भूमि की उत्पादकता से सिंचाई जल उत्पादकता की तरफ जाने की राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए ।।

आर्थिक समीक्षा 2018-19 में कहा गया है कि भूमि की उत्पादकता से सिंचाई जल उत्पादकता की तरफ जाने की राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। नीतियों में सुधार करते हुए किसानों को इसके लिए संवेदनशील बनाना होगा और जल प्रयोग में सुधार राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। एशियन वाटर डेवलेपमेंट आउटलुक 2016 के मुताबिक करीब 89 फीसदी भूजल का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है। सिंचाई के मौजूदा चलन की वजह से भूजल निरंतर नीचे की तरफ खिसकता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है। केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज आर्थिक समीक्षा 2018-19 संसद में पेश की।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सिंचाई के लिए 89 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल किया जाता है। देश में धान और गन्ना उपलब्ध जल का 60 प्रतिशत से अधिक का जल ले लेते हैं जिससे अन्य फसलों के लिए कम पानी उपलब्ध रहता है।

पिछले कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं उभर कर आई हैं। कृषि भूमि के बंटवारे और जल संसाधनों के कम होने से संकट बढ़ा है। जबकि अपनाए गए नए प्रभावी संसाधनों और जलवायु के अनुकूल सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कृषि क्षेत्र स्मार्ट हुआ है। कृषि जोतों के छोटे की वजह से भारत ने सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त संसाधनों को अपनाने पर जोर दिया है। 

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक कृषि और संबंधित क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण के प्रतिशत के रूप में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) में वर्ष 2013-14 में 17.7 प्रतशित की बढ़त दिखाई देती है, लेकिन तत्पश्चात वर्ष 2017-18 में यह घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया। 2012-13 के सकल पूंजी निर्माण 2,51,904 करोड़ से बढ़कर 2017-18 यह 2,73,555 करोड़ हो गई।

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक महिलाएं फसल उत्पादन, पशुपालन, बागवानी,कटाई के बाद के कार्यकलाप कृषि/सामाजिक, वानिकी, मत्स्य पालन इत्यादि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं द्वारा उपयोग में लाई जा रही क्रियाशील जोतों का हिस्सा वर्ष 2005-06 में 11.7 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 13.9 प्रतिशत हो गई। महिला किसानों द्वारा संचालित सीमांत एवं छोटी जोतों का अंश बढ़कर 27.9 प्रतिशत हो गया है।

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