★ महिलाओं को दहेज उत्पीड़न के सामाजिक अभिशाप से बचाने के लिए संसद ने वर्ष 1983 में भारतीय दंड संहिता यानी IPC में धारा 498 A को जोड़ा था। हमारे देश में दहेज हत्याओं के कड़वे सच को नकारा नहीं जा सकता लेकिन इस सच का एक पहलू ये भी है कि धारा 498 A का गलत इस्तेमाल करने वाली महिलाओं के लिए ये एक हथियार की तरह है जिसके जरिये वो अपने गलत इरादों को पूरा करती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि...
* महिला के पति या पति के परिवार द्वारा उसके प्रति अत्याचार करने पर धारा 498 A के तहत दर्ज मामला गैर ज़मानती है।
* धारा 498 A के आरोप में सिर्फ FIR में नाम लिखवा देने के आधार पर ही पति और उसके परिवार के लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता है।
* इसलिए जानकार मानते हैं कि धारा 498 A पति पक्ष के लोगों को परेशान करने का सबसे आसान तरीका है।
* National Crime records Bureau के मुताबिक वर्ष 2014 में धारा 498 A के तहत दर्ज मामलों में 1 लाख 97 हजार 762 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। इनमें लगभग एक चौथाई यानी 25 फीसदी महिलाएं थीं। इन महिलाओं में शिकायत करने वाली महिला की सास और ननद भी शामिल थीं।
* धारा 498 A के तहत दर्ज मामलों में चार्जशीट यानी आरोप पत्र दाखिल करने की दर 93.6 फीसदी है जबकि आरोपियों पर दोष साबित होने की दर सिर्फ 15 फीसदी है।
* वर्ष 2011 से 2013 के दौरान देशभर में धारा 498 A के तहत दर्ज 31 हजार 293 मामले फर्जी साबित हुए।
† ये आंकड़े इस तरफ इशारा करते हैं कि उपयोग के साथ साथ धारा 498 A का दुरुपयोग भी हो रहा है। इस धारा को खत्म करने या संशोधन करने की लगातार मांग की जाती रही है। इस धारा के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार गंभीर टिप्पणियां की हैं।
* 19 जुलाई, 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498 A को कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी।
* 11 जून, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498 A को लेकर कहा कि पतियों को अपनी स्वतंत्रता को भूल जाना चाहिये।
* 14 अगस्त, 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से IPC की धारा 498 A में संशोधन करने के लिए कहा, सिर्फ इतना ही नहीं 22 अगस्त, 2010 को केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों की पुलिस को धारा 498 A के प्रावधानों के दुरुपयोग के बारे में चेतावनी दी।
* विधि आयोग ने अपनी 154 वीं रिपोर्ट में इस बात को साफ शब्दों में स्वीकारा कि IPC की धारा 498 A के प्रावधानों का दुरुपयोग हो रहा है।
* नवम्बर, 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल FIR में नाम लिखवा देने से पति-पक्ष के लोगों के खिलाफ धारा 498 A के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये।
* इतनी गंभीर टिप्पणियों के बावजूद धारा 498 A कायम है और इसका दुरुपयोग भी लगातार जारी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2 जुलाई, 2014 को एक बार फिर से टिप्पणी की।
* दहेज उत्पीड़न विरोधी धारा 498 A का पत्नियों द्वारा जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है।
* धारा 498 A में अपराध के गैर ज़मानती होने के कारण कई असंतुष्ट पत्नियां इसे अपने कवच के बजाय अपने पतियों के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
* धारा 498 A के तहत गिरफ्तारी, व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने के साथ-साथ, गिरफ्तार व्यक्ति को अपमानित भी करती है और हमेशा के लिए उस पर धब्बा लगाती है।
* धारा 498 A पति पक्ष के लोगों को परेशान करने का सबसे आसान तरीका है..पति और उसके रिश्तेदारों को इस प्रावधान के तहत गिरफ्तार कराना बहुत आसान है।
* अनेक मामलों में पति के दादा-दादी, विदेश में दशकों से रहने वाली उनकी बहनों तक को गिरफ्तार किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498 A के दुरुपयोग को रोकने के लिए सभी राज्य सरकारों को निर्देश भी जारी किये थे और कहा था कि...
