आँखों की रोशनी में कमी की समस्या) देखी जाती है।
2. खनिज लवणों के अभाव में अस्थियाँ व दांत अविकसित हो जाते है।
3. अपूर्ण पोषण की अवस्था में बालक के शरीर का विकास रुक जाता है एवं आयु के अनुसार बालक की ऊँचाई एवं भार में कमी होती है।
4. बालक जरा सा श्रम करने पर थकावट का अनुभव करने लगता है।
5. नींद न आने की बीमारी हो जाती है।
6. विटामिन 'डी' की कमी से हड्डियों में टेढ़ापन आ जाता है जिसे रिकेट्स रोग कहते है।
7. वसा की कमी से छात्र दिन प्रतिदिन दुर्बल होने लगता है, चेहरा चेतनहीन हो जाता है। त्वचा पीली व खुरदरी हो जाती है।
8. विभिन्न पोषक तत्वों की कमी से बच्चा संक्रामक रोगों से अधिक ग्रसित हो जाता है।
बच्चों में रक्त की कमी से एनीमिया हो जाती है।
9. बैठने और खड़े होने की मुद्रा बिगड़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में कई प्रकार के रोग हो जाते है और उचित विकास रूक जाता है।
10. कार्बोहाईड्रेट के अधिक प्रयोग से अपच, अतिसार और मधुमेह रोग हो जाते है।
11. विटामिन 'के' के अभाव में चोट लगने पर रक्त का थक्का न जमने से रक्तस्त्राव होता रहता है।
13. विटामिन 'ई' के अभाव में स्त्रियों में गर्भपात, बांझपन तथा पुरूषों में नपुंसकता आ जाती है।
कुपोषण या बीमारियों को दूर करने के उपाय
1. स्कूल व घर का वातावरण अधिक से अधिक साफ सुथरा होना चाहिये। रसोईघर, भोजन कक्ष व शौचालयों की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
2. स्कूलों में मध्यान्ह भोजन में पोषक तत्वों का भी प्रबंध होना चाहिये।
3. प्रत्येक विद्यार्थी का वर्ष में एक बार वजन, लम्बाई का नाप, नेत्र, दांत आदि की जांच होना चाहिये।
4. स्कूल के समय में सामन्यतः सभी विषयों के अध्यापकों और विशेषकर स्वास्थ्य शिक्षक द्वारा सभी श्रेणियों के छात्रों को व्यक्तिगत स्वच्छता का ज्ञान प्रदान करने पर बल देना चाहिये।
5. शिक्षकों को बच्चों को पौष्टिक खाना खाने की सलाह देना चाहिये। शिक्षकों को विद्यालय में विद्यार्थियों को टिफिन में पौष्टिक भोजन लाने को प्रेरित करना चाहिये। उनको फास्टफूड खाने की कमियां बताना चाहिये।
6. व्यक्ति के दैनिक जीवन में मानसिक कार्य, शारीरिक क्रियाकलाप, विश्राम, नींद तथा मनोरंजन सभी का उचित स्थान होना चाहिए। केवल काम व केवल आराम घातक होता है।
7. बच्चों को खेलों का महत्व समझाना चाहिये।
भोजन पकाने की विधियां एवं उनका पोषक तत्वों पर पड़ने वाला प्रभाव - भोजन पकाने की विधियां – भोजन पकाने की विधियां पीढ़ी दर पीढ़ी सुधरती जाती है। जैसे - जैसे मानव जाति प्रगति करती गई तथा उनके स्वाद में सुधार होता गया, भोज्य पदार्थों के पकाने की अनेकानेक विधियां प्रचलित होती गई। भोजन को पकाने के प्रमुख निम्नलिखित तीन उद्देश्य हैं : 1. भोज्य सामग्री को सुपाच्य बनाने के लिए भोजन को पकाते हैं। 2. पकाने में भोज्य सामग्री स्वाद, सुगंध एवं बाहृय स्वरूप की दृष्टि से आकर्षक बना दी जाती है। 3. पकाने में विभिन्न प्रकार का ताप प्रयुक्त किया जाता है। ताप से वस्तुओं को सड़ाने वाले व विषयुक्त कीटाणु नष्ट हो जाते है। पाक क्रिया से भोज्य पदार्थो में विशेषकर दूध, मांस, मछली में उपस्थित कीटाणु व कृमि नष्ट हो जाते है।
