Follow Us 👇

Sticky

तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

कोविड-19 : कानूनों में बदलाव की ज़रूरत : भारतीय शासन व्यवस्था

👉 संकट के समाधान का एक पहलू संवाद भी ?

भारत में नए कोरोना वायरस की वजह से फैली कोविड-19 की महामारी ने जिस तरह ख़तरे का संकेत दिया है इससे न केवल हमारे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की ख़ामियां उजागर हो गई हैं बल्कि जोखिम से जुड़े संवाद और संकट के प्रबंधन से जुड़े क़ानूनी ढांचे की कमियों को भी सामने ला दिया है।

 सरकार ने पूरे देश में जिस लॉकडाउन का एलान किया है, उसे साम्राज्यवाद के दौर के क़ानून एपिडेमिक डिज़ीज़ एक्ट के तहत लगाया गया है ये क़ानून आज से 123 साल पहले यानी वर्ष 1897 में बना था इसके अतिरिक्त सरकार ने अपनी घोषणा को प्रभावी करने के लिए वर्ष 2005 में बने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून की भी मदद ली है हालांकि, इन दोनों ही क़ानूनों में इस बात की व्याख्या नहीं की गई है कि किसी संकट के समय संवाद कैसे हो।

जबकि संकट के समय आपदा प्रबंधन में जनता से सही संवाद, सबसे महत्वपूर्ण तत्व है लेकिन, आज समय की मांग ये है कि इन दोनों क़ानूनों में त्वरित गति से परिवर्तन किया जाना चाहिए और इनमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के उपायों को भी शामिल किया जाए।

आज जिस तरह से संवाद के डिजिटल माध्यमों का दायरा बढ़ गया है, उससे ये आवश्यक हो गया है कि इन तत्वों को भी क़ानून के दायरे में लाया जाए।

 इसके अतिरिक्त विश्व स्वास्थ्य संगठन को चाहिए कि वो इंटरनेशनल हेल्थ रेग्यूलेशन (IHR) में तुरंत परिवर्तन करे और किसी भी संकट से निपटने और जोखिम से जुड़े संवाद के लिए प्रोटोकॉल तय करे।

नीति नियंताओं को चाहिए कि वो ह्योगो फ्रेमवर्क (Hyogo Framework) से प्रेरणा लें क्योंकि इस फ्रेमवर्क में किसी भी आपदा के दौरान उसके प्रबंधन की पूरी कार्ययोजना के बारे में विस्तार से बताया गया है इस फ्रेमवर्क में कहा गया है कि, ‘पूर्व चेतावनी के सिस्टम का विकास किया जाए, जो जन केंद्रित हो।

 ख़ासतौर से ऐसी व्यवस्थाएं विकसित की जाएं, जो समय पर लोगों को इस तरह से चेतावनी दें कि वो उस आम जनता की समझ में आ जाए, जिसे इस संकट से जोख़

0 comments: