रामचरितमानस कथा विराम
कथा विसर्जन होत है, सुनहु वीर हनुमान।
रामलखन सिया जानकी सदा करहू कल्याण॥
जय जय सीताराम के, जय लक्ष्मण बलवान।
जय हो कपीस सुग्रीव के, कहत चले हनुमान॥
एक घड़ी आधो घड़ी, पुनि आधो के आध।
तुलसी चर्चा राम के, कटै कोटि अपराध॥
राम नाम की लेत ही , सकल पाप मिट जाय।
जैसे रवि के उदय से, अंधकार मिट जाय॥
राम नाम जपते रहो, मन में राखो धीर।
कारज वही सुधारिहै ,कृपासिंधु रधुवीर॥
सब धनवान गरीब है, बहुत मौत के पास।
वह नर ही धनवान है, जो है हरि के पास॥
धन्य धन्य वह देश को, धन्य धन्य वह ग्राम।
धन्य धन्य वह जीव को, लेत राम के नाम॥
बाजा बाजे गहगहे, भारद्वाज मुनिराज।
देवता सब आश्रम गये, शंभू गये कैलाश॥
रामायण विराम सुनि के, आयहु चतुर सुजान।
जो जन जहां से आयहु, जहं तहं करहु प्रयान॥
तीरथ पावन सकल मिले , हरहु मोर अज्ञान।
रामायण बैकुंठ गये, बिदा होत हनुमान॥
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