पकाने के माध्यम की दृष्टि से पाक विधियों को निम्न चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है 1. जल द्वारा 2. वाष्प द्वारा 3. चिकनाई द्वारा 4. वायु द्वारा
1. जल द्वारा (उबालना) – यह पकाने की सरल विधि है, इसमें पकायी जाने वाली वस्तु को किसी भगौने या बर्तन में जल के साथ डाल दिया जाता है। तत्पश्चात उसे चूल्हे पर रखकर तब तक उबाला जाता है जब तक कि वह पर्याप्त मुलायम न हो जाए।
2. वाष्प द्वारा - भोज्य पदार्थ वाष्प के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संपर्क में लाकर पकाया जाता हैं प्रत्यक्ष विधि के अंतर्गत कढ़ाही या भगौने में उबलते हुये जल में निकली हुई वाष्प द्वारा वस्तु को पकाया जाता है। अप्रत्यक्ष विधि में उबलते हुये जल के ऊपर दो प्लेटों के मध्य पकने की क्रिया सम्पन्न होती है। वाष्प के दबाव से भोज्य पदार्थो को पकाया जाता है, इस सिद्धांत का उपयोग प्रेशर कुकर में किया जाता है।
3. चिकनाई द्वारा - इस विधि द्वारा भोज्य वस्तु को पकाने का प्रमुख माध्यम तेल, घी तथा अन्य स्निग्ध पदार्थ होते है। इस विधि से भोज्य पदार्थ को हल्का धुंआ निकलते हुये गर्म घी या तेल में पकाया जाता है। यह सर्वाधिक शीघ्रतापूर्वक भोजन पकाने की उपयुक्त विधि है। गर्म घी या तेल में ज्यों ही भोज्य पदार्थ डाला जाता है, गर्मी के कारण ऊपरी परत कठोर हो जाती है। परिणामतः उसके अन्दर के पोषक तत्व बाहर नहीं निकल पाते और भोजन स्वादिष्ट बनता है परन्तु गरिष्ट होने के कारण शीघ्रता से नहीं पचता।
4. वायु द्वारा – भूनना, सेंकना तथा भट्टी या तंदूर में पकाते समय वायु भोज्य पदार्थ को पकाने का कार्य करती है। - भूनना - इस विधि में पकायी जाने वाली सामग्री राख या बालू के माध्यम से ताप के संपर्क में आती है। - सेकना - सेंकना, भूनना से अलग है भूनने में भोज्य सामग्री आग के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आती है जबकि सेंकने में प्रत्यक्ष रूप से अंगारों के ऊपर रखकर सेंका जाता है। बैंगन, आलू इसी विधि से सेंकते है। - तंदूर या भट्टी में पकाना - इस विधि में भोज्य पदार्थ को भट्टी के अंदर रख दिया जाता है, शुष्क उष्णता के माध्यम से भोज्य सामग्री पकायी जाती है। केक आदि इसी विधि से पकाये जाते है। पोषक तत्वों पर उष्णता का प्रभाव : पकाने की प्रत्येक विधि में ताप का प्रयोग किसी न किसी रूप में अवश्य ही किया जाता है। प्रत्येक वस्तु की ताप ग्राहता पृथक-पृथक होती है और उनके आतंरिक गुणों पर ताप का पृथक-पृथक प्रभाव पड़ता है। - शर्करा पर उष्णता का प्रभाव : गर्म करने पर शक्कर तरल पदार्थ के रूप में परिवर्तित हो जाती है। अधिक गर्म करने पर इसका रंग बदल जाता है तथा यह भूरे रंग की शक्कर बन जाती है और अधिक गर्म होने पर जलकर राख का रूप ग्रहण कर लेती है। - प्रोटीन पर उष्णता का प्रभाव - प्रोटीन पकने पर जम जाता है, और कड़ा हो जाता है। अण्डा का प्रोटीन पकने पर जम जाता है। जब डबल रोटी को पकाते हैं तो गेहूं का प्रोटीन निकलकर डबल रोटी की ऊपरी सतह पर कुरकुरी तह के रूप में जम जाता है। दालों को पकाने पर प्रोटीन सुपाच्य हो जाता है और उसका पोषक मूल्य बन जाता है। - गोश्त पर पकाने का प्रभाव - जल या वाष्प के माध्यम से गोश्त