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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

‘मेक इन इंडिया’ नीति का जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति पर प्रभाव [GS-3]

संदर्भ:

हाल ही में, रेल मंत्रालय द्वारा ’उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) को लिखे एक पत्र में भारत के बाहर निर्मित कुछ मेडिकल उत्पादों, विशेषकर कोविड-19 और कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं, की खरीद के लिए छूट की मांग की गई है।

संबंधित प्रकरण

मौजूदा ‘मेक इन इंडिया’ नीति में, ‘स्थानीय आपूर्तिकर्ता श्रेणी’ के वर्ग-I और वर्ग-II हेतु आवश्यक ‘स्थानीय सामग्री मानदडों’ (Local Content Criteria) के पूरा नहीं करने पर आपूर्तिकर्ताओं से कुछ उत्पादों को खरीदने हेतु कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है।

● वर्ग-I के तहत वे स्थानीय आपूर्तिकर्ता या सेवा प्रदाता आते हैं, जिनके उत्पादों अथवा सेवाओं में स्थानीय सामग्री का भाग 50% अथवा इससे अधिक होता है।

● वर्ग-II के अंतर्गत वे आपूर्तिकर्ता या सेवा प्रदाता आते हैं, जिनके उत्पादों अथवा सेवाओं में स्थानीय सामग्री का भाग 50% से कम तथा 20% से अधिक होता है।

आपूर्तिकर्ताओं के केवल उपरोक्त दो वर्ग ही, अधिकतम 200 करोड़ रूपये की अनुमानित कीमत के भीतर, सभी प्रकार की वस्तुओं, सेवाओं की खरीद और अन्य कार्यो हेतु बोली लगाने के पात्र होंगे।

इसका प्रभाव:

कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं का निर्माण भारत से बाहर किया जाता है, और  भारतीय बाजार में एजेंटों या डीलरों के माध्यम से उपलब्ध होता है। निर्धारित अनिवार्यताओं को पूरा किए बिना, इन एजेंटों से इस प्रकार के उत्पाद नहीं खरीदे जा सकते हैं।

निष्कर्ष:

रेलवे कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों को संतोषजनक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने हेतु मानव जीवन रक्षक श्रेणी में इन दवाओं और चिकित्सा उत्पादों की निर्बाध आपूर्ति श्रृंखला अत्यंत आवश्यक है।

‘मेक इन इंडिया‘ नीति के बारे में:

भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ पहल का आरंभ 25 सितंबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में समर्पित निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्था में तेजी लाना है।

‘मेक इन इंडिया‘ के अंतर्गत लक्ष्य:

● अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने हेतु क्षेत्र की वृद्धि दर को 12-14% प्रतिवर्ष तक बढ़ाना।

● वर्ष 2022 तक अर्थव्यवस्था में 100 मिलियन अतिरिक्त विनिर्माण संबंधी नौकरियों का सृजन करना।

● वर्ष 2022 तक, (संशोधित 2025) सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान वर्तमान 15-16% से बढ़ाकर 25% सुनिश्चित करना।

अब तक के परिणाम:

● वर्ष 2013-14 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) $16 बिलियन था, जो वर्ष 2015-16 में बढ़कर $36 बिलियन हो गया। किंतु, इसके बाद FDI में वृद्धि नहीं हुई है, और भारतीय औद्योगिकीकरण में इसका योगदान नहीं हो पा रहा है।

● विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की पहले की तुलना में गिरावट दर्ज की गयी है। 2014-18 में 9.6 बिलियन डॉलर की तुलना में 2017-18 में यह घटकर 7 बिलियन डॉलर रह गया है।

● सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 23.5 बिलियन डॉलर है, जो कि विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में तीन गुना से अधिक है। यह उल्लेखनीय रूप से विकसित कंप्यूटर सेवाओं के संदर्भ में भारतीय अर्थव्यवस्था के पारंपरिक मजबूत बिंदुओं को दर्शाता है।

● विनिर्मित उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% है, जबकि पड़ोसी देश, चीन की इस क्षेत्र में 18% की भागेदारी है।
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