❇️इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के शोधकर्त्ताओं ने चावल के दाने से भी छोटा थ्रू द वाल रडार (Through-The-Wall Radar) विकसित किया है।
🔰 मुख्य बिंदु:- ✅
❇️इस रडार को संपूरक धातु ऑक्साइड सेमीकंडक्टर ( #Complementary_Metal_Oxide_Semiconductor-CMOS) तकनीक का उपयोग करके विकसित किया गया है।
❇️एक संपूरक धातु ऑक्साइड सेमीकंडक्टर में द्वितीयक वोल्टेज से जुड़े अर्द्धचालकों का एक समूह होता है, ये अर्द्धचालक विपरीत व्यवहार में काम करते हैं।
❇️इस रडार में एकल ट्रांसमीटर, तीन रिसीवर और एक उन्नत आवृत्ति का सिंथेसाइज़र, जो रडार संकेतों को उत्पन्न करने में सक्षम है, का प्रयोग किया गया है। इन सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को एक ही चिप पर व्यवस्थित किया गया है।
❇️ गौरतलब है कि कुछ ही देशों के पास एक ही चिप पर रडार से संबंधित सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इंस्टाल करने की क्षमता है।
❇️इस रडार का उपयोग रक्षा क्षेत्र, स्वास्थ्य क्षेत्र, परिवहन और कृषि क्षेत्रों में किया जाएगा।
🔰विशेषता:-✅
❇️पारंपरिक रडार की तुलना में ‘थ्रू द वाल रडार’ न केवल दीवार के पीछे व्यक्तियों की उपस्थिति का पता लगा सकता है बल्कि उनके कार्यों एवं शारीरिक मुद्राओं की जानकारी भी प्राप्त कर सकता है।
❇️यह रडार जटिल संकेतों का भी उपयोग करता है जिसे चिर्प ( #Chirp) के रूप में जाना जाता है। इसके लिये निम्नलिखित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की आवश्यकता होती है-
1-माइक्रोवेव ट्रांसमीटर
2-एक रिसीवर
3-एक आवृत्ति सिंथेसाइज़र
❇️हालाँकि यह रडार चिप मूल रूप से हवाई अड्डे के सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिये विकसित की गई है।
🔰 इंप्रिंट ( #IMPRINT) कार्यक्रम:- ✅
❇️इस रडार चिप के विकास के लिये किया गया अनुसंधान भारत सरकार के इंप्रिंट (IMPRINT) कार्यक्रम के तहत वित्तपोषित था। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड इस परियोजना में एक सक्रिय भागीदार है।
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