योग शब्द का शाब्दिक अर्थ – जुड़ना या मिलना होता है लेकिन अगर इसका व्यवहारिक अर्थ देखेंगे तो यह बहुत विस्तृत विज्ञानं स्वरूप है | क्योंकि इसके सभी कर्म और क्रियाएँ मनुष्य को शारीरक और आत्मिक रूप से पूर्ण योगी बनाती है या यूँ कहे की आत्मा से परमात्मा करना योग में सिद्ध हो सकता है |
वैसे योग की परिभाषा विभिन्न ऋषियों ने अलग – अलग दी है लेकिन उनका अर्थ आप देखेंगे तो निश्चित ही समान पाएंगे –
💢योग की विभिन्न परिभाषाएँ / Definition of Yoga💢
पतंजलि के अनुसार योग की परिभाषा –
“योगश्चित्तवृतिनिरोध:” अर्थात पतंजलि के अनुसार चित की वृतियों का निरोध ही योग कहलाता है |”
योग वशिष्ठ के अनुसार
” संसार सागर से पार होने के उपाय को ही योग कहा जाता है |”
वेदांत के अनुसार
” आत्मा का परमात्मा से पूर्ण रूप से मिलन होना ही योग कहलाता है |”
प्रत्यभिज्ञानानुसार
” शिव और आत्मा के अभेद्य ज्ञान का नाम ही योग है |”
योग की इन सभी परिभाषाओं में शब्द चाहे अलग – अलग हो लेकिन सबके अर्थ एक सामान ही निकलते है | योग की सिद्धि से व्यक्ति शारीरक ही नहीं वरन आत्मिक रूप से भी पूर्ण निरोगी होकर आत्मा से परमात्मा का स्वरुप प्राप्त कर लेता है | व्यक्ति की शारीरक और मानसिक शुद्धि के लिए योग परम आवश्यक युक्ति है |
💢योग के प्रकार / Type of Yoga💢
प्राचीन ग्रंथो में योग के अनेक प्रकारों का वर्णन मिलता है | योग प्रदीप में योग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन मिलता है, जैसे – राज योग (अष्टांग योग), हठ योग, लय योग, ध्यान योग, भक्ति योग, क्रिया योग, कर्म योग, मन्त्र योग एवं ज्ञान योग आदि | योग के मुख्य 4 प्रकार है –
💎1.राज योग (अष्टांग योग) – योग का प्रमुख प्रकार है | इसे अष्टांग योग से भी परिभाषित किया जा सकता है | इसके आठ अंग है – यम , नियम, आसन, प्राणायाम, धारण, प्रत्याहार, ध्यान और समाधी |
💎2.कर्म योग – यह योग का दूसरा प्रकार है | कर्म योग का अर्थ है वर्तमान में हमारे द्वारा किये जाने वाले कर्म हमें भविष्य में कैसा परिणाम देंगे ये हमारे कर्मो पर ही निर्भर करता है | अगर आज वर्तमान में हम कुछ अच्छे कर्म करते है तो भविष्य में हमें परिणाम भी सुखद प्राप्त होते है |
💎3.भक्ति योग – ये योग भक्ति के मार्गो का वर्णन करते है | एवं हमें भक्ति की और बढाते है |
💎4.ज्ञान योग – सबसे कठिन योग है , क्योंकि ध्यान के मार्ग पर चलना हर किसी के बस में नहीं होता , इसके लिए सयंम
और सामर्थ्य की आवश्यकता होती है | इसीलिए यह सबसे कठिन योग की श्रेणी में आता है | इस योग को ऋषि, महर्षि चुनते है एवं इसके मार्ग पर आगे बढतें है |
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