भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपने पहले के आदेश में संशोधन कर सकता है जिसमें कहा गया है कि सरकार निजी प्रयोगशालाओं द्वारा कोविड -19 परीक्षण मुफ्त में करवाने की व्यवस्था करे और केवल आयुष्मान भारत कार्ड धारकों के लिए ही मुफ्त परीक्षण की छूट दी जाये.
सर्वोच्च न्यायालय ने इससे पहले एक आदेश जारी करके निजी प्रयोगशालाओं द्वारा कोविड -19 परीक्षण मुफ्त में करने के लिए कहा था क्योंकि ये निजी प्रयोगशालायें प्रति परीक्षण 4500 रुपये चार्ज कर रही थीं जबकि सरकारी प्रयोगशालाएं मुफ्त में यह परीक्षण कर रही थीं. भारत सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उन लोगों के लिए परीक्षण मुफ्त करने के किसी भी कदम का विरोध किया था जो यह खर्च उठा सकते हैं.
सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया कि गरीबी रेखा से नीचे आने वालों के लिए एक योजना बनाई जा सकती है, ताकि उन्हें इतनी मोटी राशि का भुगतान किए बिना कोविड -19 परीक्षण करवाने के लिए सहायता प्रदान की जा सके. उन्होंने न्यायलय से अपने पूर्व आदेश को संशोधित करने का आग्रह भी किया. न्याय पीठ ने कथित तौर पर अपनी सहमति व्यक्त की है और जल्द ही इस पर औपचारिक आदेश जारी हो सकता है.
मुख्य विशेषतायें
• सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सरकार को अपने संसाधनों को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि कोरोना वायरस के खिलाफ यह लड़ाई कई महीनों तक चल सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग मुफ्त में कोविड – 19 का परीक्षण करवाना चाहते हैं, वे 139 सरकारी परीक्षण प्रयोगशालाओं में जा सकते हैं.
• उन्होंने आगे यह भी सुझाव दिया कि केवल किसी डॉक्टर द्वारा निर्दिष्ट किए गए लोगों को ही यह परीक्षण करवाने की आवश्यकता है और हर किसी को यह परीक्षण नहीं करवाना चाहिए.
• उन्होंने कोविड – 19 का परीक्षण और अलगाव (आइसोलेशन) की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की ओर भी ध्यान दिलाया.
पृष्ठभूमि
सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व आदेश अधिवक्ता शशांक देव सुधी द्वारा दायर याचिका के आधार पर दिया गया था, जिसमें उन्होंने केंद्र से निजी प्रयोगशालाओं द्वारा कोविड -19 परीक्षण मुफ्त में करने की मांग की थी. निजी प्रयोगशालाओं ने कोविड – 19 के एक परीक्षण के लिए 4500 रुपये की राशि तय की थी, जिसके प्रति कई कार्यकर्ताओं ने यह दावा किया था कि भारत की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा यह खर्च नहीं उठा सकता है.
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