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✔️ कोरोना विषाणु संक्रमण के खिलाफ पूरी दुनिया की जंग जारी है। भारत में एंटीबॉडी परीक्षण कर 'सीरोप्रीवेलेंस स्टडीज' या 'सीरो सर्वे' कराए जा रहे हैं। सीरो सर्वे में कोरोनासंक्रमण के आंकड़े 'आरटी पीसीआर टेस्ट' से ज्यादा संख्या में आए हैं। यह संख्या एक ही जनसंख्या में अलग-अलग हो सकती है। देश के विभिन्न इलाकों में कराए गए सीरो सर्वे में बहुसंख्यक आबादी के एंटीबॉडी विकसित होने का पता चला है। कई क्षेत्रों में 44 फीसद से ज्यादा लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है। जानकार यह उम्मीद जताने लगे हैं कि भारत की आबादी अब कोरोना संक्रमण से प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने लगी है। माना जा रहा है कि इसी वजह से कोरोना संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं। विदेशों की तुलना में भारत अन्य देशों के सीरो सर्वे से यदि भारत की तुलना की जाए, तो बेहतर स्थिति बनी हुई है। सीरो सर्वे दुनिया के 22 देशों में किए गए हैं, जिसका औसत करीब 4.76 फीसद है। स्कॉटलैंड में कोरोना संक्रमण सबसे कम 0.65 फीसद लोगों में पाया गया था, जबकि सबसे ज्यादा ईरान में 26.6 फीसद पाया गया। भारत में 21 राज्यों के 70 जिलों में सर्वे किया गया है, जिनमें 75 फीसद ग्रामीण क्षेत्र थे जबकि 25 फीसद शहरी क्षेत्रों में ये सर्वे किया गया। जून में हुए पहले सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि ग्रामीण इलाकों के 70 फीसद लोगों में कोरोना का संक्रमण हो चुका था। यह सर्वे मई और जून महीने में हुआ, इसी दौरान बहुत सारे लोग पूर्णबंदी के कारण शहरों से गांव की तरफ जा रहे थे। इस सर्वे में 18 से 45 वर्ष के 43 फीसद लोगों में कोरोना की एंटीबॉडी पाई गई। 40 से 60 वर्ष के 39 फीसद लोगों में यह एंटीबॉडी मिली और 60 वर्ष से ऊपर के 17 फीसद लोगों में एंटीबॉडी मिली।
➡️ सीरो सर्वे का उद्देश्य
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✔️ इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, सीरो सर्वे से पता लगाया जाता है कि जिस बीमारी के लिए सर्वे किया जा रहा है, वह जनसंख्या में कितनी आम हो चकी है। संक्रमणअसल में कितना फैल रहा है और जांच के आंकड़ों के मुकाबले ये आंकड़े कहां हैं। इससे पता चलता है कि बिना लक्षण के यह विषाणु कितने लोगों में फैल रहा है और ऐसे संक्रमण के कितने मामले हैं, जो बिना सामने आए ठीक हो चुके हैं। इसमें सामुदायिक प्रसार या हर्ड इम्युनिटी का भी पता चलता है। इसके साथ ही संक्रमण के फैलाव का सही-सही अनुमान लगने पर इससे बचाव को लेकर उचित कदम उठाने में मदद मिलती है।
➡️ नतीजों से कितनी मदद
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✔️ सीरो सर्वे में देखा जाता है कि कितने लोगों के शरीर में एंटीबॉडी बन चुकी हैं। एंटीबॉडी एक तरीके का प्रोटीन होता है, जो विषाणु के प्रति शरीर को प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की परिभाषा के अनुसार, सीरो सर्वे में लिए गए नमूने में पॉजिटिव और नेगेटिव रिपोर्ट आती है। पॉजिटिव आने का मतलब है कि व्यक्ति पहले विषाण के संक्रमण की चपेट में आ चका है और उसके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। यही प्रवृत्ति जब बड़ी जनसंख्या में दिखने लगती है, तो इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं। वहीं, अगर टेस्ट निगेटिव आता है तो इसका मतलब हो सकता है कि या तो वह व्यक्ति चपेट में कभी नहीं आया, या चपेट में आने के बाद अभी इतना वक्त नहीं हुआ है कि उसके शरीर में एंटीबॉडी बनी हों। एक कोरोना मरीज के शरीर में एंटीबॉडी बनने में कम से कम एक से तीन हफ्ते का वक्त लगता है।
➡️ सीरो सर्वे बनाम गणितीय मॉडल
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✔️ भारत में मध्य सितंबर के बाद से कोरोना के मामलों में गिरावट देखी जा रही है। कोविड-19 पर गठित केंद्र सरकार के पैनल के सदस्य और आइआइटी-कानपुर के प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल के मुताबिक, हमारे गणितीय मॉडल के आकलन के अनुसार अब तक भारत की करीब 30 फीसद आबादी कोरोना संक्रमित हो चुकी है और फरवरी तक यह आंकडा 50 फीसद तक पहंच जाएगा। सीरो सर्वे के मुताबिक सितंबर तक भारत की करीब 14 फीसद आबादी संक्रमित हो चुकी थी, लेकिन पैनल के मुताबिक ये आंकड़ा 30 फीसद है। प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल के मुताबिक, सीरो सर्वे शायद इस बात का नमूना नहीं ले सकते कि जिस आबादी का वे सर्वे कर रहे थे, उसके आकार की वजह से सैंपल बिल्कुल सही नहीं है। दूसरी ओर, गणितीय मॉडल से हर तरह के मामले की सटीक गिनती होती है और उसके अनुसार दो श्रेणियों में वर्गीकरण किया जाता है।
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