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124वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2019 पारित : सामान्य वर्ग को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर 10% आरक्षण

■124वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2019■

[सामान्य वर्ग को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण]

संसद के शीतकालीन सत्र को एक दिन के लिए बढ़ाकर दिनांक 8/1/2019 को केंद्र सरकार ने लोकसभा में 124 वाँ संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया जो उसी दिन लोकसभा से पारित हो गया। इस विधेयक के पक्ष में 323 और विपक्ष में मात्र 3 मत पड़े। भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर संविधान में संशोधन किया जा रहा है। सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री श्री थावरचंद गहलोत ने इस विधेयक को प्रस्तुत किया।

संविधान के अनुच्छेद 15 में शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान किया गया है वही अनुच्छेद 16 में लोक नियोजन ( सरकारी नौकरियों) में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक जैसे ही महामहिम राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित हो जाता है तो वैसे ही संविधान में 103 वां संविधान संशोधन अधिनियम(एक्ट) हो जाएगा।

इस संविधान संशोधन विधेयक की खास बात ये है कि इससे कोई भी नया अनुच्छेद नही जोड़ा जा रहा है और ना ही किसी अनुच्छेद को हटाया जा रहा है। अनुच्छेद 15(5) और 16(5) में नया खंड जुड़ेगा जो सामान्य वर्ग को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण का प्रावधान करेगा।

कई प्रश्न अपने ज़ेहन में हैं मैं क्रमवार उत्तर देने का प्रयास करूंगा..
१.क्या भारत में आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है?
उत्तर- जी हाँ
इससे पहले पीवी नरसिम्हा राव सरकार की इस पहल को सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ विवाद ( मंडलवाद) को दिनांक 16 नवम्बर1992 को निर्णय देते हुए रद्द कर दिया था। रद्द करने का कारण- अनुच्छेद 15(5) व् 16(5) में सामाजिक पिछड़ापन, शैक्षणिक पिछड़ापन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व शब्द ही उल्लेखित है। इन अनुच्छेदो में आर्थिक पिछड़ापन शब्द का उल्लेख नही होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था।

राजस्थान में पिछले 10 वर्षों में अशोक गेहलोत और वसुन्धरा राजे सरकार ने भी सवर्णों को आरक्षण देने के विधेयक पारित किए थे  मगर आर्थिक पिछड़ापन शब्द उल्लेखित  ना होने के कारण वे एक्ट का रूप नही ले पाये।
संविधान में संशोधन( जिसकी शक्ति केवल संसद के पास है राज्य विधानमण्डलो के पास  नही) के बिना आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण नही दिया जा सकता।

नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 46 (जिसमे उल्लिखित है कि आर्थिक पिछड़ापन दूर करना सरकार का दायित्व है)
से प्रेरणा लेकर सरकार ने इस 124 वें विधेयक को प्रस्तुत किया। 9 वी अनुसूची में इस विधेयक को डालने के लिए सरकार को एक और संशोधन करना पड़ेगा। साथ ही इस विधेयक के एक्ट बनने के बाद गजट नोटिफिकेशन जारी होने के बाद ही इसे कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है, और कोर्ट द्वारा इसे रद्द करने के 2 ही आधार है..

1) कि यह एक्ट संविधान की आधारभूत संरचना का उल्लंघन करता हैं- ये कोर्ट तय करेगा कि ऐसा सचमुच हो रहा है या नही क्योंकि जब 1950 को संविधान लागु हुआ तब आर्थिक पिछड़ापन शब्द का प्रावधान नही था।

2) इंदिरा साहनी वाद 1992 में कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण 50% की सीमा से अधिक नही होगा?आज वर्तमान में SC को 15% ST को 7.5%और ओबीसी को 27% आरक्षण प्राप्त है यानि टोटल 49.5% अब अगर आर्थिक आधार पर भी 10% आरक्षण दिया जाए तो यह बढ़कर 59.5% हो जाएगा मगर इसी इंदिरा साहनी वाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि विशेष परिस्थितियों में इस आरक्षण को 50% से भी बढ़ाया जा सकता है । जिसका एक प्रमुख उदाहरण है तमिलनाडु राज्य जहाँ 69% आरक्षण है।
अतः सरकार को सुप्रीम कोर्ट में यह साबित करना होगा कि यहाँ इस विधेयक में भी विशेष परिस्थितिया लागू है।

124 वें विधेयक में आय सीमा 8 लाख और भूमि आदि प्रावधानों का कही पर भी उल्लेख नहीं है। यह एक सरकारी आँकड़ा मात्र है, जो ओबीसी क्रीमीलेयर सीमा से लिया गया है .. इस 124 वे विधेयक में आर्थिक पिछड़ापन को परिभाषित नहीं किया गया है । आर्थिक पिछड़ापन का मापदण्ड सरकार अलग से तय कर सकेगी । इस विधेयक से SC, ST, ओबीसी  के आरक्षण पर कोई हानिकारक प्रभाव नही पड़ेगा!

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