संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक दूसरे को पीछे छोड़ने वाली राजनीति के चलते ही, नए कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए किसी प्रस्ताव पर सदस्य देशों में सहमति बननी मुश्किल हो रही है। अमेरिका और चीन इस वायरस की उत्पत्ति के मुद्दे पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं जबकि, इन दोनों ही देशों को ये करना चाहिए था कि वो दुनिया के अन्य देशों को इस महामारी से निपटने के लिए एकजुट करते।
चीन की सरकारी व्यवस्था को इस बात के लिए कोई रियायत नहीं दी जानी चाहिए कि उसने नए कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दौर में इससे जुड़ी जानकारी को दबाने का प्रयास किया। साथ ही साथ चीन की सरकार ने ये झूठ भी बोला कि ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में नहीं फैलता है कोविड-19 वायरस की उत्पत्ति चीन में ही हुई और ये वायरस चीन में 17 नवंबर 2019 से ही लोगों को संक्रमित करना आरंभ कर चुका था. लेकिन, इस पर दुनिया का ध्यान तभी गया, जब इस वायरस के प्रकोप का असर कई अन्य देशों पर भी पड़ने लगा था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वायरस के प्रकोप को बड़ी देर के बाद जाकर 11 मार्च को वैश्विक महामारी घोषित किया था गलत जानकारी के इस प्रचार प्रसार ने अन्य देशों को अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी क़दम उठाने से रोका। वो अपने यहां के समुदायों के बीच वायरस का प्रकोप नहीं रोक सके। साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भी उस समय निष्क्रिय ही रही क्योंकि, मार्च 2020 में सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता चीन के ही पास थी।
लेकिन, अब जबकि कई पश्चिमी देश बुरी तरह से इस वायरस के क़हर के शिकार हो गए हैं तब भी उनके अंदर वो निर्णय क्षमता नहीं दिख रही है जिससे वो इस महामारी के उचित प्रबंधन के लिए आवश्यक क़दम उठा सकें फिर चाहे घरेलू स्तर की बात हो, या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहल करने की।
अपनी विभिन्न सफलताओं और नाकामियों के बावजूद, आज भी विश्व स्वास्थ्य संगठन पश्चिमी देशों पर केंद्रित संगठन ही है और, इसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से ही शक्ति मिलती है आज बिना संकोच के ये बात कही जा सकती है कि पश्चिम की प्रभुत्ववादी ताक़तें ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को चलाती हैं क्योंकि इसे उन्हीं देशों से फंड मिलता है। इसीलिए, ये संगठन पश्चिमी देशों के दृष्टिकोण से ही स्वस्थ विश्व की कल्पना करता है और उस दिशा में आगे बढ़ता है।
स्वस्थ विश्व की हमारी परिकल्पना, ऐसी राजनीतिक समस्याओं के आधार पर ही बनती है जब तक वैश्विक स्वास्थ्य के मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय समाज में व्यक्तिगत चुनौती के तौर पर पेश नहीं किया जाता, तो अंतरराष्ट्रीय ताक़तों को लगता है कि स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर न चर्चा की ज़रूरत है न इससे जुड़ी समस्याओं का हल तलाशने की ही आवश्यकता है।
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