मानव-जीवन के आदिकाल में अनुशासन की कोई संकल्पना नहीं थी और न आज की भाँति बङे-बङे नगर या राज्य ही थे। मानव जंगल में रहता था। ’जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत उसके जीवन पर पूर्णतः चरितार्थ होती थी। व्यक्ति पर किसी भी नियम का बंधन या किसी प्रकार के कर्तव्यों का दायित्व नहीं था, किन्तु इतना स्वतंत्र और निरंकुश होते हुए भी मानव प्रसन्न नहीं था। आपसी टकराव होते थे, अधिकारों-कर्त्तव्यों में संघर्ष होता था और नियमों की कमी उसे खलती थी। धीरे-धीरे उसकी अपनी ही आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज और राज्य का उद्भव और विकास हुआ।
अपने उद्देश्य की सिद्धि एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव ने अन्ततः कुछ नियमों का निर्माण किया। उनमें से कुछ नियमों के पालन करवाने का अधिकार राज्य को और कुछ समाज को दे दिया गया। व्यक्ति के बहुमुखी विकास में सहायक होने वाले इन नियमों का पालन ही अनुशासन कहलाता है। अनुभव सबसे बङा शिक्षक होता है। समाज ने प्रारंभ में अपने अनुभवों से ही अनुशासन के इन नियमों को सीखा, विकसित किया और सुव्यवस्थित किया होगा।
1. इस गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक हो सकता है –
(अ) जीवन का उद्देश्य
(ब) अनुशासन की संकल्पना
(स) जिसकी लाठी उसकी भैंस
(द) आवश्यकता आविष्कार की जननी है
2. ’अनुशासन’ से अभिप्रेत है –
(अ) शासन द्वारा निर्धारित नियमों की पहचान और परख
(ब) व्यक्ति द्वारा अपने बहुमुखी विकास के लिए बनाये गये सामाजिक नियमों का पालन
(स) प्रजा पर शासक का पूर्णरूप से नियंत्रण जिससे राजव्यवस्था सुचारु बन सके
(द) शासित द्वारा शासक के आदेशों का सम्यक् रूप से पालन
3. इस गद्यांश का प्रतिपाद्य है कि मनुष्य को –
(अ) आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पशु बल का प्रयोग करना चाहिए
(ब) अधिकारों के लिए संघर्ष करना चाहिए
(स) सामाजिक नियमों का पालन करना चाहिए
(द) स्वतंत्र और निरंकुश होना चाहिए
4. आदिकाल से मानव प्रसन्न नहीं था, क्योंकि –
(अ) उस काल में सामाजिक नियमों का निर्धारण नहीं हुआ था
(ब) वह नगरों में न रहकर जंगलों में रहता था
(स) उसकी जीवन-आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती थी
(द) उसका जीवन और रहन-सहन सरल न था
5. गद्यांश में रेखांकित शब्द से आशय ऐसे व्यक्ति से है –
(अ) जो किसी व्यवस्था को न माने
(ब) जिसका व्यवहार कुश जैसा न हो
(स) जो अहं भावना से ग्रस्त हो
(द) जो निरपराध एवं निरभिमान हो
उत्तर :- ब ब स अ अ ❣💐
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