० पल्लव कला के विकास की शैलियों को क्रमश: महेंद्र शैली (610-640 ई.), मामल्ल शैली (640-674 ई.) और राजसिंह शैली (674-800 ई.) में देखा जा सकता है।
० पल्लव राजा महेन्द्र वर्मन के समय वास्तुकला में ‘मंडप’ निर्माण प्रारंभ हुआ।
० राजा नरसिंह वर्मन ने चिंगलपेट में समुद्र किनारे महाबलीपुरम उर्फ मामल्लपुरम नामक नगर की स्थापना की और ‘रथ’ निर्माण का शुभारंभ किया।
० पल्लव काल में रथ या मंडप दोनों ही प्रस्तर काटकर बनाए जाते थे।
० पल्लवकालीन आदि-वराह, महिषमर्दिनी, पंचपांडव, रामानुज आदि मंडप विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
० ‘रथमंदिर’ मूर्तिकला का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिनमें द्रौपदी रथ, नकुल- सहदेव रथ, अर्जुन रथ, भीम रथ, गणेश रथ, पिंडारी रथ तथा वलैयंकुट्टै प्रमुख हैं।
० इन आठ रथों में द्रौपदी रथ एकमंज़िला और छोटा है बाकी सातों रथों को सप्त पैगोडा कहा गया है।
० पल्लव काल की अंतिम एवं महत्त्वपूर्ण ‘राजसिंह शैली’ में Rock cut Architecture के स्थान पर पत्थर, ईंट आदि से मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ।
० राजसिंह शैली के उदाहरण महाबलीपुरम के तटीय मंदिर, अर्काट का पनमलाई मंदिर, कांची का कैलाशनाथ और बैकुंठ पेरूमल का मंदिर आदि हैं।
० आगे पल्लव काल के नन्दीवर्मन/अपराजिता शैली में संरचनात्मक मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई और दक्षिण भारत में एक स्वतंत्र शैली उभरी जिसे द्रविड़ शैली कहा गया।
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