Follow Us 👇

Sticky

तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

धान की पराली को जलाए नहीं , खाद बनाए

धान की पराली को जलाएं नहीं, खाद बनाएं

खेतों में पराली जलाने से मिट्टी की उपरी सतह जल जाती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगली फसल के लिए ज्यादा पानी, खाद कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर किसान खेतों में पराली दबा देते हैं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम नहीं होगी, यही पराली खाद का काम करेगी और जहरीली खाद नहीं डालनी पड़ेगी। ऐसी जमीन में बिजाई की गई अगली फसल में कम पानी देना पड़ेगा। वहीं पैदावार भी अच्छी होगी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्मॉग की समस्या के लिए हरियाणा एवं पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद जलाई जाने वाली पराली को जिम्मेदार माना गया है। पराली धान की फसल के कटने बाद बचा बाकी हिस्सा होता है। जो किसान के लिए बेकार होते हैं, उन्हें अगली फसल बोने के लिए खेत खाली करने होते हैं तो सूखी पराली को आग लगा दी जाती है। धान की फसल कटने के बाद किसान खेतों में गेंहू की बिजाई करते हैं जिस कारण उन्हें खेत खाली करने की जल्दी होती है। यह समय धान की फसल कटने के बाद गेहूं की फसल के लिए खेत तैयार करने का होता है। पराली से किसान को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को मशीनों से उखाड़कर एक जगह 2 से 3 फीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं। उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया, गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिड़क दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाएं, अगर केंचुए भी खड्ड में छोड़ सकें तो और भी अच्छा है। आखिरी तह को मिट्टी के घोल में तर पॉलिथीन से ढक देना चाहिए। इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है।

----

ये है जुर्माने का प्रावधान

एनजीटी के आदेशानुसार दो एकड़ में फसलों के अवशेष जलाने पर 2500 हजार रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपये, 5 एकड़ से अधिक जमीन पर धान के अवशेष जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्मानना किया जाएगा। इसके लिए जिम्मेदारी सरकार ने जिला राजस्व अधिकारी की तय की है। एनजीटी के अनुसार, यह फाइन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया जा रहा है।

-----

बढ़ती है आंखों में जलन और सांस की परेशानी

धान की कटाई व कढ़ाई के दौरान बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।

------

वातावरण को शुद्ध रखने और मिट्टी की सेहत बरकरार रखने के लिए धान की पराली को आग लगाने की बजाए खेत में ही हल चलाकर गेहूं या अन्य फसलों की बजाई करनी चाहिए। समय के साथ खेती माहिरों द्वारा पराली अन्य अवशेषों पर हल चलाने की ऐसी तकनीकें विकसित की जा चुकी हैं, जिसके साथ केवल अधिक पैदावार मिलेगी, बल्कि जमीन की सेहत में भी सुधार किया जा सकेगा। इसके अलावा धान की पराली को जलाने के बगैर ही किसान गेहूं की बजाई करने की तकनीक अपनाएं तो उनका समय भी बचेगा और धरती की उपजाऊ शक्ति भी बरकरार रहेगी।

इन सब के अलावा कुछ वायों कंपनियों के रेडीमेड वेस्ट डी कंपोज़र उपलब्ध है,जो उपयोग मे आसान है, और  जो पराली को गलाकर कार्बनिक खाद बना देते हैं, और मिट्टी का ph लेवल भी मेंटेंन करते है ....

0 comments: