चर्चा में क्यों?
✨हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने भारतीय सेना हेतु हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट निर्मित की है।
डीआरडीओ द्वारा विकसित बुलेट प्रूफ जैकेट (बीपीजे) प्रमुख बिन्दु
✨रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की कानपुर स्थित लैब डिफेंस मैटेरियल्स एंड स्टोर्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (डीएमएसआरडीई) ने भारतीय सेना की गुणात्मक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए 9.0 किलोग्राम वजनी हल्के वजन वाली बुलेट प्रूफ जैकेट (बीपीजे) विकसित की है ।
✨फ्रंट हार्ड आर्मस पैनल (एफएचएपी) जैकेट का परीक्षण टर्मिनल बैलिस्टिक अनुसंधान प्रयोगशाला (टीबीआरएल), चंडीगढ़ में किया गया और इस परीक्षण ने प्रासंगिक बीआईएस मानकों को पूरा किया ।
✨इस महत्वपूर्ण विकास का महत्व इस तथ्य में निहित है कि बीपीजे के वजन में कमी का प्रत्येक ग्राम युद्धक्षेत्र में बने रहने के लिहाज से सैनिक का आराम बढ़ाने में महत्वपूर्ण है । इस तकनीक से मध्यम आकार के बीपीजे का वजन 10.4 से 9.0 किलोग्राम तक कम हो जाता है ।
हल्की बुलेट प्रूफ जैकेट निर्मित करने के लिए डीआरडीओ की प्रयोगशालाओं में बहुत विशिष्ट सामग्री और प्रक्रमण प्रौद्योगिकियों का विकास किया गया है ।
डीआरडीओ द्वारा हाल ही में विकसित अन्य सैन्य सामग्रियां एवं प्रयास के बारे में
भारत ड्रोन
✨भारत ड्रोन का विकास DRDO की चंडीगढ़ स्थित प्रयोगशाला द्वारा किया गया है।
✨स्वदेशी रूप से विकसित भारत ड्रोन की श्रृंखला को दुनिया के सबसे चुस्त और हल्के निगरानी ड्रोन्स की सूची में शामिल किया जा सकता है।
✨यह ड्रोन आर्टिफिशिलय इंटेलीजेंस से युक्त हैं जिससे ये दुश्मनों का सही पता लगाने और उसके अनुसार कार्रवाई करने में सक्षम हैं। इसके साथ ही यह अत्याधुनिक नाइट विजन सुविधा से भी युक्त है और यह घने जंगल में छिपे इंसानों का भी पता लगा सकता है।
✨इसकी यूनिबॉडी डिजाइन और एडवांस रिलीज टेक्नोलॉजी इसे निगरानी अभियानों के लिए अधिक उपयुक्त बनाती है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि रडार भी इसे नहीं पकड़ सकता है।
गौरतलब है की DRDO ने रुस्तम, पंछी, निसांत और अभ्यास ड्रोन का भी विकास किया है।
हिम तापक
✨हिम तापक डीआरडीओ द्वारा विकसित की गयी एक प्रकार की अंगीठी है जिसे बुखारी भी कहा जाता है।
✨इसे डीआरडीओ की शाखा कार्यकी और संबद्ध विज्ञान रक्षा संस्थान (DIPAS) विकसित किया गया है, यह डिवाइस में केरोसिन का ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
✨डीआरडीओ ने इसका विकास पूर्वी लद्दाख और सियाचिन जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात भारतीय सेना के रहने वाली जगह को गर्म रखने के लिए किया है।
✨सेनाओं के आवास स्थान को गर्म रखने वाली यह युक्ति जवानों को ब्लैकस्पॉट और कार्बन मोनोक्साइड के जहर से बचाव को अभी सुनिश्चित करती है।
यह डिवाइस पर्यावरण हितैषी भी है इसके उपयोग से प्रति बखारी प्रति वर्ष एक टन CO2 और 0.3 टन ब्लैक कार्बन को पर्यावरण में जाने से रोका जा सकता है।
‘अस्मी’(Asmi)
✨हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) पहली स्वदेशी 9 मिमी मशीन पिस्तौल ‘अस्मी’(Asmi) विकसित की है।
✨भारत की पहली स्वदेशी (first indigenous) 9 एमएम मशीन पिस्टल (9mm machine pistol) को संयुक्त रूप से डीआरडीओ तथा भारतीय सेना द्वारा विकसित किया गया है।
✨पिस्तौल का नाम ‘अस्मी’ (Asmi) रखा गया है जिसका अर्थ गर्व, आत्मसम्मान तथा कठिन परिश्रम है।
