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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

ज्योतिष : ग्रहों के वक्रिय सिद्धांत

ग्रहों के वक्रिय सिद्धांत

वक्री ग्रहों को लेकर पुरातन काल से आज तक ज्योतिषियों के भिन्न भिन्न विचार रहे हैं।हमारे ज्योतिष ग्रंथो में भी वक्री ग्रहो को लेकर अलग अलग विचार रखे गए हैं।ज्योतिषयो द्वारा रखें गये कुछ सामान्य विचार इस तरह है।
1 कुछ लोगों का मानना है वक्री ग्रह हमेशा शुभ फल देते है।
2 कुछ लोगों का मानना है वक्री ग्रह हमेशा अशुभ फल देते हैं।
3 कुछ लोग का मानना है वक्री ग्रह हमेशा भाव से पहले भाव का फल देते है।
4 कुछ लोग का मानना है वक्री ग्रह नीच राशि में उच्च के समान फल देते हैं और उच्च राशि में नीच के समान फल देते हैं।

 इस प्रकार से कइ मान्यताये है।आज इसी विषय पर चर्चा करते हैं।सबसे पहले ये जानले सूर्य और चंद्रमा हमेशा मार्गि रहते है।राहु और केतु हमेशा वक्री रहते है बाकि बचे 5 ग्रह समय समय पर मार्गि और वक्री दोनों होते रहते हैं।
जब कोई ग्रह अपनी कक्षा में सूर्य से अधिकतम दूरी पर होता है तब वो ग्रह वक्री हो जाता हैं उसी समय वो ग्रह प्रथ्वी के सबसे निकट होता है। अब जो ग्रह वक्र हुआ है उसके अपनी कक्षा मे सूर्य से अधिकतम दूरी पर होने पर और उसी समय प्रथ्वी के सबसे निकट होने पर उस ग्रह पर क्या क्या प्रभाव पड़ता है उसपर चर्चा करते हैं।

1 देखिए वक्री ग्रह का अपनी कक्षा मे सूर्य से अधिकतम दूरी पर होने के कारण वो सूर्य के तेज और ताप के प्रभाव से काफी दूर होता हैं इसलिए उस ग्रह की गति काफी धीमी हो जाती हैं जिसका मतलब ये होता हैं की वो वक्री ग्रह अन्य मार्गि ग्रहों के अपेक्षा कुंडली में अपने कारकत्वों से सम्बंधित काफी धीमे फल देता है मतलब उस वक्री ग्रह के कुंडली मे अपनी स्थिति के अनुसार गुण दोष स्वभाव में परिवर्तन नहीं आता पर वो वक्री ग्रह अपने फल काफी उतार चढ़ाव और बाधाओं के साथ देता हैं इसी कारण वक्री ग्रह अपने फल देने मे बहुत विलंब करते है जिस कारण हमें लगता है वक्री ग्रह अशुभ फल दे रहा हैं ।वक्री ग्रह जब तक वक्र रहते है तब तक उनकी गति काफी धीमी होती हैं और इसी धीमी गति को गोचर मे उनकी सामान्य गति से संतुलन बैठाने के लिए वक्री ग्रहो की डिग्री को पीछे ले जाया जाता हैं।जिसे देखकर बहुत से ज्योतिषी कह देते है वक्री ग्रह उल्टा चल रहा है।वक्री ग्रह के अपनी कक्षा मे सूर्य से अधिकतम दूरी पर होने के कारण वक्री ग्रह मनमाने और नाटकीय ढंग से फल देने  लगता हैं इसी मनमाने ढंग से फल देने के कारण वक्री ग्रह के व्यवहार को समझना मुश्किल हो जाता हैं।

 2  जब ग्रह वक्री होता हैं उस समय वो प्रथ्वी के सबसे निकट होता हैं जिस कारण अन्य मार्गि ग्रहों के अपेक्षा वक्री ग्रह का जातक के उपर ज्यादा प्रभाव पड़ता है कहलिजीये सामान्य अवस्था से तीन गुना ज्यादा इसिलिए अगर जातक की जन्म कुंडली में कोई ग्रह वक्री है तो उस वक्री ग्रह का जातक के उपर 100% प्रभाव पड़ता है।

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