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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

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बसंत पंचमी 2020: इतिहास, महत्व और महत्वपूर्ण तथ्य ।।

बसंत पंचमी के दिन को “श्री पंचमी” के रूप में भी जाना जाता है. इसे बसंत की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है. यहीं आपको बता दें कि हिन्दू पंचांग के अनुसार ये त्यौहार हर साल माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. इस त्यौहार का किसानों के लिए काफी महत्व है. बसंत पंचमी के दिन सरसों के खेत लहलहा उठते हैं. बसंत ऋतु के आने से पेड़-पौधों में फल-फुल खिलने लगते हैं और कई जगहों पर इस दिन पतंगबाजी भी होती है.

पंजाब क्षेत्र में, इसे वसंत के पांचवें दिन पतंग को उड़ाकर मनाते हैं. इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. हिन्दू धर्म में माँ सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है, अतः सभी पढने वाले विद्यार्थी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करते है.

यहाँ तक कि भगवत गीता मे श्री कृष्ण भगवान ने कहा है कि "बसंत मेरें रूपों में से एक है".

इस दिन पीले रंग के कपड़े पहने जाते हैं और तरह-तरह के खाद्य पदार्थों को पकाया जाता है जैसे- बूंदी के लड्डू, पीले रंग के मीठे चावल, इत्यादि. आइये जानते हैं कि बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है और इसका क्या महत्व है.

वसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?

'बसंत' शब्द का अर्थ है बसंत और 'पंचमी' का पांचवें दिन, इसलिये माघ महीने में जब बसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस महीने के 5वे दिन यानी पंचमी को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन स्कूल और कॉलेजों में माँ सरस्वती का पूजन होता है और सभी विद्यार्थी विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा करते हैं.
हम सभी जानतें है कि हमारे देश भारत में 6 ऋतुएँ होती हैं जिनके नाम क्रमशः बसंत ऋतु , ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु , शरद ऋतु , हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु अर्थात पतझड़ हैं,जिनमें से बसंत ऋतु का मौसम सबसे ज्यादा सुहावना होता है और इसीलिए बसंत ऋतु को ऋतुओ का राजा यानी ऋतुराज भी कहा जाता है क्योंकि इस मौसम में हर जगह धरती पर हरियाली होती है, इसी मौसम में गेहूं और सरसों की खेती की जाती है और ऐसा लगता है कि गेहू के खेतों ने हरे रंग की साड़ी पहनी हो और दूसरी तरफ पीले सरसों के खेत सोने जैसे लगते है मानो हर जगह सोना बिखेर दिया गया हो.
आइये बसंत पंचमी के बारे में और कुछ अदभुत तथ्यों पर नज़र डालते हैं.
बसंत पंचमी को माँ सरस्वती का जन्मदिवस भी कहा जाता है, इसलिये इसे माँ सरस्वती के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाते है . इसके पीछे एक छोटी सी कहानी है- “हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी तब हर तरफ शांति व्याप्त थी कही कोई ध्वनि नहीं सुनाई पड़ रही थी. उस समय भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल लेकर धरती पर छिड़का जिससे एक अदभुत शक्ति एवं चतुर्भुज हाथों वाली नारी का अवतार हुआ, जिनके हाथों में वीणा, माला, पुस्तक इत्यादि थी और जब उन्होंने ब्रह्माजी के कहने पर वीणा बजाई तो हर तरफ संसार मे ध्वनि फैल गई, तब ब्रह्माजी ने वीणा की देवी को सरस्वती के नाम से पुकारा जोकि ज्ञान और संगीत की भी देवी कहलाती है. इसी कारण इस दिन को माँ सरस्वती की उत्पत्ति के रूप मे मनाया जाता है.
- बसंत पंचमी के दिन ही होलिका की मूर्ति के साथ लकड़ीयों को इकट्ठा करके एक सार्वजनिक स्थान पर रख दिया जाता है. अगले 40 दिनों के बाद, होली से एक दिन पहले, श्रद्धालु होलिका दहन करते हैं जिसमें छोटी छोटी टहनियाँ और अन्य ज्वलनशील सामग्री भी डालते है.


- हमारे भारत मे कोई भी त्योहार मीठे के बिना अधूरा होता है– आइये देखते हैं अलग-अलग जगहों पर क्या-क्या मीठे पकवान इस दिन बनाएं जाते हैं.

बंगाल – माँ सरस्वती को बूंदी के लड्डू और मीठे चावल अर्पित किये जाते हैं.

पंजाब – यहाँ मीठे चावल, मक्के की रोटी, सरसों का साग खाया जाता है.

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