भारत में महानगरों में जनसँख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, जिससे पुलिस को कानून और व्यवस्था को दुरुस्त रखने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट ने प्रदेश के नॉएडा और लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू करने का फैसला लिया है.
भारत में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम का इतिहास:-
भारत में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम की शुरुआत अंग्रेजों ने शुरू की थी. भारत में पुलिस सिस्टम, पुलिस अधिनियम, 1861 पर आधारित थी और आज भी ज्यादातर शहरों में पुलिस प्रणाली इसी अधिनियम पर बेस्ड है. अंग्रेजों के समय में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम मुंबई (बॉम्बे),चेन्नई (मद्रास) और कोलकाता (कलकत्ता) में लागू थी.
नॉएडा और लखनऊ में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल, भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी (आईएस) के पास पुलिस पर नियत्रंण के अधिकार भी होते हैं. किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए बल प्रयोग के निर्णय लेने, धारा 144 लगाने के अधिकार, जिलाधिकारी के पास होते हैं. पुलिस के अधिकारी, आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या कमिश्नर या फिर शासन के आदेश के तहत ही कार्य करते हैं जिससे निर्णय लेने में देर हो जाती है और कई बार स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है.
अर्थात आसान शब्दों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में IPC और CRPC के कई महत्वपूर्ण अधिकार, पुलिस कमिश्नर को मिल जाते हैं जो कि पहले जिलाधिकारी के पास होते थे.
पुलिस कमिश्नर के पास को ज्यूडिशियल पॉवर भी होती हैं. CRPC के तहत कई अधिकार इस पद को मजबूत बनाते हैं. पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस ही मजिस्ट्रेट पॉवर का इस्तेमाल करती है.
पुलिस कमिश्नरी प्रणाली का गठन:-
पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में एडीजे स्तर के अधिकारी को पुलिस कमिश्नर बनाया जायेगा और 9 एसपी रैंक के अधिकारी तैनात होंगे जिनमें एक एसपी रैंक की अधिकारी महिला भी होगी ताकि महिला सुरक्षा को भी सुधारा जा सके. इसके लिए निर्भया फण्ड का इस्तेमाल किया जायेगा. इसके साथ ही एसपी, एडिशनल एसपी रैंक का अधिकारी यातायात सुगमता के लिए विशेष रूप से तैनात होगा.
इस प्रणाली में थानाध्यक्ष और सिपाही के अधिकारों में कोई परिवर्तन नहीं होगा लेकिन उप पुलिस अधीक्षक (डिप्टी एसपी) से ऊपर जितने अधिकारी होते हैं, उनके पास मजिस्ट्रेट स्तर की शक्ति आ जाएगी.
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