Follow Us 👇

Blood Circulation ( परिसंचरण तंत्र )।।

परिसंचरण तंत्र संबंधित प्रश्नोत्तरी ।। 1. कौन सा ‘जीवन नदी’ के रूप में जाना जाता है? उत्तर: रक्त 2. रक्त परिसंचरण की खोज की गई? ...

भगवान भोलेनाथ का प्राचीन दिव्य स्थान है औरैया स्थिति " देवकली धाम आश्रम "

                            ।। ॐ नमः शिवाय ।।


"देवकली मन्दिर औरैया का प्राचीन इतिहास"
भगवान शिव को समर्पित जनपद औरैया की दक्षिणी सीमा पर यमुना के पावन तट के समीप स्थिति देवकली मन्दिर जनपद की प्राचीन घरोहर के साथ साथ आस्था का प्रतीक है ၊ श्रावण मास व महाशिव रात्रि सहित वर्ष भर लाखो श्रद्वालु देवकली मन्दिर में विराजमान कालेश्वर महादेव के दर्शनार्थ आते है ၊ औरैया सहित आसपास के जनपदों के लोगो की देवकली मन्दिर के प्रति गहरी आस्था और विश्वास है ၊  मन्दिर में स्थापित शिव लिंग का निर्माण काल 9वी शताब्दी का है ၊ उस समय यह क्षेत्र प्रतिहार वंश द्वारा शासित कन्नौज का राज्य का हिस्सा था ၊ 836 ई से 885 ई तक इस वंश के सबसे प्रतापी राजा मिहिर भोज हुए ၊ वह शिव के अनन्य उपाशक थे ၊ उन्होेने जगह जगह राज्य में शिवालयों की स्थापना करवायी ၊ उन्ही में से एक देवकली में स्थापित शिवलिंग है ၊ मिहिर भोज के बाद प्रतिहार वंश में कोई शक्तिशाली राजा नही हुआ ၊ यही कारण रहा कि जब महमूद गजनबी ने 1019 ईं में  अपने कांलिजर अभियान के समय कन्नौज राज्य पर हमला किया  ၊ तो कन्नौज के राजा राज्यपाल ने बगैर लड़े ही उसके आगे समर्पण कर दिया ၊ फिर भी गजनबी ने राज्य में भीषण तवाही मचायी ၊ कन्नौज . नगर को तबाह करने के बाद जव वह कालिंजर की तरफ बड़ा तो उसने रास्ते में पड़ने वाले धार्मिक स्थलों पर हमला करके नष्ट कर दिया  ၊ क्योकि शेरगढ़ घाट का क्षेत्र कालिंजर और कन्नौज के रास्ते में पड़ता था ၊ इसलिए जब वह यहाँ सें निकला तो उसने यहां स्थापित शिवालय सहीत सभी धर्मस्थलों  को नष्ट कर दिया ၊  उसके जाने के बाद स्थानीय लोगों द्वारा शिवलिंग और खण्डित मूर्तियों  को इस स्थान पर खुले में पुन: स्थापित कर दिया गया ၊ 1090 ईं में कन्नौज राज्य पर गहड़वाल वंश का शासन स्थापित होने के वाद गहड़वाल राजा चन्द्रदेव ने सन 1095 ई  में इस स्थान का जीर्णोद्वार. करके पुनः मन्दिर की स्थापना करवायी  ၊ मन्दिर गर्भ ग्रह तक सीमित था ၊ साथ ही खुले स्थान में स्थापित शिवलिंग को मन्दिर में पुनः स्थापित करवाया ၊ राजा हर्ष वर्धन और प्रतिहार वंश  के समय कन्नौज राज्य की सीमाएं सिन्धु बंगाल सें लेकर दक्षिण तक फैली थी ၊ वह गहड़बाल वंश के आने तक गंगा यमुना के बीच तक सिकुड़ कर रह गयी ၊ इसलिए  यह क्षेत्र सीमान्त  होने के कारण चन्द्रदेव ने एक सैन्य छावनी यहां विकसित करवायी ၊ जिसके अवशेष मन्दिर के आसपास विख्ररे पड़े है ၊ 1125 ईं में जयचंद ने जब अपनी मुँह बोली बहिन देवकला का विवाह डाहार जालौन के राजा विसोक देव से किया तो उन्होंनें इस क्षेत्र सहीत 145 गाँव देवकला को दहेज में दे दिये ၊ साथ ही यहाँ स्थापित शिव मन्दिर और गाँव का नामकरण देवकला के नाम पर देवकली करने के साथ जयचन्द्र ने यमुना तट  पर विश्रांत घाट का निर्माण करवाया ၊ ससुराल जाते समय देवकला यहाँ रात्रि विश्राम करती थी ၊सन 1194 में गहड़वाल वंश के पतन और इस क्षेत्र पर भी मुस्लिम शासन स्थापित होने के साथ ही एक बार पुनः इस क्षेत्र का पराभव  शुरू हो गया ၊  मोहम्मद गोरी सहित कई विदेशी आंक्राताओ ने कई बार इस मन्दिर और क्षेत्र को नुकसान पहुचाया । सैकड़ो वर्षों तक विदेशी हमलों का शिकार देवकली मन्दिर अपने ,1772 ई के उस स्वर्णिम काल में पहुंचा जव मराठा छ्त्रप सदा जी राव भाउ ने इटावा सहित  यह क्षेत्र अपने अधिकार में लेकर देवकली मन्दिर और इटावा के टिक्सी मन्दिर को मराठा शैली में वर्तमान स्वरूप प्रदान किया ၊  इस मन्दिर का उपयोग सैन्य छावनी के रूप में भी किया जाता रहा है ၊दीवारो पर 18 वी शताब्दी की उत्कृष्ट कलाकृति के चित्र उकेरे गये है ၊  देवकली मन्दिर के क्षेत्र में 52 कुआं थे ၊ आज भी मन्दिर के आसपास कई प्राचीन कुऐं है ၊ स्वाधीनता संग्राम में इस मन्दिर को क्रान्तिकारियों ने अपनी शरणस्थली के रूप में प्रयोग किया था 

0 comments:

Post a Comment

Thank You For messaging Us we will get you back Shortly!!!