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सुर्ख़ियों में- बाइडन की जीत और भारत ?

👉 बाइडन की जीत के भारत के सन्दर्भ में सकारात्मक व नकारात्मक परिणामl

➡️ अमेरिका में हाल ही में राष्ट्रपति चुनावी नतीजों में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बाइडेन व उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस की जीत ने वैश्विक राजनीति में बदलाव के संकेत दिये है। डेमोक्रेटिक पार्टी की बाइडेन-हैरिस की जोड़ी ने रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप और माइक पेंस की जोड़ी को हराया है।

➡️ चुनावी नतीजों के बाद अब विभिन्न देशों को अपनी “अमेरिका के सन्दर्भ में विदेश नीति” को डेमोक्रेटिक पार्टी की “उदार मगर चालाकी से भरी विदेश नीतियों” से सामंजस्य बिठाना होगा। रिपब्लिकन पार्टी की विदेश नीति में स्पष्टत: आक्रमकता मिलती है, मगर चालाकी नहीं जो की डेमोक्रेट से अलग है। 

➡️ मगर अब यह नीति भारत के सन्दर्भ में देखी जा रही है, क्योंकि वर्तमान भारत सरकार व ट्रम्प सरकार का रूख चीन के प्रति तथा अन्य राष्ट्रवादी नीतियों के प्रति आक्रमक रहा जो अब बाइडन की जीत के साथ कमजोर होता नजर आ सकता है। 
जानते हैl

बाइडन की जीत के सकारात्मक व नकारात्मक पक्ष जो भारत को स्पष्टत: प्रभावित करेंगे।

✅ जीत के सकारात्मक पक्ष 
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➡️ ओबामा प्रशासन के दौरान 'एशिया पैसिफिक' पर एक विज़न डॉक्यूमेंट के रूप में जो पहल शुरू की थी वो पुन: प्रभावी होने की सम्भावना हो सकती है।

➡️ बाइडेन सुरक्षा साझेदारी को मजबूत करेंगे, साथ ही अधिक क्षेत्रों में संबंधों के विस्तार का लक्ष्य रखेंगे।

➡️ भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों को रीसेट करने के लिए जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रीफ्रेंसेस (जीएसपी) की स्थिति को बहाल करना होगा।

➡️ भारत में चमड़े, आभूषण और इंजीनियरिंग जैसे श्रम प्रधान क्षेत्रों में 2,167 उत्पादों पर शून्य या कम टैरिफ के जरिए तरजीह वाले बर्ताव का फायदा मिलेगा।

➡️ चीन के सन्दर्भ में भारत और अमेरिका सप्लाई चेन की लचीलेपन की जरूरत को मान्यता देंगे जो व्यापक व्यापार समझौते पर सुधार को दिखाता है।

➡️ बाइडेन प्रशासन ने 2018 में डोनाल्ड ट्रम्प के छोड़े गए ईरान परमाणु समझौते पर फिर से गौर किया जा सकता है। 2015 की संयुक्त व्यापक योजना (जेसीपीओए) में फिर से प्रवेश करना बाइडेन प्रशासन की विदेश नीति की प्राथमिकता में से एक है।

➡️ बाइडेन प्रशासन पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत को चाबहार परियोजनाओं पर बढ़ने और अफगानिस्तान के लिए रणनीतिक मार्गों को सुरक्षित करने की अनुमति देगा।

➡️ बाइडेन प्रशासन जलवायु न्याय की बात कर रहा है जो पर्यावरण की चुनौतियों के मामले में विकासशील देशों को लेवल प्लेइंग फील्ड देने के लिए अमेरिका की अहम भूमिका को बढ़ावा देगा। 5 नवंबर को अमेरिका आधिकारिक तौर पर ‘पेरिस समझौते’ से बाहर आ गया।


✅ जीत के नकारात्मक पक्ष
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➡️ बाइडेन प्रशासन रूस के मुद्दे पर अधिक कड़ा रुख, चीन के साथ कुछ समय के लिए मामूली सहयोग की संभावना जबकि भारत-चीन तनाव उफान की पिच पर हैं, यह सभी आने वाली चुनौतियों को हाइलाइट करता है।

➡️ चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध को बाइडेन-हैरिस प्रशासन द्वारा सुलझाने का प्रयास किया जायेगा जो चीन छोड़ने वाली अमेरिकी कम्पनियों के लिए भारत में स्थापित होने की प्रबलता को कम कर देगा।

➡️ बाइडेन-हैरिस प्रशासन द्वारा चीन के साथ मधुर संबंधों की स्थिति बनाये जाना भारत को चीन के संदर्भ में कमजोर कर सकता है जो की डेमोक्रेट की कमजोर कड़ी होगी।

➡️ मोदी प्रशासन और बिडेन-हैरिस प्रशासन के बीच “मानवाधिकार से जुड़ा फ्रंट” कमजोर कड़ी है, जिसकों डेमोक्रेट भारत की कमजोर कड़ी मानते है।

➡️ कमला हैरिस और प्रमिला जयपाल ने भारत के जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने, उसके बाद इंटरनेट पाबंदियों और राजनीतिक गिरफ्तारियों की आलोचना की थी जो हैरिस की जीत को भारत के सन्दर्भ में शंका वाला बनता है।

➡️ भारत में NGOs को फंडिंग के संबंध में भारत के नए नियमों पर बाइडेन-हैरिस प्रशासन किस तरह की प्रतिक्रिया देगा, ये भी एक चिंता का विषय है।

➡️ बाइडेन-हैरिस प्रशासन कोविड-19 महामारी से निपटने हेतु घरेलू मुद्दों को ठीक करने के लिए सबसे पहले ध्यान देगा न की वैश्विक मुद्दों को।
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