✴ गुरु नानक (1469-1539)
✴ अंगद (1539-52)
✴ अमरदास (1552-74)
✴ रामदास (1574-81)
✴ अर्जुन देव (1581-1606)
✴ हरगोबिन्द (1606-45)
इन्होंने सिखों को लड़ाकू जाति के रूप में परिवर्तित करने का कार्य किया। अमृतसर नगर में ही 12 फुट ऊँचा अकालतख्त का निर्माण करवाया। इन्होंने अपने शिष्यों को मांसाहार की भी आज्ञा दी। इन्हें जहाँगीर ने दो वर्ष तक ग्वालियर के किले में कैद कर रखा। इन्होंने कश्मीर में कीरतपुर नामक नगर बसाया वहीं इनकी मृत्यु भी हुई।
✴ हरराय (1645-61)
इन्हीं के समय में शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध हुआ था। सामूगढ़ की पराजय के बाद दाराशिकोह इनसे मिला था इससे नाराज होकर औरंगजेब ने हर राय को दिल्ली बुलाया ये स्वयं नही गये और अपने बेटे रामराय को भेज दिया। रामराय के कुछ कार्यों से औरंगजेब प्रसन्न हो गया। जबकि गुरू नाराज हो गये इस कारण अपना उत्तराधिकारी रामराय को न बनाकर अपने छः वर्षीय बेटे हरकिशन को बनाया।
✴ हरकिशन (1661-64)
अपने बड़े भाई रामराय से इनका विवाद हुआ। फलस्वरूप रामराय ने देहरादून में एक अलग गद्दी स्थापित कर ली इसके अनुयायी रामरायी के नाम से जाने गये। हरकिशन ने अपना उत्तराधिकारी तेगबहादुर को बनाया, हरकिशन की मृत्यु चेचक से हुई।
✴ तेग बहादुर (1664-75)
ये हरगोविन्द के पुत्र थे इन्हीं के समय में उत्तराधिकार का झगड़ा प्रारम्भ हुआ। 1675 में औरंगजेब ने तेग बहादुर को दिल्ली बुलवाया और इस्लाम स्वीकार करने को कहा। मना करने पर इनकी हत्या कर दी गई।
✴ गोविन्द सिंह (1675-1708)
ये शिखों के दसवें एवं अन्तिम गुरु थे। इनका जन्म 1666 में पटना में
हुआ। इन्होंने आनन्दपुर नामक नगर की स्थापना की और वहीं अपनी गद्दी स्थापित
की इनकी दो पत्नियाँ थी सुन्दरी एवं जीतू इनके कुल चार पुत्र हुए।
1. अजीत सिंह 2. जुझारू सिंह 3. जोरावर सिंह 4. फतेहसिंह।
इन्होंने हिमांचल प्रदेश में पाउन्टा नामक नगर की स्थापना की यह क्षेत्र इन्हें बहुत पसन्द था।
रचनायें:-गुरु गोविन्द सिंह के तीन ग्रन्थ प्रमुख हैं।
1. कृष्ण अवतार 2. विचित्र नाटक 3. चन्दी दीवर
1. कृष्ण अवतार:- इसकी रचना पाउन्टा में की।
2. विचित्र नाटक:- यह इनकी आत्मकथा है।
किलों का निर्माण:- गोविन्द सिंह ने आनन्दपुर नगर की सुरक्षा के लिए उसके आस-पास चार किले बनवाये।
1. आनन्दगढ़ 2. केशगढ़ 3. लौहगढ़ 4. फतेहगढ़।
गोविन्द सिंह के युद्ध:-
औरंगजेब के नेतृत्व में एक मुगल सेना ने पहाड़ी राज्यों पर आक्रमण किया
बाद में इस आक्रमण का नेतृत्व आलिफ खाँ ने सम्भाला, पहाड़ी शासक भीम चन्द्र
ने गोविन्द सिंह से सहायता की प्रार्थना की फलस्वरूप नादोन का युद्ध हुआ।
नादोन का युद्ध (1690):- इस युद्ध में पहाड़ी सेना की तरफ से गोविन्द सिंह एवं मुगलसेना बीच मुकाबला हुआ। गोविन्द सिंह की
विजय हुई इसी विजय के बाद उन्होंने खालसा की स्थापना की।
खालसा पन्थ स्थापना(1699):-
खालसा का अर्थ शुद्ध होता है। बैशाखी के अवसर पर इन्होंने अपने अनुयायियों
को केशगढ़ बुलाया यहाँ बड़े नाटकीय ढंग से उनकी परीक्षा ली इनमें अपना
जीवन बलिदान करने के लिए पाँच लोग आगे आये ये पन्च प्यारे कहलाये इनके नाम
थे-
1. दयाराम खत्री (लाहौर का) 2. धर्मदास (दिल्ली का जाट) 3.
मोहकमचन्द्र छाम्बा (द्वारका का दर्जी) 4. हिम्मत भीवर (जगन्नाथ का) 5.
