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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

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एंग्लो इंडियन कौन होते हैं और उनके पास संसद में क्या अधिकार होते हैं?

संविधान के अनुच्छेद 366 (2) के तहत एंग्लो इंडियन ऐसे किसी व्यक्ति को माना जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों. यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों. भारत का राष्ट्रपति इस समुदाय के दो लोगों को चुनकर लोकसभा में भेज सकता है.

भारत में 17वीं लोकसभा के गठन के लिए अभी अप्रैल 2019 में चुनाव चल रहे हैं. देश में लोकसभा के लिए कुल 552 सीटें (530 राज्यों से +20 केंद्र शासित प्रदेश + 2 एंग्लो इंडियन्स) हो सकतीं हैं लेकिन चुनावों में सिर्फ 543 सीटों के लिए मतदान कराया जा रहा है जिनमें से 523 सीटें राज्यों से जबकि 20 सीटें केंद्र शासित प्रदेशों से भरी जाती हैं.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर एंग्लो इंडियन लोग कौन होते हैं इनको संसद और विधान सभा में क्यों भेजा जाता है?

एंग्लो इंडियन किन्हें कहा जाता है ?

संविधान के #अनुच्छेद_366 (2) के तहत एंग्लो इंडियन ऐसे किसी व्यक्ति को माना जाता है जो भारत में रहता हो और जिसका पिता या कोई पुरुष पूर्वज यूरोपियन वंश के हों. यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कि भारत में काम कर रहे हों और भारतीय मूल के हों.

एंग्लो-इंडियन शब्द को भारत सरकार अधिनियम, 1935 में परिभाषित किया गया था. इसके अनुसार “a person whose father or any of whose other male progenitors in the male line is or was of European descent but who is a native of India.”

एंग्लो-इंडियन के भारत में आने की शुरुआत उस समय हुई थी जब अंग्रेज भारत में रेल की पटरियां और टेलीफोन लाइन बिछा रहे थे. इस काम को करने के लिए यूरोपियन समाज के लोगों को भारत में बुलाया गया और फिर उन्होंने भारत में ही शादियाँ की और फिर यहीं बस गये.

एंग्लो इंडियन परिवारों में सबसे ज़्यादा का सम्बन्ध रेलवे से ही था. इन परिवारों के लोग आज भी खुद को ‘रेलवे चिल्ड्रन’कहते हैं.

एंग्लो इंडियन समुदाय ने 1876 में अपना संगठन बनाया ‘द ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन असोसिएशन.’ इसी संगठन के एक चर्चित अध्यक्ष हुए जबलपुर में पैदा हुए फ्रैंक एंथनी जो कि बाद में संविधान सभा के सदस्य बने और इन्हीं के आग्रह पर संविधान में अनुच्छेद 331 जोड़ा गया. इसी अनुच्छेद के तहत फ्रैंक एंथनी 7 बार बतौर सांसद मनोनीत हुए थे.

संसद और विधान सभा में एंग्लो इंडियन्स

एंग्लो इंडियन्स भारत का अकेला समुदाय हैं जिनका अपना प्रतिनिधी संसद और राज्यों की विधानसभा में मनोनीत करके भेजा जाता है.
यदि कुल 543 सीटों में एंग्लो इंडियन समुदाय का कोई भी सदस्य चुनकर नहीं आता है तो राष्ट्रपति इस समुदाय के दो लोगों को चुनकर लोकसभा में भेज सकता है. राष्ट्रपति द्वारा 2 लोगों के चुने जाने के स्थिति में लोकसभा में 545 सीटें हो सकती हैं.

#अनुच्छेद_331 के तहत राष्ट्रपति लोकसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्य नियुक्त करते हैं. इसी प्रकार विधान सभा में अनुच्छेद 333 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार है कि (यदि विधानसभा में कोई एंग्लो इंडियन चुनाव नहीं जीता है) वह 1 एंग्लो इंडियन को सदन में चुनकर भेज सकता है.
#संविधान_की_10वीं अनुसूची के मुताबिक कोई एंग्लो इंडियन सदन में मनोनीत होने के 6 महीने के अंदर किसी पार्टी की सदस्यता ले सकते हैं. सदस्यता लेने के बाद वो सदस्य पार्टी व्हिप से बंध जाते हैं और उन्हें पार्टी के मुताबिक सदन में काम करना पड़ता है.

ध्यान रहे कि मनोनीत सदस्यों के पास वो सारी शक्तियां होती हैं, जो एक आम सांसद के पास होती हैं. लेकिन राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होने के कारण वह राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते हैं.
डेरेक ओ ब्रायन संभवतः अकेले एंग्लो इंडियन हैं, जिन्होंने 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाला था हालाँकि उन्होंने यह मतदान तृणमूल कांग्रेस से सांसद होने के नाते किया था.

वर्तमान में संसद में भारतीय जनता पार्टी की तरफ से 2 एंग्लो इंडियन लोकसभा सांसद हैं. ये हैं केरल से रिचर्ड हे और पश्चिम बंगाल से जॉर्ज बेकर.
भारत एक सांस्कृतिक विविधताओं वाला देश है यहाँ पर हर समाज के लोगों को सम्मान और प्रतिनिधित्व मिलता है. शायद यही कारण है कि वर्ष 1951 से 2014 तक एंग्लो इंडियन समुदाय के  लोगों को संसद में मनोनीत करके भेजा जाता रहा है ताकि वे अपने लोगों के लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकें.

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