को पकाये जाने पर उष्णता के परिणाम स्वरूप गोश्त के ऊपरी सहत पर प्रोटीन जम कर कड़ी परत बना लेता है। जिसके कारण गोश्त के अन्दर गर्मी पहुंचने की प्रक्रिया मंद हो जाती है। गोश्त गर्मी का कुचालक है। गोश्त के रसों के द्वारा गर्मी का संवहन नहीं होता है इसी कारण गोश्त कई घण्टों में पकता है। उबालने पर गोश्त का हिमोग्लोबिन नष्ट हो जाता है। इस कारण उसका रंग लाल से भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है। भूनना गोश्त पकाने की उत्तम विधि है। भूनते समय पेशीय तंतुओं के प्रोटीन और संयोजक ऊतक संकुचित हो जाते है और गोश्त की सतह पर इससे रस निकलने लगते है, जो वाष्प बन कर उड़ जाते हैं और गोश्त की सतह पर केवल खनिज एवं सार तत्व जमें रहते हैं जिस कारण गोश्त के स्वाद में बृद्धि हो जाती है। - कार्बोहाईड्रेट्स पर पकाने का प्रयास – कच्चे कार्बोज की अपेक्षा पका कार्बोज पदार्थ शीघ्र पच जाता है। कार्बोज पकाने से स्टार्च के कणों को चारों ओर का आवरण मुलायम होकर हट जाता है जिससे स्टार्च कण पानी शोषित कर फूल जाता है और मुलायम हो जाता है और भोजन सुपाच्य हो जाता है। - वसा पकाने का प्रभाव - वसा पर तेज ताप का प्रभाव पड़ता। इससे वसा के वसीय अम्ल पानी में घुलकर बाहर निकल जाते है। - खनिज लवण पकाने का प्रभाव - खनिज लवण पानी में घुलनशील होने के कारण पानी में घुलकर बाहर निकल जाते है। - सब्जियों को पकाने का प्रभाव – सब्जी पकाने का मुख्य अभिप्राय हैं, सेल्यूलोज को मुलायम करना तथा श्वेतसार के कणों को फुलाकर जैलेटिन के रूप में परिवर्तित करना। ऐसा कहा जाता है कि सब्जी को पकाने पर उसके लवणांश नष्ट हो जाते है पर सौभाग्यवश सब्जियों के कैल्शियम और लोहांश पर उष्णता का प्रभाव बहुत कम पड़ता है। कैरोटिन भी पकाने में नष्ट नहीं होता। सब्जी के हरे रंग को बनाए रखने के लिए प्रयुक्त सोडा बाई कार्बोनेट विटामिन को नष्ट कर देता है इसलिए हरी सब्जी में नहीं प्रयोग करना चाहिए। - विटामिन 'सी' अधिकांशतः जल में घुलनशील है इसलिए भोज्य पदार्थों को धोने से ताप के कारण नष्ट हो जाता है। इसके लिए आवश्यक है कि ना ही इन्हें ज्यादा भिगोया जावे और ना ही अधिक पकाया जाये। आलू को बिना छीले उबालना चाहिये क्योंकि छिलके, के कारण एस्काटिक एसिड नष्ट नहीं होता है। वाष्प द्वारा सब्जियों को पकाना उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह सब्जी पकाने की मंद क्रिया है और इससे एस्काटिक एसिड नष्ट हो जाता है। विटामिन 'बी' भी जल में घुलनशील है इसकी आधी मात्रा पकाये जाते समय ही नष्ट हो जाती है। अधिक ताप पर भोजन पकाने पर और अधिक मात्रा नष्ट हो जाती है । - फलों पर पकाने का प्रभाव - मीठे फलों को कच्चा खाना ज्यादा लाभदायक है। यदि फलों को शक्कर के साथ पकाया जाये तो लवण विटामिन आदि पकाये जाने वाले जल में मिश्रित हो जाते है तथा चीनी का कुछ अंश फल द्वारा शोषित कर लिया जाता है परंतु हम पकाने में जल का प्रयोग करते हैं इसलिए इस क्रिया में ज्यादा हानि नही होती है। - मछली पर पकाने का प्रभाव – मछली पकाने की प्रक्रिया में जो परिवर्तन होते हैं वह गोश्त के समान होते है।
