प्रमुख बिंदु
मार्च 2019 में श्रम भागीदारी दर (Labour Participation Rate-LPR) 42.7% थी। CMIE के अनुसार, मार्च 2020 में LPR 41.9% पर पहुँच गई थी, यह पहली बार है जब किसी माह में LPR 42% से भी नीचे आ गया है।
जनवरी से मार्च 2020 के बीच LPR में तकरीबन 1% की गिरावट आई है, जनवरी 2020 में LPR 42.96% था, जो कि मार्च 2020 में 41.9% पर पहुँच गया।
मार्च 2020 में बेरोज़गारी दर 8.7% पर पहुँच गई थी, जो कि बीते 43 महीनों अथवा सितंबर 2016 से सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि यह दर जनवरी 2020 में 7.16% थी।
विश्लेषकों के अनुसार, जुलाई 2017 में 3.4% के न्यूनतम बिंदु के पश्चात् से बेरोज़गारी दर लगातार बढ़ रही है, किंतु मार्च 2020 में पिछले महीने की तुलना में 98 आधार अंकों की वृद्धि, अब तक दर्ज की गई सबसे अधिक मासिक वृद्धि है।
CMIE द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, जैसे-जैसे हम लॉकडाउन की अवधि की ओर बढ़ रहे हैं, रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित समस्याएँ और अधिक गंभीर होती जा रही हैं।
CMIE के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, मार्च के अंतिम सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह में देश में बेरोज़गारी दर में 23% से भी अधिक हो गई है। ध्यातव्य है कि विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने भी CMIE के आँकड़ों की पुष्टि की है।
वहीं इस दौरान (मार्च के अंतिम सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह) श्रम भागीदारी दर 39% पर पहुँच गई और रोज़गार दर केवल 30% पर आई गई है।
रोज़गार दर (Employment Rate)
रोज़गार दर किसी क्षेत्र विशिष्ट में कार्यशील आयु के लोगों की संख्या को दर्शाता है जिनके पास रोज़गार है। इसकी गणना कार्यशील आबादी और कुल आबादी के अनुपात के रूप में की जाती है।
बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate)
जब किसी देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है और काम करने के लिये राजी होते हुए भी लोगों को प्रचलित मज़दूरी पर कार्य नहीं मिलता, तो ऐसी अवस्था को बेरोज़गारी की संज्ञा दी जाती है। बेरोज़गारी का होना या न होना श्रम की मांग और उसकी आपूर्ति के बीच स्थिर अनुपात पर निर्भर करता है। बेरोज़गारी दर अभिप्राय उन लोगों की संख्या से है जो रोज़गार की तलाश में हैं।
आँकड़ों के निहितार्थ
मार्च माह के अंतिम सप्ताह और अप्रैल माह के पहले सप्ताह में बेरोज़गारी दर में हुई बढ़ोतरी का मुख्य कारण सरकार द्वारा घोषित 21-दिवसीय लॉकडाउन को माना जा रहा है, इस लॉकडाउन अवधि के कारण देश में सभी उद्योगों में आर्थिक गतिविधियाँ पूर्ण रूप से रुक गई हैं।
जिसके प्रभावस्वरूप सभी क्षेत्रों में लोगों की छंटनी शुरू हो गई है।
हालाँकि ध्यान देने योग्य यह भी है कि बेरोज़गारी दर में वृद्धि लॉकडाउन की अवधि से पूर्व ही शुरू हो गई थी।
कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि आँकड़ों के विपरीत भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और अधिक खराब हो सकती है।
RBI द्वारा मार्च के अंत में किये गए सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि लॉकडाउन के पश्चात् विनिर्माण क्षेत्र के लिये मांग काफी प्रभावित होगी।
इसी प्रकार ‘फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलरशिप एसोसिएशंस’ (Federation of Automobile Dealership Associations-FADA) के अनुसार, ऑटो सेक्टर में कोरोनवायरस (COVID-19) महामारी के पश्चात् खुदरा बिक्री में 60-70% की गिरावट देखी गई है।
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी
(Center For Monitoring Indian Economy-CMIE)
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की स्थापना एक स्वतंत्र थिंक-टैंक के रूप में वर्ष 1976 में की गई।
CMIE प्राथमिक डेटा संग्रहण, विश्लेषण और पूर्वानुमानों द्वारा सरकारों, शिक्षाविदों, वित्तीय बाज़ारों, व्यावसायिक उद्यमों, पेशेवरों और मीडिया सहित व्यापार सूचना उपभोक्ताओं के पूरे स्पेक्ट्रम को सेवाएँ प्रदान करता है।
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