सभी जंतुओं में रुधिर जैसा पदार्थ होता है जिसे पूरे शरीर में चक्कर लगाने के लिए हृदय जैसे किसी अंग की आवश्यकता होती है इसलिए इस तंत्र को परिसंचरण तंत्र कहते हैं
परिसंचरण तंत्र के प्रकार
० यह दो प्रकार का होता है
० यह दो प्रकार का होता है
1. खुला परिसंचरण तंत्र = जितने अकशेरुकी जंतु होते हैं उसमें रुधिर बंद नलिकाओं में ना बहकर खुले कोट्टरों में रहता है इसलिए इनके परिसंचरण तंत्र को खुला परिसंचरण तंत्र कहते हैं जैसे जोक केंचुआ कॉकरोच इत्यादि
2. बंद परिसंचरण तंत्र = ऐसा परिसंचरण तंत्र जिसमें रक्त बंद प्रकार की नलियों में बहता है इस प्रकार का परिसंचरण तंत्र पृष्ठवंशीय जंतुओं में पाया जाता है
हृदय के प्रकार
हृदय मांस पेशियों युक्त शरीर का सबसे व्यस्ततम अंग है जो ह्रदपेशियों द्वारा बना होता है
1 मछली वर्ग का ह्रदय दो प्रकोष्ठी होता है
2 सभी उभयचर जैसे मेंढक टोंड तथा रेपटीलिया जैसे सांप छिपकली आदि सभी का हृदय 3 प्रकोष्ठी होता है
(घड़ियाल और मगरमच्छ का हृदय 4 प्रकोष्ठकी होता है)
3 पक्षी वर्ग का ह्रदय 4 प्रकोष्ठी होता है
4 तथा स्तनधारियों का हृदय भी 4 प्रकोष्ठी होता है
5 मनुष्य का हृदय सबसे ज्यादा विकसित होता है तथा यह 4 प्रकोष्ठी होने के साथ-साथ मायोजेनिक होता है अर्थात मांस पेशियों द्वारा संचालित हमारे हृदय पर मस्तिष्क का कोई नियंत्रण नहीं होता है*
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4 तथा स्तनधारियों का हृदय भी 4 प्रकोष्ठी होता है
5 मनुष्य का हृदय सबसे ज्यादा विकसित होता है तथा यह 4 प्रकोष्ठी होने के साथ-साथ मायोजेनिक होता है अर्थात मांस पेशियों द्वारा संचालित हमारे हृदय पर मस्तिष्क का कोई नियंत्रण नहीं होता है*
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