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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

3 अप्रैल - राज्यसभा स्थापना दिवस : 𝚁𝙰𝙹𝚈𝙰 𝚂𝙰𝙱𝙷𝙰 𝙵𝙾𝚄𝙽𝙳𝙰𝚃𝙸𝙾𝙽 𝙳𝙰𝚈 - 𝟸𝟶𝟸𝟷


✅  🏛 3 अप्रैल 1952 को संसद के उच्च सदन यानि राज्य सभा की स्थापना हुई। तब इसका नाम काउंसिल आफ स्टेट्स था। राज्य सभा नाम 23 अगस्त 1954 को तत्कालीन सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ओर से सभा में की गयी घोषणा के बाद कहा जाने लगा। चूंकि राज्य सभा का गठन 3 अप्रैल को हुआ था इस नाते इस मौके को राज्य सभा दिवस के रूप में हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। 2018 से राज्य सभा एम. वेंकैया नायडु ने राज्य सभा दिवस समारोह में शामिल होकर इस आयोजन की गरिमा को और बढ़ाया है। राज्य सभा दिवस समारोहों में शिरकत करने वाले वे पहले उपराष्ट्रपति और सभापति राज्य सभा हैं।

राज्य सभा दिवस 2020 के मौके पर सभापति राज्य सभा ने सांसदों से आग्रह किया है कि वे जन सरोकारों पर सार्थक विमर्श द्वारा जनता के समक्ष प्रेरक मानदंड स्थापित करें। उन्होंने सांसदों, पूर्व सांसदों और राज्य सभा सचिवालय के अधिकारियों कमचारियों को शुभकामनाएं दी और कहा कि विगत दशकों में उच्च सदन ने भारतीय लोकतंत्र में स्वतंत्र, सौम्य और सार्थक संवाद की परंपरा को मजबूत बनाया है। यह स्थाई सदन, लोकतंत्र में परम्परा और परिवर्तन का द्योतक है। हम साथ मिल कर भारत को प्रगति, समृद्धि और उन्नति के नए शिखर तक पहुंचाने के लिए हरसंभव प्रयास करें और अपने संसदीय लोकतंत्र को और सार्थक एवं सक्षम बनाएं।

भारतीय संसद का उच्च सदन आज दुनिया के दो सदनों वाली लोकतंत्रिक व्यवस्थाओं में सबसे प्रभावशाली सदनों में गिना जाता है। स्थायी सदन के रूप में 1952 में अपनी स्थापना के बाद से राज्य सभा राष्ट्र निर्माण और सामाजिक बदलाव में ऐतिहासिक भूमिका निभाते हुए संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं पर खरी उतरी है। इस काम में राज्य सभा सचिवालय के अधिकारियों और कर्मचारियों की अनूठी भूमिका रही है, जो आम तौर पर इसकी रीढ़ की हड्डी की तरह काम करते हैं। हर साल राज्य सभा दिवस पर आयोजित होने वाले समारोहों में उच्च सदन की स्थापना काल से लेकर अब तक लंबे सफर के साक्षी रहे तमाम नए पुराने अधिकारी कर्मचारी शामिल होते हैं और एक दूसरे के अनुभवों से काफी कुछ जानते सीखते हैं।

अगर सत्रों की बात करें तो राज्य सभा की पहली बैठक 13 मई 1952 को हुई थी। अब तक राज्य सभा के 252 सत्र हो चुके हैं। इसके 200वें और 250वें सत्र के दौरान डाक टिकट भी जारी किए जा चुके हैं। उच्च सदन ने समय-समय पर अपनी उपयोगिता को साबित किया और तमाम आलोचकों को अपने कामकाज से जवाब दिया है। सार्थक बहसों के जरिये इसने संसदीय परंपरा को नया आयाम दिया और कई मील के पत्थर कायम किए हैं। डॉ. राधाकृष्णन से लेकर मौजूदा सभापति एम. वेंकैया नायडु के संरक्षण में उच्च सदन में लगातार नए प्रयोग और बदलाव समय के साथ होते रहे हैं।

एम वेंकैया नाय़डु के सभापति काल में राज्य सभा सचिवालय को आधुनिक रूप देने के साथ कई पहलुओं पर काम हुआ है। मानसून सत्र 2018 से सांसदों को ऑनलाइन नोटिस देने की सुविधा मिली। इसके लिए ई नोटिस पोर्टल बनाया गया और सांसदों और उनके सहयोगियों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी की गयी। इसका असर अब साफ दिखने लगा है। सांसद इलेक्ट्रानिक रूप से नोटिस दे रहे हैं। इस वेब आधारित सुविधा से उठाए जाने वाले सभी विधायी कामों, प्रश्नकाल, शून्य काल, विशेष उल्लेख, ध्यानाकर्षण और अल्पकालिक चर्चा से संबंधित सूचनाओं को आनलाइन प्रस्तुत कर रहे हैं। राज्य सभा सचिवालय ने इस दिशा में जो पहल की उसका असर उत्पादकता पर भी साफ दिख रहा। राज्य सभा सचिवालय ने सांसदों के लिए अति सुरक्षित लागिन पोर्टल के साथ ई-आफिस के तहत इलेक्ट्रानिक फाइल मैनेजमेंट सिस्टम समेत कई नयी पहल की है। ये सारे बदलाव बहुत सहज नही थे लेकिन राज्य सभा के महासचिव राज्य सभा देश दीपक वर्मा के नेतृत्व और दिशानिर्देश में सचिवालय ने इनको साकार किया।

