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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

शिक्षक का कर्तव्य


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इस नाते उनके लिए कुछ ऐसे कर्तव्य निर्धारित हैं जिसका पालन करना अति आवश्यक है। शिक्षक/गुरु ईश्वर का दूसरा रूप माना गया है,वैदिक काल में विद्यार्थी गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते थे । वे सभी प्रकार से सफल होकर ही तथा गुरू दक्षिणा देकर गुरुकुल से लौटते थे उस समय विद्यार्थी वेद, पुराण और शास्त्र के अध्‍ययन के साथ मानव मूल्य के ज्ञान से परिपक्व हो जाते थे। लेकिन आज स्थिति कुछ अलग है, आज की शिक्षा प्रणाली में बच्चे गुरुकुल में शिक्षा अध्ययन न कर प्राथमिक, माध्यमिक, इन्टर कालेज और डिग्री कालेजों मे पढ़ने जाते है। शिक्षक का उत्तरदायित्व बनता है कि वे अपने विद्यार्थियों को उचित शिक्षा, मार्गदर्शन, प्रेरणा, सहनशीलता, व्यवहार में परिवर्तन और इससे कही अधिक अच्छा नागरिक बनाये उनके उज्ज्वल भविष्य मे अपना योगदान दे ।

एक आदर्श शिक्षक अच्छे और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण होता है। उन्हे अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए ।जो शिक्षक समय का पालन करता है और योजना बनाकर विषय के अनुसार ज्ञान प्रदान करता है वही सही गुरु कहलाता है। विद्यार्थी उसे अत्यधिक पंसद करते है, समय बड़ा बलवान होता है।संसार में सबकुछ खो जाने के बाद लौटाया जा सकता है परन्तु समय जा कर पुनः वापस नहीं आता । शिक्षक को समय का पालन करना चाहिए ,समय अनुसार अपना पाठ्यक्रम पूर्ण करवाना चाहिए । अगर विद्यार्थी जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ में बीत जाए तो जीवन पर्यन्त पछताना पड़ सकता है।

समय अनुकूल हो तो कम सामर्थ्य मे भी बड़ा काम हो जाता है प्रतिकूल हो तो अथाह शक्ति भी व्यर्थ है अतः समय का सदुपयोग ही हमे कब जीवन में सफल बना दे ये हम महसूस भी नहीं कर पायेंगे कभी अर्जुन के बारे मे प्रसंग है. . .

"समय-समय की बात है समय होत बलवान भीलन लूटी गोपिका बेई अर्जुन बेई बाण "


 एक आदर्श गुरु में नम्रता और श्रद्धा होनी चाहिए ।  बाबा कबीर दास कहते है ...
" ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय औरन को शीतल करि आपहु शीतल होय।"

एक शिक्षक को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे विद्यार्थी उनसे प्यार करे,उन्हे अपनी भावनाओं और मन की इच्छाओं को व्यक्त करने में कोई झिझक न हो । मृदुभाषी से हम संसार को जीत सकते हैं परंतु क्रोध, अंहकार, लोभ, मद से हमारी हार होती है । शिक्षक अपनी वाणी से विद्यार्थी  का मन जीत ले तो विद्यार्थी  उन के हो जाते है। शिक्षक में धैर्य और सहनशीलता होनी चाहिए जिससे विद्यार्थी परन्तु आसपास के लोग भी प्रशंसा करे तथा आपके व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित हो।

शिक्षक को बच्चों को स्वास्थ्य की बातें सिखानी चाहिए । खेल-कूद करने से बच्चे स्वस्थ रहते हैं। प्रतिदिन खेल-कूद, व्यायाम और संतुलित भोजन करने से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है ।संतुलित भोजन खासकर शाकाहारी भोजन , दूध,फल और हरी सब्जियों के प्रयोग से मन मस्तिष्क पर अच्छा असर होता है ,मस्तिष्क शान्त व पवित्र होता है, मन की चंचलता नहीं होती । संतुलित भोजन शरीर में स्फूर्ति लाता है । प्रतिदिन व्यायाम करने से शरीर में ताजगी आती है,शिक्षक विद्यार्थियों को आन्तरिक और वाह्य सफाई से अवगत कराएँ, सुबह खाली पेट एक गिलास पानी पिए और दिन भर पर्याप्त मात्रा मे पानी पीते रहे थकावट दूर होती रहेगी,प्रातःकाल स्नान, इष्ट का ध्यान, साफ कपडे जूते पहनकर विद्यालय आने से अच्छे  विचारों का सृजन होगा ज्ञान के क्षेत्र मे लाभकारी होगा


विद्यार्थियों को धर्म, संस्कृति, सभ्यता, संगीत, संख्‍या, हवन, धार्मिक त्यौहार से अवगत कराए,राष्ट्रीय गीत , देशभक्ति के संदेश देती कहानियाँ सुना कर प्रोत्साहन करे ताकि विद्यार्थियों का नैतिक उत्थान हो एक कुशल राष्ट्र के निर्माण मे सहायक सिद्ध हो ।


शिक्षक अपने संयम, सदाचार, आचरण ,विवेक, सहनशीलता से विद्यार्थियों को महान बनाते हैं।मनुष्य का जीवन बार बार नहीं मिलता इसलिए मनुष्य अपने कर्तव्य से मुंह नहीं फेर सकता अध्यापन एक उत्तम कार्य है अध्यापन कार्य से हमे एक सम्मानजनक जीवन यापन का अवसर मिलता है और हमारा जीवन सफल हो जाता है ।

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