मुंशी प्रेमचंद से संबंधित महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर ।।
प्रश्न:-1 प्रेमचंद का पहली कहानी संग्रह 'सप्त सरोज' कब प्रकाशित हुआ -
अ)1917 ✅
ब)1919
स)1922
द)1927
प्रश्न:-2 प्रेमचंद का पहला विधवा विवाह पर आधारित हिंदी उपन्यास "प्रेमा" कब प्रकाशित हुआ-
अ)1906
ब)1907 ✅
स)1916
द)1917
प्रश्न:-3 विश्व प्रसिद्ध हिंदी व उर्दू के कथाकार मुंशी प्रेमचंद की तुलना किन-किन से की है-?
अ) गोर्गि और लूशून
ब)गोर्की और लूशून ✅
स)सोजे ओर वतन
द) बाबू गुलाबराय बनारसी
प्रश्न:-4 प्रेमचंद का प्रसिद्ध उपन्यास निम्नलिखित में से कौन-सा है जो हिंदी का "प्रथम मौलिक एवं युगांतकारी" उपन्यास माना जाता है-
अ)प्रेमा
ब)गोदान
स)सेवासदन✅
द) कफन
प्रश्न:-5 प्रेमचंद की पहली रचना उर्दू लेख जो -'ओलिवर क्रामवेल' शीर्षक से बनारस के उर्दू साप्ताहिक पत्र में किस नाम से धारावाहिक रुप में प्रकाशित हुई-
अ)असरारे आबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य
ब)सोजे वतन
स)आवाज़ -ए -अल्ख
द)आवाज- ए -खल्क✅
प्रश्न:-6 प्रेमचंद की पहली मौलिक कहानी जो सन 1907 में 'जमाना' में प्रकाशित हुई -किस नाम से जानी जाती है-?
अ)सोजे वतन
ब)बड़े घर की बेटी
स)संसार का अनमोल रतन ✅
द)दो बैलों की कथा
प्रश्न:-7 प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने शीर्षक 'प्रेमचंद घर में' पुस्तक कब प्रकाशित करवाई थी-
अ)1935
ब)1940
स)1944 ✅
द)1956
प्रश्न:-8 प्रेमचंद के उपन्यास ''प्रेमा, सेवा सदन, निर्मला, गबन'' का कालक्रम निर्धारित करें-
अ)1907, 1918, 1927, 1931✅
ब)1907, 1927 ,1936 ,1932
स)1918, 1907, 1927, 1931
द) ऊपर लिखित सभी
प्रश्न:-9 निम्नलिखित में से कौन सी कहानी प्रेमचंद की नहीं है-
अ)परीक्षा
ब)सुजान भगत
स)कजाकी
द)ग्राम✅
प्रश्न:-10 मुंशी प्रेमचंद की पत्रिकाओं का निम्नलिखित में से सही समूह है-
अ)जागरण, सरस्वती ,मर्यादा, माधुरी
ब)हंस ,मर्यादा ,इंदुमति ,जागरण स)जागरण ,मर्यादा, माधुरी, हंस✅
द)सरस्वती, माधुरी, हंस, मर्यादा
______________________________________________
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखे गए कुछ महत्वपूर्ण वक्तव्य।।
जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।
लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?
Munshi Premchand, गोदान
और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ।
Premchand, Mansarovar -
बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।
Munshi Premchand, गोदान
इतना पुराना मित्रता-रूपी वृक्ष सत्य का एक झोंका भी न सह सका। सचमुच वह बालू की ही ज़मीन पर खड़ा था।
Munshi Premchand, पंच-परमेश्वर
वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।
Munshi Premchand, प्रेमचंद
और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी। "यह चिमटा कहाँ था?" "मैंने मोल लिया है।" "कै पैसे में?" "तीन पैसे दिये।" अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुई, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा! बाेली, "सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?" हामिद ने अपराधी-भाव से कहा, "तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया।" बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिख़ेर देता है। यह मूक स्नेह था, ख़ूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सदभाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा! इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही । अमीना
हमें कोई दोनों जून खाने को दे, तो हम आठों पहर भगवान का जाप ही करते रहें।
मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है,
जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
हम जिनके लिए त्याग करते हैं उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।
Munshi Premchand, गोदान
गुड़ घर के अंदर मटकों में बंद रखा हो, तो कितना ही मूसलाधार पानी बरसे, कोई हानि नहीं होती; पर जिस वक़्त वह धूप में सूखने के लिए बाहर फैलाया गया हो, उस वक़्त तो पानी का एक छींटा भी उसका सर्वनाश कर देगा ।
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
धर्म और अधर्म, सेवा और परमार्थ के झमेलों में पड़कर मैंने बहुत ठोकरें खायीं। मैंने देख लिया कि दुनिया दुनियादारों के लिए है, जो अवसर और काल देखकर काम करते हैं। सिद्धान्तवादियों के लिए यह अनुकूल स्थान नहीं है
बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज - एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।
Premchand, Mansarovar -
स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
स्त्री गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मैके की निंदा उससे नहीं सही जाती। आनन्दी
Munshi Premchand, Mansarovar 2, Hindi (मानसरोवर 2): प्रेमचंद की मशहूर कहानियां
अज्ञान की भाँति ज्ञान भी सरल, निष्कपट और सुनहले स्वप्न देखनेवाला होता है। मानवता में उसका विश्वास इतना दृढ़, इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। यह वह भूल जाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों की निरीहता का जवाब सदैव पंजे और दाँतों से दिया है। वह अपना एक आदर्श-संसार बनाकर उसको आदर्श मानवता से आबाद करता है और उसी में मग्न रहता है। यथार्थता
Munshi Premchand, गोदान [Godan]
जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ जाते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है।
Munshi Premchand, पंच-परमेश्वर
जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!
जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।
Munshi Premchand, कर्मभूमि
सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, सुन्दरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही किसान को अपने खेतों को लहराते हुए देखकर होता है।
Munshi Premchand, Mukti Marg
न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं
Munshi Premchand, मानसरोवर
नाटक उस वक्त पास होता है, जब रसिक समाज उसे पंसद कर लेता है। बरात का नाटक उस वक्त पास होता है, जब राह चलते आदमी उसे पंसद कर लेते हैं।
Premchand, गबन
0 comments:
Post a Comment