👉रीतिकालीन मुक्त या स्वछन्द काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि
👉 जन्म 1746 ई.
👉 दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह रँगीले के दरबार मे मीर मुंशी थे ।
👉 दरबार की नर्तकी "सुजान" से अटूट प्रेम था ।
👉 सुजान की बेवफाई से निराश और विरक्त हो वृन्दावन चले गए, निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित हो भक्त रूप में जीवनयापन किया ।
👉घनानंद मूलतः प्रेम की पीर के कवि थे ।
👉 इनके लिखे 41 ग्रंथ बताए जाते है जिनमे से - सुजान -सार, विरह -लीला , कोकसार, रसकेलि -वल्ली प्रमुख है ।
👉 प्रस्तुत पाठ में इनके 5 छंद संकलित है , जिसमे प्रेम की पीड़ा का वर्णन है ।
👉 भए अति निठुर ,मिटाय पहचानि डारी ।
याहि दुःख हमैं जक लागी हाय हाय है । - प्रयुक्त छंद है - कवित्त
👉कित प्यासनि मारत मोही - का भाव है - दर्शनों से वंचित क्यो किए हुए हो ।
👉 'भोर तैं सांझ लौं कानन -ओर निहारति ।' विरही के वन की और निहारने का कारण - ताकि गौचारण को गमन श्री कृष्ण के दर्शन हो जाए / प्रिय प्रेमी के दर्शन हेतु।
👉'काहू कलपाय है, सुं कैसे कल पाय ' में अलंकार है - यमक
👉 "मीत सुजान अनीति करौ जिन " प्रेयसी सुजान को घनानंद ऎसा क्यो कहते है - निष्ठुर और निर्मोही बनी रहने के कारण ।
👉 घनानंद के काव्य में स्वानुभूति और उदात्त प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है ।
👉"यहां एक ते दुसरो आंक नही " इसमे पहला आँक क्या है - अगाध प्रेम ।
👉 "हेत -खेत -धूरि चूरि -चूरि साँस पाँव राखि "अलंकार है - रूपक
👉"साँझ तै भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों एक तार न
टारति " - अलंकार है ।
- 'तारनि ताकीबो तारनि ' में अनुप्रास और तारनि शब्द दो बार भिन्नार्थ में प्रयुक्त अतः यमक अलंकार होगा ।
👉'आस रहे बसि प्रान - बटोही ' में अलंकार - रूपक
👉 'मन लेहु पै देहु छटाँक नही ' अंलकार है - श्लेष
👉 अंगारो पर लेटना - मुहावरे का अर्थ है - व्याधि या कष्ट सहना
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