उच्च सदन ने सभापति के निर्देश पर संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भारतीय भाषाओं के लिए भाषांतरण की व्यवस्था करके दुनिया की संसदों में एक नया इतिहास रचा है। महासचिव राज्य सभा ने इस अभियान में सिविल सोसायटी को भागीदार बनाते हुए नया और सफल प्रयोग किया। इसका असर यह रहा कि संथाली और कोंकणी जैसी भाषा में सांसद अपनी बात रखने लगे हैं। सभापति ने 11 मार्च 2018 को अपने राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि सम्मेलन में इस बात का संकेत दिया था कि वे इस व्यवस्था में लगे हैं कि हर सांसद मातृभाषा में बोल सके। लेकिन बहुत जल्दी और राज्य सभा के 246वें सत्र से उन्होने यह व्यवस्था साकार भी करा दी। सांसद अब अपनी भाषा में बिना किसी रुकावट अपना विचार रख रहे हैं।

कर्मचारियों और अधिकारियों के मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में सभापति ने कई मौकों पर खास भूमिका निभायी। 3 अप्रैल 1952 को उच्च सदन की स्थापना के बाद वे पहले सभापति बने जो 2018 में राज्य सभा दिवस समारोह में शामिल हुए। 2019 के राज्य सभा दिवस समारोह में सभापति ने अपने भाषण में कहा था कि अपेक्षाकृत कम समय में उनके जिन कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों की बहुत सराहना हुई, वे राज्य सभा सचिवालय द्वारा दी गई विशेषज्ञ सलाह की ही देन है। राज्य सभा सचिवालय के अधिकारियों और कर्मचारियों की उच्च स्तरीय व्यावसायिकता, दक्षता और प्रतिबद्धता की सभापति ने सराहना की।

दरअसल राज्यसभा सचिवालय को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। इसके पास एक से एक बेहतरीन अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम है जिनके पास शैक्षिक पात्रता के साथ कई क्षेत्रों की विशेषज्ञता है। कई अधिकारी संसदीय कामों के महारथी हैं। स्वतंत्र सचिवालय को लेकर भारत की संविधान सभा में भी काफी चर्चाएं हुई हैं। संविधान निर्माताओं ने सचिवालय को शक्ति संपन्न बना कर जो ऊजा दी उसका असर है कि सचिवालय के अधिकारी, पीठासीन अधिकारियों, सांसदों सदन और उसकी समितियों को दलीय राजनीति से दूर रह कर तथ्यात्मक सलाह देते हैं। जन आकांओं के अनुरूप बदलावों के साथ उन्होंने खुद को ढाला भी है। सचिवालय विधायी कामों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आवश्यक सचिवालयीय सहायता प्रदान करने के साथ सभा और समितियों दोनों के काम में हर समय मुस्तैदी से लगा रहता है। इससे राज्य सभा की कमेटियों के कामकाज को बेहतर बनाने की सभापति की कोशिशों का असर भी नजर आ रहा है।

वास्तव में संविधान की उप समिति के चार सदस्यों डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर, गोपालस्वामी अय्यंगर, के एम मुंशी और सरदार के एम पणिक्कर ने उस दौरान जो खाका बनाया था, राज्य सभा का वही स्वरूप है। उसी रिपोर्ट में उपराष्ट्रपति को सभापति बनाए जाने का प्रस्ताव था। धन विधेयक को छोड़कर दोनों सदनों के बराबर अधिकार और गतिरोध की स्थिति में संयुक्त बैठक बुलाए जाने और हर दो साल पर एक तिहाई सदस्यों के रिटायर होने का प्रावधान भी उसमें रखा गया था। डॉक्टर अम्बेडकर ने संसद की कार्यवाही को असरदार बनाने के लिए दोनों सदनों के लिए अलग सचिवालय के गठन की बात भी इसमें रखी थी। राज्य सभा की पहली बैठक यानि 13 मई, 1952 को पहले सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि- नई संसदीय व्यवस्था के तहत दूसरे सदन के साथ हम पहली बार शुरूआत कर रहे हैं और इस देश की जनता के सामने ये न्यायोचित ठहराने के लिए हमें अपनी पूरी शक्ति से कोशिश करनी चाहिए, कि दूसरा सदन कानूनों को जल्दबाजी में बनाए जाने से रोकने के लिए जरूरी है। जो प्रस्ताव हमारे सामने रखे जाएं, उन पर हमें निरपेक्ष और तटस्थ होकर चर्चा करनी चाहिए।

वित्तीय मामलों में भले ही लोकसभा की भूमिका सर्वोपरि है पर राष्ट्रीय हित में जरूरी होने पर संसद को राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने के लिए सक्षम बनाने में राज्यसभा की विशेष भूमिका है। राज्यसभा की केंद्र तथा राज्यों के लिए अखिल भारतीय सेवा के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इन सारे तथ्यो के आलोक में राज्य सभा की प्रासंगिकता अपनी जगह कायम है। बेहतरीन कामकाज और स्तरीय चर्चाओं से उच्च सदन अपनी गरिमा को लगातार बनाए हुए है। हाल में उठाए गए कदमों का सकारात्मक परिणाम भी साफ तौर पर दिख रहा है।
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