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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक एकजुटता।।

(शशांक द्विवेदी)

हाल में ही भारत समेत 175 देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र में पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को अपनी मंजूरी देते हुए इस पर हस्ताक्षर किए। जलवायु समझौते के तहत सभी सदस्य देशों ने 21वीं सदी में दुनिया के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री से कम स्तर तक सीमित करने का लक्ष्य रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभागार में भारत की तरफ से पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा कि, यह इतिहास में एक अहम क्षण है। आज आप भविष्य से जुड़े एक संविदापत्र पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। हम समय से होड़ कर रहे हैं। एक सौ पचहत्तर देशों के जलवायु समझौते के हस्ताक्षर समारोह में शामिल होने के साथ ही किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते पर एक दिन में यादातर देशों का मौजूद रहना एक रिकॉर्ड है। इससे पहले 1982 में 119 देशों ने समुद्री नियम संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस हस्ताक्षर के बाद इन देशों को अपने यहां से इस समझौते को मंजूरी दिलानी होगी। जब यूएनएफसीसी से जुड़े कम से कम 55 देश, जिनका वैश्विक उत्सर्जन कम से कम 55 फीसदी हैं, इस समझौते को घरेलू स्तर पर मंजूरी प्रदान कर देंगे, तब उसके 30 दिनों के अंदर यह प्रभाव में आ जाएगा।

ग्लोबल वार्मिग से मुकाबला करने की दिशा में इस समझौते को बड़ा कदम माना जा रहा है। विकासशील और विकसित देश धरती के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए एक साथ खड़े हुए हैं। फिलहाल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के मोर्चे पर काम शुरू करने के लिए दुनिया के देश एकजुट दिख रहे हैं। दिसंबर 2015 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन हुआ था जिसमें 150 से यादा देश ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती पर सहमत हुए थे ।

संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखते हुए जावड़ेकर ने कहा कि इस समझौते से विकसित और विकासशील देशों की परीक्षा होगी। गैस उत्सर्जन में कटौती और गरीबी उन्मूलन पर भी देशों की गंभीरता की परख होगी। वहीं गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस ने भारत से इस मामले में राजनीतिक समर्थन मांगा है। भारत ने यह भी स्पष्ट करते हुए कहा है कि धनी देशों के दशकों के औद्योगिक विकास के बाद जलवायु परिवर्तन से लड़ने का बोझ गरीब देशों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता। फिलहाल भारत ने हर परिवार को बिजली की आपूर्ति की सरकार की योजना के तहत 2022 तक अपना नवीकरणीय विद्युत क्षमता चार गुणा बढ़ाकर 175 गिगावाट करने की योजना की घोषणा की है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत में समस्याएं बढ़ रही है। पिछले दो सालों में देश के कई इलाकों में कम वर्षा यानी सूखे की वजह से भारत के अधिकांश किसान बर्बादी के कगार पर खड़े है और सैकड़ों ने तो आत्महत्या कर अपना जीवन ही समाप्त कर लिया है। देश के कई हिस्सों में सूखे की वजह से पानी की समस्या लगातार बनी हुई है। हालात ऐसे हो गए हैं कि एक तरफ लातूर में ट्रेन और टैंकर से पानी पहुंचाया जा रहा है। वही पिछले साल अचानक आई बेमौसम बारिश ने कहर ढाते हुए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में 50 लाख हेक्टेयर भूमि में खड़ी फसल बर्बाद कर दिया था। कुल मिलाकर मौसम में तीव्र परिवर्तन हो रहा है,ऋ तु चक्र बिगड़ चुके हैं। मौसम के बिगड़े हुए मिजाज ने देश भर में तांडव मचा रखा है। सचाई यह है कि देश में कृषि क्षेत्र में मचे हाहाकार का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है। यह सब जलवायु परिवर्तन और हमारे द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की वजह से हो रहा है। कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है लेकिन पर्यावरण के नाम पर केंद्र और राय सरकारें संजीदा नहीं है या यों कहें कि ये मुद्दा सरकार और राजनीतिक दलों के एजेंडे में ही शामिल नहीं है। इसी वजह से हमें बार-बार प्राकृतिक आपदा का शिकार होना पड़ रहा है।

हाल में ही पर्यावरण और वायु प्रदूषण का भारतीय कृषि पर प्रभाव शीर्षक से प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल अकादमी ऑफ साइंस में प्रकाशित एक शोध पत्र के नतीजों ने सरकार, कृषि विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है। शोध के अनुसार भारत के अनाज उत्पादन में वायु प्रदूषण का सीधा और नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। देश में धुएं में बढ़ोतरी की वजह से अनाज के लक्षित उत्पादन में कमी देखी जा रही है। करीब 30 सालों के आंकड़े का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया जिससे यह अंदाजा मिलता है कि घनी आबादी वाले रायों में वर्ष 2010 के मुकाबले वायु प्रदूषण की वजह से गेहूं की पैदावार 50 फीसदी से कम रही। खाद्य उत्पादन में करीब 90 फीसदी की कमी धुएं की वजह से देखी गई जो कोयला और दूसरे प्रदूषक तत्वों की वजह से हुआ। भूमंडलीय तापमान वृद्धि और वर्षा के स्तर की भी 10 फीसदी बदलाव में अहम भूमिका है। कैलिफोर्निया विश्वविद्या

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