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तत्सम और तद्भव शब्द की परिभाषा,पहचानने के नियम और उदहारण - Tatsam Tadbhav

तत्सम शब्द (Tatsam Shabd) : तत्सम दो शब्दों से मिलकर बना है – तत +सम , जिसका अर्थ होता है ज्यों का त्यों। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना...

भारत के एक महायोगी संत ऐसे जिनकी आयु 900 वर्ष


भारत के एक ऐसे महायोगी संत जो 900 साल जीवित रहे..विज्ञान भी उनकी आयु 250 वर्ष से ज्यादा स्वीकार कर चुका है.... उनके जीवन में घटने वाली घटना सामान्य मनुष्य के लिये अकल्पनीय, अविश्वसनीय थी.....

● भारत के इतिहास में कई साधू संत ऐसे हुए है जो किसी परिचय के मोहताज नहीं जिनकी कृति से विश्व आज तक गुंजायमान है। ऐसे ही एक संत हुए देवरहा बाबा जिनके बारे में कहा जाता है की वो लगभग 900 वर्ष तक जीवित रहे। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव के रहने वाले थे।

● वो एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष और बाबा थे । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। देवरहा बाबा की सही आयु का आकलन भी नहीं है।

 ● बाबा करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते है।

●बाबा ने जीवनभर कोई अन्न ग्रहण नहीं किया। वे यमुना का पानी पीते थे अथवा दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। एक अध्ययन के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए जरूरी एनर्जी ले तो सम्भव है कि उसे भूख ना लगे।

● बाबा के अनुयायी में देश विदेश सभी जगहों के लोग थे। नेता, अभिनेता,राजा,मुख्यमंत्री या मजदूर सभी बाबा के भक्त थे। सन 1911 जार्ज पंचम जब भारत आया था तब वह बाबा से मिलने गया था। ब्रुनोई के सुल्तान से लेकर एलिजाबेथ टेलर, जेम्स बांड रोजर मूर  बाबा से आशीर्वाद लेने आते थे।

●डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को बचपन में ही देखकर बाबा ने कहा था कि वह एक दिन राजा बनेंगे। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन् 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया।

● उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।लोगों का मानना है, कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।

●1987 की बात होगी,  जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों मेंअफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो ? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही ! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि, यह दिल्ली से आए अफसरों का आदेश है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए।उन्होंने कहा कि, यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि, दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया की प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग. बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे।

● वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटे विहीन। यही नहीं यह खुशबू भी बिखेरते थे।

●बाबा एक साथ दो अलग-अलग जगहों पर उपस्थित होने का दावा करते थे। इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे।

● डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने लगाई बाबा की उम्र पर मोहर:- बताया जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने बाबा की लम्बी आयु होने का दावा किया था। कहा जाता है कि उन्होंने बाबा की उम्र करीब 150 साल होने की बात कही। उनके अनुसार जब वे स्वयं 73 साल के थे, तब उनके पिता उनको बाबा के दर्शनों के लिए ले गए। उनके पिता की उम्र भी कहीं ज्यादा थी। और राष्ट्रपति के पिता कई सालों से बाबा देवरहा को जानते थे। इस बात से बाबा की उम्र बहुत लम्बी रही होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

● देश में आपातकाल के बाद चुनाव हुए, तो इंदिरा गांधी हार गईं। कहते हैं कि वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। बाबा ने उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया। वहां से लौटने के बाद इंदिरा जी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा ही तय किया। इसी चिह्न पर 1980 में इंदिरा जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वे देश की प्रधानमंत्री बनीं। बाबा मचान पर बैठे-बैठे ही श्रद्धालुओं को धन्य करते थे। कई लोगों का दावा था कि उनके होंठों तक आने से पहले ही बाबा उनके मन की बात जान लेते थे।

● 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन बाबा ने इस लोक से विदा लिया जिसकी भविष्यवाणी वो 5 साल पहले 1985 में कर चुके थे।

जहाँ कुछ तथाकथित संतो को राम से भी बड़ा हमारे इतिहासकार पेंट करने में लगे हुए हैं वहीं एक महायोगी देवरहा बाबा जिन्होने योग की सभी विद्या सीख कर समय से लेकर मन,सजीव निर्जीव सब पर नियंत्रण कर लिया था,ऐसे महापुरुष महायोगी को इतिहासकारों ने हमारी जानकारी से दूर रखा शायद कारण यही था की  बाबा सनातन परंपरा से आते थे...


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