जग में अमृत को ढूंढता रहता इंसान
इंसान भी दिखता है कितना नादान
जो अपने भीतर उसका नहीं प्रयोग
अमृत भावना में नही रह पाते लोग
अमरत्व नहीं है सृष्टि का कोई नियम
जीवन में रखना पड़ता है बड़ा संयम
बिन संयम के मन रहता है व्याकुल
थोड़े संयम से फलता फूलता है कुल
रावण नाभि में बताया जाता है अमृत
फिर भी श्री राम के हाथों हुआ मृत
नाभि ही होता है ऊर्जा का केंद्र बिन्दु
सूरज से प्रकाश पाता रहता है इन्दु
गर्भस्थ शिशु नाभि सहारे पाए भोजन
इसीलिए नाभि में है अमृत का व्यंजन
बातों से ही छलके अमृत का व्यवहार
अमृत रूपी वाणी से जीवन का श्रृंगार
बहुत कुछ स्थित इंसान तन के अंदर
इंसान है गुणों और दुर्गुणों का समंदर।
इंसान भी दिखता है कितना नादान
जो अपने भीतर उसका नहीं प्रयोग
अमृत भावना में नही रह पाते लोग
अमरत्व नहीं है सृष्टि का कोई नियम
जीवन में रखना पड़ता है बड़ा संयम
बिन संयम के मन रहता है व्याकुल
थोड़े संयम से फलता फूलता है कुल
रावण नाभि में बताया जाता है अमृत
फिर भी श्री राम के हाथों हुआ मृत
नाभि ही होता है ऊर्जा का केंद्र बिन्दु
सूरज से प्रकाश पाता रहता है इन्दु
गर्भस्थ शिशु नाभि सहारे पाए भोजन
इसीलिए नाभि में है अमृत का व्यंजन
बातों से ही छलके अमृत का व्यवहार
अमृत रूपी वाणी से जीवन का श्रृंगार
बहुत कुछ स्थित इंसान तन के अंदर
इंसान है गुणों और दुर्गुणों का समंदर।
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