गुजरात के जूनागढ़ ज़िले के एक किसान-वैज्ञानिक वल्लभभाई वसरमभाई मरवानिया (Vallabhhai Vasrambhai Marvaniya) ने गाजर की एक जैव-सशक्त किस्म ‘मधुबन’ (Madhuban) को विकसित किया है जिसमें बीटा कैरोटीन (β-carotene) एवं लौह तत्व की उच्च मात्रा मौजूद है।
मुख्य बिंदु:
मधुबन उच्च पौष्टिकता वाली गाजर की एक किस्म है जिसमें बीटा-कैरोटीन (277.75 मिलिग्राम प्रति किलो) तथा लौह तत्व (276.7 मिलीग्राम प्रति किलो) मौजूद हैं।
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ (National Innovation Foundation) ने वर्ष 2016-17 के दौरान जयपुर स्थित राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान (Rajasthan Agricultural Research Institute- RARI) में मधुबन गाजर का सत्यापन परीक्षण किया था। जिसमें पाया गया था कि मधुबन गाजर की उपज 74.2 टन प्रति हेक्टेयर है और पौधे का बायोमास 275 ग्राम प्रति पौधा है।
उपज प्रति हेक्टेअर:
जूनागढ़ ज़िले के 200 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में इसकी खेती की गई है। जहाँ इसकी औसत पैदावार 40-50 टन प्रति हेक्टेयर है। स्थानीय किसानों के लिये यह किस्म आय का प्रमुख स्रोत बन गई है।
पिछले 3 वर्षों के दौरान गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के लगभग 1000 हेक्टेयर में मधुबन गाजर की खेती की जा रही है।
उपयोग:
इसका उपयोग विभिन्न मूल्य वर्द्धित उत्पादों जैसे- गाजर चिप्स, जूस एवं अचार आदि के लिये भी किया जा सकता है।
गौरतलब है कि भारत के राष्ट्रपति ने फेस्टिवल ऑफ इनोवेशन (Festival of Innovation- FOIN)- 2017 कार्यक्रम में वल्लभभाई वसरमभाई मरवानिया को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था। वहीं उनके इस असाधारण कार्य के लिये वर्ष 2019 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
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