साहबचन्द्र (बीदर का नाई)
इसी समय से सिख अनुयायियों ने अपने नाम के आगे
सिंह और महिलाओं ने कौर लगाना शुरू किया। गुरु ने सिखों से पाँच वस्तुयें
धारण करने को कहा- 1. केश 2. कंघा 3. कच्छा 4. कड़ा 5. कृपाल-इसे पंचककार
के नाम से जाना जाता है गोविन्द सिंह ने 20,000 की खालसा सेना भी तैयार की।
आनन्दपुर का प्रथम युद्ध (1701ई0):- औरंगजेब
के आदेश पर पहाड़ी राजा भीमचन्द्र ने आनन्दपुर पर आक्रमण किया परन्तु
पहाड़ी सेना पराजित हुई अतः उसकी सहायता के लिए सरहिन्द के सूबेदार वजीर
खाँ ने एक सेना भेजी फलस्वरूप आनन्दपुर का द्वितीय युद्ध हुआ।
आनन्दपुर का द्वितीय युद्ध (1704):-
इसी युद्ध में गोबिन्द सिंह के दो बेटों जोरावर सिंह एवं फतेहसिंह को
सरहिन्द लाकर के दीवार में जिन्दा चुनवा दिया गया इनकी माँ भी इनके साथ थी।
जो यह दृश्य देखकर मृत्यु को प्राप्त हो गईं।
चकमौर का युद्ध (1705):-
इस युद्ध में गोविन्द सिंह के अन्य दो बेटे अजीत सिंह और जुझारु सिंह भी
मारे गये। इन युद्धों के दौरान आदि ग्रन्थ लुप्त हो गया। अतः शुरु ने इसका
पुनः संकलन करवाया। इसी कारण इसे दशम पादशाह का ग्रन्थ भी कहा जाता है।
औरंगजेब
की मृत्यु के बाद ये दक्षिण चले आये नानदेर नामक स्थानपर गोदावरी नदी के
तटपर एक पठान अजीम खान द्वारा इनकी हत्या कर दी गई। इनकी मृत्यु के साथ ही
गुरु का पद समाप्त हो गया। गुरु गोविन्द सिंह ने अपने एक शिष्य बन्दा
बहादुर को राजनीतिक नेतृत्व ग्रहण करने को कहा जिसमें गोविन्द सिंह की
मृत्यु के बाद मुगलों से संघर्ष जारी रखा।
बन्दा बहादुर (1708-1716)
गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु के बाद शिखों का नेतृत्व बन्दा बहादुर ने सम्भाला यह शिखों का पहला राजनीतिक नेता हुआ इसने प्रथम सिख राज्य की स्थापना की तथा गुरुनानक तथा गुरु गोविन्द सिंह के नाम के सिक्के चलवाये।बन्दाबहादुर जम्मू का रहने वाला था इसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था बाद में इसका नाम माधव दास रखा गया, बैराग्य ग्रहण करने के कारण इसे माधव दास बैरागी कहा गया। इसकी मुलाकात गुरुगोविन्द सिंह से आन्ध्र प्रदेश के नान्देर में हुई। गुरु से प्रभावित होकर इसने अपने आप को गुरु का बन्दा कहा तब से इसका नाम बन्दा बहादुर पड़ गया गुरु ने इसका एक नया नाम गुरु बख्श सिंह रखा।
1716 ई0 में फरुखसियर के समय में गुरुदासपुर के पास हुये युद्ध में इसे घेर लिया गया इसे पकड़कर दिल्ली लाया गया और फरुखसियर ने इसे 1716 में फाँसी दे दी।
सरबत खालसा एवं गुरुमत्ता:- बन्दा बहादुर की मृत्यु के बाद सिखों में सरबत खालसा एवं गुरुमत्ता प्रयासों का प्रचलन हुआ। शिख लोग जब इकट्ठे होते थे तब इसे सरबत खालसा एवं इकट्ठे होकर जो निर्णय लेते थे उसे गुरुमत्ता कहा गया।
दल खालसा:- 1748 में कपूर सिंह के नेतृत्व में सिखों के छोटे-छोटे वर्ग दल-खालसा के अन्तर्गत संगठित हुए इस संगठन ने सिखों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए राखी-प्रथा का प्रचलन किया। इस प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक गाँव से वहाँ की उपज का 1/5 भाग लिया जाता था। उस गाँ की सुरक्षा का भार भी लिया जाता था।
पानीपत के तृतीय युद्ध ये मराठे कमजोर हो गये अतः सिखों को फिर से उभरने का मौका मिला। इसी समय पंजाब में छोटे-छोटे सिख राज्यों की स्थापना हुई ये मिसाल कहलाते थे। इसेमें 12 मिसाले प्रमुख थी। इनमें भी पाँच अत्यन्त शक्तिशाली थी-भंगी, अहलुवालिया, सुकेरचकिया, कन्हिया तथा नक्कई इसमें भंगी मिसल सर्वाधिक शक्तिशाली थी इसका अमृतसर लाहौर और पश्चिमी पंजाब के कुछ इलाकों पर अधिकार था। सुकेर चकिया मिसल के प्रधान महासिंह थे 1792 में उनकी मृत्यु के बाद इसका नेतृत्व रणजीत सिंह ने सम्भाला।
✴ रणजीत सिंह (1792-1839)
जब सिख 12 मिसलों में विभाजित हो गये उस समय सुकेरचकिया मिसल के प्रमुख के रूप में रणजीत सिंह ने प्रमुखता पाई।
राजधानी- लाहौर
धार्मिक राजधानी-अमृतसर
रणजीत सिंह की उपलब्धियों को उनकी विजयों अंग्रेजों के साथ उनके सम्बन्ध और उनके प्रशासन के आधार पर अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
विजयें:-
अफगानिस्तान के शासक जमानशाह ने 1797 ई0 में रणजीत सिंह पर आक्रमण किया।
रणजीत सिंह की सेना ने उसका लाहौर तक पीछा किया वापस जाते समय जमानशाह की
12 तोपें चिनाव में गिर गईं। रणजीत सिंह ने उसे निकलवाकर वापस भिजवा दिया
इस सेवा के बदले में जमान शाह ने रणजीत सिंह को लाहौर पर अधिकार करने की
अनुमति दे दी अतः रणजीत सिंह ने 1799 ई0 में लाहौर पर अधिकार कर लिया। 1805
में अमृतसर को जीत लिया। 1818 में मुल्तान की विजय की। 1819 में कश्मीर की
विजय की। 1834 में पेशावर की विजय की।
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