इकाई सारांश : ० आहार को शरीर में आत्मसात होकर शक्ति का स्त्रोत बनाना पोषण कहलाता है। ० पोषक तत्व छह है : प्रोटीन, कार्बोहाड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, लवण और जल ० पोषक तत्व शरीर निर्माण, उतकों की मरम्मत करने में, शरीर की ऊर्जा प्रदान करने में तथा शरीर को रोगों से लड़ने में मदद करते है।
० संतुलित आहार वह भोजन होता है जिसमें भोजन के समस्त पोष्टिक तत्व व्यक्ति विशेष के शरीर की मांग के अनुसार उचित मात्रा में उचित साधनों से प्राप्त हों।
० कुपोषण वह स्थिति है जहाँ कुछ पौष्टिक तत्व कम तो कुछ अधिक होते है।
० भोजन जल द्वारा, वाष्प द्वारा, चिकनाई द्वारा और वायु द्वारा पकाया जाता है।
० खनिज लवण, विटामिन बी, विटामिन सी, पानी में घुलनशील होने से खाद्य पदार्थों के धोने से नष्ट हो जाते है। काबॉहाइड्रेड पककर सुपाच्य हो जाता है।
आत्म परीक्षण हेतु प्रश्न -
प्र. 1 निम्न शब्दों को संक्षेप में समझाये :
अ) पोषण
ब) संतुलित आहार
स) कुपोषण
प्र. 2 पोषण का अर्थ एवं महत्व समझाये ।
प्र. 3 भोजन से प्राप्त होने वाले प्रमुख पोषक तत्वों का वर्णन कीजिए।
प्र. 4 कुपोषित बालक के लक्षण बताइये।
5 भोजन पकाने पर पोष्टिक तत्वों पर पड़ने वाले प्रभावों को समझाये ।
भोजन पकाने की विधियां एवं उनका पोषक तत्वों पर पड़ने वाला प्रभाव - भोजन पकाने की विधियां – भोजन पकाने की विधियां पीढ़ी दर पीढ़ी सुधरती जाती है। जैसे - जैसे मानव जाति प्रगति करती गई तथा उनके स्वाद में सुधार होता गया, भोज्य पदार्थों के पकाने की अनेकानेक विधियां प्रचलित होती गई। भोजन को पकाने के प्रमुख निम्नलिखित तीन उद्देश्य हैं : 1. भोज्य सामग्री को सुपाच्य बनाने के लिए भोजन को पकाते हैं। 2. पकाने में भोज्य सामग्री स्वाद, सुगंध एवं बाहृय स्वरूप की दृष्टि से आकर्षक बना दी जाती है। 3. पकाने में विभिन्न प्रकार का ताप प्रयुक्त किया जाता है। ताप से वस्तुओं को सड़ाने वाले व विषयुक्त कीटाणु नष्ट हो जाते है। पाक क्रिया से भोज्य पदार्थो में विशेषकर दूध, मांस, मछली में उपस्थित कीटाणु व कृमि नष्ट हो जाते है।
पकाने के माध्यम की दृष्टि से पाक विधियों को निम्न चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है 1. जल द्वारा 2. वाष्प द्वारा 3. चिकनाई द्वारा 4. वायु द्वारा
1. जल द्वारा (उबालना) – यह पकाने की सरल विधि है, इसमें पकायी जाने वाली वस्तु को किसी भगौने या बर्तन में जल के साथ डाल दिया जाता है। तत्पश्चात उसे चूल्हे पर रखकर तब तक उबाला जाता है जब तक कि वह पर्याप्त मुलायम न हो जाए।
2. वाष्प द्वारा - भोज्य पदार्थ वाष्प के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संपर्क में लाकर पकाया जाता हैं प्रत्यक्ष विधि के अंतर्गत कढ़ाही या भगौने में उबलते हुये जल में निकली हुई वाष्प द्वारा वस्तु को पकाया जाता है। अप्रत्यक्ष विधि में उबलते हुये जल के ऊपर दो प्लेटों के मध्य पकने की क्रिया सम्पन्न होती है। वाष्प के दबाव से भोज्य पदार्थो को पकाया जाता है, इस सिद्धांत का उपयोग प्रेशर कुकर में किया जाता है।
