सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2018 को लेकर सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाने और मुख्य रिट पिटीशन की पेंडेंसी के दौरान फाइनेंस एक्ट 2017 के जरिए किए गए कुछ संशोधनों को लेकर दायर याचिका पर यह नोटिस जारी किया है।
जाने क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों की फंडिग की व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए बनाया गया एक वचन पत्र है जिसे भारतीय रिजर्व बैंक जारी करता है। इलेक्टोरल बॉन्ड बैंक नोट की तरह ही होते हैं, जिसके मानकों का पालन राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले से फंड लेने के दौरान करना होता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड ब्याज मुक्त होते हैं। इन्हें किसी भी भारतीय नागरिक या भारतीय संस्था द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की अधिकृत शाखाओं से खरीदा जा सकता है।
2017 के यूनियन बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम की घोषणा के बाद इन्हें पहली बार 1 मार्च 2018 को दान कर्ताओं द्वारा खरीदने के लिए जारी किया गया था। इस दौरान कई राज्यों में चंदादाताओं इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे थे।
इनका इस्तेमाल पिछले लोकसभा चुनावों में 1 प्रतिशत या उससे ज्यादा वोट पाने वाले राजनीतिक दलों को फंड देने के लिए किया जा सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड के तीन हिस्से-
पहला, डोनर जो राजनीतिक दलों को चंदा देना चाहता है। वह कोई व्यक्ति, संस्था या कंपनी हो सकती है।
दूसरा, देश के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल जो इसके जरिए चंदा लेते हैं।
तीसरा रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया जिसके तहत ये पूरी व्यवस्था है।
इलेक्टोरल बॉन्ड के फायदे
राजनीतिक चंदे की व्यवस्था में पारदर्शिता का दावा
दान कर्ताओं को किसी प्रकार के उत्पीड़न से सुरक्षा मिलेगी
तीसरे पक्ष के सामने जानकारी का कोई खुलासा नहीं होगा
चंदे पर कर अवलोकन की निगरानी होगी
राजनीतिक दलों को मिलने वाले काले धन पर लगाम लग सकेगी ।
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