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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

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नवरात्रि : नवमी पर करे कन्या पूजन

महानवमी पर करें छोटी कन्याओं का पूजन
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मां दुर्गा करेंगी सभी मनोकामना पूर्ण
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मां दुर्गा को नौ दिनों तक घर में स्थापित करने और पूजन करने के बाद महानवमी के दिन ही विदाई दी जाती है। इस दिन छोटी-छोटी कन्याओं को मां का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है।
महानवमी का महत्व
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नवरात्रि में मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजन किया जाता है। महानवमी के दिन छोटी - छोटी कन्याओं को बुलाकर उन्हें सभी नौं देवियों का रूप मानकर उनका पूजन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कन्योओं का विधिवत पूजन करने से मां दूर्गा का आशीर्वाद मिलता है। मां की कृपा पाने का यह सबसे आसान तरीका है। महानवमी के दिन सभी कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा और उपहार दिया जाता है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। माना जाता है ऐसा करने से देवी की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है।
कुछ स्थानों पर लोग अष्टमी पूजन करते हैं यानी मां को अष्टमी तिथि के दिन विदाई देते हैं तो वहीं कुछ लोग नवमी का विशेष मानते हैं और नवमी के दिन मां को विदा करते हैं। नौ दिनों तक व्रत रखने और मां का पूजन करने वाला व्यक्ति कठिन नियमों का पालन करता है। नौ दिनों तक ब्रह्मचार्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। इस समय केवल सात्विक आहार का ही प्रयोग किया जाता है। व्रत रखने वाला व्यक्ति शाम के समय फलाहार का ही प्रयोग कर सकता है। इसके अलावा नवरात्रि में लोग किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का प्रयोग नहीं करते।
महानवमी की पूजा विधि
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1. सबसे पहले साधक को सुबह जल्दी उठना चाहिए नहाकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद पूजा का संकल्प लेना चाहिए
2. एक साफ चौकी पर मां की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। मां को रोली या कुमकुम का तिलक करना चाहिए।
3. इसके बाद मां को फूलों की माला पहनानी चाहिए और फूल अर्पित करनी चाहिए।उसके बाद गोबर के उपले से अज्ञारी करनी चाहिए। अज्ञारी में लौंग, कपूर और बतासे चढ़ाने चाहिए।
4. इसके बाद मां की कपूर से आरती उतारनी चाहिए। इसके बाद सभी नौ वर्ष से छोटी कन्याओं का पूजन करना चाहिए।
5. पूजन के बाद उन्हें भोजन करान चाहिए और दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
मां दुर्गा की कथा
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पौराणिक कथा के अनुसार असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने जब ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने।
भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की उंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।
फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।
इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।


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