*ज्योतिष – एक श्रापित विद्या:-
ज्योतिष को माँ सती से श्राप मिला हुआ है।
कैसे?
ये कहानी पढें:-
एक बार की बात है । एक दिन नारद जी भगवान के नामों का गुण गान करते हुए कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो भगवान सदा की तरह शिव के दर्शन हुए परन्तु माता पार्वती नही दिखाई दी। नारद जी ने माता के विषय में पुछा तो
तो भगवान शिव जी ने कहा “नारद जी, आप तो ज्योतिष के ज्ञाता हो। बताओ अभी सती कहाँ है?”
नारद जी ने ज्योतिषीय गणना की और कहा, “माँ अभी स्नान कर रही हैं। और इस समय उनके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं है।
कुछ समय बाद माता सती आईं तो भगवान ने उस समय के बारे में पुछा
और नारद जी की बात बताई।
इस पर माँ बोली –
“नारद जी आपकी गणना बिल्कुल सही है। पर जो विद्या व्यक्ति के कपडे के भी पार देख ले वह अच्छी नहीं। इसलिए मैं इस विद्या को श्राप देती हूँ कि कभी भी कोई ज्योतिषी पूरा-पूरा नहीं देख पाएगा।“
किन्तु जो ज्योतिषी किसी की मदद करेगा। जिसका इष्ट में पूरा विश्वास होगा।
सच्चे हृदय से ज्योतिष को जानेगा। उसकी गणना सम्पूर्ण सत्य होगी।
कथा का सारांश:-
अगर ईश्वर ने आपको एक शक्ति दी है, तो कुछ जिम्मेदारी भी है निभाने के लिए। एक ज्योतिषी का दायित्त्व है कि अपने यजमान को ढाँके। ना की उसकी आर्थिक उगाही करें। यजमान की आर्थिक और सामाजिक रक्षा करते हुए उसकी समस्याओं से उसे निकलने के लिए मार्गदर्शन करे।
यदि ज्योतिषी अपनी सीमा लाँघेगा तो उसे माँ सती का श्राप आवश्लय गेगा और फिर उसकी गणनायें भी असफल होंगी तथा पारिवारिक अवनति भी होगी।
ज्योतिष को माँ सती से श्राप मिला हुआ है।
कैसे?
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एक बार की बात है । एक दिन नारद जी भगवान के नामों का गुण गान करते हुए कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो भगवान सदा की तरह शिव के दर्शन हुए परन्तु माता पार्वती नही दिखाई दी। नारद जी ने माता के विषय में पुछा तो
तो भगवान शिव जी ने कहा “नारद जी, आप तो ज्योतिष के ज्ञाता हो। बताओ अभी सती कहाँ है?”
नारद जी ने ज्योतिषीय गणना की और कहा, “माँ अभी स्नान कर रही हैं। और इस समय उनके शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं है।
कुछ समय बाद माता सती आईं तो भगवान ने उस समय के बारे में पुछा
और नारद जी की बात बताई।
इस पर माँ बोली –
“नारद जी आपकी गणना बिल्कुल सही है। पर जो विद्या व्यक्ति के कपडे के भी पार देख ले वह अच्छी नहीं। इसलिए मैं इस विद्या को श्राप देती हूँ कि कभी भी कोई ज्योतिषी पूरा-पूरा नहीं देख पाएगा।“
किन्तु जो ज्योतिषी किसी की मदद करेगा। जिसका इष्ट में पूरा विश्वास होगा।
सच्चे हृदय से ज्योतिष को जानेगा। उसकी गणना सम्पूर्ण सत्य होगी।
कथा का सारांश:-
अगर ईश्वर ने आपको एक शक्ति दी है, तो कुछ जिम्मेदारी भी है निभाने के लिए। एक ज्योतिषी का दायित्त्व है कि अपने यजमान को ढाँके। ना की उसकी आर्थिक उगाही करें। यजमान की आर्थिक और सामाजिक रक्षा करते हुए उसकी समस्याओं से उसे निकलने के लिए मार्गदर्शन करे।
यदि ज्योतिषी अपनी सीमा लाँघेगा तो उसे माँ सती का श्राप आवश्लय गेगा और फिर उसकी गणनायें भी असफल होंगी तथा पारिवारिक अवनति भी होगी।
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