* देश में पुलिस अभी तक ब्रिटिश सोच से बाहर नहीं निकली है और पुलिस अधिकारी के पास तुरंत गिरफ्तारी की शक्ति भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत है
* सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा है कि सभी राज्य सरकारें अपने-अपने पुलिस अधिकारियों को हिदायत दें कि धारा 498 A के तहत मामला दर्ज होने पर तुरंत गिरफ्तारी न करें।
* पुलिस अधिकारी के लिए ये उचित होगा कि आरोपों की सच्चाई की थोड़ी बहुत जांच के बाद उचित तरीके से संतुष्ट हुए बगैर कोई गिरफ्तारी नहीं की जाये।
* आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी की जरूरत के बारे में मजिस्ट्रेट के सामने वजह और सबूत पेश करने चाहिए।
* सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि जिन मामलों में 7 साल तक की सजा हो सकती है, उनमें गिरफ्तारी सिर्फ इस कयास के आधार पर नहीं की जा सकती कि आरोपी ने वो अपराध किया होगा।
* ऐसे मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी तभी होनी चाहिए जब ये अंदेशा हो कि उसके आज़ाद रहने से मामले की जांच प्रभावित हो सकती है या वो फरार हो सकता है।
* ये तो हुई सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की बात जो बताते हैं कि हमारे देश में कैसे धारा 498 A का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है...अब हम आपको धारा 498 A की कुछ व्यावहारिक कमियों के बारे में बताते हैं।
* पति-पत्नी के बीच किसी सामान्य या असामान्य विवाद की वजह से अगर पत्नी धारा 498 A के तहत एक बार पति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा देती है तो फिर इसमें समझौता करने का कानूनी प्रावधान नहीं हैं
* ऐसे हालात में एक बार मुकदमा दर्ज करवाने के बाद पति पक्ष को मुकदमे का सामना करना ही पड़ता है।
* धारा 498 A के अनुसार आरोप लगाने के बाद आरोपों को सही साबित करने का ज़िम्मा शिकायतकर्ता पर नहीं होता..बल्कि आरोपी को ये साबित करना होता है कि वो निर्दोष है।
* अगर आरोप साबित नहीं होते तो झूठा मुकदमा दायर करवाने वाली पत्नी के खिलाफ सिर्फ एक हज़ार रुपये के ज़ुर्माने का प्रावधान है..जो बेहद कम है।
★ हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों और निर्देशों में कभी ये बात साफ नहीं की है कि झूठे आरोप लगाने वाली पत्नियों के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए।
- ऐसे में सवाल ये है कि जब हमारे देश में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का हक दिलवाने की सोच तेजी से विकसित हो रही है तो फिर दहेज प्रताड़ना के खिलाफ एकतरफा कानून अभी तक बदला क्यों नहीं गया?
★ अब वो वक्त आ चुका है। जब धारा 498 A में महिलाओं को मिले एकतरफा अधिकारों का आंकलन किया जाए और इसे पुरुषों के खिलाफ हथियार बनाने की संभावना को समाप्त किया जाए ये खबर दिखाने के पीछे हमारा उद्देश्य धारा 498 A की कमियों को उजागर करना है।
- इसका ये अर्थ बिलकुल नहीं लगाया जाना चाहिए कि सभी महिलाएं धारा 498 A का दुरुपयोग करती हैं। और देश के सारे पुरुष धारा 498 A से प्रताड़ित हैं क्योंकि गलतियां दोनों तरफ से हो रही हैं लेकिन किसी एक की गलत नीयत की सज़ा दूसरे व्यक्ति को मिलना भी जायज नहीं है।
★ वैसे भी भारत में दहेज प्रताड़ना की शिकार महिलाओं की संख्या धारा 498 A के शिकार पुरुषों से बहुत ज्यादा है। इसलिए 498 A की कमियों को दुरुस्त करने की ज़रूरत है।
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