योगसूत्र = क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट:
पुरुषविशेष ईश्वरः ।। 24।।
पुरुष प्रकृति साहचर्यवश क्लेश, कर्म
कर्म-फल, वासना से युक्त दिखलाता है।
किन्तु क्लेश, कर्म, कर्म-फल, वासनाविमुक्त
पुरुष विशेष वही ईश्वर कहाता है।
तीनों काल में न दु:ख दोष का है लेश जहाँ
सर्वशक्तिमान् एकरूप माना जाता है।
उसके बराबर या उससे बड़ा न कोई
इच्छामात्र से ही मुक्ति-फल का प्रदाता है।।
सूत्रार्थ : क्लेश, कर्म, कर्मों के फल और और वासनाओं से असम्बद्ध, अन्य पुरुषों से विशिष्ट (उत्कृष्ट) पुरुषोत्तम ईश्वर है।
- डॉ देवीसहाय पाण्डेय
(पातंजलयोगदर्शनम् से)
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