3. चिकनाई द्वारा - इस विधि द्वारा भोज्य वस्तु को पकाने का प्रमुख माध्यम तेल, घी तथा अन्य स्निग्ध पदार्थ होते है। इस विधि से भोज्य पदार्थ को हल्का धुंआ निकलते हुये गर्म घी या तेल में पकाया जाता है। यह सर्वाधिक शीघ्रतापूर्वक भोजन पकाने की उपयुक्त विधि है। गर्म घी या तेल में ज्यों ही भोज्य पदार्थ डाला जाता है, गर्मी के कारण ऊपरी परत कठोर हो जाती है। परिणामतः उसके अन्दर के पोषक तत्व बाहर नहीं निकल पाते और भोजन स्वादिष्ट बनता है परन्तु गरिष्ट होने के कारण शीघ्रता से नहीं पचता।
4. वायु द्वारा – भूनना, सेंकना तथा भट्टी या तंदूर में पकाते समय वायु भोज्य पदार्थ को पकाने का कार्य करती है। - भूनना - इस विधि में पकायी जाने वाली सामग्री राख या बालू के माध्यम से ताप के संपर्क में आती है। - सेकना - सेंकना, भूनना से अलग है भूनने में भोज्य सामग्री आग के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आती है जबकि सेंकने में प्रत्यक्ष रूप से अंगारों के ऊपर रखकर सेंका जाता है। बैंगन, आलू इसी विधि से सेंकते है। - तंदूर या भट्टी में पकाना - इस विधि में भोज्य पदार्थ को भट्टी के अंदर रख दिया जाता है, शुष्क उष्णता के माध्यम से भोज्य सामग्री पकायी जाती है। केक आदि इसी विधि से पकाये जाते है। पोषक तत्वों पर उष्णता का प्रभाव : पकाने की प्रत्येक विधि में ताप का प्रयोग किसी न किसी रूप में अवश्य ही किया जाता है। प्रत्येक वस्तु की ताप ग्राहता पृथक-पृथक होती है और उनके आतंरिक गुणों पर ताप का पृथक-पृथक प्रभाव पड़ता है। - शर्करा पर उष्णता का प्रभाव : गर्म करने पर शक्कर तरल पदार्थ के रूप में परिवर्तित हो जाती है। अधिक गर्म करने पर इसका रंग बदल जाता है तथा यह भूरे रंग की शक्कर बन जाती है और अधिक गर्म होने पर जलकर राख का रूप ग्रहण कर लेती है। - प्रोटीन पर उष्णता का प्रभाव - प्रोटीन पकने पर जम जाता है, और कड़ा हो जाता है। अण्डा का प्रोटीन पकने पर जम जाता है। जब डबल रोटी को पकाते हैं तो गेहूं का प्रोटीन निकलकर डबल रोटी की ऊपरी सतह पर कुरकुरी तह के रूप में जम जाता है। दालों को पकाने पर प्रोटीन सुपाच्य हो जाता है और उसका पोषक मूल्य बन जाता है। - गोश्त पर पकाने का प्रभाव - जल या वाष्प के माध्यम से गोश्त को पकाये जाने पर उष्णता के परिणाम स्वरूप गोश्त के ऊपरी सहत पर प्रोटीन जम कर कड़ी परत बना लेता है। जिसके कारण गोश्त के अन्दर गर्मी पहुंचने की प्रक्रिया मंद हो जाती है। गोश्त गर्मी का कुचालक है। गोश्त के रसों के द्वारा गर्मी का संवहन नहीं होता है इसी कारण गोश्त कई घण्टों में पकता है। उबालने पर गोश्त का हिमोग्लोबिन नष्ट हो जाता है। इस कारण उसका रंग लाल से भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है। भूनना गोश्त पकाने की उत्तम विधि है। भूनते समय पेशीय तंतुओं के प्रोटीन और संयोजक ऊतक संकुचित हो जाते है और गोश्त की सतह पर इससे रस निकलने लगते है, जो वाष्प बन कर उड़ जाते हैं और गोश्त की सतह पर केवल खनिज एवं सार तत्व जमें रहते हैं जिस कारण गोश्त के स्वाद में बृद्धि हो जाती है। - कार्बोहाईड्रेट्स पर पकाने का प्रयास – कच्चे कार्बोज की अपेक्षा पका कार्बोज पदार्थ शीघ्र पच जाता है। कार्बोज पकाने से स्टार्च के कणों को चारों ओर का आवरण मुलायम होकर हट जाता है जिससे स्टार्च कण पानी शोषित कर फूल जाता है और मुलायम हो जाता है और भोजन सुपाच्य हो जाता है। - वसा पकाने का प्रभाव - वसा पर तेज