कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत कार्यस्थल पर उत्पीड़न की शिकार हुई महिला चाहे वह उस संस्था में नियोजित हो अथवा किसी अन्य रूप में उस संस्था से जुडी हो, संगठन के कर्मचारी या संगठन से किसी अन्य प्रकार से बाहरी व्यक्ति जो कार्यस्थल या संगठन के साथ परामर्शदाता, सेवा प्रदाता, विक्रेता के रूप में संपर्क में आता है, के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है।
यदि महिला का उत्पीड़न उस दौरान हुआ जब वह संगठन में कार्यरत थी तो वह संगठन छोड़ने के बाद भी शिकायत दर्ज करा सकती है।
यदि महिला उस संस्था में कभी नियोजित नहीं थी और काम के दौरान या उस आदमी के पेशेवर गतिविधियों के दौरान उत्पीड़न हुआ है तो वह उस संगठन की आंतरिक शिकायत समिति के पास शिकायत दर्ज करा सकती है जहाँ वह आदमी काम करता है।
महिला भारतीय दंड संहिता (Indian Panel Code- IPC) की धारा 354 A और अन्य प्रासंगिक वर्गों के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करने का विकल्प भी चुन सकती है।
यदि महिला का उत्पीड़न ‘तटस्थ क्षेत्र’ (ऐसा क्षेत्र जो संप्रभु नहीं है) में हुआ है तो महिला अपने संगठन की आंतरिक समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है लेकिन इस आतंरिक समिति के पास उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति पर प्रभावी दंड लगाने की शक्ति नहीं है।
महिला उस संगठन में शिकायत दर्ज करा सकती है जहाँ वह आदमी काम करता है, बशर्ते महिला को उस संगठन का समर्थन प्राप्त हो जहाँ वह कार्य करती है।
शिकायत दर्ज कराने की समय-सीमा :
यह अधिनियम शिकायत दर्ज कराने के लिये 90 दिनों की समय-सीमा प्रदान करता है लेकिन यदि इस अवधि के दौरान शिकायत दर्ज नहीं कराई गई तो देरी का उचित कारण बताए जाने पर इस अवधि को आंतरिक समिति द्वारा अगले 90 दिनों तक और बढ़ाया जा सकता है।
आपराधिक कानून में अपराध की प्रकृति के आधार पर एक वर्ष से तीन वर्ष तक की सीमा अवधि होती है। लेकिन पुलिस में बलात्कार की शिकायत दर्ज करने के लिये कोई समय-सीमा नहीं है।
निष्कर्ष :
एक तरफ तो हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ, महिलाओं के उत्पीड़न के मामले रोज़ सामने आते हैं, ऐसे में कैसे सशक्त होंगी महिलाएँ?
सच तो यह है कि देश लगातार विकास के पथ पर अग्रसर है, महिलाएँ भी कई क्षेत्रों में पुरुषों से आगे निकल रही हैं लेकिन महिलाओं को देखने का पुरुषों का नज़रिया कभी नहीं बदला।
महिलाओं का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करना समाज की प्रमुख प्राथमिकता होनी चाहिये लेकिन यही समाज उनके लिये असुरक्षित भी है।
ऐसे में मी टू अभियान उन महिलाओं को अपने उत्पीड़न की दास्ताँ बयान करने का बेहतर मंच बनकर सामने आया है।
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