विश्वं वेवेष्टि व्याप्नोति इति विष्णुः - करके ये वाला एक विष्णु। ये विष्लृ व्याप्तौ धातु औणादिक नु प्रत्यय से बना है। जो सब जगह व्याप्त है वो विष्णु। इसे अन्तर्यामी भी कहते हैं।
यद्वा विशति देहिमात्रे (अहम् आत्मात्मनां धातः) - वाला एक विष्णु।
जो सबके आत्मा के अन्दर वास करे वो विष्णु। इसे परमात्मा कहते।
विष्णाति विप्रयुनक्ति संसाराद् भक्तान् इति विष्णुः - ये वाला एक विष्णु। यानि जो संसार से भक्तों को मुक्त करे अथवा वेवेष्टि व्यापयति (फैलाता है)
स्वरूपानन्दं भक्तहृदयेषु इति विष्णुः अन्तर्भावितण्यर्थः। - जो भक्तों में आनन्द फैलाए।
लेकिन सबसे ज्यादा मजा इसमें है =
विषु सेचने वेषति सिञ्चतीति विष्णुः। स्वस्यानान्दरूपत्वाद् भक्तान् स्वभजनानन्देन सिञ्चतीति विष्णुः
यानि जो अपने स्वरूपानन्द से सबकुछ सींच दे वो विष्णु।
ऐसे व्याकरण से एक विष्णु के भिन्न अर्थ रूप और भिन्न रूप समझ सकते हैं।।कितनी विष्णु (व्यापक) हमारी संस्कृत भाषा है देखो।
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