रामस्तत्पुरुषं प्राह बहुव्रीहिं महेश्वरः ।
कर्मधारयम् इत्येके लीलार्थं द्वन्द्वम् अद्वये ।।
राम ने तत्पुरुष कहा यानि रामस्य ईश्वरः रामेश्वरः (रामके ईश्वर रामेश्वर)।
महादेव ने कहा नहीं इसमें तो बहुव्रीहि समास है। रामः ईश्वरो यस्य सः (राम हैं जिसके ईश्वर) ।
किसी ने कहा नहीं भाई कर्मधारय है। रामः चासौ ईश्वरः (राम हैं वोही ईश्वर हैं)।
वास्तव में मेरे अनुसार तो द्वन्द्व है। रामश्च ईश्वरश्च इति रामेश्वरम्। (राम और ईश्वर दोनों का समाहार रामेश्वर)।
अद्वये (जिसमें द्वय/दो न हो उसमें) लीला के लिए द्वन्द्व (दो) प्रकट होते हैं।
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