भारत में चुनाव आयोग की पहल पर भारत में हर चुनाव को फेस्टिवल की तरह मनाया जाता है. यही कारण है कि चुनाव आयोग इस बात को सुनिश्चित करना चाहता है कि हर चुनाव में ज्यादा से ज्यादा मतदान हो अर्थात कोई भी वोटर छूटे ना.
इसी दिशा में चुनाव आयोग ने Postal ballot या डाक मतदान की शुरुआत की है. आइये इस लेख में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
डाक मतदान (Postal Ballot) क्या होता है?
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि Postal ballot एक डाक मत पत्र होता है. यह 1980 के दशक में चलने वाले पेपर्स बैलेट पेपर की तरह ही होता है. चुनावों में इसका इस्तेमाल उन लोगों के द्वारा किया जाता है जो कि अपनी नौकरी के कारण अपने चुनाव क्षेत्र में मतदान नहीं कर पाते हैं. जब ये लोग Postal Ballot की मदद से वोट डालते हैं तो इन्हें Service voters या absentee voters भी कहा जाता है.
चुनाव में जमानत जब्त होना किसे कहते हैं?
चुनाव आयोग पहले ही चुनावी क्षेत्र में डाक मतदान करने वालों की संख्या को निर्धारित कर लेता है. इसलिए केवल उन्हीं लोगों को Postal ballot भेजा जाता है. इसे Electronically Transmitted Postal Ballot System (ETPBS) भी कहा जाता है. मतदाता द्वारा अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट देकर इस Postal ballot को डाक या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वापस चुनाव आयोग के सक्षम अधिकारी को लौटा दिया जाता है.
पोस्टल बैलट का उपयोग कौन कर सकता है (Who can avail Postal Ballot)
इस नई व्यवस्था के तहत खाली पोस्टल बैलट को सेना और सुरक्षा बलों को इलेक्ट्रिक तौर पर भेजा जाता है. जिन इलाकों में इलेक्ट्रिक तरीके से पोस्टल बैलट नहीं भेजा जा सकता है वहां पर डाक के माध्यम से पोस्टल बैलट भेजा जाता है.
Postal Ballot का इस्तेमाल करने वाले लोगों में शामिल हैं;
1. सैनिक
2. चुनाव ड्यूटी में तैनात कर्मचारी
3. देश के बाहर कार्यरत सरकारी अधिकारी
4. प्रिवेंटिव डिटेंशन में रहने वाले लोग (कैदियों को वोट डालने का अधिकार नहीं होता है)
5. 80 वर्ष से अधिक की उम्र के वोटर (रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है)
6. दिव्यांग व्यक्ति (रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है)
नोट: वोटर, जिस चुनाव क्षेत्र में वोट डालने के लिए योग्य है उसका वोट उसी क्षेत्र की मतगणना में गिना जाता है.
(पोस्टल बैलट की पूरी प्रक्रिया)
कब से हुई शुरूआत (When Postal ballot Started in India)
पोस्टल बैलेट की शुरुआत 1877 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में हुई थी. इसे कई देशों जैसे इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, स्विट्ज़रलैंड और यूनाइटेड किंगडम में भी इस्तेमाल किया जाता है. हालाँकि इन देशों में इसके अलग अलग नाम जरूर हैं.
भारतीय चुनाव आयोग ने चुनाव नियामावली, 1961 के नियम 23 में संशोधन करके इन लोगों को चुनावों में Postal ballot या डाक मत पत्र की सहायता से वोट डालने की सुविधा के लिए 21 अक्टूबर 2016 को नोटिफिकेशन जारी किया गया था.
जब भी किसी चुनाव में वोटों की गणना शुरू होती है तो सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होगी. इसके बाद ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती होगी. पोस्टल बैलेट की संख्या कम होती है और ये पेपर वाले मत पत्र होते हैं इसलिए इन्हें गिना जाना आसान होता है.
इस प्रकार भारतीय चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गयी Postal ballot की शुरुआत अपने आप में एक बड़ा कदम है. लेकिन कई देशों में इसमें गड़बड़ी भी हो चुकी है और पारदर्शिता की कमी भी देखी गयी है. इसलिए चुनाव आयोग को इसके नियमों को कड़ाई से पालन कराने की जरूरत है.
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