✨इस हथियार का डिजाइन और विकास कार्य इंफ्रेंटरी स्कूल, महोव (Mhow) तथा डीआरडीओ के आर्मामेन्ट रिसर्च एंड डवलेपमेंट स्टैब्लिशमेंट (एआरडीई), पुणे द्वारा अपनी विशेषज्ञताओं का उपयोग करते हुए किया गया है।
एलोकल क्रीम
✨ठंडे क्षेत्रों में तैनात सेना के लिए फ्रॉस्टबाइट एक प्रमुख स्वास्थ्य खतरा है। फ्रॉस्टबाइट उंगलियों विशेषकर पैर की उंगलियों के नुकसान के लिए जिम्मेदार है।
✨एलोकल क्रीम एलोवेरा आधारित क्रीम एक ऐसे क्रीम है जिसकी फ्रॉस्टबाइट के प्रति रोगनिरोधकता का ठंड की चोटों की रोकथाम के लिए बर्फीले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों पर सफलतापूर्वक अध्ययन किया गया है।
✨यह अत्यधिक ऊंचाई वाले ठंडे क्षेत्रों में ठंड की चोट को रोकने के साथ-साथ बैक्टीरिया के संक्रमण, जलन, अल्सर, घाव, त्वचा की सर्जिकल ड्रेसिंग के लिए भी उपयोगी है।
सोलर स्नो मेल्टर
✨डीआरडीओ ने बर्फीले सीमा क्षेत्रों में जवानों के पीने के पानी की समस्या दूर करने के लिए एक सोलर स्नो मेल्टर का विकास किया है।
✨यह उपकरण हर घंटे पांच से सात लीटर पीने का पानी उपलब्ध कराने में सक्षम है।
इसकी मददा से शून्य से कम तापमान वाले इलाकों में भी सेना के जवानों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। यह उपकरण बर्फ से पानी बनाने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करता है।
फ्लेक्सिबल वाटर बोतल
✨डीआरडीओ ने एक फ्लेक्सिबल वाटर बोतल भी विकसित की है, जिसमें पानी को शुद्ध करने के लिए फिल्टर भी लगाया गया है जिसे उपयोग न होने पर अलग भी किया जा सकता है।
✨यह बोतल -50 से 100 डिग्री तक के तापमान का सामना कर सकती है।
इसके अंदर पानी जमता नहीं है इसलिए यह ठंडे प्रदेशों में सेना के लिए पीने के पानी की उपलब्धता बनाए रखने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
अग्नि सुरक्षा प्रशिक्षण के लिए कौशल विकास केंद्र
✨अग्नि सुरक्षा प्रशिक्षण के लिए कौशल विकास केंद्र को दिल्ली स्थित डीआरडीओ के ‘अग्नि, विस्फोटक और पर्यावरण सुरक्षा प्रयोगशाला केन्द्र’(Centre for Fire, Explosive and Environment Safety -CFEES) द्वारा विकसित किया गया है।
भारत में अपनी तरह का यह पहला कौशल विकास केंद्र (एसडीसी) है।
इसे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाकर और यथार्थवादी पैमाने पर अग्नि के दृष्टिकोण से सिमुलेशन सिस्टम स्थापित करके बनाया गया है ताकि चुनौतियों का सामना किया जा सके व सशस्त्र बलों में रक्षा अग्निशमन सेवा के कार्मिकों और लड़ाकों के कौशल को बढ़ाया जा सके।
उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में 24 एकड़ क्षेत्र में फैली रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की इस सुविधा का उपयोग अग्निशमन रोकथाम और अग्निशमन प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों, डीआरडीओ, आयुध कारखानों, तटरक्षक बल और रक्षा उपक्रमों के अग्निशमन सेवा कर्मियों द्वारा किया जाएगा।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के बारे में
✨रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defense Research and Development Organization) भारत की रक्षा से जुड़े अनुसंधान कार्यों के लिये देश की अग्रणी संस्था है।
यह संगठन भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक आनुषांगिक ईकाई के रूप में काम करता है।
✨इसकी स्थापना 1958 में भारतीय थल सेना एवं रक्षा विज्ञान संस्थान के तकनीकी विभाग के रूप में की गयी थी।
वर्तमान में संस्थान की अपनी इक्यावन प्रयोगशालाएँ हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा उपकरण इत्यादि के क्षेत्र में अनुसंधान में कार्यरत हैं।
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