ताप का प्रभाव पड़ता। इससे वसा के वसीय अम्ल पानी में घुलकर बाहर निकल जाते है। - खनिज लवण पकाने का प्रभाव - खनिज लवण पानी में घुलनशील होने के कारण पानी में घुलकर बाहर निकल जाते है। - सब्जियों को पकाने का प्रभाव – सब्जी पकाने का मुख्य अभिप्राय हैं, सेल्यूलोज को मुलायम करना तथा श्वेतसार के कणों को फुलाकर जैलेटिन के रूप में परिवर्तित करना। ऐसा कहा जाता है कि सब्जी को पकाने पर उसके लवणांश नष्ट हो जाते है पर सौभाग्यवश सब्जियों के कैल्शियम और लोहांश पर उष्णता का प्रभाव बहुत कम पड़ता है। कैरोटिन भी पकाने में नष्ट नहीं होता। सब्जी के हरे रंग को बनाए रखने के लिए प्रयुक्त सोडा बाई कार्बोनेट विटामिन को नष्ट कर देता है इसलिए हरी सब्जी में नहीं प्रयोग करना चाहिए। - विटामिन 'सी' अधिकांशतः जल में घुलनशील है इसलिए भोज्य पदार्थों को धोने से ताप के कारण नष्ट हो जाता है। इसके लिए आवश्यक है कि ना ही इन्हें ज्यादा भिगोया जावे और ना ही अधिक पकाया जाये। आलू को बिना छीले उबालना चाहिये क्योंकि छिलके, के कारण एस्काटिक एसिड नष्ट नहीं होता है। वाष्प द्वारा सब्जियों को पकाना उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह सब्जी पकाने की मंद क्रिया है और इससे एस्काटिक एसिड नष्ट हो जाता है। विटामिन 'बी' भी जल में घुलनशील है इसकी आधी मात्रा पकाये जाते समय ही नष्ट हो जाती है। अधिक ताप पर भोजन पकाने पर और अधिक मात्रा नष्ट हो जाती है । - फलों पर पकाने का प्रभाव - मीठे फलों को कच्चा खाना ज्यादा लाभदायक है। यदि फलों को शक्कर के साथ पकाया जाये तो लवण विटामिन आदि पकाये जाने वाले जल में मिश्रित हो जाते है तथा चीनी का कुछ अंश फल द्वारा शोषित कर लिया जाता है परंतु हम पकाने में जल का प्रयोग करते हैं इसलिए इस क्रिया में ज्यादा हानि नही होती है। - मछली पर पकाने का प्रभाव – मछली पकाने की प्रक्रिया में जो परिवर्तन होते हैं वह गोश्त के समान होते है।
इकाई सारांश : ० आहार को शरीर में आत्मसात होकर शक्ति का स्त्रोत बनाना पोषण कहलाता है। ० पोषक तत्व छह है : प्रोटीन, कार्बोहाड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, लवण और जल ० पोषक तत्व शरीर निर्माण, उतकों की मरम्मत करने में, शरीर की ऊर्जा प्रदान करने में तथा शरीर को रोगों से लड़ने में मदद करते है।
० संतुलित आहार वह भोजन होता है जिसमें भोजन के समस्त पोष्टिक तत्व व्यक्ति विशेष के शरीर की मांग के अनुसार उचित मात्रा में उचित साधनों से प्राप्त हों।
० कुपोषण वह स्थिति है जहाँ कुछ पौष्टिक तत्व कम तो कुछ अधिक होते है।
० भोजन जल द्वारा, वाष्प द्वारा, चिकनाई द्वारा और वायु द्वारा पकाया जाता है।
० खनिज लवण, विटामिन बी, विटामिन सी, पानी में घुलनशील होने से खाद्य पदार्थों के धोने से नष्ट हो जाते है। काबॉहाइड्रेड पककर सुपाच्य हो जाता है।
आत्म परीक्षण हेतु प्रश्न -
प्र. 1 निम्न शब्दों को संक्षेप में समझाये :
अ) पोषण
ब) संतुलित आहार
स) कुपोषण
प्र. 2 पोषण का अर्थ एवं महत्व समझाये ।
प्र. 3 भोजन से प्राप्त होने वाले प्रमुख पोषक तत्वों का वर्णन कीजिए।
प्र. 4 कुपोषित बालक के लक्षण बताइये।
5 भोजन पकाने पर पोष्टिक तत्वों पर पड़ने वाले प्रभावों को समझाये ।