विसर्गसन्धिः (सरलीकृत) -१

(निर्देश  = वैयाकरण कृपया समझें कि सरलीकृत करने के लिए यथासूत्र लेख नहीं है यह)

विसर्ग क्या है? विसर्ग एक अयोगवाह है। अयोगवाह मतलब जो संस्कृत वर्णमाला में अनुल्लिखित है। 

स् और र् ही विसर्ग का रूप लेते हैं। विसर्ग स् और र् का एक आदिष्ट रूप है (acquired form है), अतः वर्णमाला में पृथक् ग्रहण न किया। 

1) पदान्त के स् को  ः करो,  यदि पर में अवसान (खाली जगह) हो अथवा  खफछठथचटतकप हो तो।   
रामसु + करोति (सु प्रथमा विभक्ति का प्रत्यय है)  
रामस् + करोति
रामः + करोति।
रामसु = रामस् = रामः (आगे खाली है)।

2) क) विसर्ग का भी स् होता है त थ परे रहते।  
विष्णुः+त्राता = विष्णुस्त्राता। 

    (ख) ट ठ परे हो तो ष्। 
रामः टीकते, = रामस्+टीकते, रामष्टीकते। (ध्यान रहे पहले तो स् ही होगा, फिर ष् हो।)

    (ग) च छ परे हो तो श्। 
रामः चिनोति = रामस् चिनोति = रामश्चिनोति। (पहले स्, फिर श्)।

- शेष नियम अगले चरण में।

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