Vyakaran (Dhatu gana)
हम धातु के गणों के बारे में पढ़ेंगे संस्कृत में धातुगण 10(भ्वादि से चुरादि तक) होते है, नीचे इन धातुओं के कुछ उदाहरण है:-
In Sanskrit There are 10 gana (Parts) of Dhatu (from भ्वादि to चुरादि)। Below there are few examples based on these gana:-
१. भ्वादि = भवति, खादति, पठति।
२. अदादि = अत्ति, वक्ति, हन्ति
३. जुहोत्यादि = जुहोति, जहाति, बिभेति।
४. दिवादि = दीव्यति, नृत्यति, विध्यति।
५. स्वादि = सुनोति, आप्नोति, शृणोति।
६. तुदादि = तुदति, नुदति।
७. रुधादि = रुणद्धि, भिनत्ति, छिनत्ति।
८. तनादि = तनोति, करोति।
९. क्र्यादि = क्रीणाति, जानाति, प्रीणाति।
१०. चुरादि = चोरयति, स्पृहयति, गणयति।
जैसा आपको भान है भ्वादि से चुरादि तक 10 गण होते हैं। इन गणों को विकरणप्रत्यय के हिसाब से बाँटा गया है।
विकरण प्रत्यय क्या होते है ?
विकरण प्रत्यय वे होते हैं, जो धातु और तिङ् (ति तः अन्ति) प्रत्यय के बीच में आते हैं। शप्, लुक्, श्यन् जैसे 10 विकरण है जो धातु और तिङ् के बीच में लगेंगे।
भ्वादि सबसे प्रचलित गण है। भू पठ् भज् खेल् जैसे सारे धातु भ्वादिगण के अन्तर्गत हैं। भ्वादि शप्-विकरण है। भू और ति के बीचमें जो "अ" दिखता है, वह "शप्" का "अ" है।
पठ्+शप्(अ)+ति = पठति।
पठ्+अ+ति【इन प्रत्ययों में श् प् जैसे अक्षर अनुबन्ध कहलाते हैं, वे निकल जाते हैं और निरनुबन्ध-रूप (remainder "अ") बच जाता है।】
भज्+शप्(अ)+ति = भजति। ऐसे सब जगह बीच में "अ" लगेगा।
जहाँ दीव्यति सिध्यति विध्यति जैसे रूपों में "य" दिखता है वह "श्यन्" का निरनुबन्ध है।
विध्+य+ति = विध्यति।
कुछ गण (तुदादि गण में) में "अ" लगता है लेकिन वह मात्र "श" है। प् बिना अनुबन्ध के केवल "श" विकरण होने का अर्थ कुछ व्याकरण-सम्बन्धी कार्यों का अभाव है और अनुबन्ध का कारण कुछ व्याकरणविषयक कार्यों का होना है। जो बादमें सीखेंगे।
तुद्+अ+ति = तुदति। नुद्+अ+ति = नुदति।
ऐसे धीरे धीरे हम दस गण सीखेंगे।
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