केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की। दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के प्रभावी होने से ऋण वसूली में हाल की सफलता को देखते हुए आर्थिक समीक्षा में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) तथा अपीली न्यायाधिकरण को मजबूत बनाने का प्रस्ताव किया गया है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि दिवाला और दिवालिएपन के लिए प्रणालीबद्ध तरीके से व्यवस्था मजबूत बनाई जा रही है और फंसे हुए कर्जों की वसूली हो रही है। 31 मार्च, 2019 तक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) से 94 मामलों का समाधान हुआ है और परिणाम स्वरूप 1,73,359 करोड़ रुपये के दावों का निपटारा किया गया है। 28 फरवरी, 2019 तक 2.84 लाख रुपये की कुल राशि के 6,079 मामले दिवाला तथा दिवालियापन संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत सुनवाई से पहले वापस लिए गए हैं। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार बैंकों को पहले के गैर-निष्पादित खातों से 50,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। आरबीआई की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त 50,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को गैर-मानक से उन्नत बनाकर मानक संपत्ति कर दिया गया है। ऋण वसूली में तेजी को देखते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यह सभी कदम आईबीसी प्रक्रिया में प्रवेश से पहले व्यापक ऋण देने की प्रणाली के लिए व्यवहार परिवर्तन दिखाते हैं।
दिवाला तथा दिवालियापन संहिता को गैर-निष्पादक कॉरपोरेट कर्जदारों से कारगर ढंग से निपटने के लिए हाल के समय का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार मानते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि एनसीएलटी के आधारभूत ढांचे को बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि ऋण वसूली का समाधान समयबद्ध रुप से किया जा सके।
समीक्षा में कहा गया है कि सरकार विलंब की समस्या के समाधान के उपायों पर गंभीरता से विचार कर रही है और सरकार ने एनसीएलटी के लिए न्यायिक तथा तकनीकी सदस्यों के 6 अतिरिक्त पदों का सृजन किया है। समीक्षा में कहा गया है कि एनसीएलटी के सर्किट पीठों की स्थापना पर विचार किया जा रहा है।
वर्तमान में प्रमुख शहरों में स्थित 20 पीठों में एनसीएलटी के 32 न्यायिक सदस्य तथा 17 तकनीकी सदस्य हैं।
समीक्षा में कहा गया है कि आईबीसी से ऋणदाता, कर्जदार, प्रवर्तक तथा कर्जदाता के बीच सांस्कृतिक बदलाव की शुरूआत हुई है। आईबीसी पारित होने से पहले ऋणदाता लोक अदालत, ऋण वसूली न्यायाधिकरण तथा एसएआरएफएईएसआई अधिनियम का सहारा लेते थे। पहले की व्यवस्था से 23 प्रतिशत की कम औसत वसूली हुई जबकि आईबीसी व्यवस्था के अंतर्गत ऋण वसूली में 43 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आईबीसी पारित किए जाने के बाद से भारत की दिवाला समाधान 2014 की रैंकिंग 134 से सुधर कर 2019 में रैंकिंग 108 हो गई। भारत की रैंकिंग 134 कई वर्षों तक बनी रही थी। पिछले वर्ष भारत को सर्वाधिक सुधार वाले क्षेत्राधिकार के लिए वैश्विक पुनर्संरचना समीक्षा पुरस्कार मिला। जनवरी, 2018 में आईएमएफ-विश्व बैंक द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया कि भारत नई अत्याधुनिक दिवालियापन व्यवस्था की दिशा में बढ़ रहा है।
युवा उद्यमियों, पेशेवर लोगों तथा विद्वानों के हाथ में आईबीसी के भविष्य को देखते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सरकार एक उचित ढांचा बनाने की प्रक्रिया में है। इसमें कार्यक्रमों तथा संस्थानों को शामिल किया जाएगा। भारत के दिवाला तथा दिवालियापन बोर्ड (आईबीबीआई) ने ग्रेजुएट इंसॉलवेंसी प्रोग्राम (जीआईपी) लांच करने की घोषणा की है। यह अपने तरह का पहला कार्यक्रम उन लोगों के लिए है जो दिवाला कार्यक्रम को अपने कैरियर के विषय के रूप में तथा मूल्य श्रृंखला की भूमिका के रूप में लेते हैं।
अधिकतर सूक्ष्म अर्थव्यवस्थाओं ने सीमापार दिवाला कानून को विकसित किया है। इसे देखते हुए समीक्षा में कहा गया है कि भारत ने सीमापार दिवाला पर यूएनसीआईटीआरएएल मॉडल कानून अपनाने के लिए कदम उठाना शुरू कर दिया है। आईबीबीआई ने भी समूह तथा व्यक्तिगत दिवाला मामलों पर दो अलग-अलग कार्यसमूह बनाए हैं।
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