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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

रस (CTET/ UPTET Study Material)

प्रश्न – हिन्दी व्याकरण में रस का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – रस को काव्य की आत्मा माना गया है।

प्रश्न – स्थायी भाव किसे कहते हैं?
उत्तर – रस रुप में पुष्ट परिणत होने वाला तथा सम्पूर्ण प्रसंग में व्याप्त रहने वाला भाव स्थायी भाव कहलाता है।

प्रश्न – स्थायी भाव कौन-कौन से हैं?
उत्तर – स्थायी भाव मुख्यत: नौ माने गये हैं- रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निर्वेद।

प्रश्न – संचारी भाव को स्पष्ट करें।
उत्तर – आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। जैसे- श्रृंगार रस के प्रकरण में शकुन्तला से प्रीतिबद्ध दुष्यन्त के चित्त में उल्लास, चपलता, व्याकुलता आदि भाव संचारी हैं। इन्हं व्यभिचारी भाव भी कहते हैं।

प्रश्न – हिंदी व्याकरण के रस और उनके स्थायी भाव को स्पष्ट करें।
उत्तर – रस और उनके स्थायी भाव निम्नलिखित हैं-
श्रृंगाररति
हास्यहास
करुणाशोक
रौद्रक्रोध
वीरउत्साह
भयानकभय
वीभत्सजुगुप्सा
अदभुतविस्मय
शांतनिर्वेद
वात्सल्यसन्तान विषयक रति
भक्ति रसभगवद् विषयक रति
प्रश्न – विभाव किसे कहते हैं?
उत्तर – जो व्यक्ति, वस्तु, परिस्थितियां आदि स्थानों को जागृति या उद्दीप्ति करते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं-1. आलम्बन और 2. उद्दीपन।

प्रश्न – आलम्बन विभाव को स्पष्ट करें।
उत्तर – स्थायी भाव जिन व्यक्तियों, वस्तुओं आदि का अवलम्ब लेकर अपने को प्रकट करते हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं। इसके दो भेद हैं- विषय और आश्रय।

प्रश्न – आलम्बन विभाव के विषय को स्पष्ट करें।
उत्तर – जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण आश्रय के चित्त में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं उसे विषय कहते हैं।

प्रश्न – आलम्बन विभाव के आश्रय को स्पष्ट करें।
उत्तर – जिस व्यक्ति के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय कहते हैं।

प्रश्न – उद्दीपन विभाव को स्पष्ट करें।
उत्तर – भाव को उद्दीपन अथवा तीव्र करने वाली वस्तुएं, चेष्टाएं आदि उद्दीपन विभाव कहलाती हैं।

प्रश्न – श्रृंगार रस किसे कहते हैं?
उत्तर – सहृदय के चित्त में रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारीभाव से संयोग होता है तब वह श्रृंगार रस का रुप धारण कर लेता है। इसके दो भेद होते हैं- संयोग और वियोग।

प्रश्न – संयोग श्रृंगार रस किसे कहते हैं?
उत्तर – जहां पर नायक एवं नायिका की संयोगावस्था का वर्णन होता है, वहां पर संयोग श्रृंगार होता है। जैसे-

मग को श्रम श्रीपति दूरि करे सिय को शुभ बाकल अंचल सो।

श्रम तेऊ रहे तिनको कहि केशव अंचल चारु दृगंचल सो।।

प्रश्न – वियोग श्रृंगार रस किसे कहते हैं?
उत्तर – जहां नायक एवं नायिका के मिलन का अभाव और विरह का वर्णन होता है, वहां वियोग श्रृंगार होता है, जैसे-

देख-हु तात बसन्त सुहावा। प्रिया हीन मोहि उर उपजावा।।

प्रश्न – हास्य रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – अपने अथवा पराये परिधान, वचन अथवा क्रिया-कलाप आदि से उत्पन्न हुआ हास नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से हास्य का रुप ग्रहण करता है। उदाहरण-

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।

प्रश्न – करुण रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह अथवा इच्छित वस्तु की अप्राप्ति से उत्पन्न होने वाला शोक आदि भाव के सम्मिश्रण को करुण रस कहते हैं। अर्थात् शोक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से करुण रस की दशा को प्राप्त होता है। उदाहरण-

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिवर करहीना।।

प्रश्न – रौद्र रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – किसी के द्वारा क्रोध में किये गये अपमान आदि से उत्पन्न भाव की परिपक्वावस्था को रौद्र रस कहते हैं।

सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चाप खण्ड महि डारे।।

प्रश्न – वीर रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – उत्साह नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से वीर रस की दशा को प्राप्त होता है। उदाहरण-

मानव समाज में अरुण पड़ा, जल जन्तु बीच हो वरुण पड़ा।

प्रश्न – भयानक रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – किसी भयानक दृश्य को देखने से उत्पन्न भय की पूर्णावस्था को भयानक रस कहते हैं। अर्थात भय नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी से संयोग से भयानक रस का रुप ग्रहण करता है। उदाहरण-

बावधी विशाल विकरालस ज्वाल जाल मानौ।

लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है।

प्रश्न – वीभत्स रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – घृणोत्पादक वस्तुओं के दर्शन आदि से घृणा स्थायी भाव की जागृति होने पर वीभत्स रस की उत्पत्ति होती है।

कोऊ अंतडिनी की पहिरिमाल इतरात दिखावत।

कोउ चरबी लै चोप सहित निज अंगनि लावत।।

प्रश्न – अदभुत रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – विस्मय नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से अदभुत रस की दशा को प्राप्त होता है, यथा-

इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।।

प्रश्न – शान्त रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – निर्वेद नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से शान्त रस का रुप ग्रहण करता है उदाहरण-

अब लौं नसानी अब न नसैहैं।

पायों नाम चारु चिंतामनि उर कर ते न खसैहौं।

प्रश्न – वात्सल्य रस को स्पष्ट करें।
उत्तर – पुत्र विषयक रति नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से वात्सल्य रस संपुष्ट होता है। जैसे-

जसोदा हरि पालने झुलावैं।

हलरावै दुलराई मल्हावै, जोइ-सोइ कछु गावैं।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

“मैं नीर भरी दु:ख की बदली।”
उत्तर – किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह अथवा इच्छित वस्तु की अप्राप्ति से उत्पन्न होने वाला शोक आदि भाव के सम्मिश्रण को करुण रस कहते हैं।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।
उत्तर – अपने अथवा पराये परिधान, वचन अथवा क्रिया-कलाप आदि से उत्पन्न हुआ हास नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से हास्य का रुप ग्रहण करता है। अत: इस पंक्ति में हास्य रस है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

हाय राम कैसे झेले हम अपनी लज्जा अपना शोक।

गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र पिता परलोक।।
उत्तर – किसी प्रिय व्यक्ति के चिर विरह अथवा इच्छित वस्तु की अप्राप्ति से उत्पन्न होने वाला शोक आदि भाव के सम्मिश्रण को करुण रस कहते हैं। अत: इऩ पंक्तियों में करुण रस है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

सुनत बचन फिरि अनत निहारे। देखे चाप खण्ड महि डारे।।

अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।।
उत्तर – किसी के द्वारा क्रोध में किये गये अपमान आदि से उत्पन्न भाव की परिपक्वावस्था को रौद्र रस कहते हैं अर्थात् क्रोध नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रौद्र रस का रुप धारण कर लेता है। अत: इन पंक्तियों में रौद्र रस का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

आये होंग यदि भरत कुमति-वश वन में

तो मैंने यह संकल्प किया है मन में-

उनको इस शर का लक्ष्य चुनूंगा क्षण में,

प्रतिशोध आपका भी न सुनूंगा रण में।
उत्तर – उत्साह नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से वीर रस की दशा को प्राप्त होता है। अत: इन पंक्तियों में वीर रस का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

बालधी विशाल विकराल, ज्वाल जाल मानौ।

लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है।
उत्तर – किसी भयानक दृश्य को देखने से उत्पन्न भय की पूर्णावस्था को भयानक रस कहते हैं। अत: इन पंक्तियों में भयानक रस है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी।

हरषित महतारी मुनि मन हारी अदभुत रुप बिचारी।

लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुध भुजचारी।

भूषन बनमाला नयन विशाला शोभा सिंधु खरारी।
उत्तर – विस्मय नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से अदभुत रस की दशा को प्राप्त होता है। अत: इन पंक्तियों में अदभुत रस है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा रस है?

या लकुटी अरु कामरिया पर

राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि नवो निधि को सुख

नन्द की गाय चराय विसारौ।।
उत्तर – निर्वेद नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से शान्त रस का रुप ग्रहण करता है। अत: इन पंक्तियों में शांत रस है।

प्रश्न – वात्सल्य रस किसे कहते  हैं?

छोटे बालकों के बाल सुलभ मानसिक क्रिया-कलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वावस्था को वात्सल्य रस कहते हैं।

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